May 25, 2012

पुराने बैग से...

यात्रा के पहले... समान पैक करते हुए...

एटीएम के कुछ पुराने रसीद,
म्यूजियम-ज़ू के टिकट और साथ में पाँच-पाँच रुपये के दो बस टिकट,
एक कॉफी बिल – एक हॉट दूसरी कोल्ड,
बिल कॉफी का है पर उस शाम आइसक्रीम भी खाई थी – एक कोण, दूसरी स्टिक।

कुछ पन्नों पर लिखे नोट्स - एक पर बस एक नंबर: 9.28,
एक ब्लूइश गिफ्ट पैकिंग के कागज, इटालिक्स में लिखा मेरा नाम... विथ लव।
एक चॉक्लेट रैपर – लिंट,
डिनर के लिए ‘पोस्ट-ईट’ नोट पर लिखा किसी का एक नोट,
दो आधे भरे फॉर्म्स - जिन्हे भरते हुए कुछ गलतियाँ हो गयी थी,
बेतरतीब तरीके से लिखे कुछ फोन नंबर्स – पता नहीं किसके हैं !

ट्रैफिक पुलिस का काटा एक चालान – 250 रुपये,
और उसी तारीख के फिल्म के दो टिकट – स्क्रीन नंबर 4।
पहला हवाई टिकट, पहले वीज़ा एप्लिकेशन की रसीद – स्विस एम्बेसी नई दिल्ली।

किताब के आखिरी पन्ने पर मेमोरीलेस ‘मार्कोव’ डिस्कस करते हुए बनाया गया ग्राफ,
ग्राफ पर ‘प्रेजेंट मोमेंट’ - 9 पीएम।
हॉस्टल के रूम एलॉटमेंट की पर्ची,
एक किताब का पन्ना जिस पर लिखे नोट्स – किसी और को समझ आ ही नहीं सकते,
वैसे ही जैसे फोन पर बात करते हुए खींची गयी एक दूसरे कागज पर ‘रैंडम’ लाइनें और कुछ शब्द।

ऐसे ही ढेर सारा बेकार, यादों का कचरा -
जैसे - एक दस डॉलर का नोट जिस पर किसी का सिग्नेचर ले लिया था,
उसकी कीमत रुपये के गिरने से नहीं बल्कि वक़्त के बदलने से अब कुछ और ही हो गयी है –
बस एक कागज ही तो रह गया है... नोट तो रहा नहीं,
भगवान पर चढ़ाया फूल हो गया है वो – क्या करूँ उसका? ! Smile

~Abhishek Ojha~

PS: न गद्य, न पद्य। ना सच - ना झूठ ! :)

May 20, 2012

जर गया तेरा बंगला ! (पटना १२)

 

पिछले दिनों भारत आया तो बैरीकूल का फोन आया। हाल खबर की लेनदेन के बाद बोला - "भईया, गाँव आइये त पक्का से मिलते हैं।"

मैंने कहा -  "बीरेंदर,  देख लो गर्मी का दिन है इतनी दूर आना पड़ेगा तुम्हें। वैसे अगर समय मिला तो एक दिन के लिए पटना मैं ही आ जाऊंगा।"

"अरे नहीं भईया, आप आए हैं त हम मिलेंगे कईसे नहीं? मोटरसाइकिल हइए है... एक ठो दोस्त को पकरेंगे आ आजाएँगे। अब आप एतना दूर से आए हैं। कुछ ना कुछ पलान होगा आपका... त अब उसीमें हमसे मिलने कहाँ आईएगा"

"अरे नहीं बीरेंदर, हमें भी तुमसे मिलकर अच्छा लगता है। उसे भी प्लान में ही डाल लेंगे। वैसे प्लान तो कुछ खास है नहीं,  बस घर पर ही पड़े रहना है।"

"उ त हम बुझ रहे हैं भईया लेकिन अब देखिये न मिलने को त सबे बुला लेता है। जब खुद मिलने आना हो तब बुझाता है। आ हमको तो रोजे यहीं रहना है। हम नहीं न कहेंगे आपको आने के लिए। हमको जो काम करने में खुदे बुरा लगता है उ हम आपसे करने को कईसे कह सकते हैं... हमको आपसे थोड़े न कोई लंदर-फंदर बतियाना है। उस सबके लिए बहुत है।"

बीरेंदर को पता है कि कब क्या बोलना है। उसे ये भी पता है कि मुझे कैसी बात अच्छी लगेगी। लेकिन सच बोलता है... बातें नहीं बनाता... कम से कम मुझसे तो नहीं।

बीरेंदर मिलने आया अपने चाचा की उम्र के 'दोस्त' के साथ। सुबह का चला दोपहर को पहुँचा। इधर-उधर की बातें कर रहे थे कि चाचा का फोन बजा - 'एक ऐसी लड़की थी, जिसे मैं प्यार.... '।

'का चाचा, आप कब तक उहे लरकी बजाते रहेंगे? केतना नया लरकी वाला गाना मार्केट में आया और आप.. अरे बदलीये इसको। जानते हैं भईया चाचा का किस्सा सुनेंगे त... का बताएं अब आपको  एकदमें... कालासिक।'

'देखो बीरेंदर, ठीक नहीं होगा' चाचा को अपना भूत-भविष्य दिखने लगा। लेकिन बीरेंदर को तो चाहिए ही यही।

'आरे चाचा, खाली एक ठो उहे आसाम वाला सुनावे द... जानते हैं भईया, चाचा हीरो थे अपना जवानी में। ई जो ढांचा देख रहे हैं इस पर मत जाईयेगा। एक दमे हीरो बुझ जाइए... बेल-बाटम आ सूट-बूट में... आ नहीं त राजेस खान्ना काट कुरता । का चाचा? किसोर कुमार स्टाइल में मूंछ... आपको कभी फोटो दिखाएंगे भईया...'

चाचा थोड़ा सा शरमाये और बीरेंदर ने आगे बताना चालू किया – 'चाचा तब डिबुरुगर्ह में एक ठो डाक्टर के हियाँ काम करते थे'

'डिबुरुगर्ह नहीं तीनसुखिया... डिबुरुगर्ह में त ओके बहुत पहिले रहते थे' चाचा ने सुधार किया।

'एके बात है चचा, असली त मेन बात है। उ ई कि डाक्टर के जो लाइकि थी एक दम सरमीला टैगोर। का चाचा सही बोल रहे हैं न? आ चाचा त हइए थे हीरो... बस हो गया प्यार-मोहब्बत।  चाचा सूट बूट में त रहिते ही थे... आ ओइसे त  हैं अंगूठा छाप लेकिन काँख में अङ्ग्रेज़ी अखबार दबा के चलते थे। सही बात है न चाचा... झूठ मत बोलिएगा'

'देखो बीरेंदर इहे सब बात बनाने के लिए हमको लाये हो' - चाचा थोड़ा झल्लाए।

'चचा, लाये तो हम इसलिए कि बाइक पर बइठे बइठे चुत्तर झनझना जाता है, आपका चाय-खैनी के चक्कर में 10 मिनट का बरेक मिल जाता है। आ आप आए हैं अपना भतीजी से भेंट करे। उहाँ जाना है कि नहीं?'

'बीरेंदर, क्या कर रहे हो?' मैंने टोका।

'आरे भईया, आप कहे सीरियस हो रहे है। चचा से नहीं त किससे मज़ाक करेंगे। अपने चचा हैं। साँच बोलने इहे सिखाये हैं। अभी आपको जानते नहीं हैं न... नहीं त खुदे अईसा रस लेके सुनाते हैं कि... खैर... हाँ त सुनिए न... हिरोइनी को भागा लाये अपना घरे...दानापुर। '

'वाह, क्या बात है' मैंने कहा।

"आपको क्या लगता है ! वैसे आगे त सुनिए... अब बता के त लाये थे कि ई बरका जमींदार हैं, कोठी है, हाथी है, घोरा है...  लेकिन जईसही इनका सुदामा छाप मड़ई देखी है... पहिले त उसको बुझाया नहीं... उसके बाद पहिला डायलोग जो मारी है - जर गया तेरा बंगला। एकदम इहे चार शब्द आ अगला दिन सुबह उठते ही निकल गयी। लेकिन एक बात है उसके बाद चचा भी... जइसे कालिदास अपना बीबी से 'अस्ति कश्चिद' जैसा कुछ सुन के ग्रंथ सब रच दिये ओइसही चचा भी 3 ठो बंगला बना ही लिए" बीरेंदर ठीक मौके पर ऐसी बात बोल देता है कि सामने वाले को समझ में नहीं आता कि वो बड़ाई कर रहा है या मज़ाक। और सामने वाला बेनीफिट ऑफ डाउट हमेशा बड़ाई को ही दे देता है।

'बिरेनदरा पीटा जाओगे, बात बस बांगला का नहीं था आ एके दिन नहीं रही थी। कुछो नहीं बोलना चाहिए अगर मालूम न हो तो' - चचा ने गंभीरता से कहा।

'आरे चचा ठीक है न। भईया कौन सा आपका बात हाला कर रहे हैं। वैसे यूपी-बिहार बाड़र वाला घर का का हाल है? जानते हैं भैया, बोडाफ़ोन वाला रोमिंग में दुह देता है इनको, बाड़र पर घर है कभी यूपी का सिग्नल पकरता है कभी बिहार का।' बीरेंदर ने तुरत बात ही बदल दी।

'आछे चचा एक ठो और बात बताइये - आप सुबह उठते ही भूत पिचास निकट नहीं आवे काहे कहते हैं। सुबहे सुबह भूत-पिचास का नाम लेते है। और कोई लाइन नहीं मिली आपको ? भईया, हम इनको केतना बार टोके हैं इनको... लेकिन इनको उहे लाइन से प्यार  है। उठेंगे आ भूत-पिचास बोलेंगे... आ कहेंगे कि हलुमानजी काम नहीं बना रहे हैं। उधर बजरंग बली भी कहते होंगे कि  मेरा नाम त लेता  नहीं है ई!'

चचा ने इस बार बाजी मारी बोले – 'हम फिलिम का गाना भी बीचे में से गाते हैं... गा दें? ' चचा ने कहा - 'ई पागाला है, समझावे से समझे ना... धिकी चिकी... धिकी चिकी ....'

(पटना सीरीज)

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~Abhishek Ojha~