Jan 29, 2011

विडंबना

अनावश्यक चेतावनी: पता नहीं जो मैं लिखने जा रहा हूँ उसके लिए विडम्बना सही शब्द है भी या नहीं।

दुनिया बड़ी अजीब है और वो सब भी होता है जो हम नहीं चाहते हैं। हमारे होने में जो बातें हुई उनका योगदान तो होता ही है पर उससे कम योगदान उन बातों का भी नहीं होता जो नहीं हो पायी। हम जैसे हैं वो कई बार उन बातों के कारण ही होते हैं जो ना हो पायी। 'यूं होता तो क्या होता?' क्या होता? इसका तो नहीं पता। पर हाँ इतना तो है कि अभी जैसा है वैसा नहीं होता। होने ना होने की बात पर मुझे कई छोटी-छोटी बातें याद आ रही है। बड़ी बातों का क्या?... छोटी बातें अपनी होती हैं (कभी-कभी मुझ जैसे लोगों तक भी पहुँच जाती है वो अलग बात है)। बड़ी बातें तो वैसे भी अपनी नहीं रह पाती सबकी हो जाती है Smile  ऐसी ही कुछ बातें जिनमें कहा और सोचा कुछ गया और निकला कुछ और ही।

पहली बात: सप्ताहांत पर वो मुंबई में था। बस 2 सप्ताह में वो भारत से बाहर जाने वाला था। बैंगलोर से फोन कॉल: 'कल आ सकते हो इंटरव्यू के लिए?' फ्री की फ्लाइट और दोस्तों से मिलने का लालच ! उसने हाँ कर दी। एक दिन की छुट्टी के लिए वही... बीमारी का बहाना। नौकरी वैसे भी नहीं चाहिए थी तो लगभग 25 हजार रुपये मुफ्त के उड़ाने और बैंगलोर में मस्ती करने के बाद अगली सुबह भागते-भागते बैंगलोर हवाई अड्डे पर पहुंचा तो अनाउंसमेंट हो रहा था 'दिस इस लास्ट अँड फाइनल कॉल टु मिस्टर...'। तुरत फोन किया दोस्त को 'अबे दो मिनट और लेट होता तो फ्लाइट छूट जाती सुन अभी नाम बुला रहे हैं मेरा एयरपोर्ट पर, पुणे पहुँच के फिर कॉल करता हूँ'। अभी तक सब चकाचक चल रहा  था। ...और मोबाइल पर उसके खडूस मैनेजर का नाम दिखा। '...उफ़्फ़! इसे चैन नहीं, सुबह-सुबह जाने ऐसा क्या हो गया ! तीन घंटे ही तो और हैं ऑफिस पहुंचने में'। फोन उठाया तो:

'..., कहाँ हो? कैसी तबीयत है अब? जल्दी करो नहीं तो फ्लाइट छूट जाएगी। मैं अभी-अभी बैंगलोर एयरपोर्ट पहुंचा तुम्हारा नाम सुनाई दिया तो सोचा बता दूँ तुम्हें। जल्दी करो' Smile

दूसरी बात: वही आदत... पता नहीं कहाँ खो जाता है, भागते -भागते सबसे आखिर में फ्लाइट में घुसा। सभी यात्री और एयरहोस्टेस उसे ही घूर रहे हैं। हर बार ऐसा मेरे साथ ही क्यों होता है, चलो क्या करना है इनके गुस्से का... फ्लाइट तो नहीं छूटी । मोबाइल स्विच ऑफ करने के लिए फोन निकाला तो उसका नाम दिखा। ना चाहते हुए भी हरा बटन दबाया और उधर से आवाज आई:

'क्या कर रहे हो? दरवाजा खोलो?' Madison Park 27 Jan
‘कहाँ हो तुम?’
’तुम्हारे दरवाजे पर। सरप्राइज़ की तो वाट लगा दी तुमने। पता नहीं क्या कर रहे थे, खोलो अब।'
'क्या? तुम मेरे फ्लैट के बाहर हो? ! मुंबई से कोई ऐसे आता है ? पहले बता नहीं सकती थी? हो जाओ फिर अच्छे से सरप्राइज़। मैं दिल्ली की फ्लाइट में बैठा हूँ, अभी बात भी नहीं कर सकता। लो इन्हीं से बात कर लो। दिल्ली पंहुचने के पहले ये मुझे अब किसी से बात नहीं करने देंगी'... और एयर होस्टेस की तरफ मुड़ते हुए उसने कहा: 'आई एम सॉरी, बस स्विच ऑफ ही कर रहा था कि ये फोन आ गया।' मोहतरमा आई थी सरप्राइज़ देने और...

तीसरी बात: एक इंटरव्यू में उससे पूछा गया '$^$^& कैसे करते हैं?' उसने गलत जवाब दिया। बाहर आकर पता चला गलत बोल आया। दो महीने बाद उसके टेबल पर एक रेज्युमे पड़ा था। मुस्कुराते हुए उसने फोन लगाया और पहला ही सवाल '$^$^& कैसे करते हैं?' वही गलत जवाब जो कभी उसने खुद दिया  था।... 'नो, दिस इस नॉट द राइट वे...' । वो उसी इंसान का इंटरव्यू ले रहा था जिसने दो महीने पहले उसका इंटरव्यू लिया था। द्निया बहुत छोटी है !

चौथी बात: पिछले दिनों अंजान शहर में ईमेल से हुई जान पहचान वाले व्यक्ति ने पूछा:

'तुम तो उसे जानते हो ना?'
'नहीं तो?'
'अरे ऐसे कैसे? उसने ही तो मुझे तुम्हारे बारे में बताया। बता रही थी कि मिली थी तुमसे किसी कॉन्फ्रेंस में। और थोड़ी बात भी की थी तुमसे। पर उसे लगा कि तुम थोड़े हाई-फ़ाई टाइप  हो।'
'क्या? अरे ऐसे कैसे सोच सकता है कोई मेरे बारे में। वैसे वो है कौन? कुछ और बताओ'
--------- 'कुछ और' पता चलने पर...
'अरे वो क्या? अरे यार! एक बार कुछ तो बोल के देखा होता उसने! मैंने तो उसके बारे में ठीक वैसा ही सोचा था जैसा उसने मेरे बारे में सोचा ! ट्रैजड़ी हो गयी ये तो'। हमेशा जैसा सोचा जाय वैसा कहाँ निकलता है कोई। पर दोनों ने एक दूसरे के बारे में वही सोचा... खैर...

पाँचवी बात: मैं अपने लैपटाप का केबल देख रहा हूँ, जब तक भारत में था अमेरिकी केबल था और आने के ठीक पहले खराब हुआ तो रिप्लेस कराकर जो लिया वो भारतीय है। उसकी किस्मत में बिना किसी और प्लग का सहारा लिए सीधे बोर्ड में लगना नहीं लिखा है !

बहुत बकवास हुई। और आपको कोई काम-वाम है कि नहीं? अब अपने-अपने काम पर लगते हैं Winking smile

आजकल यहाँ बहुत बर्फ पड़ रही है। तस्वीर में मेरे ऑफिस की बिल्डिंग है। 27 जनवरी की तस्वीर, फ्लिकर से उड़ाई हुई है।

~Abhishek Ojha ~

Jan 16, 2011

बकरचंद

अनावश्यक चेतावनी: पोस्ट में उतरोत्तर ऐसी बातें हो सकती हैं जो... छोडिये ऐसा कुछ नहीं है. वैसे भी चेतावनी दे डाली तो आप अंत तक पढेंगे. इससे अच्छा चेतावनी को रहने ही देते हैं.  और हाँ इस पोस्ट के सारे पात्र वास्तविक हैं. बकरचंद ने पोस्ट पढ़ी तो दुखी जरूर हो सकते हैं कि उनका असली नाम क्यों नहीं दिया गया.

दृश्य १: (क्लासरूम)
प्रो: हे यू, व्हाट आर यू डूइंग ?
बकरचंद: (दबी आवाज में नोटबुक पर आँख गडाये हुए) अबे किसको बोल रहा है?
पडोसी छात्र: तुझे !Kanpur
प्रो: आई ऍम टॉकिंग टू यू... यू इन ब्लू टी-शर्ट.
बकरचंद: (दबी आवाज में) अबे ये तो मुझे ही बोल रहा है. (अलर्ट होकर) सर... सर... एक्चुअली... $%#$^

दृश्य २: (क्लासरूम)
प्रो: लास्ट रो... कैन समवन प्लीज वेक हिम अप? ... स्टैंड अप?
बकरचंद: (खड़े होते हुए) सॉरी सर.
प्रो: ओह ! तो आप भी सो रहे थे... ?

दृश्य ३: (क्लासरूम)
प्रो: ओके कैन समवन टेल मी व्हाट विल हैपेन इफ ए एंड बी आर एलिमेंट्स ऑफ एन ओडरड फिल्ड? यू?
बकरचंद:  सर.. %^%& ७८&*७  #%$^&%^*
प्रो: तुम तो मुँह नहिये खोलते तो अच्छा रहता. सॉरी टू डिस्टर्ब यू. (इस दृश्य के अलावा शायद ही कभी किसी ने इन प्रोफ़ेसर साब को हिंदी बोलते सुना हो. बकरचंद ने बड़ा क्रन्तिकारी सा जवाब दे डाला था).

दृश्य ४: (कानपुर, एक रेस्टोरेंट)
- अबे ये तो बहुत महंगा है. कहीं और चलते हैं.
- कुछ तो ऑर्डर करोगे?
- ठीक है कोल्ड्रिंक/कॉफी कर दो.
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- कितना बिल आया?
- ८५
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- अबे ये तो २० लौटा गया है? क्या करें?
- चेंज नहीं होगा उसके पास. अब दे दिया है तो ले चल. कौन सा इसका दामाद बनना  है तुझे.
--- थोड़ी देर में वेटर दौड़ा-दौड़ा बाहर आया.
-'सर टिप? आपने तो... हे हे'
- भैया अब आपने ही लौटा दिया तो हम क्या करें... लो (१० रुपये)
- साले ने पांच ले ही लिए.

दृश्य ५: (भारतीय रेलवे) मासूम बकरचंद जनरल के टिकट पर स्लीपर कोच में चढ गए और रात के अँधेरे में उन्होंने टीटी को १०-१० के दो नोट पकडाए. अगले दिन सुबह...
- कहाँ से आ रहे हो?
- कानपुर से
- पढते हो
- जी अंकल
- कहाँ?
- जी आईआईटी में
- टिकट तो ले लिया करो. तुम्हे तो पास भी मिलता होगा.
- अंकल वो तो है पर क्या करें टाइम नहीं मिलता है टिकट कराने का. बहुत पढ़ना पड़ता है. रात-रात को क्लासेस होती है और छुट्टी के ठीक पहले एक्जाम... अभी तो मैं परेशान हूँ कि घर कैसे जाऊँगा. सारे पैसे तो मैंने आपको दे दिए. अब ऑटो के पैसे भी नहीं बचे. ये देखिये वालेट में कुछ भी नहीं बचा.
- गजब हो तुम भी. कितना लगता है ऑटो का?
- जी अंकल ३०.
- ये लो.
- थैंक यू अंकल.
.... (१० मिनट बाद फोन पर)... 'अबे सुन १० रुपये कमाए मैंने... %^$%^&^&'

दृश्य ६: (कानपुर, एक रेस्टोरेंट)
- अबे बहुत महँगा है. कटते हैं यहाँ से. अबे बकर, कुछ कर. यहाँ नहीं खा सकते.
बकरचंद: एक्सक्यूज मी? आप वेज और नॉन-वेज एक साथ बनाते हैं?
वेटर: नहीं सर अलग-अलग.
बकरचंद: किचन एक ही है?
वेटर: यस सर लेकिन...
बकरचंद: मैं तो यहाँ नहीं खा पाउँगा, यार तुम लोग देख लो.
- अब यार ऐसा कैसे होगा  कि तुम नहीं खाओगे और हम खायेंगे.
बकरचंद वेटर से: आप आस पास किसी ऐसे रेस्टोरेंट के बारे में जानते हैं क्या जहाँ वेज और नॉन-वेज के लिए अलग किचन हो या कोई प्योर-वेज रेस्टोरेंट?
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दृश्य ७: (बकरचंद का ऑफिस)
जूनियर: बकर ये RukBahanKe फंक्शन क्या करता है?
बकरचंद: वो टेस्ट करने के लिए है. कुछ भी एक लाइन अंट-शंट लिख दो तो स्क्रिप्ट वहीँ रुक जाती है.
जूनियर: लेकिन कुछ और भी तो लिख सकते थे... ये कोई देखेगा तो क्या कहेगा?
बकरचंद: क्या कहेगा? रोकना था तो रुक लिख दिया और फिर आगे मन में आया तो लिख दिया. अच्छा ख़ासा काम कर रहा है, तुझे क्या प्रॉब्लम है इससे?
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दृश्य ८: (पुणे, आईसीसी टावर रूफ टॉप)
बकर डिनर पर थोड़ी देर से आये...
- अबे यहाँ या तो अंदर बैठना पड़ेगा या फिर इटालियन आर्डर करना पड़ेगा.
बकरचंद: ऐसा क्यों? एक मिनट रुक. भैया... भैया, इधर आइयेगा जरा?
वेटर: यस सर?
बकरचंद: आपको भैया बोला तो बुरा तो नहीं लगा?
वेटर: नो सर... नॉट एट आल.
बकरचंद: देखो भैया अब क्या करें हमलोग यूपी के हैं. और वहाँ पर तो ऐसा ही चलता है. भूख लगी है  कुछ खिला दीजिए... अच्छा सा. एकदम फटाफट. 
वेटर: स्योर सर. वी हैव... $#%%#
बकरचंद: अब देखिये भैया ये सब नहीं बुझाता है. बुझाने का मतलब बुझते हैं न? हम यूपी के भाई लोग हैं, कुछ देसी खिलाइए...
---- (कुछ देर तक निरर्थक चर्चा… तिलक, शिवाजी… अंग्रेज चले गए तो आपको ही छोड़ गए क्या? जैसी बातों के बाद…)

वेटर: सॉरी सर, यू विल हैव टू सिट इनसाइड.
बकरचंद: अब नजारा देखने के लिए ही तो आये हैं.
---
वेटर: सर मैं अपने मैनेजर को बुला देता हूँ आप बात कर लीजिए.
--- (लगभग १० मिनट बाद. )
बकरचंद: भैया चिकन लोलीपॉप और एक कुछ वेज घास-फूस. अब तो बोल दिया आपके बड़े भैया ने. अब तो खिलाओगे? कि अभी भी नाराज हो?

दृश्य  ९: (आईआईटी कानपुर, एक कंप्यूटर लैब)
बकरचंद: अबे क्या है ये? कब है लास्ट डेट? मैं रात को करूँगा अभी कुछ नहीं कर रहा. अबे वो साईट कौन सी थी?
- www.@#$@#$.com
बकरचंद ने अपने लैपटॉप पर वो देखना चालु किया जो इंटरनेट पर सबसे ज्यादा मात्रा में मौजूद होता है. थोड़ी देर में पीछे से प्रोफ़ेसर ने कंधे पर हाथ रखा: 'बकरचंद हैव यू सीन अभिषेक टूडे?'
--- लैब मैं सन्नाटा---
बकरचंद: (बिल्कुल गंभीर मुद्रा में गंभीर, लैपटॉप का ढक्कन नीचे करते हुए) नो सर. ही मस्ट हैव गोन फॉर लंच.
प्रो: ओके. कंटीन्यू... टेल हिम दैट आई वाज लूकिंग फॉर हिम.
--- (१० मिनट बाद. ) '#$% अबे आज तो...'

मैं सोच रहा हूँ ऐसे कितने प्रतिशत प्रोफ़ेसर होते होंगे? मुझे तो लगता है एक वही.... और बकर भाई के अनगिनत किस्से… फिर कभी.

- सुना है आजकल पोस्ट में चेतावनी देने का दौर चल रहा है तो हमने भी दे दी. फिलहाल जनवरी के लिए एक पोस्ट हुई Smile

~Abhishek Ojha~