यूँ तो ऐसी बातें मैं नहीं करता. क्योंकि (लगभग) सभी के लिए अपना देश और अपनी भाषा ही सबसे अच्छे होते हैं. और वो भाषा जिसमें आप बोलना सीखते हैं उसकी तो बात ही क्या है ! तो किसी एक को बेहतर कहना सही नहीं लगता. पर अपने साथ एक ऐसी घटना घटी कि... जब भी याद आती है लगता है 'हिंदी ही बेहतर है !'
अब अंग्रेजी तक तो हम लोग मैनेज कर लेते हैं. इसमें तो ‘लिखने कुछ और बोलने कुछ’ तक ही समस्या सीमित है. पर जब बात आती है अन्य भाषाओँ की तो बंटाधार हो जाता है. अब फ्रेंच ही ले लीजिये. लिखते कुछ हैं बोलते कुछ और सुनने वाले समझ कुछ और लेते हैं. बोलने वाले भी पता नहीं क्यों कंजूसी करते हैं, अरे बोलो न भाई मुक्त कंठ से इसमें कैसा परहेज ! [वैसे सुना है जर्मन भी अपने हिंदी जैसे ही होती है जो लिखो वही बोलो, पर सीख नहीं पाया तो कन्फर्म कह नहीं सकता. वैसे तो ऐसा स्टेटमेंट देने का अधिकार नहीं बनता जानता ही कितनी भाषाएँ हूँ :)]. खैर घटना सुनिए...
अब देखिये स्विट्जरलैंड में एक जगह है Rennes, अब लिखा है तो पढेंगे भी वही न? रेन्नेस. अब मैंने लोज़न (Laussanne) स्टेशन काउंटर पर पूछा कि मुझे रेन्नेस जाना है ट्रेन कब आएगी. तो बताने वाले को पता नहीं कैसे समझ में आ गया कि ये वेनिस (Venice) पूछ रहा है. लो भाई हो गया काम... बैठो ६ घंटे. क्या करता उसने तो यही बोला: 'द नेक्स्त त्रैन तू वेनिस विल दिपार्त ऐत त्वेन्ति आफ्त्र इलेवन फ्रॉम त्रैक तू' (The Next train to Venice will depart at twenty after eleven from track two) अब कहाँ 'ट' कहाँ 'द' और कहाँ 'ड' सब खिचडी.
हम तो हार मान के बैठ गए. समझ में नहीं आया कि ५ मिनट की दूरी है और छः घंटे तक कोई ट्रेन ही नहीं. तब तक एक ट्रेन दिख ही गयी, जिसे देखते ही शक हुआ कि ये तो जायेगी. हम कहाँ चुप बैठने वाले थे फिर धर लिया उसी महोदया को. अब आप परेशानी में हैं और अच्छे से काउंटर पे कोई प्यार से बताने वाली हो तो बार-बार पूछने में कुछ बुराई है क्या? एक बार फिर पूछा… और फिर मुझे समझ में नहीं आया कि वो रेन्नेस बोल रहा है या वेनिस और तो और इस बार और अड़ंगा.
'द नेक्स्त त्रैन तू वेनिस विल दिपार्त ऐत त्वेन्ति आफ्त्र इलेवन फ्रॉम त्रैक तू... दू यू हैव अ रिज़र्वेशन? यू नीद अ रिज़र्वेशन तू त्रवेल इन दैत त्रैन' (The next train to Venice will depart at twenty after eleven from track two... do you have a reservation? You need a reservation to travel in that train).
लो भाई १० मिनट के लिए रिज़र्वेशन. हमने कहा नहीं भाई हम तो ऐसे ही चले जायेंगे. हमारे पास तो टिकट भी नहीं बस ये पास है !
'नो सर, दिस पास इस नोत वैलिद फॉर वेनिस'. (No Sir, This pass is not valid for Venice). अब माथा ठनका मन तो किया कि हिंदी में मुस्कुराते हुए कुछ गालियों के साथ बोल दूं 'अरे मोहतरमा ! अभी पिछले सप्ताह ही तो हम गए हैं और कह रही हो कि नहीं जा सकते'. लेकिन लगा जरूर कुछ लोचा है. तब पेपर और पेन के सहारे लिख के दिया.
'आई वान्त तू गो तू दिस प्लेस'. तुरत बोल पड़ी: 'ओ ! यु वान्त तू गो तू रेनो'. लो यही बाकी था अब ! Rennes से Venice से रेनो. Renault को भी सुना है रेनो ही बोलते हैं. मैं सोच में पड़ गया कहीं ये Renault कार की बात तो नहीं कर रही ! रिज़र्वेशन तो पहले ही पूछ चुकी है.
तब तक एक ट्रेन पर Rennes लिखा दिख गया और मैं भाग कर उस ट्रेन में बैठा जैसे किसी भूत से पीछा छुडाकर भागा हुआ इंसान ! ओह ! हिंदी इज बेस्त सॉरी बेस्ट.
श्यामसखा‘श्यामजी ने अपने संस्मरण जानकारी और चित्र सहित कुछ यूँ भेजे हैं: हम आज जेनेवा से ४५ किलोमीटर दूरी पर बसे फ़्रेंच कस्बे अन्सी की सैर पर आए हैं! यह कस्बा एक विस्तृत झील के किनारे पर बसा है और यह झील एक नहीं कई झीलों से मिलकर बनी है या कह सकते हैं कि एक ही झील को अलग अलग जगह कई नाम दे दिये गये हैं! कारण कई जगह इस झील का पाट संकरा हो जाता है और इस संकरे पाट के दोनो ओर के हिस्सों को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है! कसबे की खासियत इसका ३०० साल पुराना बाजार है जो संकरी गलियों मे बसा है! बिल्कुल हमारे पुराने शहरों जैसा, बस इन लोगो ने अपने आर्किटेक्चर को बिल्कुल २००-३०० साल पुराना ही रहने दिया है वही ईंटो वाली दुकाने,यहां तक की बाजार की सड़कें भी कोबल स्टोन हमारी छोटी इंटो जैसे पत्थर की बनी हैं बाजार के दोनो तरफ़ झील से निकली एक नहर है! यह नहर पहले खेत सींचती थी ! अब सैलानियों हेतु इस पर होटल हैं कुछ व्यापारिक संस्थान भी हैं तथा कुछ रिहाइश भी!
आज जिस बात ने सबसे पहले ध्यान खेंचा वह था इस नहर पर बने एक छोटे पुल पर जाने वाले रास्ते पर लगे बोर्ड ने आप भी देखें चित्र.
फ़्रेंच भाषा में लिखा है -फ़्रेंच भाषा में अगर शब्द के अंत में व्यंजन आजाए तो वह मूक रहता है जैसे restorent को फ़्रांसिसी रेस्तरां बोलते हैं ज़ानि अन्तिम अक्षर टी t मूक रहता है अब आप चित्र को दोबारा देखें और पढें /यह बनेगा पिद आ त्रि और इसे हिन्दी में देखें पदयात्री ऐसे अनेक शब्द है जो लगता है संस्कृत भाषा से मिलते जुलते हैं और इनका अर्थ भी वही है!
धन्यवाद श्यामजी.
~Abhishek Ojha~
:) हिंदी से बढ़ कर कुछ अच्छा नहीं ,पर सबको अपनी भाषा यूँ ही प्यारी लगती होगी ..मजेदार रहा यह किस्सा
ReplyDeleteसही है, हिन्दी इज बेस्ट । हिन्दी की यही विशेषता कि वह लिखने, पढ़ने और बोलने में एक-सी है, उसे ज्यादा वैज्ञानिक और उपयोगी सिद्ध करती है । आभार ।
ReplyDeletekissa to majedar rahi par hindi hi the best hai ...............waise apani bhasha sabhi ko pyari hoti hai.
ReplyDeleteमजेदार...
ReplyDeleteमजेदार रहा !
ReplyDeleteमजेदार रहा !
ReplyDeleteबहुत मजेदार लिखा आपने. हम तो आपके " 'द नेक्स्त त्रैन तू वेनिस विल दिपार्त ऐत त्वेन्ति आफ्त्र इलेवन फ्रॉम त्रैक तू'" इन वाक्यों को पढकर हिंदी भी भूळ गये.
ReplyDeleteअच्छा हुआ हम तो बाहर नही गये वर्ना यह भाषा सुन कर ही दिमाग पूरा पागल हो जाता ( आधा तो यही पर है):)
रामराम.
ठीक वैसे ही जैसे हमारा दोस्त जब पहली बार इटली गया .सर झुककर अदब से देसी गाली बोलता था ...वैसे खूबसूरत लोगो से बार बार कुछ राय लेना बुरा नहीं है.....इसे एक्सपर्ट की राय समझिये....
ReplyDeleteहिन्दी का कोई जवाब है कहीं?
ReplyDeleteअरे वाह, मजा आ गया आया यात्रा वृत्तान्त पढकर।
ReplyDeleteवैसे हिन्दी विश्व की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है, जिसमें जो लिखा जाता है, वही पढा भी जाता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
:) :)
ReplyDeleteइत्स रियली नाईस एक्सपेरिएन्स यू हैद इन फ्रांस माई दीयर..
ReplyDeleteइत्स अ नाईस आर्तिकल तू.. कीप इत अप.. ;)
हर किसी को अपनी मात्र भाषा ही प्यारी लगती है, जेसे हमे हिन्दी, वेसे ही इन्हे अपनी भाषा, लेकिन आप का लह्जे ओर इन के लहजे मै दिन रात का फ़र्क है,बस यही हम लोग गलती कर बेठते है,
ReplyDeleteशुकर करो आप को वेनिस की गाडी मै नही बिठा दिया,वरना ......मजा आ गया भाई
फ़्रांसीसी भाषा में Rennes का उच्चारण रेने होता है. आपने उससे रेन्स जाने के बारे में पूछा, जिसे उसने वेनिस के तौर पर लिया.
ReplyDeleteभाषा विज्ञान में एक महत्वपूर्ण अध्याय है : मातृभाषा का सीखी हुई भाषा पर प्रभाव..
हो सकता है, आपकी हिंदी आपकी अंग्रेजी पर हावी हो, और उसके फ्रेंच उसकी सीखी हुई भाषा अंग्रेजी..
सुन्दर कहानी या यथार्थ
मजेदार रहा ये वाकया भी. कुछ दिन पहले एक चीनी से बात हो रही थी और वो हमें यही समझा जा रहा था कि उनकी चित्रात्मक भाषा भी काफी लॉजिकल तरीके से विकसित की गई है।
ReplyDeleteसही बात है, हिन्दी ही बेहतर है। इंटरनेट पर भी यह अपनी बेहतरी साबित कर ही रही है।
ReplyDeleteये हाल तो इंडिया में ही मिल जाएगा.. बोले तो आधे हिन्दुस्तान को ही हिंदी नहीं आती..
ReplyDeleteवाह! आपको रेनो की ट्रेन चाहिये थी। आजकल हमें रेन की सख्त जरूरत है। वहां की गाड़ी में जगह न हो तो बफर पर बैठ सफर करने को भी तैयार हैं! :)
ReplyDeleteमजेदार रहा यह किस्सा!!!
ReplyDeleteमजेदार किस्सा। मेरा भी ऐसा ही अनुभव हुआ था। मुझे ब्रसेल्स जाना था। पेरिस तक विमान से पहुंच गया, आगे का सफर ट्रेन से था। पर प्लेन लेट पहुंचने से ट्रेन छूट गई। अगली ट्रेन की टिकट लेने के लिए मुझे खूब परेशान होना पड़ा। यहां भारत में तो सब यही सोचते हैं कि पूरी दुनिया अंग्रेजी फर्राटे से बोलती है। पर पेरिस के रेल्वे स्टेशन में मैंने बिसियों लोगों से पूछा होगा कि टिकट कहां से लेना है, न वे मेरी बात समझ पाते थे, न मैं उनकी! फिर किसी तरह टिकट का काउंटर मिला। वहां तो मैंने शुरू से ही वही किया जो आपने आखिर किया, यानी कागज पर लिखकर बता दिया।
ReplyDeleteदेश के बाहर निकलने पर ही पता चलता है हिंदी का महत्व।
हिन्दी दा जबाब नही .रोचक वाकया .
ReplyDeleteअजी परदेसी क्या जाने हिंदी का स्वाद !
ReplyDelete- लावण्या
क्या खूब संस्मरण -चलिए ट्रेन मिल गयी -अंत भला तो सब भला !
ReplyDeleteइसमें सोचना कैसे..हिन्दी से बेहतर क्या?
ReplyDeleteचलो आखिर आप रेनो पहुंच ही गये, उच्चारण का हरेक भाषा में महत्वपूर्ण स्थान होता है, सबके लिये अपनी मातृभाषा बेहतर होती है।
ReplyDeleteमजेदार संस्मरण!
ReplyDeleteशुरू-शुरू मे गोवा मे तो अक्सर हमारे साथ ऐसा होता रहता था की पूछते कुछ थे और बताया कुछ और जाता था ।
ReplyDeleteपर अब हम भी सीख गए है इनके style की इंग्लिश बोलना । :)
सही कहा, हिंदी ही भली.
ReplyDeleteKissa to majedaar tha hi apki lekhan shaili bhi achhi hai...
ReplyDeleteमजेदार किस्सा रहा, लेकिन बच गये आप। समय रहते आपको सही ट्रेन मिल गई वरना यह पोस्ट आप वेनिस से लिख रहे होते।
ReplyDelete:)
हिन्दी की सबसे अच्छी बात यही है जैसा लिखो वैसा बोलो।
ReplyDeleteफ्रेन्च भाषा में उच्चारण का कायदा शुरू में थोड़ा बेतुका तो लगता है लेकिन जो नियम बने हैं उनका अपवाद नहीं है जैसा अंग्रेजी में होता है। यहाँ एक वाक्य के अनेक शब्दों को जोड़ कर उच्चारण करने का रिवाज भी है जो गैर भाषा भाषियों के लिए कठिनाई उत्पन्न करता है। यह सन्धि कुछ-कुछ संस्कृत से मेल खाती है लेकिन केवल उच्चारण में। लिखित रूप में शब्द प्रायः अलग-अलग ही लिखे जाते हैं।
ReplyDeleteरोचक किस्सा रहा। मजेदार।
हिंदी भली, हिंदी भली, हिंदी भली हुजूर..
ReplyDeleteग्लोबल सारे हो रहे पर हिंदी से दूर....
सत्य वचन. हिन्दी (और अन्य फोनेटिक भाषायें) तब पिछड़ जाती है जब भाषा की दृष्टि से निरर्थक अक्षरों के समूह की बारी आती है.
ReplyDeleteहा ! हा !!
ReplyDeleteरोचक संस्मरण और उतना ही रोचक अंदाज़ प्रस्तुत करने का...!
Apki photo I-next Paper men dekhi thi..ap achha likhte hain. Mere blog par meri bhi Picture dekhen.
ReplyDeletemaine zyada languages seekhne ki koshish ki nahi...future me baahar settle hone ka iraada bhi nahi par lagta hai ghoomne firne ke liye bhi thoda jaanna hogaa... :)
ReplyDeletevaise sabse mast bhaasha mujkhe urdu hi lagti hai..maloom khaas nahee par isse sexy language shayad hi koi ho..!!
Wakai Bhai hindi ka koi jawab nahin..Hindi is the best.
ReplyDelete_____________________________
"शब्द सृजन की ओर" के लिए के. के. यादव !!
दस दिन हो गए। कहाँ सोए हो?
ReplyDeleteफिर कहीं घूमने गए हो क्या?
मैं भी हर १-२ महीने में जब किसी फ्रांसीसी की टाँग खींचनी होती है तो अपने कार्य समूह में यह किस्सा सुना देता हूँ | उसी दिन से मैंने फैसला किया था फ्रांसीसी भाषा नहीं सीखूंगा, जर्मन सीख ली लेकिन फ्रांसीसी ना बाबा ना !
ReplyDeletebahut khoob. bahut dino baad tippani kar raha hoon. abhi pravas par hoon.
ReplyDeletesmart indian ki baat men bhi vazan hai. baakii hindi kaa javaab nahin.