शनिवार के दिन मैं पंचगनी में था... फोन में सिग्नल ना के बराबर (कभी-कभी ये बहुत शुकुन की बात होती है) पर घंटी बजी और दिल्ली का नंबर दिखा.
एक मित्र का आवाज़ आई: 'ओझा भाई, कैसे हो?'
'मैं ठीक हूँ, तुम सुनाओ कैसे हो?'
'बस सब ठीक है, IIT में एक और सुसाईड हो गया... !'
'what? कब? which year? कैसे? कारण?'
एक-एक करके लगभग सारी बातें पता चली... final year, होस्टल के कमरे में ही फांसी लगाकर, BSBE department, लड़की थी, IIMS से काल्स भी आई थी,... हैल्थ प्रॉब्लम, BTP में फक्का... ! (B.Tech. Project, फक्का: F-ग्रेड) दीक्षांत समारोह के ठीक पहले! शायद समय पर डिग्री ना मिल पाना! सारे प्रयास फिर से विफल, सारी काउंसिलिंग ... सब बेकार.
'अरे यार ये भी कोई कारण होता है... ' 'चलो मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ. '
मैं कुछ भी बोल रहा था... ऐसी सिचुएसन में मैं बिल्कुल नहीं बोल पाता...
अभी डेढ़-दो महीने ही तो हुए... वो फर्स्ट इयर का छात्र था... पहले साल में ऐसी एक घटना हो जाती थी... अब तो एक सेमेस्टर में २-२. अर्जुन सिंह के रिज़र्वेशन के बाद क्या होगा?
फर्स्ट इयर हो या फाइनल... मेरी नज़र में तो आत्महत्या का कोई कारण हो ही नही सकता... चाहे कैसे भी हालात हो जाय. पर मेरे लिए कह देना शायद आसन है...वो ही समझ सकता है जिस पर गुजरी होगी. अलग-अलग सिचुएसन... मौत के भयावह और अलग-अलग तरीके... जिन्हें सोच कर ही डर लगता है.
IIT से मुझे बहुत लगाव है और ऐसी खबरें बहुत दुःख पहुचाती है.. सच बोलूँ तो थोडी देर के लिए तो व्यक्तिगत क्षति लगती ही है. कहते हैं भारत में किसी किशोर के लिए IIT से अच्छा कुछ नहीं हो सकता और इसे शायद वो बेहतर समझता है जो वहाँ रह चुका है... जहाँ अधिकतर लोग इसे अपने जीवन का सबसे सुखद हिस्सा मानते हैं वहीं कुछ लोग इसे अपने जीवन में आए एक बुरे सपने की तरह देखते हैं... जिन्हें लगता है की उनसे उनका सब कुछ छीन लिया गया... किताबों और ग्रेड्स के बीच अपने जीवन को घिरा हुआ पाते हैं। मुझे याद है एक बार एक चर्चा में मैंने कहा था: 'कभी किसी भारतीय इंजिनियर से ये मत पूछना की वो IITian है क्या !, क्योंकि अगर वो होगा तो थोडी देर में ख़ुद ही बता देगा और अगर नहीं तो उसे बुरा लगेगा !' इतने गर्व की बात होना... वो भी उस देश में जहाँ हर जगह इतनी समस्याएं हैं... फिर ऐसा क्यों? आख़िर क्यों? गलती किसकी है?
प्रोफेसर? अक्सर लोग इन्हे ही गालियाँ देते हैं... मेरे बहुत सारे दोस्त भी. पर मैं ऐसा नहीं कर पाता, पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है की कभी कोई प्रोफेसर दुश्मनी से किसी को फक्का नहीं दे सकता... प्रोफेसर मजबूरी में ही फेल करेगा (ये मेरा मानना है, वैसे फेल होना भी तो किसी भी तरह से आत्महत्या का कारण नहीं बनता)
क्या छात्र ख़ुद? नही इस उम्र में इतनी बड़ी गलती के लिए जिम्मेदार नहीं कह सकते... नासमझी जरूर कह सकते हैं.
अभिभावक? मुझे लगता है की कहीं-ना-कहीं अभिभावक, अनजाने में ही सही, ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं... कुछ घटनाओं में तो ऐसा साफ होता है. समस्या ये है कि अभिभावक को भी ऐसी बातों का पता नहीं होता है... जब बेवजह टॉप करने का प्रेशर हो तो क्लास में पीछे रहना तो दूर फेल होने कि बात कोई कैसे बता सकता है? IIT में जाने वाले लगभग हर छात्र अपने स्कूल में टोपर्स रह चुके होते हैं और माता-पिता ये धारणा बना के चलते हैं कि ये तो IIT में जाने का बाद भी चलता ही रहेगा. और यहाँ ऐसा नहीं होने के कई कारण होते हैं सबसे बड़ा कारण है: वैसे ही छात्रों के बीच relative grading ! अभिभावकों द्वारा रिश्तेदारों और अन्य लोगों के सामने अंधाधुंध बड़ाई भी एक कारण है, जो अनायास ही प्रेशर का कारण बन जाता है. कई बार जानकारी ना होते हुए भी माता-पिता बेवजह पढ़ाई में हस्तक्षेप करते हैं.
ऐसा क्यों है कि माता-पिता से बच्चे अपनी समस्याएं बताने में डरते हैं? ख़राब ग्रेड आने पर वो घर वालों को क्यों नहीं बता पाते? फेल होने के बाद summers में रुक कर आसानी से कोर्स निपटाने की व्यवस्था है, पर असली समस्या तो घर वालों को बताने में ही आती है. बच्चों को कोउन्सेलिंग की जरुर तो है पर साथ में ऐसे अभिभावकों को उनसे कहीं ज्यादा काउंसलिंग की जरुरत होती है. यहाँ अभिभावक के साथ समाज का एक हिस्सा भी होता है जो ऐसी बातें पता लगाने में लगा रहता है. और हर वक्त दूसरो की समस्याएं उछलने और उन पर हँसने में लगा रहता है.
वैसे कई बार व्यक्तिगत कारण भी होते हैं, कई तरह की समस्याएं... भागवान जानें...
मेरी बस यही कामना है की ऐसे घटनाएं दुबारा फिर ना हो... पर अब ये आम बात होती जा रही है... इसी बात का दुःख है.
भगवान तोया की आत्मा को शान्ति प्रदान करें और उसके घर वालो को इस संकट की घड़ी में साहस.
~Abhishek Ojha~
तस्वीर साभार : http://www.healthnews-stat.com/?id=857=teen-suicide-CTC
[ IIT पर लिखे पिछले पोस्ट को ठीक एक साल हो गए... कैम्पस से ही लिखा था... कभी सोचा नहीं था की अगली पोस्ट ऐसी लिखनी पड़ेगी :-( ]
बस कामना ही कर सकते हैं कि विवेक और संयम का इस्तेमाल करें. ऐसी घटनाओं की पुनरावर्ति न हो.
ReplyDeleteदुखद!
ReplyDeleteजब मैं बिट्स का छात्र था तब भी प्रतिस्पर्द्धा और तुलनात्मक ग्रेडिन्ग का बहुत तनाव था। एक दो आत्महत्यायें भी थीं। पर अब तो लगता है सब ज्यादा हीट-अप हो गया है।
संयम और सन्तोष पर ध्यान जरूरी है।
अफ़सोस जनक है यह घटना!
ReplyDeleteदुखद.
ReplyDeleteअफसोसजनक.
क्या कहें?
बस भगवान् से यही कामना है ये सब दुबारा ना घटे.
बहुत दुःख होता है ये सुनकर, लेकिन कभी कभी हालात ऐसे हो जाते हैं कि जिंदगी बहुत बदसूरत लगने लगती है,इतनी कि उसकी शकल को बर्दाश्त कर पाना नामुमकिन सा होता है, ऐसे वक़्त में घर के लोग, वो भी जो हमें समझते हों, भावात्मक साथ दें तो शायद ऐसी दुखद घटनाएं होने से बच जाएं पर बड़े दुःख की बात है कि ख़ुद घर के लोग कभी कभी हमें समझ नही पाते, और हम अपने आप में एकदम अकेले रह जाते हैं , कभी कभी ये अकेलापन इतना ज़्यादा हावी हो जाता है कि मौत अच्छी लगने लगती है. बहरहाल जो हुआ , बहुत दुखद है.
ReplyDeleteखुदा करे, दुबारा ऐसा ना हो.
बेहद अफसोसजनक और दुखद है ये घटना।
ReplyDeleteजानकर गहरा दुःख हुआ ,समीर जी ने ठीक कहा बस संयम ओर विवेक का इस्तेमाल उस वक़्त पर करना जरूरी है....इसलिए आपके पास ढेर सरे दोस्तो का होना जरूरी है......
ReplyDeleteसही कहा आपने अपने मेधावी बेटे बेटियों को IIT की दहलीज तक पहुंचा देने के बाद फेल का शब्द छात्रों और उससे ज्यादा अभिभावकों को पचा पाना मुश्किल होता है।
ReplyDeleteयह काफी दुखद और चिंताजनक घटना है. मेरे IITB के समय मे भी हर साल एक दो आत्म हत्याओं के केस हुए थे, सुनकर काफ़ी बुरा लगता था.
ReplyDeleteहमेशा यह ही सोचता था...आख़िर ऐसी भी क्या मजबूरी हे की इस हद तक ??
दुखद, और विचारणीय। ऐसे सभी कारणों एवं उनके निवारणों के बारे में अधिक से अधिक लिखना और प्रचारित करना चहिये। ताकि ऐसी घटनओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
ReplyDeleteप्रिये ओझा जी,
ReplyDeleteनया ब्लोगिया हूँ । अभी अभी लोगों के चिट्ठे पढना शुरू किया है।
आपके इस चिट्ठे से मेरे कई संस्मरण भी जाग उठे है।
इस विषय पर हमारे संस्थान (IITG) में भी बहसें हो चुकी है।
जो व्यक्ति अपने प्राण लेने का प्रयास कर रहा होता है, उसकी मानसिकता का चित्रण मेरे लिए बार भयावह हो जाता है। मुझे खुशी है की इन्वेस्टमेंट बैंकिंग से जुड़े होते हुए आप अपनी संजीदगी और भावुकता दोनों को अपने ब्लॉग में स्थान दे रहे है। मैं सोचता हूँ अगर कोई ऐसी जगह हो सके जहाँ हम जीवन से जुड़े ऐसे सवालों पर लम्बी ब्लोग्गिंग साझीदारी कर सकें और शायद कोई निचोड़ आए तो संबंधित जिम्मेवार लोगों तक पहुँचा सके तो ब्लॉग पे किए चिंतन का सामाजिक उपयोग भी हो सकेगा..... क्या मैं ज्यादा बोल गया ? क्षमा करें, शायद संजीदगी आपके ब्लॉग की मुझे कुछ जोशीला बना गयी।
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