मैंने बहुत कोशिश की ये जानने की कि आखिर हुआ क्या हमारे रिश्ते में? लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. इस 'ख़ास रिश्ते' की शुरुआत बाकी कई रिश्तों से बेहतर तरीके से हुई थी लेकिन अंत इस तरह होगा ऐसा कभी नहीं लगा. अंत तो मैं अभी नहीं कहूँगा क्योंकि मैं तो अभी भी उसे चाहता हूँ… मैंने इस रिश्ते को हमेशा ही अहमियत दी और आज भी देता हूँ पर वो ये समझे तब न? मैं तो उसके नफ़रत के बदले भी उसे प्यार करता हूँ काश ! एक बार वो ये जान पाती. २ साल के इस उतार चढाव में पहले एक साल मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे दिन थे. फिर कुछ बातों को लेकर जो अनबन चालु हुई... उस समय शायद हमारा रिश्ते के सबसे अच्छे दिन थे. यह सुनते हुए कल मैंने एक अरसे बाद अपने मित्र के चेहरे पर मुस्कान देखी. स्वाभाविक है आगे सुनने की रूचि बढ़ गयी.
...पर वक़्त के साथ कुछ बातें बदलती हैं. उसके साथ कुछ आदतें-चीजें बदलनी पडती हैं. ये वो क्यों नहीं समझती? मैंने तो उसके बाद भी... और आज भी. वो मुझसे जितना नफ़रत करती है मैं उससे उतना ही प्यार करता हूँ. मैं मानता हूँ उसकी नफ़रत के साथ मेरे प्यार में भी एक तरह की स्थिरता जरूर आ गयी है, पर ये नफ़रत में नहीं बदल सकता ये भी जानता हूँ. लेकिन वो तो...
पिछले कुछ दिनों से मैं परेशान हो गया हूँ. हमारे रिश्ते में कुछ नहीं बदल रहा है जैसे सब कुछ स्थिर हो गया हो. प्यार और झगडे कभी-कभार हो जाया करते थे लेकिन अब तो सब बंद हो गया ! शांत जल की तरह... सब स्थिर... अब इस शून्य से मुझे डर लगने लगा है. भाई मेरे एक पत्थर मार दे किसी तरह इस शांत जल में. प्यार ना सही नफ़रत की तरफ ही सही मुझे परिवर्तन चाहिए ! उसका सब कुछ इग्नोर कर के चुप्पी साध लेना मुझसे बर्दाश्त नहीं होता. मुझे एक पत्थर मारना ही पड़ेगा अब जीने के लिए !
क्या सच में हलचल ना रहे तो ऐसे रिश्ते स्थिर हो जाते हैं? या क्या सच में प्रेम-विवाह वालों के लिए समय के साथ चीजें बदलती हैं और इतनी ज्यादा बदल जाती हैं? मैंने ये बात सुनते-सुनते बगल वाला ग्राफ बना डाला. शायद ये उनकी कहानी को एक स्तर तक दिखला पाता हो.
अब वो बेचारा भी क्या करे... शादी के पहले और बाद में कितना कुछ बदल गया दोनों के लिए. परियों की दुनिया से जमीन पर वापस आना शायद इतना आसान नहीं होता. इस ग्राफ में दोनों अक्सिस पर कई गैप हैं और कई परिवर्तन हैं वो क्यों और कैसे हैं ये मैं ज्यादा समझ नहीं पाया, वैसे भी ये चीजें जीतनी उलझनदार होती हैं ठीक-ठीक समझ पाना आसान नहीं, जब खुद उसे स्थिरता का कारण नहीं पता तो... हमें समझ में आ जाए ये कैसे हो सकता है. बस ये परियों से जमीनी वास्तविकता वाली बात मुझे थोडी समझ में आई. बाकी जो समझ में आया वो ये कि यह एक काम्प्लेक्स नॉन-लीनियर ऑपटीमाइजेशन प्रॉब्लम की तरह है. जिसमें कई सारे कंस्ट्रेंट्स हैं. और फिर इन्हें हल भी उसी तरीके से करना होता है... हर एक स्टेप के बाद सारे कंस्ट्रेंट्स को साथ रखते हुए अगर मामलें में सुधार हो रहा हो तो उस तरफ और बढो वरना फिर दूसरी तरफ. इस तरह अगर ओपटीमाईज हो पाए तो शायद दोनों लाइनें पोजिटिव अक्सिस पर चलीं जाए !
फिलहाल कहीं मामला समझाने में मैंने कहीं और तो नहीं उलझा दिया ?
~Abhishek Ojha~
"मुझे एक पत्थर मारना ही पड़ेगा अब जीने के लिए !"
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट लगाई है आपने।
प्रस्तुति बहुत बढ़िया है।
बधाई!
ये ग्राफ तो फिर भी समझ में आ गया मगर मामला नहीं ! क्योंकि अगर मामला समझने में लगता तो ये खूबसूरत ग्राफ समझ में नहीं आता ! ग्राफ में दो दो पीक और अंत में एक का धरातल से भी नीचे चला जाना थियरी में संभव हो सकता है व्यवहार में नहीं -मैं तो समझता हूँ की कभी कभी भी सब कुछ खत्म नहीं होता -आशा स्पंदित रहनी चाहिए -शुभकामनाएं !
ReplyDeleteकिसी का विरह किसी के लिए रोमांस का एक हिस्सा ही लगता है, इसलिए यह एक रोमांटिक पोस्ट है।
ReplyDeleteवैसे किसी ने सच ही कहा है- प्यार में हिसाब किताब रखना आज की डिमांड है:)
मामला बहुत जटिल लगता है। बिलकुल बिजली के खंबों पर खेतों के बीच से गुजरती हाई टेंशन बिजली की लाइन की तरह। जहाँ जाएंगी साथ जाएंगी। दूर दूर रहेंगी। आपस में भिड़ेंगी तो भंयकर गर्जना, चिंगारियाँ और ताप पैदा करेंगी और जो सूखी घास या उस जैसी कोई चीज मिलेगी तो जला कर खाक कर देंगी। पानी को भी नहीं बख्शेंगी। आक्सीजन अलग, हाइड़्रोजन अलग।
ReplyDeleteबस एक उपाय है। बीच में लोड लगाइए। बल्ब तो रोशनी पाइए, पम्प तो कुएँ से पानी निकालिए, मशीन तो खूब उत्पादन पाइए,गांव में रात को उजाला पाइए, शहर को जगमगाइए, रेल चलाइए और अपनी अपनी बैटिरियाँ चार्ज कीजिए फिर उन से कुछ भी करिए।
शांत जल की तरह... सब स्थिर... अब इस शून्य से मुझे डर लगने लगा है. भाई मेरे एक पत्थर मार दे किसी तरह इस शांत जल में. प्यार ना सही नफ़रत की तरफ ही सही मुझे परिवर्तन चाहिए !
ReplyDeleteये ताऊ थ्योरी है, अगर लठ्ठ चलते रहेंगे तो कढी हमेशा उबली हुई गर्मा गर्म रहेगी.:)
रामराम.
प्यार-मुहब्बत बच्चों का खेल नहीं है. जब भी यह सब मामला सुनते देखते हैं तो बाबा कबीरदास ही याद आते हैं,
ReplyDelete"...सीस उतारे भुई धरे, तब बैठे घर मांही"
प्यार का गणित है या गणित का प्यार?
ReplyDeleteपोस्ट बढ़िया है.
अरे भाई किसी वकील साहब से पुछो, हमारे दिनेश राय जी की राय मै हम सॊ पर्तिशत सहमत है...
ReplyDeleteहम तो ठहरे पुराने आदमी कभी प्यार व्यार किया नही इस लिये क्या राय दे??अगर पत्थर भी मारे आप की मदद करने के लिये ओर किसी गोरे की खोपडी मै लग गया तो हम तो गये काम से:)
लेकिन लेख अच्छा लिखा
पहले तो सुन्दर लेखन के लिए बधाई ले लीजिये....
ReplyDeleteफिर अपनी बात...
सम्बन्ध और प्रेम में जब देने से अधिक लेने का भाव और सूक्ष्म संवेदनाओं का स्थान स्थूल अभिव्यक्तियों की लालसा ले लेती है तो सम्बन्ध और प्रेम दोनों ही ध्वस्त विद्रूप हो जाते हैं....
वर्तमान समय की समस्या यही है..प्रेम का तात्पर्य ही अपेक्षा मन जाने लगा है और फिर एकपक्षीय प्रेम कबतक टिका बंधा रहेगा....
उनके प्यार के ग्राफ पर एक प्यारी सी पोस्ट /आज प्यार ग्राफो की बारम्बरता का नाम हो गया है/जैसा कि जितेन्द्रजी का कहना है कि प्यार मे हिसाब किताब का होना आज का डिमांड है/यह प्यार आज कल है शायद!
ReplyDeleteइसे कहते हैं गणितीय विशलेषण। मुझे लगता है कि मानवीय भाव कभी स्थिर नहीं रहते, वे या तो बढते हैं या फिर घटते हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सेकेण्ड ईयर में एक सांवली सी लड़की ने कहा था कि रोमैण्टिकस (Romaticus - a branch of Calculus?) का इलेक्टिव सब्जेक्ट ले लेते हैं। कई लोग वह इलेक्टिव सब्जेक्ट ले रहे थे। लिये होते तो आपकी यह पोस्ट समझ में आ जाती।
ReplyDeleteउसके बदले हमने सिम्बॉलिक लॉजिक का सब्जेक्ट ले लिया था। ... पुरानी बात है। अब क्या पछतायें! :)
बहुत बार मैंने इन रिश्तों को समझने की कोशिश की है ..अब लगता है समझने भी लगी हूँ ..पर अपवाद हर जगह होते हैं
ReplyDeleteतुमने अपने मित्र की जो समस्या बताई है वो सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। स्थिरता रिश्तों में शून्यता लाती ही है। वैसे आस पेचीदा सवाल का हल तो सही निकाला है पर उसे कार्यान्वित करने के लिए ठंडा दिमाग चाहिए जो ऐसी मनःस्थितियों में बन नहीं पाता।
ReplyDeletebahut hi sundar prastuti hai.
ReplyDeleteगणित में उलझा दिया आपने बेचारे प्यार के ग्राफ को :)यहाँ इस बात में मैं भी रंजना से सहमत हूँ .आज कल प्यार कहाँ रहा वह तो उलझ के रह गया है जीवन के गणित के मोल तोल के भाव में
ReplyDeleteसंवेदना का भी विश्लेषण ? रंजना जी की टिप्पणी ही फॉरवर्ड कर रहा हूँ ।
ReplyDeleteप्रविष्टि गजब है । आभार ।
,,ताली एक हाथ से नहीं बजती , अनवन तो चलती रहती है जिंदगी भर |बेशक ये जिंतना प्यार करते हैं उतनी ही वो नफरत नहीं करती होगी । प्यार के साथ आदतें बदलने पर दवाब डाला होगा ,अकारण नफरत नहीं होती ,पुरुषोचित अहम .,ईगो के साथ उनकी आदतें बदलने को कहा गया होगा। जिन्दगी शांत होजाना शून्य हो जाना खतरनाक स्थिति है , ये बाहरी शून्य है अंदर ज्वालामुखी पनप रहा है दोनो में, और जब फूटेगा तो मुसीबत हो जायेगी। प्रेम बिबाह को इस हेतु दोषी ठहराना उचित नहीं है हाँ यह बात ज़रूर है जब प्रेम होने लगता है प्रेमी का सिगरेट के छल्ले उडाना भी अच्छा लगता है और शादी के बाद भी सिगरेट पीने की अदा बुरी लगने लगती है ॥अब बो बेचारा क्या करे = अपना अभिमान छोड़ दे ,थोडा त्याग करे ,कुछ थोडा बहुत सहन करे ,एकाध दिन तबीयत ख़राब हो जाये और खाना न बन पाए तो चिल्लये नहीं परिस्स्थिति समझे होटल से ले आये | अकारण कोई प्यार के बदले नफरत नहीं करता है | उसका यह कहना गलत है कि आज भी उससे प्यार करता है ,वह प्यार नहीं अनुशासन चाहता है | तभी समझ गया था जब आदतें बदलने बाली बात शुरू हो गई थी किमैने अपनी आदतें बदल ली तुम क्यों नहीं बदल सकती |
ReplyDeleteकभी कभी हम कुछ रिश्तो को ग्रांटेड मान लेते है ....उन्हें भी एक रिचार्ज की जरुरत होती है ...वक़्त बेवक्त...
ReplyDeleteआप शादी क्यों नहीं कर लेते? इससे पहले कि लोग यह पूछने लगें कि “आपने शादी क्यों नहीं की?”
ReplyDelete:) :) :) :D
ग्राफ तो यही कह रहा है कि वापस ऊपर चढेगा, और यही नियम भी तो है।
ReplyDelete:)
बहुत सुन्दर पोस्ट।
kya ozaji, kahn pyar aur kahan aapke ye neeras graph. inko choden aur ek khoobsurat sher likh kar bhejen unhe. Dekhiye khinch kar chalee aayengee.
ReplyDeleteइष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.
ReplyDeleteदो समानांतर रेखाएँ कभी नहीं मिलती । आपने प्यार का जो ग्राफ चित्रित किया है उसमें दोनों का मिलन स्थल कहीं आया ही नहीं और आगे तो वे समांतर दूरियों पर बढ़ रहें ।
ReplyDeleteअगर प्रेमियों के बीच किसी स्तर पर मिलन बिंदु का स्पर्श भी होता तो हम कह देते की वह कशिश कहीं न कहीं फिर उन्हें मिला देगी ।
मियां,
ReplyDeleteप्यार का गणित बहुत संजीदगी से समझा गए, ग्राफ भी बहुत बढ़िया और सटीक बनाया है.
हार्दिक बधाई आपके ईस नए, निराले गणितीय अंदाज़ के लिए.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
क्या मामला है, क्या हो गया।
ReplyDeleteउत्कृष्ट लेखन.
ReplyDeleteवैसे भावों का स्थिर रहा जाना एक दुर्लभ घटना मानी जायेगी.
धन्यवाद आपका!
हाय री गणित???
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