Jul 4, 2012

हनी जैसी स्वीट, मिर्ची जैसी हॉट (पटना १४)

 

मैंने पूछा – ‘क्या हुआ बीरेंदर ?’

‘कुछ नहीं भईया. आइये. ई साला नया वाला फोन ! जब  से लिए हैं पता नहीं दिनों-रात का भीतरे-भीतर अपडेट करते रहता है ! हम भी कहते हैं - कर जो करना है. जो पूछता है ओके दबा देते हैं.'  - बीरेंदर ने फोन के स्क्रीन से आँखें हटाते हुए कहा.

‘ऐ छोटूआ दू ठो कटिंग लाओ. आछे भईया, एक ठो बात बताइये. ई जो सब अपडेट होता है इसका कुछ मतलब भी होता है? साला अपडेट त एतना हो रहा है. आ चल ओइसही रहा है. कुछो नया त होता नहीं है !’ बीरेंदर ने चाय की दूकान के सामने लगी मोटरसाइकिलों में से एक पर बैठते हुए कहा.

‘हाँ कुछ तो होता ही होगा. अब ऐसे तो अपडेट नहीं ही हो रहा होगा. ज्यादातर छोटे-मोटे चेंजेस होते हैं. जो हमें पता नहीं चलते' – मैंने गोल-मटोल जवाब दिया तो मुझे लगा कि बीरेंदर भी मन ही मन कह रहा है –‘एही जानने के लिए आपसे पूछे थे? एतना त हमको भी बुझाता है.’ लेकिन कुछ बोला नहीं.

चाय आई तो मैंने पूछा ‘बीरेंदर उस दिन का कांड तो बताओ?’

‘आरे अइसही… उ एकठो लरका-लरकी का चक्कर था. लरकवा जाने-पहचान का है. उस दिन हमको फोन किया था. उ का है कि हम ई सब मामला में खूब सपोर्ट करते हैं.’ - बीरेंदर ने सगर्व बताया तो हमें भी लगा कि बैरीकूल ऐसे ही नहीं कहते हैं उसे.

बीरेंदर ने आगे बताया. ‘फोन किया त बोला कि - भईया हम भाग आये हैं हनिया के साथ. आपको बता तो रहे हैं लेकिन ई मत पूछियेगा कि कहाँ जा रहे हैं. हम अब आयेंगे नहीं.  …पहिले तो हमको बुझाइएबे नहीं किया कि साला उ भागा किसके साथ है. आ अब पूछ भी तो नहीं सकते थे! आस-पास का कम से कम दस मोहल्ला का सब लरका-लरकी को त हम जानबे करते हैं. बहुत सोचे कि कौन लरकी को भगाया है. अइसा त साला हो नहीं सकता कि हम नामे न सुने हों ! बाद में ईस्टराईक किया कि उ प्यार से 'हनी' बोल रहा है. उहे हम कहे कि साला चक्कर था पमिया से आ ई बीच में हनिया कहाँ से आ गयी !’ बीरेंदर ने जीतने उतार-चढ़ाव अपनी आवाज और हाव-भाव में किया और अंत में ‘हनिया’ और ‘पमिया' पर जोर देते हुए जिस अंदाज में कहा - सबको हंसी आई.

‘अरे ठीक है न. प्यार मोहब्बत में बोल दिया होगा लड़के ने. वैसे ही जोश में होगा' मैंने कहा.

‘अरे नहीं  रुकिए त एक मिनट. आप नहीं बुझेंगे. हनी बोलता है उ त कुछो नहीं है. माने अब आपको का बताएं… सही में कुछो नहीं.’ बोलते-बोलते बीरेंदर रुक गया. फिर बताने का प्रयास किया – ‘अईसा है कि हम त ई सब बहुते कांड देखे हैं. लेकिन उ दिन दू ठो मोबाईल का मेसेज भी पढ़े. अब का कीजियेगा. पता लगाने के लिए पढ़ना पड़ा कि भाग के गया कहाँ होगा. अब का बताएं आपको. का नहीं बोलता है सब आजकल. मिर्ची बोलता है, केक बोलता है, कड़ाही बोलता है. कुकुर-बिलाई सब बोलता है ! अबे इ कौन सा प्यार है ! माँ-बाबूजी तोके एतना अच्छा नाम दिए हैं. लेकिन उ नाम छोर के बाकी सब नाम से बुलाता है. अब वही प्यार है, तो ठीक है. !' – बताते-बताते  बात नाराजगी से निराशा जैसी हो चली.

‘जब वापस लेके आये उ दूनों को त बाद में उससे पूछे अकेले में कि अबे मजनूँ एक बात बता - ई हनी तो ठीक है लेकिन मिर्ची ? त बोला कि - भईया हनी जईसा स्वीट आ मिर्ची जईसा होट. बोला त अइसे जैसे कामायनी लिख दिया हो. आ हमको मन त किया कि एक लप्पड मारे वहीँ.  लेकिन हम उसको बस एतना बोले – ‘साले कभी मिर्ची आ हनी मिला के खाना त बुझायेगा.’ का कहियेगा मोबाईल जैसा भीतरे भीतर ई सब भाषा भी कब अपडेट हो गया हमको पते नहीं चला !’

‘हा हा हा. अरे बीरेंदर, कितनी मेहनत से लिखा होगा उसने. प्यार में कोई भी शायर टाइप का बन जाता है’ - मैंने हंसते हुए कहा.

‘ई प्यार नहीं होता है भईया. प्यार मत कहिये. प्यार माने… बाबूजी दू लप्पड मारे त भाग गया. उसके बाद धर के लतिया दिए त प्यार का भूत उतरियो गया. आपको एक ठो बात बताते हैं. एक बार सदा लाल सिंहवा बोला कि - बीरेंदर हमको इश्क का फील हो गया है. सायरी त लिखबे करता है. हम बोले सही जा रहे हो बेटा लेकिन एक बात जान लो अगर तुम मजनूँ से मिलते न त उहो बोलता कि हमको नहीं मालूम ई का चीज है ! आ तुम बात अइसे कह रहे हो जैसे तुमको हवा में इश्क का फार्मूला नजर आता है. इश्क का कवनो उर्दू जबान में लिखा फार्मूला है कि चार ठो सीख लिए त हो गया. ऐ छोटुआ ! उ कब का बात है? मेरे हिसाब से सन ट्वेंटी सौ छौ का बात होगा.  छोटुआ तब नाइंथ टेंथ में था. नहीं रे?’ बीरेंदर उस दिन बहुत जोश में था. बिन रुके बोले जा रहा था. छोटुआ ने ध्यान नहीं दिया और अनसुना सा करते हुए अपने काम में लगा रहा.

बीरेंदर ने  कहा - चलिए थोडा उधर चलते हैं. फिर चलते-चलते छोटुआ की बात आगे बताई – ‘भईया बात अईसा है कि ई बात एक ठो हमीं को पता है कि आपे को बता रहे हैं. छोटुआ एक दिन हमको बोला कि उसका बिजनेस बहुते अच्छा चलता है. लेकिन उ ई कभी नहीं कहता कि उसका चाह सबसे अच्छा होता है.  बोला कि अच्छा चाह जैसा कुछ होता ही नहीं ! किसी को कम पत्ती वाला, किसी को जादे पत्ती वाला, किसी को फरेस उबलते ही तुरत चाहिए त कोई उसको काढ़ा -रबड़ी बाना के पिएगा. कोई बिना दूध-चीनी के मांगता है त कोई… अब उसको चाह का कहियेगा… उसको रख दीजियेगा त १० मिनट में जम के बरफी हो जाएगा ! … का हो कनिमांझा*? माजा मार रहे हो न ?’ - बीच में बैरी ने चलते-चलते किसी को टोका.

‘हाँ चाय के मामले में तो तुम्हारी बात बिल्कुल सही है' - मैंने कहा.

‘हाँ. ५ साल में आजतक चाह का बात नहीं बुझाया छोटुआ को आ इहे छोटुआ दस में पढता था तो बोल दिया अपने क्लास का लड़की को… कि बस हमको तुम्हरे खुसी से मतलब है. उ पूछी - काहे? त बोला  – ‘ई त हमको भी नहीं पता. लेकिन है. आ उसके अलावा हमको किसी भी बात से कवनो मतलब भी नहीं है.’ अब देखिये… इसका परिभाषा इहे था प्यार के. उसी को पूछा कि हाँ बोलेगी त उसके लिए कुछ भी ना बोलेगी तो साला ना के लिए ही कुछ भी ! मतलब समझ रहे हैं आप?--- बस उसका खुसी. अपना कुछो नहीं ! आज तक छोटुआ कभी उसको बुरा भला नहीं कहा होगा. हम त इसी को मजनूँ मानते हैं. अइसे तड़प के चुप रह गया है ई लड़का !’ बीरेंदर ने अपनी पांचो उंगुलियां फैला कर हवा में ऐसे लहराई जैसे मछली तड़प रही हो. ‘आ सदा लाल सिंहवा ‘इस्क के फील' का बात करता है’

‘छोडो बीरेंदर तुम इतनी अच्छी बात में कहाँ बार-बार सदालाल को घसीट देते हो' - मैंने फिर उसे शांत करने के हिसाब से कहा.

‘भईया, आपका यही बात हमको अच्छा लगता है. आप किसी को गरियाने नहीं देते. खैर… छोटुआ जो निस्वार्थ प्यार में बेबस, लाचार हुआ है न भईया… साला कोई नहीं कर सकता. चुप रह के… खैर ई सब जो करता है वही बुझेगा… आपके लिए थोडा मुश्किल हो शायद. या पता नहीं आप भी बुझते हों. ई छोटुआ को हम तब से जानते हैं. कभी कोई टेंसन-फिकर नहीं. देखिये चाय का दूकान पर ही हमारे जेतना कमाने वाला से जादा तो पगार में दे देता है. दुनिया को अपने उसके दक्खिन ही रखता है. उसको कोई का टेंसन देगा? लेकिन जानते हैं मेरियाना गर्त है उ साला, कुछ भी समेट लेता है अपने अंदर ! हमको तो लगता है जेतना अईसा आदमी होता है न, टेंसन ना लेने वाला, उसका अंदर से ओतना ही खेला साफ़ होता है !’

‘गंभीर बातें कह रहे हो बीरेंदर, तुम भी तो उसी तरह लगते हो मुझे’ मैंने पुछा.

‘हा हा. नहीं भईया. ओइसे आप कह रहे हैं त कभी सुनायेंगे आपको. आपे चुप रह जाते हैं ! हम त सुनाइये देंगे सब एक न एक दिन. एक ठो और बात ई सब चीज पढ़ के आ सायरी कर के घंटा नहीं बुझायेगा. जानते हैं नौवां क्लास में फिजिक्स में एक ठो कोस्चन था कि रोटी कैसे फुल जाता हैं? हम त इस सवाल से यही सीखे कि ना तो सब अच्छा रोटी बनाने वाला लरकी इस सवाल का सही आंसर करती है. ना सही करने वाले सब को रोटीये बनाने आता है. ओइसही अब जेतना लरकी हिल पहन के चलती है… उसको अपना बोडी का सेंटर आफ मास आ मोमेंट ऑफ इनर्सिया थोरे न बुझना होता है !… सही बोल रहे न भईया?… हमको फिजिक्स कभी नहीं बुझाया. साला फिजिक्स का क्लास में यही सब त सोचते रहते थे.’ Smile'

‘अरे बीरेंदर ! तुमने कभी कुछ गलत कहा है?  चलो वापस चलते हैं. कुछ ऑफिस में काम निपटाना है. कल फिर मिलते हैं.'

(पटना सीरीज)

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~Abhishek Ojha~

*इस कैरेक्टर की बात फिर कभी !

23 comments:

  1. "साला चक्कर था पमिया से आ ई बीच में हनिया कहाँ से आ गयी !"

    "हम त इस सवाल से यही सीखे कि ना तो सब अच्छा रोटी बनाने वाला लरकी इस सवाल का सही आंसर करती है. ना सही करने वाले सब को रोटीये बनाने आता है"

    ये बिरेंदर है कौन ? आप हमें स्प्लिट पर्सनालिटी लगने लगे हो :) :) :)

    पोस्ट धुआंधार और शानदार है !!!!

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    1. Nahin, barrykool ki baat ka credit ham nahin lenge :-)

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  2. भईया का इतना लगाव बैरीकूल से जा जा कर साथ बैठना चाय पीना बोलना बतियाना
    यी कौन सी आह है जो दब दब के निकल रही है :-)

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  3. यार तुम एक किताब लिख ही डालो अब!

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    1. किताब तो आनी ही चाहिये!

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  4. ई सदा लाल सिंहवा का का मुकाबला छोटुआ से - बात करता है उर्दू के दो हरफ़ रटकर। हनिया की बात पर प्रोबेशन के दिनों के एक मित्र और उनके भी एकठो बिगशॉट मित्र का किस्सा याद आ गया। का है भैया कि ऊ भी इक प्री-चैट ज़माना था जब हर बात ऐब्रीविएशन में हुआ करता था।
    :)

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  5. जय हो, हनी का हनिया कर बैठे, भाषा अपने आप अपडेट करने का गुण सीख गयी..

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  6. चौचक मजेदार मनई है ई बैरीकूलवा :)

    मस्त !

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  7. "ई बात एक ठो हमीं को पता है कि आपे को बता रहे हैं"

    *****

    "छोटुआ जो निस्वार्थ प्यार में बेबस, लाचार हुआ है न भईया… साला कोई नहीं कर सकता. चुप रह के… खैर ई सब जो करता है वही बुझेगा… आपके लिए थोडा मुश्किल हो शायद. या पता नहीं आप भी बुझते हों. ई छोटुआ को हम तब से जानते हैं. कभी कोई टेंसन-फिकर नहीं. देखिये चाय का दूकान पर ही हमारे जेतना कमाने वाला से जादा तो पगार में दे देता है. दुनिया को अपने उसके दक्खिन ही रखता है. उसको कोई का टेंसन देगा? लेकिन जानते हैं मेरियाना गर्त है उ साला, कुछ भी समेट लेता है अपने अंदर ! हमको तो लगता है जेतना अईसा आदमी होता है न, टेंसन ना लेने वाला, उसका अंदर से ओतना ही खेला साफ़ होता है !"

    पकड़ लिए तुम... बेजोड़...

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  8. पूरी सिरीज़ ही बैरीकूल :)

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  9. दैहिक, दैविक, भौतिक (शास्‍त्र) तापा...

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  10. बिरेंदर ने तो बातों बातों में कामायनी का भी जिक्र कर दिया....क्या बात है...
    चालू रहे पटना सीरीज

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  11. अद्भुत अति सहज किन्तु संवेदनाओं से भरी बाते लगती सरल लेकिन वक्र .

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  12. बैरीकूल बडे ज्ञानी पुरुष हैं.. बहुत नीमन इंसान :)

    "ओइसही अब जेतना लरकी हिल पहन के चलती है… उसको अपना बोडी का सेंटर आफ मास आ मोमेंट ऑफ इनर्सिया थोरे न बुझना होता है !… सही बोल रहे न भईया?"

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  13. आज की डोज़ थी फुल्ल-डोज़ :)

    वैसे कभी टटोलकर देखियेगा, वीरेंदर के पास खुद की एक बहुत सैडस्टोरी होगी, मेरा ऐसा ख्याल है|

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  14. हमको तो लगता है जेतना अईसा आदमी होता है न, टेंसन ना लेने वाला, उसका अंदर से ओतना ही खेला साफ़ होता है

    बैरीकूल से सहमत...


    स्‍ट्रीट स्‍मार्टनेस ही आखिर एकेडमिक स्‍मार्टनेस बनती है... :) बस तरीका बदलता है... :)

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  15. साफ़ खेला वाला बात चकाचक है।
    आज पढ़े इसको और बहुत अच्छा लगा।
    किताब भी छप जाये अब तो!

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  16. बिरेंदर बड़े काम की चीज़ है .पता छोडिये उनका

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  17. बैरीकूल का लोहा तो मानते ही आए हैं, बहुत शानदार! गज़ब्बे-गज़ब!

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  18. bahut badhiya likha hai aapne ....mere blog par bhi aap sabhi ka swagat hai
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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