Jun 1, 2007

ये कमी तो रहेगी...



इस बार भी संस्थान परिसर में आते समय ये महसूस नहीं हुआ कि अब ये परिसर मेरा नहीं रहा। इस जगह से लगाव ही कुछ ऐसा हो गया है... । यहाँ प्रवेश लेते समय लोगो ने कहा था ... पाँच साल बहुत होते हैं, ऊब जाओगे । आज लग रहा है... कितने कम होते हैं। कैसे बीत गए पता ही नहीं चला... पर अनगिनत यादें, अनुभव, अनमोल दोस्त... सभी कुछ तो दे गए। यहाँ आते समय बच्चे थे... शायद अब नहीं रहे।

पिछले पाँच सालो से यह परिसर और कानपुर हर योजना का केंद्र रहा। धीरे-धीरे घर की जगह संस्थान के कमरे को केंद्र में रखकर यात्राएं निर्धारित होने लगी... कानपुर सेन्ट्रल से गुजरने वाली रेलगाडियों की समय-सारणी याद हो गयी... ।

इतनी यादें हैं... ऐसी यादें हैं... जिन्हे लिखा नहीं जा सकता। जिनकी कमी सबसे ज्यादा महसूस होगी, उनके बारे में तो एक पंक्ति भी नहीं लिखी जा सकती... । उन मित्रों के बारे में क्या लिख सकता हूँ... लिख दिया तो फिर बाक़ी चीजों के बारे में क्या लिखूंगा... 'जनु राकेस उदय भएँ तारे'। एक साथ, एक जगह इतने अच्छे लोग और ऐसी निस्वार्थ मित्रता शायद ही कहीँ मिले।

पता नहीं कितनी कक्षाओं में सोया..., १०० से ज्यादा मिड-सेमेस्टर परीक्षायें, ५० से ज्यादा एंड-सेमेस्टर और अनगिनत क्विज़ दिया। हमेशा इनके नाम से डर लगा... आज फिर से परीक्षायें देने का मन कर रह है। प्रोफेसरों पर फिर ग़ुस्सा करने का मन कर रह है। आज जिंदगी में पहली बार 'फेल हो गया होता' ये ख्याल अच्छा लग रहा है। थोड़े दिन और सही यहाँ रह तो जाता...!

आज दीक्षांत समारोह में अचानक ये सुना कि हम ग्रेजुएट हो गए... हम IITK के अलुम्नी हो गए। आज तक ये शब्द तो काफी अच्छे लगते थे पर आज पता चला ... इनकी student शब्द के सामने कोई औकात नहीं। इन पाँच सालो के हर एक पल कि कमी तो जीवन में शायद ही कभी पूरी हो पायेगी। कुछ नियमित कार्य जो दिनचर्या का हिस्सा बन गए थे... उनकी कमी ज्यादा खलेगी।

दोस्त और अनिश्चित कल तक चलने वाले बिना किसी विषय के वार्तालाप (bulla),
द्वितीय छात्रावास (आज भी वहां जाने पर ऐसा महसूस होता है जैसा वहाँ हमारा बचपन गुजरा हो),
दौलत रामजी जैसे लोग,
२००२ कि ठंड,
कक्षाओं में सोना,
दुनिया का सर्वश्रेष्ठ LAN ,
कुछ प्रोफेसर,
MT कि चाय, (अन्तिम वर्ष में MT जाना चालू किया था)
बुक क्लब कि पुस्तकें,
LAN गेम्स देखना (कभी खेला नहीं पर देखने का अपना ही मज़ा है),
संस्थान में होने वाले व्याख्यान,
मोटे कि बाइक और हिंदी अख़बार,
IITK कि विशिष्ट शब्दावली,
Internships,
झगडे :-),
मूवीस (कभी-कभी एक दिन में ४) , पुस्तकें (सप्ताह में एक),
NewsGroups,
trips,
असीमित सुविधायें,
संस्थान की हरियाली और पंछी,.....

काश! ये सूची कभी पूरी हो जाती... ।

बस २००६ में पहली बार गर्मी कि छुट्टीयों के बाद यहाँ आने का मन नहीं कर रहा था। चार वर्षीय पाठ्यक्रम वाले सारे दोस्त चले गए थे। पर बचे हुए पाँच साल वाले... हमने जिंदगी कुछ यूं ढाली की अन्तिम वर्ष और भी यादगार हो गया। ये जगह ही कुछ ऐसी है... और ये लोग ही कुछ ऐसे हैं... ।

क्या नहीं दिया इस संस्थान ने... आगे जिंदगी का रुख जो भी हो... पर ये कमी तो रहेगी...।
या यूं समझ लिजीये... इस जगह को भूलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

Dancing in Campus

खैर, हर एक अंत एक नयी शुरुआत के लिए होता है। शाम हुई है तो एक नया सवेरा भी होगा... और जैसे बरसात किसान के लिए सुखदायी और कुम्हार के लिए दुखदायी होती है... किसी के लिए ये नयी सुबह लेकर आएगा... उनके लिए शुभकामनायें... ।



Abhishek Ojha
1st june 2007
३९वाँ दीक्षांत समारोह, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर
कैम्पस से किया गया आखिरी पोस्ट