एक खाली पड़ा खूबसूरत समुद्रतट... दूर दूर तक केवल बालू जिस पर अभी तक किसी के पैरों के निसान भी नहीं उभरे हो, किनारे बैठे ढेर सारे पक्षी, शीतल हवा का झोंका... और ऐसे में एक अनजान हसीना से मुलाकात.... ये किसी हिन्दी फ़िल्म का दृश्य नहीं पर सचमुच की घटना है जो पिछले सप्ताहांत पर मेरे और मेरे कुछ दोस्तों के साथ घटी.
पर इसके बाद जो हुआ वो आप इन तस्वीरों में देख सकते हैं. माफ़ कीजियेगा मैं उस हसीना की तस्वीरें नहीं लगा सकता.
हुआ कुछ यूं कि ... मेरे सारे साथी उस अजनबी हसीना को लुभाने में लगे हुए थे और उधर हमारी कार को गुस्सा आया और उसने उस खूबसूरत अनछुए बालू से मिलन की ठान ली.... "आख़िर कब तक ये मेरी अनदेखी करेंगे, मैं भी देखती हूँ कि इन्हे किसकी ज्यादा जरुरत है, मेरी या.... !" किनारे पर खड़ी कार धीरे-धीरे बालू में धँसने लगी.
मेरी नज़र उधर पड़ी और फिर इन्सान की तो आदत है ही दुसरे के आनंद में विघ्न डालना... सब के सब अपना आनंद छोड़कर कार को उसके आनंद से निकालने में लग गए... शाम हो चली थी, और सब को डर था कि वहाँ तक पानी ना आ जाए...
...और मुझे ये गाना याद आ रहा था.
'एक अजनबी हसीना से...
मुलाकात हो गई,
फिर क्या हुआ ये ना पूछो !'
और साथ में एक गाने की ये लाइन भी....
'आग से नाता, नारी से रिश्ता काहे मन समझ न पाया...'
अब मुसीबत हो या खुशी याद तो किशोर दा ही आते हैं.
~Abhishek Ojha~
bahut badhiya bhai.. :)
ReplyDeleteसुंदर। अति सुंदर। लेखन और चित्र दोनों। धन्यवाद।
ReplyDeleteLadki dekhi nahin ki shuru ho gaye :P
ReplyDeleteउत्तम...यह तो होना ही था... :)
ReplyDeleteबेहतरीन लिखा है
ReplyDeleteBahut Khub ! Koi novel kyon nahi likhate ?
ReplyDeleteFir kya huaa?
ReplyDeleteफिर क्या होगा इतना तो समझ लो, सब कार निकलने में लगे रहे और हसीना का ध्यान ही नहीं रहा किसी को, मुस्कुराते हुआ निकल गई कहीं और :P
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