Sep 11, 2008

अच्छा या बुरा ?

अच्छा बुरा तो कुछ नहीं होता... जो किसी के लिए अच्छा वही किसी के लिए बहुत बुरा... या फिर जो कभी अच्छा होता है वही कभी बुरा हो जाता है । सब अवस्था पर निर्भर करता है (मुझे पता है आप क्या सोच रहे हैं यही ना की साले को सापेक्षता के कीडे ने काट खाया है पिछली दो पोस्ट से यही गाये जा रहा है) आपका सोचना सही भी है लेकिन सापेक्षता के कीडे का जहर उतर ही रहा था की एक मोहतरमा से फोन पर बात हो गई !

कुछ यूँ:

पिछले दिनों एक महीने से भी ज्यादा समय के बाद फोन चालु किया तो एक संदेश आया 'थैंक्स !' ... वो भी एक अज्ञात नंबर से। कई लोगों की शिकायत थी तो कई जगह फोन करना ही प्राथमिकता रही और इस सिलिसिले में वो संदेश भूल ही गया। अगले दिन जब फिर उसी नंबर से वही 'थैंक्स' का संदेश आया तो उत्सुकता होना स्वाभाविक था।

हमने घंटी बजा दी और उधर से जो आवाज आई वो जानी पहचानी थी... फिर भी हमने पूछ लिया 'कौन?'

ये वही मोहतरमा हैं जिनका इस साल का 'वैलेंटाइन डे' मैंने बिगाड़ दिया था। मैं ठहरा आदम बाबा के जमाने के ख़याल वाला मेरे लिए उस दिन का क्या महत्तव? पर जब वो फूट-फूट कर रोई थी तो मुझे लगा था की सच में कुछ गड़बड़ है। मैंने उनका दिल तोडा था... किसी तरह समझा पाया था कि देखो बिना किसी को देखे फोन पर ही ऐसे नहीं बोल देते... अभी तुम्हारी पढ़ाई करने की उम्र है... मन लगाके पढ़ाई करो। और तुम्हारे कॉलेज में भी बहुत अच्छे-अच्छे लड़के होंगे, जिंदगी में बहुत लोग मिलेंगे... ब्ला-ब्ला-ब्ला...! कुल मिला के मतलब यही था की अब माफ़ करो आज से फ़ोन मत करना, मैं तो करूँगा ही नहीं... बाकी पढ़ाई में मन लगाओ !

पर ये मतलब मैं समझ रहा हूँ आप भी शायद समझ रहे हों... पर वो कहाँ कुछ समझता है जिसे इश्क हो जाता है ! खैर मैंने पुछा की ये तो बता दो की थैंक्स किस बात के लिए... उन्होंने बताया की मेरे कहने पर उन्होंने सच में पढ़ाई कर ली और इस बार उनके कैरियर के सबसे अच्छे अंक आए हैं। जब से उनके अच्छे अंक आए हैं तब से वो मुझे फोन करने की कोशिश कर रही थी... और इधर निरंतर फोन बंद !... किसी सोर्स से पता चला की अभी ये कुछ दिनों तक ऐसा ही रहेगा तो उन्होंने ठान लिया कि रोज़ एक संदेश भेजेंगी !

'पर मुझे तो बस दो ही मेसेज मिले?'... मेरी अज्ञानता पर थोड़ा मुस्कुराई और बोली: 'किस जमाने के आदमी हो... मेसेज २४ घंटे तक अगर नहीं पहुचे तो डिलीट हो जाता है !' चलिए ये भी जानकारी मिल गई... हम अपने आपको बहुत हीरो समझते हैं पर मोबाइल के मामले में अभी भी पोल खुल ही जाती है :( ... किस जमाने का आदमी ! खैर ये सब फिर कभी...

फिलहाल ये वाकया जब बकलमखुद में आया था तो कई लोगों का विचार था कि मैंने किसी कन्या का दिल तोड़कर अच्छा नहीं किया ! हाँ ये तो मुझे भी पता था... और फरवरी से लेकर इस फोन वाली घटना तक कभी-कभी बुरा भी लगता था। दिमाग में ये बात भी आती थी कि बद्दुआ लगी है... अब इतनी आसानी से लड़की ना मिलनी भाई ! पर अब बद्दुआ खत्म ! और बहार का इंतज़ार... वैसे तो हमेशा रहता है लेकिन बद्दुआ वाली बात अब दिमाग में नहीं आएगी... क्या अभी भी आपको लगता है की मैंने ग़लत किया था?

ग़लत सही क्या ? सब सापेक्ष है... निर्भर करता है कि देखने वाला किस फ्रेम में बैठा है ! फिर भी आपका फ्रेम क्या कहता है?

18 comments:

  1. आपने इस कन्या को इन्स्पायर्ड कर दिया है ! जोर जबर्दस्ती से शादी या प्रेम नहीँ ना होता !
    आगे का भविष्य उज्ज्ज्वल ही होगा दोनोँ का ! ;-)
    स्नेह,
    -लावण्या

    ReplyDelete
  2. अभिषेक भाई ,यह किसका संक्रमण काल है आपका या उस सौभाग्यिनी का ?

    ReplyDelete
  3. लक्षण अच्छे नहीं दीख रहे हैं वत्स! किसी यज्ञोपवीत-धारी शाकाहारी ब्राह्मण को फाइव-स्टार डिनर कराओ!

    ReplyDelete
  4. मुझे नहीं लगता आप ने कुछ गलत किया। आप को अपने फ्रेम के साथ सोचने और प्रतिक्रिया करने का और किसी को भी अपने बारे में पाले गए भ्रम को तोड़ने का हक है। यह भ्रम पालने वाले व्यक्ति के हक में भी सही है।
    भविष्य किसी ने देखा नहीं है, संयोग कहीं के कहीं ले जाते हैं।

    ReplyDelete
  5. अच्छा /बुरा क्या वोटिंग से तय होगा?

    ReplyDelete
  6. शुकुलजी तय तो कुछ नहीं करना... अच्छा बुरा जैसा तो कुछ होता ही नहीं... बस देखना था कि दी हुई जानकारी में किस फ्रेम से क्या दीखता है :-)

    ReplyDelete
  7. हम तो यही कहेंगे कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता है ....:)शुभ होगा सब ..

    ReplyDelete
  8. यार अभिषेक काहे को हलकान हो रहे हो ?प्यार कोई जबरदस्ती का सौदा तो है नही की जी मै तुमसे करता हूँ तो तुम भी करो......हाँ दिल की बात दिल में नही रखनी चाहिए ....सामने वाले को बता दे ....आगे मर्जी बन्दा परवर की ....हमारे कॉलेज में रोज इक दिल टूटता था....
    हाँ कुछ खास किस्म के सेंटी लोग जरूर ?????

    ......खैर हमारी सलाह.....पहला अपना मोबाइल नंबर बदलो...दूसरा इस "गिल्ट" से बाहर निकल आओ .....

    ReplyDelete
  9. नम्बर बदलने की क्या जरुरत ..ऐसा थोड़े होता है कह दीजिये उससे की आप पहले से .......ख़ुद ही भूल जायेगी ..अजमाया हुआ फार्मूला है इसलिए कह रही हूँ ये टीनएज फिलोसिपी है इससे बाहर निकलिए ..आपने कुछ ग़लत नही किया है ..हर किसी को हक़ होता है की वह अपनी जिंदगी के फैसले ले.

    ReplyDelete
  10. स्मार्ट इण्डियन> लक्षण अच्छे नहीं दीख रहे हैं वत्स! किसी यज्ञोपवीत-धारी शाकाहारी ब्राह्मण को फाइव-स्टार डिनर कराओ!
    -------
    क्या, अब तक बाह्मण नहीं मिला? मेरा पता चाहिये?

    ReplyDelete
  11. tatastu
    jo ho raha hai achcha ho raha hai or jo hoga vah achcha hi hoga.

    ReplyDelete
  12. "क्या अभी भी आपको लगता है की मैंने ग़लत किया था?"

    पहले यह बतायें कि उत्तर को सापेक्ष मानेंगे क्या?



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

    ReplyDelete
  13. Jin logon ko aapka nirnay sahi nahin laga hoga unmein se jyadatar is terah ke proposal ki aas lagakar zindagi kaat dee hogi isliyi padhkar socha hoga batao kaisa ladka hai...

    Ye sab vyaktigat nirnay ki baat hai.Jo un mohtarma ne kiya wo unki bhawna thi jo aapka response tha wo aapki...

    Ye sab bate tabhi aage badhti hain jab tali donon hathon se baje...

    ReplyDelete
  14. आपने बिल्कुल ग़लत नही किया, दिल की बातें ज़बरदस्ती नही होती....जिनगगी के फैसले का हक़ आपको ही है, और सब से अच्छी बात तो ये है की आपने उस लड़की के साथ फ्लर्ट नही किया, और उसे उस रास्ते से चलने से मन किया जो उसके लिए नही था. ये बहुत अच्छी बात है...thanks

    ReplyDelete
  15. मैं आज पहले बार आया सूँ ! इस लिए फ्रेम व्रेम फिट करकै, देखकै बताणा पडैगा ! वैसे ५ स्टार डिनर का प्रोग्राम होवै त हमनै भी याद कर लेणा ! एक ताऊ बराबर १०० पंडत ! :)
    सारै काम होज्यंगे !

    ReplyDelete
  16. ये क्‍या, ताऊ और ज्ञान दा व स्‍मार्ट इंडियन को मिलाकर 102 पंडित पहले ही लाइन लगाये बैठे हैं, फाइव स्‍टार भोज में 103-वें स्‍थान पर मेरा भी नंबर जोड़ ही लीजिए। शाकाहारी भी हूं और यज्ञोपवीतधारी भी :)

    ReplyDelete
  17. अभी भी आप ऐसा सोच ले रहे हैं...? मैं तो समझता था कि आप बड़े हो गये होंगे अब...।

    खैर सापेक्षता यही कहती है कि बड़ों के मुंह से बच्चों सी बातें हास्य पैदा करती हैं। हम भी मुस्करा रहे हैं।

    ReplyDelete