
सड़क पर अंधाधुंध गाडियां जा रही है सुना है शहर में डीजल की कमी है... डीजल और पेट्रोल बंद ही हो जाय तो क्या-क्या रुक जायेगा? बहुत बड़ा डरावना जवाब है छोडो कभी और सोचेंगे !
अच्छा इस पहाड़ काट कर बनाई गई सड़क की जगह पर पहले क्या रहा होगा?
शायद यहाँ से एक पगडण्डी जाती होगी... और इधर कोई नहीं आता होगा. कोई क्यों नहीं आता होगा? ३-४ किलोमीटर तक तो चरवाहे आ ही जाते होंगे... गाय, बकरी, भेड़. इस क्षेत्र में जंगल तो घनघोर होने वाला मौसम नहीं लगता पर इस हाल में भी जंगली जानवर तो खूब होते ही होंगे... खरगोश, तीतर, बटेर... ! कौन कहता है की कोई नहीं आता था... पूरा भरा पूरा समाज दिख रहा है यहाँ तो. हिरन होते होंगे और चरवाहों के जानवर भटकते होंगे तो ढूंढने भी निकल पड़ते होंगे... गाना गाते हुए. सुना है गाना गाने से डर नहीं लगता !
शिवाजी जब सिंहगढ़ फतह कर के शिवनेरी के किले की तरफ़ जा रहे होंगे तो इधर से ही गए हों, सम्भव है ! अब घोड़ा सड़क से तो चलाते नहीं होंगे, वैसे भी छापामार युद्ध करना है तो जंगल से तो ही ज्यादा जाते होंगे? उनके साथ तानाजी, शम्भाजी... खूब सारे सिपाही. कभी यहीं इस बिल्डिंग के नीचे डेरा भी डाल लेते होंगे... शिविर, आग, सिपाही, हथियार... जानवर गाली देते होंगे... साले आदमी परेशान करने आ गए !
सुना है अगस्त ऋषि का आश्रम हरिहरेश्वर में था... तो जब विन्ध्य पार कर दक्षिण आए तो नक्शा लेकर तो चले नहीं थे... भटकते-भटकते सम्भव है इधर से ही निकल लिये हों... बरसात का मौसम हो तो थोडी देर ध्यान लगाया, फिर आगे चल पड़े. ऋषि ठहरे कुछ भी पेड़ों से मिला खा लिया और चल पड़े. सम्भव है यहाँ एक विशाल छायादार वृक्ष रहा हो, और यहाँ थोडी देर उन्होंने विश्राम भी किया हो !
भगवान राम तो खूब भटके और उन बेचारे के पास भी नक्शा नहीं था न लंका का पता, उन्हें तो ये भी नहीं पता था की कहाँ जाना है? वो तो न जाने कहाँ-कहाँ भटके. जंगल-जंगल. सम्भव है यहाँ भी एक पड़ाव... एक पर्ण कुटीर. साधु वेश में स्वयम भगवान. दोनों भाई की मनोरम छटा, वनवासी तृप्त हुए होंगे? सम्भव है इस भवन की जगह पर ही !
पांडवों ने कुछ नहीं छोड़ा... वो तो पक्का ही इधर से गुजरे होंगे... गोवा के पास सुना है कोई पांडवों के नाम पर मन्दिर है. इधर से ही तो गए होंगे? और भगवान श्रीकृष्ण भी तो मुआयना करने आए होंगे की पांडव कैसे हैं? उनकी चरण धूलि भी सम्भव है यहाँ पड़ी हो... और वो मशीन अंधाधुंध खुदाई किए जा रही है? ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
नानकदेव भी सुना है खूब भ्रमण करते थे... कबीर तो होंगे ही घुमंतू... कौन-कौन गुज़रा है यहाँ से? कौन बता सकता है?
पर यहाँ छिट-पुट जंगल था ४-५ साल पहले तक ये तो सब जानते हैं. जंगल में कुछ वनवासी होंगे... अभी सड़क के किनारे फूल लगाने की कोशिश हो रही है तब तो नाना प्रकार के फूल यूँ ही खिलते होंगे... मस्त खुशबू लिए हवा चलती होगी. और एक दिन सड़क बनाने का काम चालु हुआ होगा और एक ट्रक आया होगा... ट्रक का धुंआ... वनवासियों को बहुत अच्छा लगा होगा. लगा होगा की वाह क्या अलौकिक खुशबु है! क्यों ऐसा क्यों? वो तो अच्छी गंध नहीं होती ! अरे क्यों नहीं होती? रोज जला पेट्रोल/डीजल सूंघते हो तब तो एक सेकेण्ड के लिए ही फूलों की बात सोच के ही आनंद आ गया था. वैसे ही उनके लिए ट्रक नया रहा होगा और ट्रक के पीछे दौड़-दौड़ के सूंघते होंगे... धुंआ... मस्त खुशबु... दैविक गंध.
और फिर बन गया ये सब... लोग आते गए... वाह क्या दृश्य है... बहुत अच्छी जगह है ऑफिस के लिए. ३-४ साल बाद जब अभी की तुलना में ३ गुना हो जायेगा तो भी दृश्य दिखेगा... तब भी एक जंगल होगा... लेकिन दृश्य कुछ और होगा... और जंगल होगा कंक्रीट का ! तब भी लोग जायेंगे इस मोड़ से... पर तब कोई शिवाजी, अगस्त ऋषि, श्रीराम, पांडव, श्रीकृष्ण ... या उन चरवाहों की तरह भटकते हुए नहीं जायेगा. तब उन्हें गाली देने के लिए कोई जानवर नहीं होगा, तब डरने से बचने के लिए गाना नहीं गाना पड़ेगा ! तब लाल हरे सिग्नल होंगे, रास्ते के इधर उधर बौने पेड़ होंगे जो अगर बढ़ना चाहे तो काट दिए जायेंगे. होटल में रुकना होगा... जमीन तले ढेर सारे केबल होंगे... ... जगमग करती बिजली होगी... बहुत कुछ होगा. तब जो भी बड़ा आदमी आएगा उसके नाम पर किसी परिसर में एक पेड़ लगाया जायेगा और पेड़ के ऊपर एक चिप्पी, लगाने वाले का नाम ! ...और आने वाली पीढी के दिमाग में शायद ये हलचल नहीं होगी की यहाँ एक बड़ा पेड़ रहा होगा और उसके तले किसी ऋषि ने विश्राम किया होगा... क्योंकि तब उसे किसी के नाम की चिप्पी वाला पेड़ दिखाई देगा !
~Abhishek Ojha~
- ये पूरी हलचल दिमाग में खिड़की से बाहर देखते समय हुई... पहले तो सोचा की ये भी कुछ पोस्ट करने की बात है... पर हलचल से ध्यान आया की मानसिक हलचल को तो ब्लॉग पर ठेलना होता है तो बस ठेल दिया !
- ये पोस्ट शेड्यूल कर दी है जब पब्लिश होगा मैं यात्रा कर रहा होऊंगा. यात्रा पूरी होने पर इस बकवास पर आने वाली आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
- इस बीच प्रशांत प्रियदर्शी (पीडी) से फ़ोन पर बात हुई, मैंने उनके बारे में एक बात भी गेस कर ली :-) उनसे बात कर के बहुत अच्छा लगा... कमाल है ब्लॉगजगत भी. लगा ही नहीं जैसे पहली बार बात हो रही है... वही रांची-पटना टोन जो मेरा भी है... मेरे ख़ुद के टोन का तो पता नहीं पर उनका थोड़ा बदला सा लग रहा था... लगता है चेन्नई का असर है :-). पर फिर भी टोन तो पकड़ में आ ही गई. !