Jan 3, 2008
धन का क्या करें?
मुझे नहीं पता मैं ये क्यों लिख रहा हूँ। मैं कोई उपदेशक नहीं हूँ, न ही मैं कोई बहुत अनुभवी इंसान हूँ... कुल मिला के अभी २४ बसंत गुजरे हैं जीवन के... । और मजे की बात ये है की मैं जो यहाँ लिख रहा हूँ, मैं भी वो नहीं करता.... हाँ जब मैंने पहली बार पढा तो मुझे अच्छा लगा था, और इतना अच्छा लगा था की मैंने इसे अपनी डायरी में लिख लिया था। शायद कभी इसे आजमाने की कोशिश भी करूं, पर हाँ लिखने का उद्देश्य यही है कि जो मुझे अच्छा लगा शायद किसी और को भी अच्छा लग जाये।
आपको जरा ये भी बता दूं कि ये लाइनें मुझे मिली कहाँ से... इस बार गर्मी की छुट्टियों में मैंने कुछ पुस्तकें पढी ... उन्ही पुस्तकों में से एक है... श्रीमद्भागवत महापुराण। ये उसी पुस्तक में है...
जब राजा बलि ने सब कुछ दान करने का निश्चय कर लिया तो शुक्राचार्य ने उन्हें बहुत सी बाते समझाई... ये बाते भी उनमें एक थी। राजा बलि ने शुक्राचार्य की ये बातें तो नहीं मानी, परन्तु उनकी कई बाते नीतिसंगत लगती हैं।
हाँ तो शुक्राचार्य के अनुसार धन को ५ हिस्सों में बाँट देना चाहिए और फिर उनका उपयोग इन कार्यों के लिए करना चहिये:
१ धर्म - धर्म में मुख्यतः परोपकार ।
२ यश - ऐसे काम में लगाना चाहिये जिससे खुद के यश में वृद्धि हो।
३ अभिवृद्धि - आज की भाषा में कहें तो इनवेस्टमेंट।
४ भोग - धन को पड़ा रहने देने से बेहतर है की उसका इस्तेमाल किया जाय।
५ स्वजन - अपने परिवार और जान-पहचान के जो लोग हैं, उनकी जरूरतों में लगाना चहिये।
हिस्सों में विभाजन के अनुपात का कहीं वर्णन नहीं मिला पर वो आप अपने हिसाब से कर सकते हैं। कहाँ कितना खर्च करना है ये आपकी परिस्थिति पे निर्भर करता है। वैसे ये विभाजन इतना व्यापक है कि हर तरह का किया जाने वाला खर्च कहीं न कहीं इसमें आ ही जाएगा। वैसे भी चाणक्य के अनुसार भी धन की जो ३ गतियां होती हैं: 'दान, भोग और नाश' उनमें यदि पहला और दूसरा नहीं किया जाय तो धन की तीसरी गति होती हैं अर्थात नाश हो जाता है । पर शुक्राचार्य का विभाजन मुझे ज्यादा व्यापक और व्यवहारिक लगता है ।
~Abhishek Ojha~
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बहुत अच्छी नीति है। धन के सदुपयोग का यही तरीका भी है। सुखी रहने के लिए आज भी यह प्रासंगिक भी है। कमोबेश मैं इसका अनुपालन करने का प्रयास करता रहा हूं।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteमेरे विचार से इंवेस्टमेण्ट से वृद्धि हो, फिर उससे प्राप्त आय से अन्य प्रकार के उपयोग हों।
ReplyDeleteअब इनवेस्टमेंट वाले तो 'अभिवृद्धि' खोज ही निकालेंगे। ;) मगर चार पुरुषार्थों में अर्थ और काम जिसमें स्वजन सुख और यश आदि अन्य भोग सभी आ जाते है ,की प्राप्ति को गौण ही माना गया है क्योंकि इसकी उपलब्धि में भाग्य का महत्व अधिक है। मूल पुरुषार्थ तो धर्म और moksha को ही माना गया है।
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