Jan 31, 2008

देवासुर संग्राम और पोलीथिन की थैलियों को मिले अमरत्व की कहानी !

कलयुग में दिन दुनी रात चौगुनी वाली कहावत चरितार्थ करने वाली कोई निर्जीव चीज़ है तो वो है 'पोलीथिन की थैलियाँ' . हमने इस विषय पर बहुत शोध किया कि आख़िर इन्हे ये वरदान कब मिला?

अंततः उत्तर मिल ही गया!

बात देवासुर संग्राम के समय की है. निस्तेज देवताओं को विष्णु भगवान ने सुझाव दिया कि असुरों से दोस्ती कर लो और समुद्र मंथन करके अमृत का पान करो... समुद्र मंथन हुआ और उसमें से कई वस्तुएं निकली और अंत में धन्वन्तरिजी अमृत लेकर भी आये... और उसे बांटने के लिए भगवान विष्णु को विश्वमोहिनी का रूप धारण करना पड़ा. और जैसा की जगजाहिर है... राहू नामक असुर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा और अमृतपान करने लगा.

विश्वमोहिनी को देख कर तो ब्रह्मा और महेश का मन भी डोल रहा था फिर राहू का तो कहना ही क्या? हाथ में अमृत और पिलानेवाली स्वयं मोहिनी... पर अभी अमृत कंठ तक गया ही था कि चंद्रमा और सूर्य ने चिल्लाना शुरू कर दिया... भगवान तो ठहरे भगवान तुरत सुदर्शन लिया और कर दिए दो टुकडे...
कंठ का अमृत... आधा ऊपर... आधा नीचे... एक बूंद जमीन पर भी टपक गया. ऊपर नीचे का मामला तो ठीक...एक राहू और एक केतु... लेकिन उस बूंद का क्या? राहू का रक्त, अमृत, सुदर्शन का तेज और राहू के मन में उपजा हुआ काम सब का संगम था उस बूंद में... पृथ्वी से स्पर्श होते ही एक नए पदार्थ कि उत्पति हो गई. अब भगवान ने सोचा कि इस नई मुसीबत का क्या करें?

देवाताओं का तेज तो वापस आ ही गया था... बगल में बैठे पवनदेव बोल पड़े 'अरे इसमें क्या रखा है, मैं तो इसे अभी उड़ा दूंगा... भटकता रहेगा ब्रह्माण्ड में'. वरुणदेव को भी जोश आ गया... बोले 'मैं तो इसे अपने अन्दर समाहित कर लूँगा'.
भगवान ने सोचा चलो ये भी अच्छा सुझाव है. पर वो तो ठहरे दीनदयाल, पालनहारी... उन्होंने सोचा कि देवताओं को तो बहुत कुछ मिल गया, असुरों ने भी अमृत चख ही लिया, मानव जाति को भी तो कुछ मिलना चाहिए! और साथ में पवन और वरुण देव का घमंड भी भांप गए. उन्होंने घोषणा की...
'हे पवनदेव! आपकी इच्छा पूर्ण होगी और मानवजाति को भी मैं आज एक नई वस्तु प्रदान करता हूँ. यह अमृतयुक्त, कभी नष्ट नहीं होने वाला पदार्थ मानवजाति को प्राप्त हो, यह दिनोदिन बढोत्तरी करे... और हे पवनदेव आप अपने बल से इसे पूरी पृथ्वी पर उडाते रहे, हे पवनदेव और वरुण देव आपने इस देवासुर सभा में अपने घमंड का प्रदर्शन किया है इसलिए जब तक मैं कल्कि अवतार नहीं धारण कर लेता यह वस्तु आप दोनों को प्रदूषित करती रहेगी'.

वही वस्तु आगे चलकर प्लास्टिक की थैलियों के रूप में विकसित हुई और हर जगह जल और हवा के प्रदुषण का कारण बन रही है.

अब तो पवनदेव और वरुणदेव के साथ मुझे भी भगवान के अवतार का ही इंतज़ार है... अब तो वही रक्षा कर सकते हैं.


~Abhishek Ojha~

7 comments:

  1. अच्छी कथा है, पर इस ने सरकार को जिम्मेदारी से बरी कर दिया है जो इसे रेगुलेट कर सकती है।

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  2. कथा सही हें. यहा जनता ही तो भगवान हें. और देवता सरकार. भगवान ने सब घमंडी देवताओ के भरोसे छोड़ दिया जो मस्ती मे दुबे हें. तो कहा से पालीथीन रेगुलेट होगा.
    जनता जनार्दन हें |

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  3. अगर पॉलीथीन पौराणिक समस्या है तो फिक्र नहीं! हर पौराणिक समस्या का हल अंतत होता है और पुराणों में दर्ज हो जाता है। मुझे आशा है कि हल बहुत जल्दी आयेगा - एक दो दशकों में।

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  4. ओझा जी , मैं पेट बाँध कर पढ़ रहा था । नही पेट का प्लास्टिक से कोई सीधा सम्बन्ध तो नही है मगर आपके लेख से है। इतनी हँसी आ रही थी । मगर प्लास्टिक के जन्मदाता खुराफाती वैज्ञानिकों ने गर यह पढ़ लिया तो कॉपीराइट एक्ट भी आप पर लग सकता है॥ :) और खुशी है की प्लास्टिक केवल कल्कि अवतार तक ही है। ;)

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  5. बंधु। अद्बुत कल्पना है। अब तो मुझे भी कल्कि की प्रतीक्षा है।

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  6. बिल्कुल पॉलिथन तो अब देवताओं के लिए भस्मासुर बन गया है. केवल भोले बाबा ही सब को बचा सकते हैं

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  7. हम तो बेकार ही प्लास्टिक से परेशान हुए बैठे हैं, अब पता चला कि इनके अमरत्व का राज क्या है.

    धन्य हैं ओझा जी, मान गए आपकी लेखनी को.

    साधुवाद.

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