Nov 25, 2010

खिली-कम-ग़मगीन तबियत

हमारे एक मित्र ने कभी कैरम पर खूब शोध किया था. खूब सारे समीकरण लिख डाले और एक कंप्यूटर गेम भी बना डाला था. फिर एक दिन वो बड़े शान से खेलने बैठे. अब शान के हकदार भी थे. उन्हें सबकुछ तो पता ही था कहाँ, कैसे, कितने कोण पर और कितना बल लगाकर मारना है. पर जब खेलना शुरू किया तो... फुर्र !

अभी ऐसे ही कुछ दिनों पहले एक पिकनिक में सामना हुआ ‘कॉर्नहोल’ के खेल से. हल्का फुल्का खेल देखकर मैंने भी हाथ आजमाया और थोड़ी देर में अनुमान लगा लिया कि कैसे फेंकने पर थैले ठीक जगह जा पाते है. पर हमारे एक मित्र बार-बार कहते रहे “‘पाराबोलिक ट्राजेक्ट्री’ बनाओ. तुम ठीक जगह फ़ेंक तो पा रहे हो लेकिन..”. ये.. वो... पचास फंडे. जब खुद खेलने आये तो वही... फुर्र ! कहने का मतलब ये कि सैद्धांतिक ज्ञान और व्यवहारिक में बहुत फर्क है. ऐसे होता है... वैसे होता है... कह देने वाले और जैसे होता है वैसे करने वाले हमेशा एक नहीं होते. अब एक इंजीनियर डायग्राम और मॉडल बनाता है पर काम तो एक कारीगर ही करता है. सीनसी के जमाने में जब सब कुछ ऑटोमेटेड हो तब किसी मजदूर का हाथ कितना साफ़ होता होगा ये तो मुझे नहीं पता पर लेथ मशीन पर तो हाथ की सफाई वाला व्यक्ति एक केवल सैद्धांतिक पक्ष के विद्वान से बेहतर होगा इसमें कोई संशय नहीं.

फिलहाल बात कुछ यूँ हुई कि पिछले कुछ दिनों से गुलामी के इस गाने की तरह हमारी तबियत ज़रा सी खिली और जरा सी ग़मगीन टाइप की रहने लगी. [पहले सुन आइये ये गाना. मानता हूँ कि मुन्नी और शीला आंटी के जवानी-कम-बदनामी के दिन हैं फिर भी ये गाना अच्छा लगेगा. (डिस्क्लेमर: ऐसा मुझे लगता है)].

फिलहाल खिली-कम-ग़मगीन तबियत में हमने जो लाइनें अपने स्टेटस के तौर पर लिखी वो लोगों को रोमांटिक लगी और मैं कुछ कुछ सेंटी सा लगा. मुझे पता नहीं था कि इसे ही रोमांटिक कहते हैं. लगता था रोमांटिक होना कुछ होती होगी तोप सी चीज. लेकिन ‘हाउ रोमाटिक, सो रोमाटिक’ टाइप की बातों पर थोड़ी शंका सी होने लगी कि कहीं सच में इसे ही तो रोमांटिक होना नहीं कहते. लोगों के पक्के यकीन का क्या कहा जाय बिन कुछ पूछे शुभकामना भी दे गए*. मैं बस यही कह पाया कि जैसे समुद्र में सर्फिंग करने वाले को उसके पीछे का विज्ञान नहीं पता होता और जैसे कैरम खेलने के लिए उसके गणितीय मॉडल नहीं समझने होते. वैसे ही ‘बकवास’ करने के लिए प्यार में नहीं पड़ना होता. खैर... खुले दिल से सधन्यवाद शुभकामनायें स्वीकार करता हूँ मैं. जितनी मिली सब ली.

वैसे ऐवें एक ख़याल आ गया... दूर से देखना भी कितना सुहावना होता है न. वास्तविकता से कितना दूर. उदाहरणों की कमी तो है नहीं पर आजकल बंद कमरे मैं बैठा होता हूँ तो बाहर अक्सर खिली धुप दिखती है. लगता है वाह क्या मौसम है... और बाहर का पारा... शून्य या नीचे.

भूमिका खत्म.

... कुछ यूँ हुई बकवास फेसबुक पर. (अंगेरेजी में लिखी थी तो वैसे ही कॉपी पेस्ट कर दी, अनुवाद में कुछ का मजा चला जाए शायद? …आदतन कुछ लाइनों पर गणित का प्रभाव हो सकता है):

1. It is sad that the process of 'missing someone' can't be measured or quantified otherwise it would have been easier for me to tell you how much I exceeded the 'too much' limit.
2. I can definitely say that speed of time is not constant. I can feel the rate when you aren't around.
3. I know that I don't know... but I know that you know what it means.
4. To me you are now... what right eye twitching is. It can be symptom of a disease but feels like a good omen.abstrusegoose
5. Tough One: You can convince whole world that we are friends... but can you convince yourself?
6. If you are being loved by people from different 'dimensions'. Sooner or later there is bound to be some conflict of interest among them.
7. When you are with me every moment is anbujh muhurat, when you are away even anbujh is insignificant...
[those who don't know... according to Hindu astrology there are three and half anbujh muhurats or most auspicious days akshaya tritiya, vijayadashami, chaitra shukla pratipada and diwali evening. Planetary positions etc doesn't matter during these three and half days.] anyways... 'Happy Diwali' to all of you. :) [दिवाली के दिन]
8. (Short term?) Separations are positively skewed towards discovering and maturing true relationships. (धनात्मक और ऋणात्मक स्क्यु सांख्यिकी के सिद्धांत होते हैं)
9. The paradox: What do you do when the only person who can extinguish the fire is the one who ignited it !
10. An example of relationship paradox of 'Just friends': both online in invisible mode waiting for each other to come online... (लुक्का-छिपी खेलने वाले शायद कुछ समझे. वैसे कुछ लोग मेसेज-मेसेज भी खेलते हैं. और हमें एक मेसेज टाइप करने में आज भी... पुरनियों से थोडा ही कम समय लगता होगा:)
11. The change is not one sided: You made me realize how beautiful the world is and that is how I stopped caring about science and started loving arts. But then I realized that slowly you have started loving the equations which I used to care once.
Now, I understand the logic behind it !
12. Theorem of convergence: At broader level you maybe confused but as you shift your thinking to arbitrarily small memorable moments of past it converges quickly to 'someone'.
Corollary: This theorem of convergence is not necessary but sufficient condition to say 'Yes'. ;) (ये थोडा गणितीय है. वैसे रियल अनालिसिस में बे सिर पैर की बातें ही होती हैं. बस नाम में ही रियल होता है.)
13. I didn't realize when my heart, which was like a callable bond issued by me to you, became a puttable bond :) 
[which means... I had the privilege to call back. But now you have the option to put it back]

इस आखिरी पर मेरे दोस्त ने सलाह दी कि व्याख्या हटा दूं और जिस लड़की को समझ में आ जाए... खैर अब आपका और टाइम खराब नहीं करता आप खुद भी थोडा दिमाग लगाइए क्या कहा होगा उसने.

वैसे मैं कितना भी सैद्धांतिक कह लूं, डाउट तो रहेगा ही. वैसे पूरी पोस्ट ही सफाई देने सा हो गया क्या? तो चलिए सच्चाई ही बता देता हूँ. किसी ने पूछा कि इन लाइनों में ‘यू’ कौन है? अब क्या बताऊँ... बिडम्बना ये है कि जो ‘यू’ है उसने भी यही सवाल पूछ लिया कि “अभिषेक ये ‘यू’ है कौन?” Wilted rose

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*हिंदी ब्लोग्गर हो जाने का एक फायदा वैसे ये है कि ईमेल और कमेन्ट से अब डाउट नहीं होता. एक आपको छोड़ दें तो कमेन्ट करने वाले कितना सीरियस होते हैं ये तो आप भी जानते हैं.

कार्टून ऐंवे… Smile

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~Abhishek Ojha~