Aug 1, 2008

इस मोड़ से जाते हैं... !

पुणे में मानसून अपने पूरे खुमार पर है और ऑफिस की उसी खिड़की से जिससे कभी उजडे हुए पहाड़ और ढेर सारे निर्माणाधीन भवन दीखते थे. अब हरे भरे पहाड़ और आपस में लड़ते-भिड़ते अठखेलियाँ करते बदल दीखते हैं... हरियाली ही हरियाली है. निर्माणाधीन भवनों पर नज़र ही नहीं जाती, वो तो अभी भी वहीँ है पर कई बातों की तरह या तो दीखते नहीं या मैं उन्हें देखना नहीं चाहता. सुना है जहाँ ऑफिस है वहां ३-४ सालों पहले कुछ नहीं था. नया विशेष औद्योगिक क्षेत्र (SEZ) बना और मुंबई के पास होने के कारण दिन दुनी रात चौगुनी के हिसाब से इतना विकास हुआ कि सैकड़ों कंपनियाँ खड़ी हो गई. इसका मतलब ये कि जब मैंने सोचना चालु किया होगा कि कहाँ नौकरी करूँगा तब यहाँ भी काम चालु हुआ होगा. कहाँ से कहाँ के तार जोड़ता है भगवान् भी !

सड़क पर अंधाधुंध गाडियां जा रही है सुना है शहर में डीजल की कमी है... डीजल और पेट्रोल बंद ही हो जाय तो क्या-क्या रुक जायेगा? बहुत बड़ा डरावना जवाब है छोडो कभी और सोचेंगे !

अच्छा इस पहाड़ काट कर बनाई गई सड़क की जगह पर पहले क्या रहा होगा?

शायद यहाँ से एक पगडण्डी जाती होगी... और इधर कोई नहीं आता होगा. कोई क्यों नहीं आता होगा? ३-४ किलोमीटर तक तो चरवाहे आ ही जाते होंगे... गाय, बकरी, भेड़. इस क्षेत्र में जंगल तो घनघोर होने वाला मौसम नहीं लगता पर इस हाल में भी जंगली जानवर तो खूब होते ही होंगे... खरगोश, तीतर, बटेर... ! कौन कहता है की कोई नहीं आता था... पूरा भरा पूरा समाज दिख रहा है यहाँ तो. हिरन होते होंगे और चरवाहों के जानवर भटकते होंगे तो ढूंढने भी निकल पड़ते होंगे... गाना गाते हुए. सुना है गाना गाने से डर नहीं लगता !

शिवाजी जब सिंहगढ़ फतह कर के शिवनेरी के किले की तरफ़ जा रहे होंगे तो इधर से ही गए हों, सम्भव है ! अब घोड़ा सड़क से तो चलाते नहीं होंगे, वैसे भी छापामार युद्ध करना है तो जंगल से तो ही ज्यादा जाते होंगे? उनके साथ तानाजी, शम्भाजी... खूब सारे सिपाही. कभी यहीं इस बिल्डिंग के नीचे डेरा भी डाल लेते होंगे... शिविर, आग, सिपाही, हथियार... जानवर गाली देते होंगे... साले आदमी परेशान करने आ गए !

सुना है अगस्त ऋषि का आश्रम हरिहरेश्वर में था... तो जब विन्ध्य पार कर दक्षिण आए तो नक्शा लेकर तो चले नहीं थे... भटकते-भटकते सम्भव है इधर से ही निकल लिये हों... बरसात का मौसम हो तो थोडी देर ध्यान लगाया, फिर आगे चल पड़े. ऋषि ठहरे कुछ भी पेड़ों से मिला खा लिया और चल पड़े. सम्भव है यहाँ एक विशाल छायादार वृक्ष रहा हो, और यहाँ थोडी देर उन्होंने विश्राम भी किया हो !

भगवान राम तो खूब भटके और उन बेचारे के पास भी नक्शा नहीं था न लंका का पता, उन्हें तो ये भी नहीं पता था की कहाँ जाना है? वो तो न जाने कहाँ-कहाँ भटके. जंगल-जंगल. सम्भव है यहाँ भी एक पड़ाव... एक पर्ण कुटीर. साधु वेश में स्वयम भगवान. दोनों भाई की मनोरम छटा, वनवासी तृप्त हुए होंगे? सम्भव है इस भवन की जगह पर ही !

पांडवों ने कुछ नहीं छोड़ा... वो तो पक्का ही इधर से गुजरे होंगे... गोवा के पास सुना है कोई पांडवों के नाम पर मन्दिर है. इधर से ही तो गए होंगे? और भगवान श्रीकृष्ण भी तो मुआयना करने आए होंगे की पांडव कैसे हैं? उनकी चरण धूलि भी सम्भव है यहाँ पड़ी हो... और वो मशीन अंधाधुंध खुदाई किए जा रही है? ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !

नानकदेव भी सुना है खूब भ्रमण करते थे... कबीर तो होंगे ही घुमंतू... कौन-कौन गुज़रा है यहाँ से? कौन बता सकता है?

पर यहाँ छिट-पुट जंगल था ४-५ साल पहले तक ये तो सब जानते हैं. जंगल में कुछ वनवासी होंगे... अभी सड़क के किनारे फूल लगाने की कोशिश हो रही है तब तो नाना प्रकार के फूल यूँ ही खिलते होंगे... मस्त खुशबू लिए हवा चलती होगी. और एक दिन सड़क बनाने का काम चालु हुआ होगा और एक ट्रक आया होगा... ट्रक का धुंआ... वनवासियों को बहुत अच्छा लगा होगा. लगा होगा की वाह क्या अलौकिक खुशबु है! क्यों ऐसा क्यों? वो तो अच्छी गंध नहीं होती ! अरे क्यों नहीं होती? रोज जला पेट्रोल/डीजल सूंघते हो तब तो एक सेकेण्ड के लिए ही फूलों की बात सोच के ही आनंद आ गया था. वैसे ही उनके लिए ट्रक नया रहा होगा और ट्रक के पीछे दौड़-दौड़ के सूंघते होंगे... धुंआ... मस्त खुशबु... दैविक गंध.

और फिर बन गया ये सब... लोग आते गए... वाह क्या दृश्य है... बहुत अच्छी जगह है ऑफिस के लिए. ३-४ साल बाद जब अभी की तुलना में ३ गुना हो जायेगा तो भी दृश्य दिखेगा... तब भी एक जंगल होगा... लेकिन दृश्य कुछ और होगा... और जंगल होगा कंक्रीट का ! तब भी लोग जायेंगे इस मोड़ से... पर तब कोई शिवाजी, अगस्त ऋषि, श्रीराम, पांडव, श्रीकृष्ण ... या उन चरवाहों की तरह भटकते हुए नहीं जायेगा. तब उन्हें गाली देने के लिए कोई जानवर नहीं होगा, तब डरने से बचने के लिए गाना नहीं गाना पड़ेगा ! तब लाल हरे सिग्नल होंगे, रास्ते के इधर उधर बौने पेड़ होंगे जो अगर बढ़ना चाहे तो काट दिए जायेंगे. होटल में रुकना होगा... जमीन तले ढेर सारे केबल होंगे... ... जगमग करती बिजली होगी... बहुत कुछ होगा. तब जो भी बड़ा आदमी आएगा उसके नाम पर किसी परिसर में एक पेड़ लगाया जायेगा और पेड़ के ऊपर एक चिप्पी, लगाने वाले का नाम ! ...और आने वाली पीढी के दिमाग में शायद ये हलचल नहीं होगी की यहाँ एक बड़ा पेड़ रहा होगा और उसके तले किसी ऋषि ने विश्राम किया होगा... क्योंकि तब उसे किसी के नाम की चिप्पी वाला पेड़ दिखाई देगा !

~Abhishek Ojha~


- ये पूरी हलचल दिमाग में खिड़की से बाहर देखते समय हुई... पहले तो सोचा की ये भी कुछ पोस्ट करने की बात है... पर हलचल से ध्यान आया की मानसिक हलचल को तो ब्लॉग पर ठेलना होता है तो बस ठेल दिया !
- ये पोस्ट शेड्यूल कर दी है जब पब्लिश होगा मैं यात्रा कर रहा होऊंगा. यात्रा पूरी होने पर इस बकवास पर आने वाली आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
- इस बीच प्रशांत प्रियदर्शी (पीडी) से फ़ोन पर बात हुई, मैंने उनके बारे में एक बात भी गेस कर ली :-) उनसे बात कर के बहुत अच्छा लगा... कमाल है ब्लॉगजगत भी. लगा ही नहीं जैसे पहली बार बात हो रही है... वही रांची-पटना टोन जो मेरा भी है... मेरे ख़ुद के टोन का तो पता नहीं पर उनका थोड़ा बदला सा लग रहा था... लगता है चेन्नई का असर है :-). पर फिर भी टोन तो पकड़ में आ ही गई. !

Jul 28, 2008

टिपियावाली के दोहे ...!

शुक्रवार को एक अनाल्य्सिस में ढेर सारी संख्याएं लाल ही लाल दिखी (साधारणतया ऋणात्मक संख्याएं लाल रंग से दिखाई जाती हैं) और अनायास ही मैं बोल उठा:

"लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल,
लाली देखन मैं गयी, मैं भी हो गई लाल."

ऑफिस में एक मित्र हैं, उन्होंने ये दोहा सुना ही नहीं था. तो ऐसे ही थोडी चर्चा हो गई, उसके बाद अचानक ही मुझे सबीरदास रचित टिपियावाली के कुछ दोहे याद आ गए. आप भी सुनिए.

टिपण्णी की इच्छा सब करै, टिपण्णी करे न कोय ।
जो पहले टिपण्णी करे, कमी काहे को होय ।। 1 ।।

ब्लॉग लिखत जुग भया, मिला न पाठक एक ।
पोस्ट का चक्कर डार दें, करें टिपण्णी अनेक ।। 2 ।।

टिपण्णी इतना कीजिये, ब्लॉग चलता जाय ।
आपहु के चलता रहे, नए लोग जुड़ जाय ।। 3 ।।

टिप सको तो टिप लो, नहीं लगत है दाम ।
फिर पाछे पछताओगे, जब हो जायेंगे काम ।। 4 ।।

ऐसी टिपण्णी कीजिये, मन का आप खोय ।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ।। 5 ।।

टिपण्णी ते सब होत है, पोस्ट ते कछु नाहिं ।
पाठक में वृद्धि करे, ऐड-सेंस चमक जाहिं ।। 6 ।।

सबीरा टिपण्णी आपकी, निष्फल कभी न होय ।
वो ब्लॉग भी जीते रहे, जिनको मिला न कोय ।। 7 ।।

सबीरा टिपण्णी कीजिये, और कराइए खूब ।
ब्लॉग संख्या बढ़त है, न तो कई जावेंगे डूब ।। 8 ।।

बिन टिपण्णी के ब्लॉग देख, दिया सबीरा रोय ।
दुई-चार दिन बाद ही, ना बच पायेंगे कोय ।। 9 ।।

यह ब्लॉग समय-नाशकी, टिपण्णी आनंद की खान ।
१०-१२ दिए जो एक मिलै, तो भी सस्ता जान ।। 10 ।।

टिपियक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय ।
बिन मुद्दा नियमित रहे बिना, ब्लॉग चलता जाय ।। 11 ।।

टिपण्णी अमिय समान है, तोहि दई मैं सीख ।
कहै सबीर समझाय के, मीठा लागे जैसे ईख ।। 12 ।।

सबीरा खड़ा बाजार में, लिया लैपटॉप हाथ ।
जो टिपण्णी करना चाहे, चले हमारे साथ ।। 13 ।।



कवियों और साहित्यकारों से क्षमा चाहता हूँ, कबीर दास की जीतनी मैं इज्जत करता हूँ बहुत कम लोग करते होंगे. और ये तुकबंदी यूँ ही कर डाली... आशा है इस बेकार सी तुकबंदी से कोई नाराज़ नहीं होगा. अगले एक महीने तक यहाँ और गणित वाली श्रृंखला में घोर अनियमितता रहने वाली है. एक तरह से ब्लॉगजगत से अवकाश. पूरी तरह से तो नहीं... क्योंकि आशा है बीच-बीच में जो ब्लोग्स रीडर में हैं उन पर आता रहूँगा.



~Abhishek Ojha~

Jul 20, 2008

कोंकण यात्रा... (भाग II)

कोंकण यात्रा भाग एक के बाद रुक ही गई थी. उधर अनुरागजी को शिकायत है कि गणित की एक पोस्ट आने में एक सप्ताह से भी ज्यादा समय लग जाता है और इधर ये लगने लगा की जुलाई ओझा-उवाच पर कोई पोस्ट किए बिना ही बीत जायेगी... इधर समय ही कुछ ऐसा चल रहा है, खैर समय का रोना फिर कभी... आज यात्रा को आगे बढ़ाते हैं और चलते हैं अलीबाग.

अलीबाग का नाम आपने जरूर सुना होगा... हिन्दी फिल्मों में अक्सर इसका जिक्र आता है. महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में स्थित अलीबाग के आस-पास कई खुबसूरत समुद्री तट हैं. पर सबसे प्रसिद्द है... 'अलीबाग बीच'. पुणे से लोनावाला-खोपोली-पेण होते हुए तक़रीबन १४० किलोमीटर कि यात्रा करने के बाद अलीबाग आता है. मानसून का समय हो तो ये रास्ता भी अपने आप में बड़ा खुबसूरत होता है. (वैसे पुणे-मुंबई के आस-पास मानसून के समय घुमने का मजा ही कुछ और है... मुंबई पुणे के बीच के एक्सप्रेस मार्ग पर भी काफ़ी अच्छे दृश्य देखने को मिलते हैं) अगर मुंबई से आना हो तो यहाँ तक सीधे जल मार्ग से भी पहुँचा जा सकता है.

खुली हवा, ढेर सारे पक्षी और साफ़ दूर तक फैले हुए समुद्री तट के अलावा अलीबाग बीच पर स्थित 'कोलाबा किला' भी दर्शनीय है. (यह मुंबई के कोलाबा से भिन्न है) मुरुड-जलजीरा भी पास में ही स्थित है. समुद्र तट कि खूबसूरती तो आप तस्वीरों में देख ही सकते हैं. कोलाबा किला अलीबाग तट से करीब २ किलोमीटर दूर समुद्र में स्थित है. लो टाइड (भाटा) हो तो पैदल या घोड़ा गाड़ी से आसानी से जाया जा सकता है नहीं तो नाव से जाना पड़ सकता है. कई बार ज्वार कि स्थिति में वहां जाना खतरनाक हो सकता है. वहां पर हुई दुर्घटनाओं तथा सावधान रहने कि चेतावनी आप जरूर ध्यान से पढ़ लें (मैंने नहीं पढ़ा था पर आप ऐसी गलती मत कीजियेगा :-)

अरब सागर है तो सूर्यास्त तो खुबसूरत होना ही है!






समुद्र के किनारे पक्षियों का बसेरा !





पक्षियों के साथ उड़ जाने की असफल कोशिश !





कोलाबा किला







प्रोफेशनल मछुवारे तो नहीं ... पर उनसे कम भी नहीं :-) (इनवेस्टमेंट बैंकिंग के बाद का कैरियर विकल्प)





किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी ने १७ वीं सदी के उत्तरार्ध में किया था. इस किले के निर्माण को शिवाजी की दूरदर्शिता और उनके जल सेना के उपयोग के प्रमाण के रुप में भी देखा जाता है. कहते हैं कि शिवाजी ने उसी समय नौ सेना की उपयोगिता समझ ली थी और ऐसे किलों के साथ-साथ उत्तम नौ-सैनिक बेडे की व्यवस्था भी की थी. खँडहर का रूप ले चुके किले के अन्दर मीठे पानी का कुँआ है और गणेश भगवान का एक शांत मन्दिर... आज बस इतना ही अगली कड़ियों में... हरिहरेश्वर, श्रीवर्धन, मुरुड-जलजीरा, और करडे-बीच घुमने चलते हैं।

~Abhishek Ojha~