Mar 17, 2008

अपने दुःख से भी कोई दुखी है क्या?

जी हाँ, परेशानी तो इस बात से होती है कि सामने वाला ज्यादा खुशहाल दिख जाता है। और जैसे हर माँ को अपना बच्चा और हर पति को दुसरे की बीवी अच्छी लगती है वैसे ही हर व्यक्ति को सामने वाला ज्यादा खुशहाल दिखता है. खैर ये तो बाद की बात है पहले ये कि मुझे इतना ज्ञान कहाँ से मिल गया. ज्ञान-व्यान तो कुछ नहीं है मेरे पास... बस ये वार्तालाप आप भी सुन लो तो पता चल जायेगा.

'अरे भाई कैसे हो? तुम तो अब बड़े आदमी हो गए हो... हमें भी कभी याद कर कर लिया करो !'
'नहीं यार, काहे का बड़ा आदमी... ये भी कोई जिंदगी है, स्साला कुल मिला के ६०-७० हज़ार मिलते हैं महीने के. यहाँ तो जिसको देखो १ करोड़ कि कार में चलता है, अरे यार २0-२५ लाख तो वेतन होता है पता नहीं साले करते क्या हैं इतने पैसों का? अब तुम्ही बताओ इंडिया में इतने पैसे एक अकेले के लिए... यार तुम्हारी ही जिंदगी अच्छी है, वैसे कैसी चल रही है आजकल?'
'हाँ भैया बड़े लोग बड़ी बात, वैसे मेरी मस्त चल रही है। चलो मैं तुम्हे बाद में काल करता हूँ!'

अब सामने वाला क्या बोले ! क्या सोच के फ़ोन किया था और यहाँ तो अपना ही दुखडा लेके चालू हो गए। खैर बैठे-बैठे बोरियत टालनी थी एक और काल लगा दी. यहाँ कुछ दिक्कत न हो इसलिए पहले ही बोल दिया...

'और यार कैसे हो? मैं तो किसी तरह जिंदगी काट रहा हूँ... एक तो काम का प्रेसर और ऊपर से वेतन इतना कम, तुम सुनाओ कैसे हो?'
'मैं तो मस्त हूँ भाई, ५००० कमाता हूँ महीने के, और यहाँ तो ये आलम है कि लोगो को भरपेट खाना भी नहीं मिलता... मैंने तो एक मोटर साइकिल भी ले ली है... अब तुम तो जानते ही हो कि यहाँ तो लोगो के पास साइकिल होना भी बड़ी बात है. मेरी जिंदगी तो मजे में चल रही है. और तुम क्यों परेशान हो? क्या हो गया?'
'नहीं, मैं भी ठीक हूँ बस ऐसे ही... '

आपने इस वार्तालाप से क्या निकाला वो तो पता नहीं, पर मेरे लिए तीन बातें साफ हैं। ...
पहली ये कि १००० रुपया कमाने वाले आदमी को अगर ९०० रुपया कमाने वालो के साथ रखो तो वो ज्यादा खुश रहेगा. लेकिन अगर उसी व्यक्ति को १२०० दो और १५०० रुपया कमाने वालो के बीच में रख दो तो वो पहले कि अपेक्षा दुखी रहेगा।

दूसरी ये कि पैसा और सुख में कोई सम्बन्ध है तो जरूर पर वो सम्बन्ध लीनियर नहीं है

और तीसरा ये कि सब लोग तो दुसरे के सुख से ही परेशान है अपने दुःख से दुखी ही कौन है !
~Abhishek Ojha~

Mar 14, 2008

कुछ तेरा, कुछ मेरा

जो कुछ तेरा था, वो सब कुछ मेरा था.
जो कुछ मेरा था, वो सब कुछ तेरा था.
जो कुछ नहीं था, हम दोनों का नहीं था.

तुने कह दिया- यह मेरा है !

फिर कुछ तेरा हो गया, कुछ मेरा हो गया.
जो कुछ नहीं था, मैं उसे पाने में लग गया.
फिर तू भी कुछ पाने में लग गया.

पहले खोने को बहुत कुछ था -
अब कुछ पाने की ललक से फुर्सत ही कहाँ है?

~Abhishek Ojha~

Mar 5, 2008

एक अजनबी हसीना से...

एक खाली पड़ा खूबसूरत समुद्रतट... दूर दूर तक केवल बालू जिस पर अभी तक किसी के पैरों के निसान भी नहीं उभरे हो, किनारे बैठे ढेर सारे पक्षी, शीतल हवा का झोंका... और ऐसे में एक अनजान हसीना से मुलाकात.... ये किसी हिन्दी फ़िल्म का दृश्य नहीं पर सचमुच की घटना है जो पिछले सप्ताहांत पर मेरे और मेरे कुछ दोस्तों के साथ घटी.



उस समुद्रतट की कुछ झलकियाँ जहाँ पर ये घटना घटी


पर इसके बाद जो हुआ वो आप इन तस्वीरों में देख सकते हैं. माफ़ कीजियेगा मैं उस हसीना की तस्वीरें नहीं लगा सकता.

हुआ कुछ यूं कि ... मेरे सारे साथी उस अजनबी हसीना को लुभाने में लगे हुए थे और उधर हमारी कार को गुस्सा आया और उसने उस खूबसूरत अनछुए बालू से मिलन की ठान ली.... "आख़िर कब तक ये मेरी अनदेखी करेंगे, मैं भी देखती हूँ कि इन्हे किसकी ज्यादा जरुरत है, मेरी या.... !" किनारे पर खड़ी कार धीरे-धीरे बालू में धँसने लगी.

फिर क्या हुआ ये ना पूछो !



मेरी नज़र उधर पड़ी और फिर इन्सान की तो आदत है ही दुसरे के आनंद में विघ्न डालना... सब के सब अपना आनंद छोड़कर कार को उसके आनंद से निकालने में लग गए... शाम हो चली थी, और सब को डर था कि वहाँ तक पानी ना आ जाए...

...और मुझे ये गाना याद आ रहा था.

'एक अजनबी हसीना से...
मुलाकात हो गई,
फिर क्या हुआ ये ना पूछो !'

और साथ में एक गाने की ये लाइन भी....

'आग से नाता, नारी से रिश्ता काहे मन समझ न पाया...'

अब मुसीबत हो या खुशी याद तो किशोर दा ही आते हैं.


~Abhishek Ojha~