(ये प्रसंग मेरे एक करीबी मित्र के जीवन से है... बिहार के एक गंवई इलाके के रहने वाले हैं, आईटी बीएचयु के ग्रेजुएट हैं और एक प्रतिष्ठित सॉफ्टवेर कंपनी में कार्यरत हैं)
...जब मैं आईटी बीएचयु मैं पढने पहुँचा तो एक रात सब बैठकर अपने-अपने स्कूलों की चर्चा करने लगे. हॉस्टल में स्कूल की चर्चा अक्सर लड़कियों से ही शुरू होती है और अक्सर वहां तक जाती है कि आजकल क्या कर रही है? कैसी दिखती है? कहाँ है? और फिर... ऑरकुट पर है क्या?
सबने चालु किया सेंट थॉमस, सेंट जेवियर्स, सेंट जॉन्स... इतने 'सेंट' और 'पब्लिक' सुना कि लगा अच्छे स्कूल के नाम में दोनों में से एक तो होना ही चाहिए. अगर आगे सेंट और पीछे पब्लिक लगा हो तो फिर सोने पे सुहागा ! मुझे भी किसी ने टोक दिया... तुम किस स्कूल से पढ़े हो? अब मैं क्या बोलता!... स्कूल सोचूँ तो सबसे पहले याद आता है... बोरा ! बोरा भी बड़े काम का होता था... एक दम मस्त ! स्कूल में बिछा के बैठते फिर धुप लगे या बारिश हो तो ओढ़ के चले आओ. और मास्टरजी भी याद आते हैं. खेलते कूदते जाते रास्ते में खेत, बगीचे... खाते-पीते अपनी मस्ती में.
मैंने कहा: 'सेंट बोरिस पब्लिक स्कूल'
'अबे ये कौन सा स्कूल है? कभी नाम ही नहीं सुना !'
'नाम नहीं सुना? अबे साले हमारे जिले में एक ही तो अंग्रेजी मीडियम स्कूल है... मस्त स्कूल है, मेरे बैच से ही पाँच का जेइइ में हुआ है. '
सबने मान भी लिया... बात आई गयी हो गयी। मानते भी कैसे नहीं ! सेंट भी है और पब्लिक भी और बोरिस भी तो पूरा अंग्रेजी ही लगता है. सेंट बोरिस स्कूल की एक और बात बता दूँ. एक बार जब परीक्षाफल निकलने का दिन था तो मास्टरजी आए और उन्होंने सुनाया: 'फलनवाँ फस्ट, चीलनवाँ सेकेण्ड... और बाकी सब पास ! और आज से एक महीने की गर्मी छुट्टी'
घर आके पिताजी ने पूछा: 'रिजल्ट क्या हुआ रे? '
मैंने कहा 'मास्टर जी बोले कि फलनवाँ और चीलनवाँ के रिजल्ट में कोई दिक्कत है बाकी सब पास हैं'
बाबूजी भी खुश ! ससुरे फलनवाँ फस्ट, चीलनवाँ सेकेण्ड... आख़िर कुछ तो सीखा था सेंट बोरिस में, बोरा-बस्ता फेंका और खेलने भागे !
अब स्कूल से तो दो ही बातें बता सकता हूँ बाकी बता दूँ तो गंवार ही कहेंगे लोग। लोगों को भरोसा ही उठ जायेगा जेइइ की कठिनता से. पर क्या करुँ पास कर गया क्योंकि तब आरक्षण नहीं होता था और शायद मेरे जैसे बहुत गंवार वहां पहुच जाते थे... अब ना तो बिना सेंट और पब्लिक के स्कूल ही बचे ना वो परीक्षा ही बिना आरक्षण के रह गई. मेरे जैसे सेंट बोरिस के अलुम्नी कहाँ-कहाँ पहुँच गए... मैं गंवार रह गया ये अलग बात है.
ये सेंट बोरिस का असली मतलब पूरे बीएचयु के चार सालों में कभी किसी को नहीं बताया आज तुम्हें सुना रहा हूँ. '
और मैं आपको सुना रहा हूँ... किसी को बताइयेगा मत :-)
समीरजी और लावण्याजी से बात के बाद निठल्ला चिंतन वाले तरुणजी के साथ लंच पर जाना हुआ... बहुत खुशी हुई, ये यात्रा बहुत अच्छी साबित हो रही है. कमाल की वर्चुअल रियलिटी है ब्लॉग्गिंग भी और हिन्दी ब्लॉग्गिंग वालों में जो आत्मीयता है... वो शायद किसी और भाषा के ब्लोगरों में नहीं.
~Abhishek Ojha~
...जब मैं आईटी बीएचयु मैं पढने पहुँचा तो एक रात सब बैठकर अपने-अपने स्कूलों की चर्चा करने लगे. हॉस्टल में स्कूल की चर्चा अक्सर लड़कियों से ही शुरू होती है और अक्सर वहां तक जाती है कि आजकल क्या कर रही है? कैसी दिखती है? कहाँ है? और फिर... ऑरकुट पर है क्या?
सबने चालु किया सेंट थॉमस, सेंट जेवियर्स, सेंट जॉन्स... इतने 'सेंट' और 'पब्लिक' सुना कि लगा अच्छे स्कूल के नाम में दोनों में से एक तो होना ही चाहिए. अगर आगे सेंट और पीछे पब्लिक लगा हो तो फिर सोने पे सुहागा ! मुझे भी किसी ने टोक दिया... तुम किस स्कूल से पढ़े हो? अब मैं क्या बोलता!... स्कूल सोचूँ तो सबसे पहले याद आता है... बोरा ! बोरा भी बड़े काम का होता था... एक दम मस्त ! स्कूल में बिछा के बैठते फिर धुप लगे या बारिश हो तो ओढ़ के चले आओ. और मास्टरजी भी याद आते हैं. खेलते कूदते जाते रास्ते में खेत, बगीचे... खाते-पीते अपनी मस्ती में.
मैंने कहा: 'सेंट बोरिस पब्लिक स्कूल'
'अबे ये कौन सा स्कूल है? कभी नाम ही नहीं सुना !'
'नाम नहीं सुना? अबे साले हमारे जिले में एक ही तो अंग्रेजी मीडियम स्कूल है... मस्त स्कूल है, मेरे बैच से ही पाँच का जेइइ में हुआ है. '
सबने मान भी लिया... बात आई गयी हो गयी। मानते भी कैसे नहीं ! सेंट भी है और पब्लिक भी और बोरिस भी तो पूरा अंग्रेजी ही लगता है. सेंट बोरिस स्कूल की एक और बात बता दूँ. एक बार जब परीक्षाफल निकलने का दिन था तो मास्टरजी आए और उन्होंने सुनाया: 'फलनवाँ फस्ट, चीलनवाँ सेकेण्ड... और बाकी सब पास ! और आज से एक महीने की गर्मी छुट्टी'
घर आके पिताजी ने पूछा: 'रिजल्ट क्या हुआ रे? '
मैंने कहा 'मास्टर जी बोले कि फलनवाँ और चीलनवाँ के रिजल्ट में कोई दिक्कत है बाकी सब पास हैं'
बाबूजी भी खुश ! ससुरे फलनवाँ फस्ट, चीलनवाँ सेकेण्ड... आख़िर कुछ तो सीखा था सेंट बोरिस में, बोरा-बस्ता फेंका और खेलने भागे !
अब स्कूल से तो दो ही बातें बता सकता हूँ बाकी बता दूँ तो गंवार ही कहेंगे लोग। लोगों को भरोसा ही उठ जायेगा जेइइ की कठिनता से. पर क्या करुँ पास कर गया क्योंकि तब आरक्षण नहीं होता था और शायद मेरे जैसे बहुत गंवार वहां पहुच जाते थे... अब ना तो बिना सेंट और पब्लिक के स्कूल ही बचे ना वो परीक्षा ही बिना आरक्षण के रह गई. मेरे जैसे सेंट बोरिस के अलुम्नी कहाँ-कहाँ पहुँच गए... मैं गंवार रह गया ये अलग बात है.
ये सेंट बोरिस का असली मतलब पूरे बीएचयु के चार सालों में कभी किसी को नहीं बताया आज तुम्हें सुना रहा हूँ. '
और मैं आपको सुना रहा हूँ... किसी को बताइयेगा मत :-)
समीरजी और लावण्याजी से बात के बाद निठल्ला चिंतन वाले तरुणजी के साथ लंच पर जाना हुआ... बहुत खुशी हुई, ये यात्रा बहुत अच्छी साबित हो रही है. कमाल की वर्चुअल रियलिटी है ब्लॉग्गिंग भी और हिन्दी ब्लॉग्गिंग वालों में जो आत्मीयता है... वो शायद किसी और भाषा के ब्लोगरों में नहीं.
~Abhishek Ojha~
अरे वाह, हम भी पढ़ें हैं सेंट बोरिस में और बी.एच.यू.में भी। पहले पता ही न चला। चलो पता चला कि एक ही गुरुकुल के हैं।
ReplyDeletest boris ke bahaane apne bachpan ko yaad karna sukhad raha hoga...ab to anoop shukla bhi aap hi ke gurukul ke nikal aaye..bhai waah..
ReplyDelete:D सेंट बोरिस? हा हा हा
ReplyDeleteहमसे कोई पूछता था तो कहते थे क्या करोगे जानकर? सारे सरकारी स्कूल एक जैसे होते हैं। नहीं तो कह दिया GBSSSB. अब खोजते रहिये मतलब।
हमारे जमाने में तो निजि विद्यालय के नाम पर पंडित पाठशालाएँ जरूर होती थीं। हम पढते थे सराओगियों के नोहरे में चलने वाले सरकारी स्कूल में। नाम कुछ भी हो। था सेंट बोरिस ही।
ReplyDelete:) बोरिस स्कूल नामकरण की कथा बहुत मजेदार :) तब यही स्कूल सेंट पब्लिक थे
ReplyDeleteB.H.U के मेडिकल में हमारे हमनाम दोस्त रहे थे .आजकल तो वे ऑस्ट्रिलिया में है....ओर रही सेंट बोरिस स्कूल की बात ....तो हम भी वहां के पढ़े हुए है बस नाम थोड़ा सा बदला हुआ है.......
ReplyDeleteवाह अभिषेक भाई क्या आइडिया दिया है आपने अब से हम भी यही बताया करेंगे(क्या करें हम भी सरकारिये स्कूल में पढ़े हैं बोरा बिछाके )
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एक अपील - प्रकृति से छेड़छाड़ हर हालात में बुरी होती है.इसके दोहन की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी,आज जरुरत है वापस उसकी ओर जाने की.
बढि़या प्रसंग सुनाया आपने। हमारी जानकारी में एक स्कूल है - एस टी सेवेरेन्स स्कूल। मुझे बताया गया है कि इसमें एस शर्मा के लिए है तथा टी तिवारी के लिए। मतलब शर्मा तिवारी सेवेरेन्स स्कूल।
ReplyDeleteइत्मिनान रखिए आपका राज, राज ही रहेगा।
ReplyDelete"गणपति बब्बा मोरिया अगले बरस फ़िर से आ"
ReplyDeleteश्री गणेश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .....
दसवीं तक बाकायदा टाटपट्टी पर पढ़े. पट्टेदार कच्छा और कुरता. कोई अच्छे घर का पैजामा डाल आता था.
ReplyDeleteज्यादा पुरानी भी नहीं १९७८-७९ की बात है .
लेकिन आज हमारी पैदा की हुई पीढ़ी जींस शर्ट या टाप में जाती है.
संस्कारों का अंतर स्पष्ट है.
हम 'राम-राम' से 'हाय' पर पहुंच गये
चलो''''waqt waqt ki baat hai
खैर..........
सेंट बोरिस में जाने का सुअवसर हमें भी मिला, लेकिन केवल ‘छोटी गोल’ और ‘बड़ी गोल’ के दो साल। उसके बाद ‘द्वितीय’ कक्षा के लिए एक शिशु-मन्दिर में चले गये। फिर किसी सेन्ट से भेंट नहीं हुई। आचार्य जी लोगों के सान्निध्य में विद्यालय कटा...।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट के लिए अपने मित्र को हमारी ओर से धन्यवाद दीजिएगा।
mazedaar kisssa..
ReplyDeleteऐसे बोरिस स्कूल तो आजकल हर गली में खुल गए हैं...हमारा स्कूल भी बिलकुल ऐसा ही था!और ये बड़ी बड़ी फीस वसूलने वाले स्कूल सफलता की गारंटी कतई नहीं हैं!
ReplyDeleteलगता है सभी गुरू भाई इस पोस्ट में ही मिल रहे हैं ;), कमाल का आइडिया निकाला अभिषेक, मजा आया पढ़कर। तुम्हारे साथ बात करके भी बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteअगर आगे सेंट और पीछे पब्लिक लगा हो तो फिर सोने पे सुहागा !
ReplyDeleteये भी खूब रही.
चुटकी भी गज़ब ढाने वाली है.
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अच्छा लिख रहे हैं अभिषेक
सस्नेह शुभकामनाएँ
प्रशस्त हो आपका पथ निरंतर...
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
यह तो पक्की गारंटी है कि सेंट बोरिसीय का भेद नही खुलेगा ;क्योकि यहाँ पर लगभग सभी एक ही हमाम की अलग अलग ब्रांच में न...... नहाए हैं कौन गद्दा.....करेगा | वैसे आप लोगों कीतरह मैं भाग्यशाली नही था ;मिशन स्कूल में पढा था | जब जब मैं लोगों को सेंट बोरिसीय जाते देखता उनसे बहुत रश्क हुआ करता था ,जब चाहा पढ़ा और जब मन नही हुआ पूरा का पूरा ग्रुप सटक लिया और गिल्ली ,कंचे खेलते रहो ,छुट्टी पर घर पहुचाते ही मैयो बप्पो की मनुहार कुछ खालो और जाओ खेलो !!! वह आनंद हमारे नसीब में कहा \ पोस्ट रोचक लगी |
ReplyDeleteहा हा!
ReplyDeleteरोचक...एक ठो बोरिस स्कूल इधर सहरसा की पैदाइश तो हम भी हैं!
Nice...
ReplyDeleteअरे, सुकुलपुरा तहसील मेजा में भी है सेण्ट बोरिस!
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