Jul 19, 2012

यूँ ही...कुछ परिभाषाएँ !


1॰ पहला 'आल-इन' शाश्वत प्रेम: पार्वती - जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी। तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू।
महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम। जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम। (- बाबा तुलसी)
[पार्वती ने कहा - करोड़ जन्मों तक हमारी जिद यही रहेगी कि शिव को वरूँगी नहीं तो कुंवारी ही रहूँगी। मैं नारद के उपदेश को नहीं छोडूंगी चाहे सौ बार स्वयं महेश ही क्यों न कहें !
मान लिया कि महादेव अवगुणों के भवन हैं और विष्णु सद्गुणों के धाम। पर अब जिसका मन जिससे लग गया उसको तो बस उसी से काम है !] 
हमने तो एक दिन सपने में देखा पार्वतीजी ने कहा... आई लव शिवा एंड नथिंग एल्स मैटर्स। नथींग बोले तो नथींग। सप्तर्षियों! अब बोलो Smile
*पोकर के खेल में बचा-खुचा सबकुछ दांव पर लगा देने को 'आल-इन' कहते हैं।

2॰ अटूट भरोसा: परशुराम - पिता ने कहा - काट ! और उन्होने अपनी माँ को काट डाला - बिन सोचे। बिन हिचके। आई डोंट केयर फॉर रेस्ट ऑफ द स्टोरी !

3॰ प्रेम में त्याग की पराकाष्ठा (नथिंग एल्स मैटर्स व्हेन इट्स लव): सुमति: अपने सेक्स मैनियाक पति के लिए, जो चलने में असमर्थ हो गया था, एक वेश्या से बात कर उसके कोठे तक पति को ले जाना और फिर वैसे पति के लिए सोलर सिस्टम कोलैप्स करने तक पर उतर आना !

4॰ पहला दिल टूटा जीनियस आशिक: भर्तृहरि -
यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च। 
-
(मैं अपने चित्त में रात दिन जिसकी स्मृति सँजोये रखता हूँ वो मुझसे प्रेम नहीं करती, वो किसी और पुरुष पर मुग्ध  है। वह पुरुष किसी अन्य स्त्री  में आसक्त है। उस पुरुष की अभिलाषित स्त्री मुझपर प्रसन्न है। इसलिए रानी को, रानी द्वारा चाहे हुए पुरुष को, उस पुरुष की चाहिए हुई वेश्या को तथा मुझे धिक्कार है और सबसे अधिक कामदेव को धिक्कार है जिसने यह सारा कुचक्र चलाया।)

5. समानता: ये कोई पौराणिक कथा नहीं। बचपन में खेत में खाद डाला जा रहा था। खेत के एक हिस्से के लिए खाद कम पड़ गया। एक बुजुर्ग ने कहा - वक़्त रहते बाजार से खाद लेते आओ, नहीं तो बचा हुए खेत गाली देता है ! गौर करें - यहाँ निर्जीव की बात है।

6॰ रिलेशनशिप: ये अपनी सोच है। सेकेंड ईयर टीए लैब - ऑक्सी फ्युल वैल्डिंग: इंस्ट्रक्टर ने कहा - दो टुकड़ों को एक ताप पर गरम कर पिघलाना होगा - एक 'मोल्टेन पूल' और कुछ 'एक्सट्रा फिलर'। फिलर कैसा होगा ये मेटल के टुकड़ों पर निर्भर करता है। और अगर अच्छे से वेल्ड हुआ तो दोनों हिस्से भले टूट जाएँ जोड़ नहीं टूट सकता - कभी नहीं। और अगर टूट गया तो? - तो तुमने सही से वेल्ड नहीं किया !
बस वैसे ही अपने 'ईगो' को थोड़ा सा जला एक शेयर्ड पूल... और उसी तरह वेल्ड। टूट नहीं सकता... टूट गया तो कोंट्राडिक्श्न से प्रूव हुआ कि वेल्ड ही नहीं हुआ था - जय सिया रामSmile

7॰ बीता हुआ कल: कितना भी खूबसूरत रहा हो। उसको लेकर बैठे रहोगे तो कुछ नहीं होना !
ब्रह्मा ने ये यूनिवर्स बनाया - क्वान्टम स्टेट्स से लेकर ग्रेविटेशन तक ! (एक मिनट के लिए मान लो, इफ ही एक्सिस्ट्स) ...अनंत.. खूबसूरत ! जीवन। उसी स्कूल ऑफ थोट के विष्णु और शिव भी। ब्रह्मा ने तो यूनिवर्स बना दिया... वो कितना भी खूबसूरत रहा हो... है तो बीता हुआ कल... ब्रह्मा को कोई नहीं पूजता।

लंबरेटा कभी सबसे अच्छा टू व्हीलर था। नो ड़ाउट। आप अपने पास्ट को लंबरेटा से बेहतर मानते हैं? मेरे उदाहरण पर हंसने वाले ! जरा उससे जाकर पूछ जिसने पहली बार भारत की सड़कों पर लंबरेटा चलाई होगी। पर उसी पास्ट में अटके रहोगे तो आज के टू व्हीलर के बारे में जानोगे भी कैसे? बीते हुए कल का गर्व, उसकी टेंशन, उसकी सुनहरी और काली यादें... जैसी भी हो... आज और आने वाले कल को नहीं सुधार सकती ! ....गणितीय रूप से शेयर बाजार का भविष्य निर्धारित करने के लिए मार्कोव इस्तेमाल करते हैं.... मार्कोव बोले तो... भविष्य बस अभी पर निर्भर करता है। पहले क्या था....  कोई मायने नहीं रखता। .... बोले तो मार्कोव इज मेमोरिलेस!

...और आप पूछेंगे कि ये सब कह कर किसी को समझाया जा सकता है ?
- तो मैं कहूँगा...  दिल बहलाने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है !Laughing out loud पर इतना तो है ... इन बातों से अपने रोंगटे तो खड़े होते हैं दोस्त...
और ये भी है कि कोई 'समझदार' कह सकता है - ओझा बाबू, तुम थियरि के आदमी लगते हो कभी अप्लाइड में आओ तो औकात पता लगे !  ऐसा कहोगे तो अब क्या कहूँ कि प्योर मैथस वाले अप्पलाइड वालों को कैसी नजरों से देखते हैं... Smile with tongue out

...खैर शेष फिर कभी !  ...क्योंकि ऐसा  ढेर सारा कचरा भरा है दिमाग में :)  और वो मुफ्त के प्लैटफ़ार्म पर नहीं उगला जाएगा तो कहाँ ! अब और ज्यादा लाइट मूड किया तो आपको मेरे पोस्ट में ग़म न दिखने लगे। रिस्क है... तो इस पोस्ट को सीरियसली ही लिया जाय।
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~Abhishek Ojha~

Jul 4, 2012

हनी जैसी स्वीट, मिर्ची जैसी हॉट (पटना १४)

 

मैंने पूछा – ‘क्या हुआ बीरेंदर ?’

‘कुछ नहीं भईया. आइये. ई साला नया वाला फोन ! जब  से लिए हैं पता नहीं दिनों-रात का भीतरे-भीतर अपडेट करते रहता है ! हम भी कहते हैं - कर जो करना है. जो पूछता है ओके दबा देते हैं.'  - बीरेंदर ने फोन के स्क्रीन से आँखें हटाते हुए कहा.

‘ऐ छोटूआ दू ठो कटिंग लाओ. आछे भईया, एक ठो बात बताइये. ई जो सब अपडेट होता है इसका कुछ मतलब भी होता है? साला अपडेट त एतना हो रहा है. आ चल ओइसही रहा है. कुछो नया त होता नहीं है !’ बीरेंदर ने चाय की दूकान के सामने लगी मोटरसाइकिलों में से एक पर बैठते हुए कहा.

‘हाँ कुछ तो होता ही होगा. अब ऐसे तो अपडेट नहीं ही हो रहा होगा. ज्यादातर छोटे-मोटे चेंजेस होते हैं. जो हमें पता नहीं चलते' – मैंने गोल-मटोल जवाब दिया तो मुझे लगा कि बीरेंदर भी मन ही मन कह रहा है –‘एही जानने के लिए आपसे पूछे थे? एतना त हमको भी बुझाता है.’ लेकिन कुछ बोला नहीं.

चाय आई तो मैंने पूछा ‘बीरेंदर उस दिन का कांड तो बताओ?’

‘आरे अइसही… उ एकठो लरका-लरकी का चक्कर था. लरकवा जाने-पहचान का है. उस दिन हमको फोन किया था. उ का है कि हम ई सब मामला में खूब सपोर्ट करते हैं.’ - बीरेंदर ने सगर्व बताया तो हमें भी लगा कि बैरीकूल ऐसे ही नहीं कहते हैं उसे.

बीरेंदर ने आगे बताया. ‘फोन किया त बोला कि - भईया हम भाग आये हैं हनिया के साथ. आपको बता तो रहे हैं लेकिन ई मत पूछियेगा कि कहाँ जा रहे हैं. हम अब आयेंगे नहीं.  …पहिले तो हमको बुझाइएबे नहीं किया कि साला उ भागा किसके साथ है. आ अब पूछ भी तो नहीं सकते थे! आस-पास का कम से कम दस मोहल्ला का सब लरका-लरकी को त हम जानबे करते हैं. बहुत सोचे कि कौन लरकी को भगाया है. अइसा त साला हो नहीं सकता कि हम नामे न सुने हों ! बाद में ईस्टराईक किया कि उ प्यार से 'हनी' बोल रहा है. उहे हम कहे कि साला चक्कर था पमिया से आ ई बीच में हनिया कहाँ से आ गयी !’ बीरेंदर ने जीतने उतार-चढ़ाव अपनी आवाज और हाव-भाव में किया और अंत में ‘हनिया’ और ‘पमिया' पर जोर देते हुए जिस अंदाज में कहा - सबको हंसी आई.

‘अरे ठीक है न. प्यार मोहब्बत में बोल दिया होगा लड़के ने. वैसे ही जोश में होगा' मैंने कहा.

‘अरे नहीं  रुकिए त एक मिनट. आप नहीं बुझेंगे. हनी बोलता है उ त कुछो नहीं है. माने अब आपको का बताएं… सही में कुछो नहीं.’ बोलते-बोलते बीरेंदर रुक गया. फिर बताने का प्रयास किया – ‘अईसा है कि हम त ई सब बहुते कांड देखे हैं. लेकिन उ दिन दू ठो मोबाईल का मेसेज भी पढ़े. अब का कीजियेगा. पता लगाने के लिए पढ़ना पड़ा कि भाग के गया कहाँ होगा. अब का बताएं आपको. का नहीं बोलता है सब आजकल. मिर्ची बोलता है, केक बोलता है, कड़ाही बोलता है. कुकुर-बिलाई सब बोलता है ! अबे इ कौन सा प्यार है ! माँ-बाबूजी तोके एतना अच्छा नाम दिए हैं. लेकिन उ नाम छोर के बाकी सब नाम से बुलाता है. अब वही प्यार है, तो ठीक है. !' – बताते-बताते  बात नाराजगी से निराशा जैसी हो चली.

‘जब वापस लेके आये उ दूनों को त बाद में उससे पूछे अकेले में कि अबे मजनूँ एक बात बता - ई हनी तो ठीक है लेकिन मिर्ची ? त बोला कि - भईया हनी जईसा स्वीट आ मिर्ची जईसा होट. बोला त अइसे जैसे कामायनी लिख दिया हो. आ हमको मन त किया कि एक लप्पड मारे वहीँ.  लेकिन हम उसको बस एतना बोले – ‘साले कभी मिर्ची आ हनी मिला के खाना त बुझायेगा.’ का कहियेगा मोबाईल जैसा भीतरे भीतर ई सब भाषा भी कब अपडेट हो गया हमको पते नहीं चला !’

‘हा हा हा. अरे बीरेंदर, कितनी मेहनत से लिखा होगा उसने. प्यार में कोई भी शायर टाइप का बन जाता है’ - मैंने हंसते हुए कहा.

‘ई प्यार नहीं होता है भईया. प्यार मत कहिये. प्यार माने… बाबूजी दू लप्पड मारे त भाग गया. उसके बाद धर के लतिया दिए त प्यार का भूत उतरियो गया. आपको एक ठो बात बताते हैं. एक बार सदा लाल सिंहवा बोला कि - बीरेंदर हमको इश्क का फील हो गया है. सायरी त लिखबे करता है. हम बोले सही जा रहे हो बेटा लेकिन एक बात जान लो अगर तुम मजनूँ से मिलते न त उहो बोलता कि हमको नहीं मालूम ई का चीज है ! आ तुम बात अइसे कह रहे हो जैसे तुमको हवा में इश्क का फार्मूला नजर आता है. इश्क का कवनो उर्दू जबान में लिखा फार्मूला है कि चार ठो सीख लिए त हो गया. ऐ छोटुआ ! उ कब का बात है? मेरे हिसाब से सन ट्वेंटी सौ छौ का बात होगा.  छोटुआ तब नाइंथ टेंथ में था. नहीं रे?’ बीरेंदर उस दिन बहुत जोश में था. बिन रुके बोले जा रहा था. छोटुआ ने ध्यान नहीं दिया और अनसुना सा करते हुए अपने काम में लगा रहा.

बीरेंदर ने  कहा - चलिए थोडा उधर चलते हैं. फिर चलते-चलते छोटुआ की बात आगे बताई – ‘भईया बात अईसा है कि ई बात एक ठो हमीं को पता है कि आपे को बता रहे हैं. छोटुआ एक दिन हमको बोला कि उसका बिजनेस बहुते अच्छा चलता है. लेकिन उ ई कभी नहीं कहता कि उसका चाह सबसे अच्छा होता है.  बोला कि अच्छा चाह जैसा कुछ होता ही नहीं ! किसी को कम पत्ती वाला, किसी को जादे पत्ती वाला, किसी को फरेस उबलते ही तुरत चाहिए त कोई उसको काढ़ा -रबड़ी बाना के पिएगा. कोई बिना दूध-चीनी के मांगता है त कोई… अब उसको चाह का कहियेगा… उसको रख दीजियेगा त १० मिनट में जम के बरफी हो जाएगा ! … का हो कनिमांझा*? माजा मार रहे हो न ?’ - बीच में बैरी ने चलते-चलते किसी को टोका.

‘हाँ चाय के मामले में तो तुम्हारी बात बिल्कुल सही है' - मैंने कहा.

‘हाँ. ५ साल में आजतक चाह का बात नहीं बुझाया छोटुआ को आ इहे छोटुआ दस में पढता था तो बोल दिया अपने क्लास का लड़की को… कि बस हमको तुम्हरे खुसी से मतलब है. उ पूछी - काहे? त बोला  – ‘ई त हमको भी नहीं पता. लेकिन है. आ उसके अलावा हमको किसी भी बात से कवनो मतलब भी नहीं है.’ अब देखिये… इसका परिभाषा इहे था प्यार के. उसी को पूछा कि हाँ बोलेगी त उसके लिए कुछ भी ना बोलेगी तो साला ना के लिए ही कुछ भी ! मतलब समझ रहे हैं आप?--- बस उसका खुसी. अपना कुछो नहीं ! आज तक छोटुआ कभी उसको बुरा भला नहीं कहा होगा. हम त इसी को मजनूँ मानते हैं. अइसे तड़प के चुप रह गया है ई लड़का !’ बीरेंदर ने अपनी पांचो उंगुलियां फैला कर हवा में ऐसे लहराई जैसे मछली तड़प रही हो. ‘आ सदा लाल सिंहवा ‘इस्क के फील' का बात करता है’

‘छोडो बीरेंदर तुम इतनी अच्छी बात में कहाँ बार-बार सदालाल को घसीट देते हो' - मैंने फिर उसे शांत करने के हिसाब से कहा.

‘भईया, आपका यही बात हमको अच्छा लगता है. आप किसी को गरियाने नहीं देते. खैर… छोटुआ जो निस्वार्थ प्यार में बेबस, लाचार हुआ है न भईया… साला कोई नहीं कर सकता. चुप रह के… खैर ई सब जो करता है वही बुझेगा… आपके लिए थोडा मुश्किल हो शायद. या पता नहीं आप भी बुझते हों. ई छोटुआ को हम तब से जानते हैं. कभी कोई टेंसन-फिकर नहीं. देखिये चाय का दूकान पर ही हमारे जेतना कमाने वाला से जादा तो पगार में दे देता है. दुनिया को अपने उसके दक्खिन ही रखता है. उसको कोई का टेंसन देगा? लेकिन जानते हैं मेरियाना गर्त है उ साला, कुछ भी समेट लेता है अपने अंदर ! हमको तो लगता है जेतना अईसा आदमी होता है न, टेंसन ना लेने वाला, उसका अंदर से ओतना ही खेला साफ़ होता है !’

‘गंभीर बातें कह रहे हो बीरेंदर, तुम भी तो उसी तरह लगते हो मुझे’ मैंने पुछा.

‘हा हा. नहीं भईया. ओइसे आप कह रहे हैं त कभी सुनायेंगे आपको. आपे चुप रह जाते हैं ! हम त सुनाइये देंगे सब एक न एक दिन. एक ठो और बात ई सब चीज पढ़ के आ सायरी कर के घंटा नहीं बुझायेगा. जानते हैं नौवां क्लास में फिजिक्स में एक ठो कोस्चन था कि रोटी कैसे फुल जाता हैं? हम त इस सवाल से यही सीखे कि ना तो सब अच्छा रोटी बनाने वाला लरकी इस सवाल का सही आंसर करती है. ना सही करने वाले सब को रोटीये बनाने आता है. ओइसही अब जेतना लरकी हिल पहन के चलती है… उसको अपना बोडी का सेंटर आफ मास आ मोमेंट ऑफ इनर्सिया थोरे न बुझना होता है !… सही बोल रहे न भईया?… हमको फिजिक्स कभी नहीं बुझाया. साला फिजिक्स का क्लास में यही सब त सोचते रहते थे.’ Smile'

‘अरे बीरेंदर ! तुमने कभी कुछ गलत कहा है?  चलो वापस चलते हैं. कुछ ऑफिस में काम निपटाना है. कल फिर मिलते हैं.'

(पटना सीरीज)

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~Abhishek Ojha~

*इस कैरेक्टर की बात फिर कभी !