एक ज़माना था जब सोते-जागते कंपनी खोलने का भूत सर पर सवार रहता, और हर बात में बिजनेस आईडिया के अलावा कुछ दिखता ही नहीं था. हमारे एक मित्र इसमें बड़ा सक्रिय रहते... उनके आईडिया बड़े कमाल के होते, उसमें सफलता मिलती या नहीं ये तो बिजनेस स्टार्ट करने पर पता चलता पर आईडिया मजेदार जरूर होते ! आजकल ये मित्र रोयल डच शेल में तेली हैं। और नीदरलैंड से सिंगापुर तक तेल के कारोबार में हाथ बटाते हैं. अब कहने को तो इस तेल की कंपनी में शोध वैज्ञानिक है लेकिन अब हमारी भाषा में तेल बनाने/बेचने वाले को तेली ही तो कहते हैं... अब मैं तो इन्हें यही कहता हूँ !
एक समस्या ये होती कि इनके नए विचार अक्सर ऐसे होते जिन पर सदियों पहले से कंपनियाँ चल रही होती. अब क्या करें बेचारे दिमाग के किसी कोने से ढूंढ़ के लाते और दो मिनट में हम उस पर खड़ी बड़ी-बड़ी कंपनियां गिना देते... दो मिनट में रात के डिनर से सुबह के बाथरूम तक के सोचे गए उनके सारे 'इनोवेटिव' बिजनेस आईडियाओं पे पानी फिर जाता. खैर एक दिन उछलते-कूदते आए बिल्कुल आर्कीमिडिज के 'यूरेका' वाले क्षण की तरह...
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'अबे यार मस्त आईडिया आया है... दूध की कंपनी खोलते हैं ...'
'क्या यार इसी पे इतना उछल रहे थे... जा अमूल की साईट खोल के देख।'
'अबे नहीं भाई पुरा आईडिया सुन तो लो'
'देखो हम बच्चों के लिए दूध बनायेंगे... पाउडर और लिक्विड दोनों'
'ओके... तो?'
'प्रोडक्ट का नाम रखेंगे... "माँ का दूध"'
'व्हाट?'
'अबे देख डॉक्टर सलाह देते हैं... 'बच्चे को माँ का दूध पिलाइए', वो तो छोड़ जितने डब्बे वाले दूध आते हैं उन पर लिखा होता है 'माँ का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम है' तो हमारे ब्रांड को एडवटाइज करने की भी जरुरत नहीं है' सारे कंपटीटर ख़ुद ही हमारे प्रोडक्ट का इनडायरेक्टली प्रचार करेंगे !'
'हा हा ! जियो मेरे लाल क्या आईडिया है ! चलो इसी मेगाबक्स* में प्रेजेंट कर देते हैं। सारे वेंचर कैपिटलिस्ट लाइन लगा देंगे पैसे देने के लिए...'
'वही तो ... '
'भाग साले... कुछ तो ढंग का सोच लिया करो कभी, वैसे मदर डेयरी है तो तेरा कंपटीटर'
'अबे यार, क्या तुलना कर रहे हो, कभी सुना है 'मदर का दूध पिया हो तो...''
'देख एडवटाइज वाला आईडिया तो दुरुस्त है ही... उसके अलावा ६०-७०-८० के दशक की किसी भी हिन्दी फ़िल्म का क्लिप दिखा दो... "माँ का दूध पिया है तो..." और फिर दिखाएँगे 'आ गया माँ का दूध !' डब्बा से निकाल के दूध पिया और फिर साले विलियंस का सफाया ! बिजनेस का तो बाद में सोचना पहले ये बता क्रिएटिव एडवटाइजमेंट का अवार्ड मिलेगा की नहीं?'
'अबे क्यों गन्दगी फ़ेंक रहा है भाग यहाँ से' (ये एक टिपिकल लाइन होती थी होस्टल में)
'अरे यार मैं मजाक नहीं कर रहा सीरियसली सोच, अबे यार तू रिपोर्ट बना दे फिर प्रेजेंट करते हैं... कम से कम मजा बहुत आएगा। बड़े-बड़े लोग आते हैं सुनने'
'तुम्हें लगता है की एक राउंड भी आगे जा पाओगे?'
'साले मैं इस आईडिया पे फाइनल जीत सकता हूँ ! लेकिन अकेले नहीं कर सकता, भाई मेरे करते हैं न इसपे काम...'
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खैर काफ़ी चर्चा के बाद ये आईडिया ड्राप हो गया पर था. पर था तो सच में 'इनोवेटिव'...
अब इस पर तो काम नहीं हो पाया (ओह ! ऐसे कितने ही इनोवेटिव आईडिया बरबाद हो गए) मैंने सोचा चलो हम नहीं कोई और सही... आईडिया है, और हम भारतीय ! मुफ्त का आईडिया/सलाह दूसरों को बांटना हमारा पहला-दूसरा नहीं तो तीसरा-चौथा धर्म तो होता ही है.
अब किसी ने इस आईडिया पर कंपनी खोल दी और हमें नाम का भी क्रेडिट दे दिया तो घाटा क्या है !
चलो क्रेडिट ना भी दे तो कोई बात नहीं :-)
*मेगाबक्स आईआईटी कानपुर का वार्षिक बिजनेस और एंतार्प्रेनार्शिप समारोह है.
~Abhishek Ojha~
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ReplyDeleteबेहतरी्न व्यंग लिखा आपने ! पर इस आईडिया को हकीकत मे बदला जा सकता है ! :)
ReplyDeleteराम राम !
बहुत बढ़िया...खूब आनंद लिया...ताऊ सही कहते हैं। कोई ताज्ज्जुब नहीं ...
ReplyDeleteबरसों पहले टीवी के लिए अंताक्षरी जैसा कार्यक्रम शुरु होना चाहिए ये आइडिया हमारे दिमाग में आ चुका था। हम किसे बताने जाते ? बस, किसी और को भी सूझना ही था...जी टीवी पर हिट हो गया :)
...और भी मौलिक सूझ हैं...हर क्षेत्र में :)
मिनरल वाटर जब आया ही था तभी हमें गंगाजल नाम सुझा था। अब देखते हैं कि बाजार में इस नाम का भी ब्रांड है। इस मामले में रेल-नीर सबसे घटिया नाम है। ज्ञानदा चाहे नाराज़ होंगे....
आपका ये आईडिया अब कोई चुरा लेगा भाई .........इस देश में ओर उन देशो में भी अब सब कुछ बिकता है......बस बेचने के तरीके आने चाहिए ....कभी मोबाइल टॉयलेट का नाम सुना है ...हमारे दोस्त ने ऐसे ही एक नाजुक समय में मसूरी घुमते वक़्त ये आईडिया दिया था......(मसूरी की मॉल रोड पे एक ही टॉयलेट है )
ReplyDeleteक्या कहने, अच्छा व्यंग है
ReplyDeleteआईडिया फ़ोन का भी ऐड हो जायेगा साथ साथ
ये आइडिया बैंक हमने भी बहुत ठेले=झेले हैं। पर अब भी जहां थे, वहीं हैं अकेले=अकेले! :)
ReplyDeleteगणित में भी लोग रोज नया फारमूला तलाश के खुश हो लेते हैं। बस कुछ घंटों या दिनों में पता लगता है कि यह तो भास्कराचार्य ही हल कर गए थे। फिर भास्कर को गाली देते रहते, जब तक ऐसा ही कोई नया न खोज लाते।
ReplyDeleteवाह भाई! मजेदार रही ये पोस्ट
ReplyDeleteपढ़कर हँसी नही रुक रही है ...मस्त आइडिया था खासकर विज्ञापन वाला :-)
ReplyDeleteक्या यह व्यंग है ? ऐसा कई लोग कह रहें है , लोकतंत्र का जनाना है मानना तो पड़ेगा ही ,दिनभर की थकन के बाद ऐसी हलाकि -फुलकी चीजें आनंद दे जाती है .| कबीरा पर आपके कदमों के निशाँ मिले थे
ReplyDeleteअरे वाह मेरा लडका भी कई बार ऎसी ही ऊंची ऊंची छोडता है, ओर बातो बातो मै मुझे दुनिया का सब से धनी बना देता है...... भाई बाते करने से क्या जाता है..... मजा आ गया
ReplyDeleteधन्यवाद
मेगाबोक्स की जानकारी के लिये शुक्रिया ..nice going ...
ReplyDeleteस्नेह, - लावण्या
बचपन में जो शेख चिल्ली की कहानियाँ पढी थी कुछ कुछ यादें ताजा हुई
ReplyDeleteध्यान रखना भइ, कहीं आइडिया चोरी न हो जाए।
ReplyDeleteवाह वाह बंधुवर धारदार आलेख बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteदेर से पढ़ी यह पोस्ट ..मजेदार व्यंग लिखा है आपने ..
ReplyDeleteहा हा हा हा हा हा हा हा हा हा !!!
ReplyDeleteबड़ा मजेदार आईडिया था !!!
रह गए जी आप ????
ओझा जी,
ReplyDeleteमजेदार किंतु आइडिया प्रद व्यंग प्रस्तुति मनुष्य के मोबाईल मस्तिष्क की एक और गवाह है.
आपने अपने मित्र के आइडिया को ड्राप कर आपने उसे इस बात का अहसास तो करा ही दिया होगा कि किसने "माँ का दूध" नही पिया था.
आपके मित्र के साथ उसके आइडिया के हुए हश्र से मुझे सहानभूति है एवं आपके साहस पर गर्व कि लोग कुछ भी सोंचे पर मित्र को बर्बाद न होने देंगें.
चन्द्र मोहन गुप्त
मेगाबाक्स आई आई टी एक धाँसू आइडिया से आपके चलते वंचित रह गया पर शायद मातृत्व कराहने से बच गया ! आपके उस तेली मित्र को .अब क्या कहूं ?
ReplyDeleteएक आईडिया जो बदल दे आपकी दुनिया
ReplyDeleteवाह मान गए..
नया साल आपको मंगलमय हो
ReplyDeleteबहुत खूब! हमारे भी एक मित्र हैं - गज़ब का आयडिया ढूंढ कर लाते हैं हर रोज़ - अगले दिन फ़िर से एक नए बिजनेस आयडिया पर लग जाते हैं.
ReplyDeleteWah pyare....aaj bhi utna mazaa aaya hitna 16 december ko aaya tha.....
ReplyDeletewah.....
maafi bahut din baad aana hua aapke blog par. magar post padh maza aaya. idea vakai lajawab hai.
ReplyDeleteइस ग्रेट आइडिया के बरबाद होने पर हार्दिक शोक।
ReplyDeleteनई पोस्ट के इंतज़ार में एक माह से ज़्यादा व्यतीत हो गया है ओझा जी
ReplyDeleteबचपन में हम लोग एक ही नाम या सर नेम वाले को चिढ़ाया करते थे...ओझा ओझा मिल गए हंडिया लेरकर गिर गए. उसमें से निकला विचार, उसका बनाया अचार, दोनो ओझा खाएं प्रभू के गुण गाएं.
ReplyDeleteबिल्कुल ठीक प्रतीक. मैं काम्पैक्ट डेली आई नेक्स्ट में काम करता हूं. इसका स्वरूप बाई लिंगुअल है. मस्त हिन्दी लिखने और बोलने का मजा ही कुछ और.आगे भी बातहेाती रहेगी.
Ojha log satire achcha karte hain. In i next we have a regular column Khub Kahi in edit page.
ReplyDeleteI am in i next Lucknow and now it is being published from nine cities. so you can send me some article. You tell me your rochak kissa. Rochak kisse to aur bhi hain. I will tell you later.
Ojha log satire achcha karte hain. In i next we have a regular column Khub Kahi in edit page.
ReplyDeleteI am in i next Lucknow and now it is being published from nine cities. so you can send me some article. You tell me your rochak kissa. Rochak kisse to aur bhi hain. I will tell you later.