Jan 22, 2008

विविधभारती और गानों की पसंद... ।

मोबाइल पर गाने सुनना मेरी आदत नहीं है। पर मेरे मोबाइल में कुछ गाने पड़े जरूर हैं। जब नया-नया मोबाइल लिया था तो कई सारे सॉफ्टवेयर, गेम्स, गाने और विडियो सब कुछ डाला था। पर एक सप्ताह के बाद सारा उत्साह ठंडा पड़ गया.... । अभी कल की ही बात है मेरे एक मित्र मेरे मोबाइल से खेल रहे थे... अचानक उन्होने पूछा

'अबे तुम भी विविध-भारती सुनते थे क्या?'
'क्यों?'
'विविध भारती के बिना ये गाने पसंद करना तो दूर, हमारी-तुम्हारी उम्र के लोगों के सुने हुए भी नहीं होते हैं... ! और साले तुम तो हद किये हुए हो, ये ब्लैक ऎंड व्हाइट विडियो तक रखे हो... लता, किशोर, रफी और मुकेश तक फिर भी ठीक है... यहाँ हेमंत कुमार और मन्ना डे भी दिख रहा है...'

'पूरा देखोगे तो के एल सहगल भी मिल जाएगा.... '

मेरे दोस्त के बात में सच्चाई तो थी फिर भी मैंने कहा:

'अरे भाई ऐसा कुछ नहीं है, अच्छे गाने तो सबको पसंद आते हैं... और मैंने जो भी गाना रखा है सब फेमस गाने हैं ! इसका विविध भारती से क्या लेना देना? '

'देखो भाई दो ही बाते हो सकती हैं, या तो तुम्हारे घर में पुराने गानों का बहुत बड़ा कलेक्सन है, या तुम विविध भारती सुनते थे, मुझे तो विविध भारती वाली बात ही सही लगती है... । और तुम जिन्हें अच्छे गाने कह रहे हो, कहीं बजा दो तो लोग पीटने लगेंगे... अच्छी पसंद के लिए अच्छे गाने सुनने को भी तो मिलने चाहिये, जा के किसी से पूछो ये गाने किसी ने सुने ही नहीं होंगे... ।'

'अच्छा चलो मान लिया... सुनता तो था।'

रात के १० बज रहे थे... मेरे मित्र ने उसी मोबाइल पर छायागीत बजा दिया... छायागीत बजता रह और विविधभारती पर चर्चा चलती रही... हवामहल, हेल्लो फरमाइस, बाइस्कोप की बातें,.... कमल शर्मा, लोकेंद्र शर्मा, यूनुस खान, निम्मी मिश्र, ममता सिंह ... और फिर आमीन सायानी... । आमीन सायानी का एक ही कार्यक्रम सुना है... 'संगीत के सितारे' वो भी विविधभारती के स्थानीय केन्द्र से आता था। पर एक कार्यक्रम तो बहुत होता है... एक एपिसोड भी उस आवाज़ को याद रखने के लिए काफी होता।

खैर चर्चा तो ख़त्म हो गयी पर उसके बाद मुझे ध्यान आया... और अगर आपने भी यहाँ तक पढा है तो एक बात ध्यान देने वाली है की पूरी चर्चा में 'थे' का ही इस्तेमाल हुआ है.... विविधभारती सुनते 'थे'... सुनते 'हो' क्यों नहीं? मैंने तो खूब सुना... डांट भी खाई, पर कल लगा कि अगर नहीं सुना होता तो बहुत कुछ खो दिया होता... खैर, मैंने तो २००२ में सुनना छोड़ दिया था... उसके बाद समय ही नहीं मिला कभी... मनोरंजन का मतलब बदल गया... समय का भी अभाव हो गया... पर क्या अब कोई विविधभारती सुनता ही नहीं? क्या कोई ये नहीं पूछता कि... विविधभारती सुनते हो क्या?


~Abhishek Ojha~

10 comments:

  1. सही कहा आपने..
    लोग मुझसे भी यही पूछते हैं कि विविध भारती सुनते थे क्या? आज-तक किसी ने ये नहीं पूछा की विविध भारती सुनते हो क्या?

    अच्छा लिखते हैं.. लगे रहें..

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  2. बुरा ना माने तो आपको एक सुझाव देना चाहूंगा.. किसी भी एक पोस्ट को इतना बड़ा ना लिखें, पढने वाले बोझिल हो जाते हैं.. मैंने अभी आपके सारे पूराने पोस्ट को देखा और अधिकतर आधे पर ही छोड़ दिये..
    थोड़ा छोटा लिखें और शीर्षक आकर्षक रखें, आपको पाठक बहुत मिलेंगे क्योंकि आप अच्छा तो वैसे ही लिखते हैं..

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  3. सुझाव के लिए धन्यवाद, आगे से आपके सुझाव का ध्यान रखूँगा.

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  4. विविध भारती सुनना तो पहले एक आदत सी थी ।

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  5. अभी हड़बड़ी में हूं । फुरसत से टिप्‍पणी की जाएगी कल परसों तक ।

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  6. अभिषेक जी, पिछले पांच साल से नहीं सुना तो भी कोई गम नहीं....अब तो टाइम निकाल लिया करें। बाकी आप की क्लास युसूफ भाई फुरसत से लेंगे क्योंकि उन्होंने लिखा है कि वे अभी जल्दी में हैं। उन से उस क्लास में यह भी पूछ लेना कि उन के रेडियोनामा में कैसे ब्लोग्स लिखे जा सकते हैं.

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  7. अभिषेक कल व्‍यस्‍तताओं के रहते बस जल्‍दी से निकल लिया था आज टिप्‍पणी करने आया हूं ।
    अच्‍छा लिखा है तुमने । क्‍लास लेने जैसा मामला नहीं है । पर एक आम मान्‍यता बन गयी है या बना दी गयी है कि विविध भारती पुराने लोगों का चैनल है या फिर पुराने गानों का चैनल है । शायद ऐसा प्राईवेट एफ एम चैनलों की एग्रेसिव मार्केटिंग या फिर किसी और वजह से हुआ है । पर ये सच है कि जिसने एक बार जीवन में विविध भारती से नाता जोड़ा है ये चैनल उसके लिए एक मीठा साथी या एक मीठी याद की तरह है । विविध भारती सुनना ज्‍यादा कठिन नहीं है । तुम्‍हारे पूना में एफ एम पर उपलब्‍ध है । अलग अलग शहरों में अलग अलग फ्रीक्‍वेन्‍सी है । पर अब ज्‍यादातर शहरों में हम एफ पर आते हैं । अपने मोबाइल पर ट्यून करो और पुराने रिश्‍ते को दोबारा ताज़ा कर लो । खा़सकर रात में पुराने गानों के साथ । और हां अब विविध भारती चौबीस घंटे सुनाई देती है मित्र ।

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  8. कम से कम हमारे पटना में तो " थे " वाली बात अभी हू ही नहीं सकती. नया नया रेडियो मिर्ची आया था तो उसकी तरफ़ झुका था पर जल्दी ही आशिकी फना हो गयी. फ़िर तो वही विविध भारती और वही गाने. वैसे अभी भी पिटारा में ममता जी गोविन्द मेनन का interview ले रही हैं और कुर्बानी का वो गाना बज रहा है, जो मेरी तरफ़ से विविध भारती के लिए भी है...... हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे..
    पोस्ट के लिए धन्यवाद.

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  9. आज़मगढ़ से पिंकी, चिंकी, मिंकू, टिंकू और बबली आपको आपके पोस्ट के लिये धन्यवाद देते हैं.

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  10. ओझा साहब, पहली बार आपका ब्‍लॉग पढा, पढा क्‍या बस एक गाना याद आ गया...
    भूली बिसरी एक कहानी, फिर आई एक याद पुरानी..
    हॉं भई, अब तो विविध भारती 'एक याद पुरानी' हो गया है मेरे लिए पर लगता है कि आपने ठीक ही लिखा है- अगर विविध भारती नहीं सुना होता तो बहुत कुछ खो दिया होता

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