०२ अक्टूबर २०३०: सरकार ने आज एक विज्ञप्ति जारी की जिसके अनुसार 'इंडिया दैट इज भारत' की जगह 'डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ महात्मा गाँधी' कर दिया गया. इसके साथ ही सरकार का दो साल पहले का 'भारत' को देश का राष्ट्रीय नाम घोषित करने वाला फैसला रद्द हो जाएगा. कई लोगों ने इसका विरोध किया है... विपक्ष का कहना है कि सारे दस्तावेजों पर परिवर्तन करना बहुत महंगा होगा जबकि प्रधानमंत्री ने कहा है कि सारे दस्तावेजों को इलेक्ट्रोनिक कर दिए जाने के बाद इस खर्च का कुछ ख़ास असर नहीं पड़ेगा. उधर गृहमंत्री ने कहा है कि इसी तरह के बेबुनियाद सवाल उठाये गए थे जब हमने 'भारत' को देश का राष्ट्रीय नाम घोषित किया था. भारत गणराज्य, भारतवर्ष, हिन्दुस्तान जैसे कई नामों में से हमने सबसे सटीक नाम को जब राष्ट्रीय नाम घोषित किया था तब भी कई लोगों ने यह आरोप लगाया था कि हमारे पास कुछ भी राष्ट्रीय घोषित करने को नहीं बचा इसलिए हम देश के नाम के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. लेकिन हमने तब भी जनता की भावनाओं का सम्मान किया था और आज भी कर रहे हैं. सोचिये तो शोर्टफॉर्म में ‘ड़ीआर महात्मा गाँधी’ कितना अच्छा लगेगा. लोग डॉक्टर महात्मा गाँधी भी कह लिया करेंगे.
उधर एक मंत्री के ब्लॉग पोस्ट से नया विवाद खडा हो गया है. अपने ही मंत्री से ऐसी पोस्ट देखकर सरकारी खेमे के कई लोग सकते में है. मंत्रीजी ने अपनी पोस्ट में कहा है कि ये तो होना ही था. इतिहास इस बात का गवाह रहा है... जो कुछ भी राष्ट्रीय घोषित हो जाता है वो धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है. चाहे वो राष्ट्रीय पक्षी हो, पशु हो, खेल हो, भाषा या नदी. गंगा के राष्ट्रीय नदी घोषित होने के बाद ही मुझे तो ये समझ में आ गया था. कैबिनेट मीटिंग में तो पानी को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने पर भी विचार चल रहा है. वैसे सच में बात ये है कि सरकार के पास अब राष्ट्रीय घोषित करने के लिए कुछ बचा नहीं है. पहले किसी सरकार द्वारा चालु की गयी परियोजना का नाम नयी सरकार अपने नेताओं के नाम पर रख लेती थी. लेकिन जब से योजना शुरू होने के पहले ही नेताओं के नाम पर फैसला होने लगा तब से नयी सरकारों के पास अपने नेताओं के नाम पर घोषित करने के लिए भी कुछ नहीं बचा. पिछले दिनों एक नेता ने २० वर्षीय पुराने पुल का नाम अपने नाम पर रख लिया था तबसे एक नयी होड़ चालु हो गयी.
कई नेताओं ने इस ब्लॉग पोस्ट पर मंत्री का इस्तीफा माँगा है.
उधर बहनजी ने लगभग दो दशक पहले बनाए गए स्मारकों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करवाने की मांग की है. उनका कहना है की राष्ट्रीय स्मारकों में आ रही कमी को देखते हुए यह कदम जरूरी हो गया है.
हिंदी दिवस पर हिंदी ब्लोगरों के एक संगठन ने हिंदी को ब्लॉग्गिंग की राष्ट्रीय भाषा बनाने की मांग की है और कांग्रेस पार्टी ने एक्सवायजेड गाँधी को प्रधान मंत्री का नया उम्मीदवार बनाते हुए प्रधान मंत्री का राष्ट्रीय उपनाम ‘गांधी’ करने की मांग की है…
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और मेरा अलार्म बज गया… मैं ०२ अक्टूबर २०३० से ०१ अक्टूबर २००९ पर वापस आ गया... सोचा जल्दी से ये पोस्ट ठेल दूं नहीं तो भूल जाऊँगा. वैसे सुना है सुबह के सपने सच होते हैं :)
~Abhishek Ojha~
:-) whew !! Thank goodness ...it was just a Dream ...
ReplyDelete@ इतिहास इस बात का गवाह रहा है... जो कुछ भी राष्ट्रीय घोषित हो जाता है वो धीरे-धीरे विलुप्त हो जाता है. चाहे वो राष्ट्रीय पक्षी हो, पशु हो, खेल हो, भाषा या नदी. गंगा के राष्ट्रीय नदी घोषित होने के बाद ही मुझे तो ये समझ में आ गया था. कैबिनेट मीटिंग में तो पानी को राष्ट्रीय सम्पदा घोषित करने पर भी विचार चल रहा है. वैसे सच में बात ये है कि सरकार के पास अब राष्ट्रीय घोषित करने के लिए कुछ बचा नहीं है.
ReplyDeleteसुबह सुबह ये क्या कर दिया? दिन भर सोचने का सामान दे दिया।
शिक्षा को भी 'राष्ट्रीय' जिम्मेदारी घोषित करने की माँगे उठती रही हैं। तो क्या . . ?
Girijesh ji ka comment hi mera bhi comment samjhaa jaaye.
ReplyDeleteप्रधान मंत्री का राष्ट्रीय उपनाम ‘गांधी’ करने की मांग की
ReplyDeleteमांग काहे की? ये तो उनका हक़ बनता है..
वईसे एक्सवायजेड गाँधी के लिए तो 100 नंबर
अभिषेक के हंसीं -फंसी सपने -यही नाम ठीक रहेगा इस नयी श्रृंखला का ! बढियां पकड़ लिए हैं अब -बधाई !
ReplyDeleteतो जनाब! रंजक और भयानक सपने भी देख लेते हैं। चलिए एक दस्तावेज और सही इक्कीस साल बाद यह भी प्रमाणित करेगा कि सुबह का सपना सच होता है या नहीं।
ReplyDeleteभतिजे इतने खतरनाक सपने आने लग गये हैं कि २१ साल आगे की देख रहे हो? जल्दी से इलाज करवाओ यानि की शादी करो और मिट्ठाई खिलाओ.:)
ReplyDeleteरामराम.
गांधी जी का चश्मा, सैंडल, घड़ी, दस्तावेज सात समंदर पार नीलाम होते है तो हम सब भारतवासी विचलित हो जाते हैं...फिर कोई धन्ना सेठ देश पर अहसान करते हुए नीलामी में उन चीजों को खऱीद लेता है...बापू की चीज़ों की इतनी फिक्र...लेकिन बापू के मूल्यों, आदर्शों का क्या...अमा कोई तो उन्हें भी खरीदो यार...
ReplyDeleteकहीं सचमुच सच हो गया तो??????????
ReplyDeleteप्रणाम
2 oct (ya 1 oct) ko 1st april banae main koi kasar nahi chori aapne ji....
ReplyDeletewaise post kaafi brain stroming thi
अच्छा किया जो ऑफिस जाने से पहले लिख डाला. भूलने का खतरा तो नहीं लेकिन समय का अभाव आड़े आ सकता था. पानी को राष्ट्रीय संपत्ति बनाये जाने वाली बात तो रहीम जी ने बहुत पहले कह दी थी....:-)
ReplyDeleteपोस्ट पढ़कर बहुत बढ़िया लगा.
KUSH JEE KE BAATO SE MAI BHI SAHAMAT HOO.
ReplyDeleteताऊ की बात मान लो अच्छा रहेगा, ताऊ ने दुनिया देखी है. राम राम जी की
ReplyDeleteबड़ा अच्छा लगा इस पोस्ट से यह आश्वासन पा कर कि सन २०३० में भी गांधीजी चर्चा में रहेंगे। :)
ReplyDeleteकाश सुबह के सपने सच होते .....वैसे अक्सर यहाँ २ ओक्टुबर को लोग छुट्टी मनाते है ...चैनल गांधी के ऊपर कुछ फिल्मे दिखाते है .ओर...समाचार वाले कुछ बुद्धिजीवियों को पकड़ के बहस कराते है ....कुल मिलाकर वाही माहोल है .१५ अगस्त वाले दिन जैसे देशभक्ति गाना .....एक ओर दुर्भाग्य है शास्त्री जी का भी जन्म दिन इसी दिन है .गांधी जी की छाया में वो अक्सर पीछे छूट जाते है
ReplyDeleteसामयिक सटीक व्यंग्य..
ReplyDeleteक्या कमाल का लिखते हैं आप?
ReplyDeleteआप से आपकी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से पूर्व परिचय है( साभार--एक आलसी का चिठ्ठा)
आप को पढ कर बहुत ही अच्छा लगा.....
आशा है कि आप का साहित्यिक सानिध्य मिलता रहेगा......
Ye bat to such hee hai ki sarkar jo cheej rashtreey ghoshit kar detee hia wah dheere dheere lupt ho jata hai. isee silsile men kaee sal pehale ka ek chutkula yad aagaya tab Prafullchandra Sen Pashchim bangal ke mukhy mantri the. Ek din ek budhiya unke pas aaee aur kaha sahab agar aap mere peeth pe hath rakh den tpo badee krupa hogee. nhone kaha achcha aur rakh bhee diya fir bole aisa kyun karwaya. To bolee sarkar apa log jis cheej pe hath dharte ho wah gayab ho jatee hai jaise cheeni , mitti ka tel wagaira, meree peeth men aajkal bada dard chal raha hai to maine socha......
ReplyDeleteसपने में स्पैम सपना फ़िल्टर नहीं होता क्या?
ReplyDeletewaaah ............waaah. Let the dream come true.
ReplyDeleteकाश, ये सपना मुझे आया होता...
ReplyDeleteदिलचस्प पोस्ट।
लिख्खाड़ तो पक्के हो, ये पहले भी कह चुका हूं प्यारे....:)
सुबह-सुबह की घुमाई में आपके ब्लॉग पर नजर पड़ी, और इस पहले ही आलेख ने हिला दिया. आगत का इतना सटीक चित्रण करने के लिए बधाई के पात्र हैं.
ReplyDeleteभाई बहुत खूब, ब्लाग में ठेलने के लिए भी सपने बहुत कुछ दिखाने लगे है.....
ReplyDeleteइसी बहाने सभी के सपनों की सैर तो हो रही है घर बैठे............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
गांधी का इतना प्रयोग, अभी तक तो उनके नाम पर वोट ही मींगे जा रहे थे, अब उनके नाम पर देश भी..
ReplyDeleteशुक्र है अभिषेक जी कि महज स्वप्न था ये...और शुक्र है इस बात का भी कि इतना मजेदार सपना आपने शेयर किया....
ReplyDeleteविलंब से आ रहा हूँ। आपकी समस्त शुभकामनाओं को सहेजे हुये हूँ। अभी बेहतर हूँ...
अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteअभिषेक भाई, सपने सच हों या न हों, पर यह मानने में ही बडा सुख है कि सुबह के सपने सच होते हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
समरथ को नहि दोस गुसाई. रवि पावक सुरसरि की नाईं
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteअरे भैया,
ReplyDeleteऐसा सच्चा व्यंग्य लिखकर तो गज़ब ही कर दिया आपने.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
सुख, समृद्धि और शान्ति का आगमन हो
ReplyDeleteजीवन प्रकाश से आलोकित हो !
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए
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