Dec 14, 2008

माँ का दूध

एक ज़माना था जब सोते-जागते कंपनी खोलने का भूत सर पर सवार रहता, और हर बात में बिजनेस आईडिया के अलावा कुछ दिखता ही नहीं था. हमारे एक मित्र इसमें बड़ा सक्रिय रहते... उनके आईडिया बड़े कमाल के होते, उसमें सफलता मिलती या नहीं ये तो बिजनेस स्टार्ट करने पर पता चलता पर आईडिया मजेदार जरूर होते ! आजकल ये मित्र रोयल डच शेल में तेली हैं। और नीदरलैंड से सिंगापुर तक तेल के कारोबार में हाथ बटाते हैं. अब कहने को तो इस तेल की कंपनी में शोध वैज्ञानिक है लेकिन अब हमारी भाषा में तेल बनाने/बेचने वाले को तेली ही तो कहते हैं... अब मैं तो इन्हें यही कहता हूँ !

एक समस्या ये होती कि इनके नए विचार अक्सर ऐसे होते जिन पर सदियों पहले से कंपनियाँ चल रही होती. अब क्या करें बेचारे दिमाग के किसी कोने से ढूंढ़ के लाते और दो मिनट में हम उस पर खड़ी बड़ी-बड़ी कंपनियां गिना देते... दो मिनट में रात के डिनर से सुबह के बाथरूम तक के सोचे गए उनके सारे 'इनोवेटिव' बिजनेस आईडियाओं पे पानी फिर जाता. खैर एक दिन उछलते-कूदते आए बिल्कुल आर्कीमिडिज के 'यूरेका' वाले क्षण की तरह...

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'अबे यार मस्त आईडिया आया है... दूध की कंपनी खोलते हैं ...'

'क्या यार इसी पे इतना उछल रहे थे... जा अमूल की साईट खोल के देख।'

'अबे नहीं भाई पुरा आईडिया सुन तो लो'
'देखो हम बच्चों के लिए दूध बनायेंगे... पाउडर और लिक्विड दोनों'

'ओके... तो?'

'प्रोडक्ट का नाम रखेंगे... "माँ का दूध"'

'व्हाट?'

'अबे देख डॉक्टर सलाह देते हैं... 'बच्चे को माँ का दूध पिलाइए', वो तो छोड़ जितने डब्बे वाले दूध आते हैं उन पर लिखा होता है 'माँ का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम है' तो हमारे ब्रांड को एडवटाइज करने की भी जरुरत नहीं है' सारे कंपटीटर ख़ुद ही हमारे प्रोडक्ट का इनडायरेक्टली प्रचार करेंगे !'

'हा हा ! जियो मेरे लाल क्या आईडिया है ! चलो इसी मेगाबक्स* में प्रेजेंट कर देते हैं। सारे वेंचर कैपिटलिस्ट लाइन लगा देंगे पैसे देने के लिए...'

'वही तो ... '

'भाग साले... कुछ तो ढंग का सोच लिया करो कभी, वैसे मदर डेयरी है तो तेरा कंपटीटर'

'अबे यार, क्या तुलना कर रहे हो, कभी सुना है 'मदर का दूध पिया हो तो...''

'देख एडवटाइज वाला आईडिया तो दुरुस्त है ही... उसके अलावा ६०-७०-८० के दशक की किसी भी हिन्दी फ़िल्म का क्लिप दिखा दो... "माँ का दूध पिया है तो..." और फिर दिखाएँगे 'आ गया माँ का दूध !' डब्बा से निकाल के दूध पिया और फिर साले विलियंस का सफाया ! बिजनेस का तो बाद में सोचना पहले ये बता क्रिएटिव एडवटाइजमेंट का अवार्ड मिलेगा की नहीं?'

'अबे क्यों गन्दगी फ़ेंक रहा है भाग यहाँ से' (ये एक टिपिकल लाइन होती थी होस्टल में)

'अरे यार मैं मजाक नहीं कर रहा सीरियसली सोच, अबे यार तू रिपोर्ट बना दे फिर प्रेजेंट करते हैं... कम से कम मजा बहुत आएगा। बड़े-बड़े लोग आते हैं सुनने'

'तुम्हें लगता है की एक राउंड भी आगे जा पाओगे?'

'साले मैं इस आईडिया पे फाइनल जीत सकता हूँ ! लेकिन अकेले नहीं कर सकता, भाई मेरे करते हैं न इसपे काम...'
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खैर काफ़ी चर्चा के बाद ये आईडिया ड्राप हो गया पर था. पर था तो सच में 'इनोवेटिव'...
अब इस पर तो काम नहीं हो पाया (ओह ! ऐसे कितने ही इनोवेटिव आईडिया बरबाद हो गए) मैंने सोचा चलो हम नहीं कोई और सही... आईडिया है, और हम भारतीय ! मुफ्त का आईडिया/सलाह दूसरों को बांटना हमारा पहला-दूसरा नहीं तो तीसरा-चौथा धर्म तो होता ही है.
अब किसी ने इस आईडिया पर कंपनी खोल दी और हमें नाम का भी क्रेडिट दे दिया तो घाटा क्या है !

चलो क्रेडिट ना भी दे तो कोई बात नहीं :-)

*मेगाबक्स आईआईटी कानपुर का वार्षिक बिजनेस और एंतार्प्रेनार्शिप समारोह है.

~Abhishek Ojha~

Dec 8, 2008

एक सेंट बोरिसीय का जन्म-दिन !

(एक मिनी पोस्ट)

'हेल्लो !'
'हेल्लो ! हैप्पी बर्थडे.'
'थैंक्स.'
'ये बताओ पार्टी कहाँ है?'
'कैसी पार्टी बे? तुम तो कभी देते नहीं हो? अपना जन्म-दिन तक तो बताया नहीं तुमने !'
'अब बता भी दूँ तो भरोसा तो करोगे नहीं !'
'मतलब? इसमें भरोसा ना करने वाली  कौन सी बात है? '
'अरे भाई सुन तो। मैंने अपनी माँ से अपना जन्म-दिन पूछा तो उसने बताया कि उसे तारीख तो याद नहीं ! इतना बताया कि  "उस दिन बारिश बहुत हुई थी और उसी दिन रामखेलावन की भैंस को पाड़ा हुआ था। और बुधन की गैया उसी दिन कुँआ में गिर गई थी बड़ी मुश्किल से उस बरसात में निकल पायी थी।" अब तुम्ही बताओ मेरी माँ ही जब इतना बता पायी तो अब क्या मैं रामखेलावन और बुधन से जाकर पाड़े के जन्म और गाय के गिरने का दिन पूछूँ? हाँ टाइम के बारे में माँ ने बताया कि उसी समय तीन बजियवा पसिंजर गई थी, अब भारतीय रेल का समय तो तुम जानते ही हो ! '
'साले बकर मत करो ! ... पार्टी जब मर्जी हो आ जाओ लेकिन एक दिन तो साल का अपना भी फिक्स कर ही लो बे अब... कम से कम वही जो सर्टिफिकेट में लिखा है।'
'किसी भी दिन कैसे माना ले बे? अच्छा रुको इस बार गाँव गया तो एक बार फिर रामखेलावन से पता करता हूँ, शायद याद आ जाय !'

और इस तरह उन्होंने एक और एकतरफा पार्टी ले ली !

इस सेंट बोरिसीय के स्कूल के बारे में तो आप जान ही चुके हैं, बड़े निराले अंदाज का इंसान है !

~Abhishek Ojha~

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आजकल मार्केट की उथल-पुथल, नौकरी और पढ़ाई के बीच इस मिनी-माइक्रो-नैनो से बड़ी पोस्ट सम्भव नहीं लगती.