Jan 28, 2008

दहेज़ विरोधी होने का मतलब ये तो नहीं कि मैं भी दहेज़ ना लूँ !

क्यों? है ना अच्छा विचार ! एक बार दहेज़ ले लो... फ़िर उठा लो झंडा दहेज़ विरोध का ! वैसे दहेज़ प्रथा के समर्थन में कई तर्क सुन चुका हूँ, शायद आपको कुछ अजीब लगे लेकिन तथाकथित बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों से मैंने ये तर्क सुने हैं...

जैसे... 'दहेज़ से अर्थव्यवस्था को बहुत फायदा होता है... अब गाड़ियों को ही ले लो, साल भर कार और बाइक के शोरूम वाले बैठ के झक मारते हैं और शादियों का मौसम आते ही शोरूम में गाड़ियों की कमी पड़ जाती है... इसी प्रकार कई प्रकार के जवाहरात, फ्रीज़ और टीवी की विक्री उन दिनों में बढ़ जाती है. 'कंज्यूमर बेस्ड इकोनोमी' के लिए तो जरूरी है कि लोग पैसे खर्च करें... '. ब्लैक मनी को व्हाइट मनी बनाने में भी काफ़ी हद तक दहेज़ प्रथा मदद करती है.

एक और बहुत ही अच्छा तर्क मुझे सुनने को मिला... हाल ही मेरे एक मित्र से.. उन्होंने कहा कि मैं तो भाई दहेज़ लेने के बिल्कुल ख़िलाफ़ हूँ पर मेरा मानना ये है कि पिता कि संपत्ति पर बेटे और बेटी को समान हक़ होना चाहिए और मैं चाहूँगा कि मेरी होने वाले ससुर को... जो भी उन्हें देना हो... मुझे नहीं अपनी बेटी के नाम दे, अगर रुढिवादी विचार वाले माँ बाप अपनी बेटी को उसका हक नहीं देना चाहते तो मैं ऐसे घर में शादी नहीं कर सकता.
चलो ये भी अच्छा तर्क है।

और ऐसे रोल मोडलों की भी तो कोई कमी नहीं है... जब DLF के कुशल पाल सिंह अपने ससुर का धंधा चमका सकते हैं ... तो हमें भी उनको आदर्श मानते हुए... कम से कम कोशिश तो करनी ही चाहिये।

खैर, इन बातों में मैं ये तो भूल ही गया कि लिखना क्या था ! हाँ तो अभी कल कि बात है मैंने ओरकुट पर एक मित्र को देखा कि उन्होंने 'आई एम् अगेन्स्ट डोरी' कम्युनिटी ज्वाइन कर रखी है. मित्र तो नहीं कहेंगे क्योंकि मैं पहली बार उनसे ओरकुट पे ही मिला था और उम्र में भी वो मुझसे काफ़ी बड़े हैं, और आजतक मैं उनसे ऑफलाइन मिल भी नहीं पाया।

हाँ, तो ये सज्जन बड़े ही ऊँचे विचार वाले हैं और समय-समय पर देशभक्ति और अच्छे विचारों से भरे हुए मेल्स फोरवर्ड करते रहते हैं. आपको ये भी बता दूँ की ये एक इज्जतदार घर से हैं और इनका गाँव हमारे गाँव के पड़ोस में पड़ता है. इनकी शादी जब कुछ ३-४ साल पहले हुई थी तब मैं छुट्टियों में घर गया हुआ था और हमारे गाँव में ये आम चर्चा थी कि.... क्या शादी हुई है ! ... कुछ १० लाख नकद और बाकी पता नहीं क्या-क्या मिला था उनको. वैसे तो उन्होंने ओरकुट पे ढेर सारी कम्युनिटी ज्वाइन कर रखी है, पर गलती से मुझे ये कम्युनिटी दिख गई... और फिर ये उत्तम विचार मेरे दिमाग में आ गया...

क्यों है ना उत्तम विचार?

~Abhishek Ojha~

5 comments:

  1. बहुत बढिया है जी.. अजी अपने लिये थोड़े ही ना मांगते हैं? अब लड़की को कोई तकलीफ ना हो कहीं आने जाने में सो कार तो देना ही चाहिये.. अब मेक-अप करने में और सोने जगने में दिक्कत ना हो सो फर्निचर तो अच्छा होना ही चाहिये.. भारत में गर्मी बहुत होती है सो फ्रिज तो होना ही चाहिये.. अब कहीं बाहर घूमने जायेगी तो उसे शर्मींदगी ना महसूस हो इसलिये जेवर अच्छे होने ही चाहिये...

    अब और क्या कहूं?? उसके पाकेट खर्च के लिये भी कुछ दे ही दो.. वैसे हम तो दहेज के खिलाफ हैं...

    आप क्या कहते हैं?? :)

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  2. हा हा! आपने तो और भी अच्छे तर्क दे दिए :-) धन्य है!

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  3. जिस भी चीज का झंडा बाहर उठाया जाये ंरूरी नही कि घर में वही सारे काम किये जायें...घर बाहर में कुछ तो फर्क होना चाहिये न

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  4. अब १० लाख नकद मिले तो कौन दहेज न ले! वैसे आपने इनमें से कौनसा तर्क चुना है अपने लिये? आपको तो ५० लाख मिल जाऐगा!

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  5. हा हा हा!!! विचार दुरुस्त है भईया। मैं सोच रहा था कि कैसा रहे अगर ऐसे तर्क करने वालों को कहा जाये कि देखिये हमारी बेटी सबकुछ मायके से लेकर आयेगी… गाड़ी, गजेट्स, जवाहरात, नकद और हाँ दो बच्चे भी… क्योंकि पुंसत्व तो आपमें बचेगा नहीं ये सब लेकर, तो बच्चे क्या ख़ाक पैदा करोगे।

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