हर व्यक्ति के जीवन में कुछ लोग होते हैं जिनसे वो जाने अनजाने प्रेरणा लेता रहता है. अपने रिश्ते, आस-पड़ोस के लोगों से लेकर ऐतिहासिक, पौराणिक, काल्पनिक और वास्तविक चरित्रों तक से. और अब इन्टरनेट के जमाने में ये लिस्ट लम्बी हुई है इसमें कोई दो राय नहीं. हम जब भी किसी व्यक्ति विशेष के बारे में कुछ पढ़ते-सुनते हैं या किसी से मिलते हैं तो कहीं न कहीं उनके गुणों से प्रभावित तो होते ही हैं.
वैसे प्रभावित होने के लिए ये जरूरी नहीं कि हम उनसे मिलें भी. कई बार तो ये सिर्फ पुस्तकों में बसे चरित्र ही होते हैं या फिर ऐतिहासिक लोग. पर इनमें से अगर किसी से अपने जीवनकाल में कभी मिलना हो जाय तो फिर अतिशय ख़ुशी होना स्वाभाविक ही है.
वैसे प्रेरणा लेने की बात से याद आया. हर प्रेरणा लेने वाले एकलव्य को द्रोणाचार्य तो नहीं मिलते. अगर सोचे तो उस एकलव्य ने तो फिर भी द्रोणाचार्य से मिलने का सौभाग्य पाया.
द्रोणाचार्य को तो 'को नहीं जानत है जग में !' की तर्ज पर भला कौन नहीं जानता होगा/है. तो यहाँ हर एक 'साधारण जिज्ञासु' व्यक्ति की तुलना एकलव्य से करना बेमानी होगी. पर एक बात तो सत्य है... एकलव्य न सही अगर एक साधारण जिज्ञासु भी अगर द्रोणाचार्य से मिलता तो सीखता तो बहुत कुछ. भले ही उनके गुरुकुल में पहुचने के लिए पचासों शर्ते रही हो और हर किसी को ये अवसर ना मिलता हो. पर क्या एक साधारण इंसान की गुरु द्रोण से एक क्षणिक मुलाकात ज्ञान में वृद्धि और सहज हर्ष कि अनुभूति नहीं कराती होगी? क्या आप द्वापर युग के उस व्यक्ति की ख़ुशी का अनुमान लगा सकते हैं जिससे कभी कहीं आते-जाते कोई मिल गया हो. और अचानक ही पता चला हो कि वो जिसके साथ है वो स्वयं द्रोणाचार्य हैं ! वो भले ही घास काटने* का काम करता हो एक बार तो पूछता ही होगा 'क्या मैं भी तीर चला सकता हूँ?'.
यह हर्षातिरेक अनुभूति मुझे पिछले दिनों हुई जब मैं खुद इत्तफाक से एक ऐसे ही गुरु द्रोण से मिला. मेरी हालिया यात्रा के दौरान मुंबई एयरपोर्ट पर एक आचार्यजी मिल गए. मुंबई एअरपोर्ट पर लाउंज में यूँ ही आदतन वायरलेस इन्टरनेट देखकर ऑनलाइन हो गया. मैं अपने मित्र से थोडा जल्दी पहुँच गया था तो अकेले समय काटने का ये तरीका अच्छा लगा. थोडी देर में मेरे मित्र भी आ गए और फिर इधर-उधर की बातें होने लगी. उसी दौरान एक हंसमुख व्यक्ति से अचानक ही बातचीत शुरू हो गयी. वैसे तो किसी अनजान व्यक्ति से बात करना हमेशा ही सुखद होता है पर हम इंसानों ने दूरियाँ कुछ इस कदर बढा दी हैं कि कम से कम हवाई यात्रा में तो दो अनजान यात्रियों का आपस में बात करना एक सामान्य घटना नहीं लगती है. पर इस बार की घटना से तो मुझे सीख मिली कि अगली बार से जरूर एक दो यात्रियों से बात करूँगा 'जाने केही वेश में' कौन मिल जाए. वर्ना अब तक तो अक्सर बगल में बैठने वाले से भी औपचारिकता से आगे बात कम ही बढ़ पायी.
लैपटॉप, यात्रा, काम-धाम, पढाई, हाल-चाल की बात होते-होते अचानक उनका नाम पता चला तो एक बार भरोसा नहीं हुआ... और उसके बाद ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. हमने तो उन्हें यह बताकर कि 'हम आपको पहले से जानते हैं' और साथ में साबुत के तौर पे ये बता पाया कि उन्होंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से सांख्यिकी की पढाई की थी. इसी में अपने को धन्य मान लिया.
खैर उमंग में बात ही कहाँ हो पाती है. इस बात को लेकर मन में लड्डू फूटते रहे कि दोस्तों को बताऊंगा... मैं किससे मिला ! किस्मत को धन्यवाद देता फ्रैंकफर्ट पंहुचा. फ्रैंकफर्ट में कुछ पल के साथ में एक त्वरित फोटो खिचाई. आचार्य तो आचार्य थे... पिता सामान आचरण. जब गुरु द्रोण कहा ही है तो ज्ञान कि बात करने वाला मैं कौन? बस इतना ही कहना है कि उनका विनम्र होना... !
हजारों चीजें सीखी हमने इस छोटी सी मुलाकात में. हम लोग फोकट में हीरो बने फिरते हैं... और जिन्हें आदर्श मानते हैं वो ! ज्ञान-श्यान अपनी जगह है... मुझे तो सबसे पहले उनमें एक अच्छा, विनम्र, हंसमुख और मिलनसार इंसान दिखा. वो गुण जो अब गिने-चुने विलुप्त हो रही प्रजातियों में ही पाए जाते हैं.
अगर आपको कभी ऐसे आचार्य से मिलने का मौका मिले तो ख़ुशी से फूलने की जगह अधिक से अधिक ज्ञान लेने की कोशिश कीजियेगा (ये एक सलाह है). वैसे मेरा अनुभव कहता है कि इतनी ख़ुशी मिलने पर कुछ समय के लिए कोई इच्छा नहीं बचती... ज्ञान प्राप्ति की भी नहीं.
ये आचार्य थे दीपक जैन. दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित बिजनेस स्कूलों में से एक केल्लोग बिजनेस स्कूल के डीन. उनसे मुलाकात की और बातें फिर कभी.... !
~Abhishek Ojha~
बड़े दिनों बाद इधर लौटा हूँ. व्यस्तता का रोना तो अब पुरानी बात हो गयी है... वैसे आपको पता ही है कि अगर समय मिला तो ब्लॉग्गिंग प्राथमिकता सूची में बहुत ऊपर आता है. हालिया संपन्न यात्रा में तरुणजी से मुलाकात हुई और कई बड़े लोगों से बात हुई आप तो सबको जानते ही हैं... समीरजी, लावण्याजी, अनुरागजी, नीरज भाई से भी १ मिनट :)
हमारे संस्थान के एक सीनियर हैं उनसे मिलना भी सुखद रहा... आप उन्हें शायद ही जानते होंगे. हमारी उनकी पहचान भी इसी ब्लॉग की बदौलत है. वैसे बड़े धाँसू फोटोग्राफर हैं, आप उनकी खिंची तस्वीरें देखकर आइये. उनसे एक हिंदी ब्लॉग बनाने का अनुरोध किया तो है मैंने... पर पहली प्रतिक्रिया से थोडा मुश्किल ही लग रहा है.
*वैसे घास काटना मेरे हिसाब से कहीं से भी कम कौशल का काम नहीं हैं. वो तो मुहावरा समझ कर लिख दिया है जी. बुरा मत मानियेगा :)
डॉ जैन से मुलाकात होना ही एक सौभाग्य का विषय है और तुम्हारी जिस तरह मुलाकात हुई..अति सौभाग्यशाली रहे. बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत छोटी ट्रिप पर थे, अगली बार कनाड़ा का वीसा लेकर आओ.
खूबसूरत भूमिका के साथ अच्छा संस्मरण अभिषेक जी।
ReplyDeleteअनजाने लोगों में अक्सर कुछ अपने से बन जाते।
खून के रिश्तों के चक्कर में जीवन कहाँ सँवरता है।।
जो सुनहला मौका आपको मिला वह औरों के जीवन में आये और आपको तो बार बार आये !
ReplyDeleteइतने लोगों से मिल आये आप । सुन्दर अनुभव रहा होगा । ये अनुभव सबको मिलें !
ReplyDeleteयह सच है कि अनजान व्यक्ति से बात करना हमेशा ही सुखद होता है।
ReplyDeleteमैं हमेशा यह करता हूं। कोई जरूरी नहीं कि आप किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से मिलें। अक्सर साधारण लोगों से भी कुछ ऐसा सीखने को मिलता है जो आप सोच नहीं सकते।
अक्सर घुम्म्कडी में विभिन्न लोगो से मुलाकातें होती हैं और आप चुंकी मिलनसार हैं तो आप सहयात्री से घुलमिल जाते हैं. वर्ना कई ऐसे ठसक वाले लोग भी होते हैं जो परमात्मा के बगल मे भी बैठ कर यात्रा करलें और उधर झांक कर भी ना देखें?:)
ReplyDeleteरामराम.
रात आप की बत्ती हरी देख कर खुश हो रहा था कि कुछ आने वाला है। आ ही गया। आप के सीनियर की ली हुई तस्वीरें देख कर जलन हुई की काश मेरे पास भी अपनी तस्वीरों का ऐसा ही कलेक्शन होता। लोगों से मिलने का मेरा अपना सौभाग्य बहुत रहा है। हर स्थान पर गुरू मिलते हैं कभी कभी तो ऐसे वेश में की ताज्जुब होता है।
ReplyDeleteकब से आपकी पोस्ट का इन्तिज़ार कर रही थी ..एक शिकायत है ..जितने भी ब्लॉग मैं पढ़ती हूँ सबमे आपका ब्लॉग सबसे ज्यादा निरीह लगता है (तकनिकी मामले में )..मुझे बड़ी कोफ्त होती है ..अभी मैं एग्रीगेटर्स पर नियमित नही जा पाती ..आप बताइए आपने इ मेल सब्क्रिप्सन क्यों नही लगा रखा है न ही फीड बर्नर की सुविधा पता कैसे चले किसी को की आपने कुछ कृपा दृष्टी भी डाली है हिन्दी पर ? ऐसा करिए ज्यदा व्यस्त हैं तब मुझे एड्मिसट्रेसन राइट ग्रांट करिए मैं लगा देती हूँ ..वरना आप लगाइए. इससे कम कुछ भी नही सुनना है मुझे ..हद है आपकी भी, मुझे यह टेम्पलेट देखकर रोना आता है (सुबक ..सुबक.) ...आशा है ध्यान दीजियेगा ..अगर यह पोस्ट मुझसे छुट जाती मुझे कितना बुरा लगता,कोई सुन रहा है ?
ReplyDeleteये तो बड़ी उपलब्धि रही. बधाई. लिंक्स के लिये धन्यवाद.
ReplyDeletevo khushi jo aap ko Deepak Jain ji se mil kar hui hogi, use samjha ja sakta hai....!
ReplyDeleteaise sanjog kabhi kabhi hi hote haiN aur kisi kisi ki jindagi me to kabhi nahi...!
Is shama ko jalaaye rakkhen.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
सच कहा तुमने यार .कई बार ऐसे लोगो से मिलकर अपनी लघुता का अहसास होता है ...गुजरात में साइक्लोन के दौरान इंटर्नशिप में हम लोगो का एक ग्रुप प्रभावित एरिया में गया था ....वहां एक सज्जन सीमित साधनों से सेवा कर रहे थे ..पता लगा पास के ही कसबे में वे प्रेक्टिस करते है ओर बस गुजर बसर के लिए गाँव वालो से पैसा लेते है ...उनकी डिग्री ओर योग्यता देख उन्हें शहर या विदेश का कोई भी हॉस्पिटल फ़ौरन नौकरी दे देता ....हम सिर्फ लफ्फाजी करते है ......
ReplyDeleteइधर कुछ दिनों से व्यस्ताये बढ़नी लगी है...इसलिए मै भी बड़े दिनों बाद आया हूँ.....एक बात ओर हमें बड़े लोगो में शामिल मत करो....असहजता सी होती है
खूब रहा आपका इस तरह दीपक जी से मिलना....सच है अनजाने में जब किसी से ऐसे मुलाक़ात होती है तो बहुत ख़ुशी होती है!
ReplyDeleteअक्सर इस तरह की मुलाकातें यादगार बन जाती है बढ़िया लगा आपका यह संस्मरण ..देरी से पोस्ट का आपने खुद ही कह दिया अब क्या कहे आपको .बहुत से लोगों से मिल लिए आप तो ..अच्छा है :)
ReplyDeleteमैं अपनी सुनाता हूं। मैं पिलानी में छात्र था। वहां से दिल्ली आने को एक बस में बैठा था। एक बहुत आकर्षक व्यक्तित्व के सज्जन मेरे पास वाली सीट पर थे। अधेड़। मेरी पढ़ाई के बारे में बहुत कुछ पूछ बैठे और पूरी जिज्ञासा से मुझे सुनते रहे।
ReplyDeleteऔर जब हम अलग हुये तब उनके बारे में पूछने पर पता चला कि वे एक विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के अधिष्ठाता (डीन) थे!
मुझे मलाल है कि मैं उनके चरण स्पर्श न कर पाया!
भाई हम नाराज है आप से जर्मनी आये , मिलना तो दुर फ़ोन तक नही किया.....
ReplyDeleteआप का लेख पढा अच्छा लगा ओर सारा गुस्सा गायब हो गया.
धन्यवाद
वाह ! बधाई हो !!
ReplyDeleteसचमुच ईश्वर की कृपा से ही गुनिजनो की संगति और उनसे सीखने की प्रेरणा मिलती है...
kabhii kabhi itefak se padhi . pasand aayi . aapki blog dekhne ke baad ek shikayat bhi hai . ek bhi post balllia se related kyun nahi ?
ReplyDeleteagli baar chahunga ki aapki lekhni balliyatikon ka bhi kuch udhhar kare .
main satya .....(age ojha bhi hai faqat apko bata raha hoon). ballia tatha bokaro se . dono jagah apke sameep.
achcha laga jaankar is mulaqat ke bare meinwaise kya batein huyi iska intezaar rahega
ReplyDeleteआपकी लेखनी मे खुशगवार किस्सागोई की रोशनाई है..बधाई
ReplyDeleteअरे अभिषेक भाई , हम , बड़े उमर में हैं बस ! वैसे हम सब हिन्दी ब्लॉग जगत के साथी हैं --
ReplyDeleteआपका डॉ जैन से मिलना एक बढिया इत्तेफाक रहा -- अब चित्र भी देखती हूँ
अब फिर कब आ रहे हैं यहां ?
आपसे बातचीत कर बहुत अपनापन लगा -
घर जा रहे हैं या नहीं ?
मेरी आजकी पोस्ट अवश्य देखिएगा
बहुत स्नेह सहित
- लावण्या
शानदार! आज सोचा पूरा ही लेख बांचा जाये। आनन्दित हुये। दोस्त का फ़ोटो ब्लाग भी देखा। सुन्दर है। लवली की शिकायत पर कुछ गौर किया जाये।
ReplyDeleteआप सौभाग्यशाली हैं कि आपको आपके गुरु द्रोण मिले । और बहुत सारे ब्लॉगिंग जगत के दिग्गज भी .
ReplyDeleteकुल मिला कर आपकी यात्रा सफल सुफल रही । बधाई ।
तसवीरें कमाल की जीवन्त हैं ।
ReplyDeleteअभिषेक जी शब्दो का सफर मे बकलम खुद मे अजित जी द्वारा आपके योगदान को रेखांकित करते हुए लेख है । आपको बधाई एवं शुभकामनायें -शरद कोकास
ReplyDeleteजो कभी सोचा न हो, जिसका कभी प्रयास भी न किया हो, कुछ वैसा हो तो उसे ही कुदरत का करिश्मा या संयोग या किस्म्नत कहते हैं...................
ReplyDeleteआप ने इसका अनुभव किया, भाग्यशाली हैं..............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
अच्छा संस्मरण
ReplyDeleteC.M. is waiting for the - 'चैम्पियन'
प्रत्येक बुधवार
सुबह 9.00 बजे C.M. Quiz
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क्रियेटिव मंच
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जन्मदिन मुबारक हो जी !
ReplyDeleteदिलचस्प संस्मरण और उतनी दिलचस्प आपकी लेखन शैली भी....
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