पुणे में मानसून अपने पूरे खुमार पर है और ऑफिस की उसी खिड़की से जिससे कभी उजडे हुए पहाड़ और ढेर सारे निर्माणाधीन भवन दीखते थे. अब हरे भरे पहाड़ और आपस में लड़ते-भिड़ते अठखेलियाँ करते बदल दीखते हैं... हरियाली ही हरियाली है. निर्माणाधीन भवनों पर नज़र ही नहीं जाती, वो तो अभी भी वहीँ है पर कई बातों की तरह या तो दीखते नहीं या मैं उन्हें देखना नहीं चाहता. सुना है जहाँ ऑफिस है वहां ३-४ सालों पहले कुछ नहीं था. नया विशेष औद्योगिक क्षेत्र (SEZ) बना और मुंबई के पास होने के कारण दिन दुनी रात चौगुनी के हिसाब से इतना विकास हुआ कि सैकड़ों कंपनियाँ खड़ी हो गई. इसका मतलब ये कि जब मैंने सोचना चालु किया होगा कि कहाँ नौकरी करूँगा तब यहाँ भी काम चालु हुआ होगा. कहाँ से कहाँ के तार जोड़ता है भगवान् भी !
सड़क पर अंधाधुंध गाडियां जा रही है सुना है शहर में डीजल की कमी है... डीजल और पेट्रोल बंद ही हो जाय तो क्या-क्या रुक जायेगा? बहुत बड़ा डरावना जवाब है छोडो कभी और सोचेंगे !
अच्छा इस पहाड़ काट कर बनाई गई सड़क की जगह पर पहले क्या रहा होगा?
शायद यहाँ से एक पगडण्डी जाती होगी... और इधर कोई नहीं आता होगा. कोई क्यों नहीं आता होगा? ३-४ किलोमीटर तक तो चरवाहे आ ही जाते होंगे... गाय, बकरी, भेड़. इस क्षेत्र में जंगल तो घनघोर होने वाला मौसम नहीं लगता पर इस हाल में भी जंगली जानवर तो खूब होते ही होंगे... खरगोश, तीतर, बटेर... ! कौन कहता है की कोई नहीं आता था... पूरा भरा पूरा समाज दिख रहा है यहाँ तो. हिरन होते होंगे और चरवाहों के जानवर भटकते होंगे तो ढूंढने भी निकल पड़ते होंगे... गाना गाते हुए. सुना है गाना गाने से डर नहीं लगता !
शिवाजी जब सिंहगढ़ फतह कर के शिवनेरी के किले की तरफ़ जा रहे होंगे तो इधर से ही गए हों, सम्भव है ! अब घोड़ा सड़क से तो चलाते नहीं होंगे, वैसे भी छापामार युद्ध करना है तो जंगल से तो ही ज्यादा जाते होंगे? उनके साथ तानाजी, शम्भाजी... खूब सारे सिपाही. कभी यहीं इस बिल्डिंग के नीचे डेरा भी डाल लेते होंगे... शिविर, आग, सिपाही, हथियार... जानवर गाली देते होंगे... साले आदमी परेशान करने आ गए !
सुना है अगस्त ऋषि का आश्रम हरिहरेश्वर में था... तो जब विन्ध्य पार कर दक्षिण आए तो नक्शा लेकर तो चले नहीं थे... भटकते-भटकते सम्भव है इधर से ही निकल लिये हों... बरसात का मौसम हो तो थोडी देर ध्यान लगाया, फिर आगे चल पड़े. ऋषि ठहरे कुछ भी पेड़ों से मिला खा लिया और चल पड़े. सम्भव है यहाँ एक विशाल छायादार वृक्ष रहा हो, और यहाँ थोडी देर उन्होंने विश्राम भी किया हो !
भगवान राम तो खूब भटके और उन बेचारे के पास भी नक्शा नहीं था न लंका का पता, उन्हें तो ये भी नहीं पता था की कहाँ जाना है? वो तो न जाने कहाँ-कहाँ भटके. जंगल-जंगल. सम्भव है यहाँ भी एक पड़ाव... एक पर्ण कुटीर. साधु वेश में स्वयम भगवान. दोनों भाई की मनोरम छटा, वनवासी तृप्त हुए होंगे? सम्भव है इस भवन की जगह पर ही !
पांडवों ने कुछ नहीं छोड़ा... वो तो पक्का ही इधर से गुजरे होंगे... गोवा के पास सुना है कोई पांडवों के नाम पर मन्दिर है. इधर से ही तो गए होंगे? और भगवान श्रीकृष्ण भी तो मुआयना करने आए होंगे की पांडव कैसे हैं? उनकी चरण धूलि भी सम्भव है यहाँ पड़ी हो... और वो मशीन अंधाधुंध खुदाई किए जा रही है? ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !
नानकदेव भी सुना है खूब भ्रमण करते थे... कबीर तो होंगे ही घुमंतू... कौन-कौन गुज़रा है यहाँ से? कौन बता सकता है?
पर यहाँ छिट-पुट जंगल था ४-५ साल पहले तक ये तो सब जानते हैं. जंगल में कुछ वनवासी होंगे... अभी सड़क के किनारे फूल लगाने की कोशिश हो रही है तब तो नाना प्रकार के फूल यूँ ही खिलते होंगे... मस्त खुशबू लिए हवा चलती होगी. और एक दिन सड़क बनाने का काम चालु हुआ होगा और एक ट्रक आया होगा... ट्रक का धुंआ... वनवासियों को बहुत अच्छा लगा होगा. लगा होगा की वाह क्या अलौकिक खुशबु है! क्यों ऐसा क्यों? वो तो अच्छी गंध नहीं होती ! अरे क्यों नहीं होती? रोज जला पेट्रोल/डीजल सूंघते हो तब तो एक सेकेण्ड के लिए ही फूलों की बात सोच के ही आनंद आ गया था. वैसे ही उनके लिए ट्रक नया रहा होगा और ट्रक के पीछे दौड़-दौड़ के सूंघते होंगे... धुंआ... मस्त खुशबु... दैविक गंध.
और फिर बन गया ये सब... लोग आते गए... वाह क्या दृश्य है... बहुत अच्छी जगह है ऑफिस के लिए. ३-४ साल बाद जब अभी की तुलना में ३ गुना हो जायेगा तो भी दृश्य दिखेगा... तब भी एक जंगल होगा... लेकिन दृश्य कुछ और होगा... और जंगल होगा कंक्रीट का ! तब भी लोग जायेंगे इस मोड़ से... पर तब कोई शिवाजी, अगस्त ऋषि, श्रीराम, पांडव, श्रीकृष्ण ... या उन चरवाहों की तरह भटकते हुए नहीं जायेगा. तब उन्हें गाली देने के लिए कोई जानवर नहीं होगा, तब डरने से बचने के लिए गाना नहीं गाना पड़ेगा ! तब लाल हरे सिग्नल होंगे, रास्ते के इधर उधर बौने पेड़ होंगे जो अगर बढ़ना चाहे तो काट दिए जायेंगे. होटल में रुकना होगा... जमीन तले ढेर सारे केबल होंगे... ... जगमग करती बिजली होगी... बहुत कुछ होगा. तब जो भी बड़ा आदमी आएगा उसके नाम पर किसी परिसर में एक पेड़ लगाया जायेगा और पेड़ के ऊपर एक चिप्पी, लगाने वाले का नाम ! ...और आने वाली पीढी के दिमाग में शायद ये हलचल नहीं होगी की यहाँ एक बड़ा पेड़ रहा होगा और उसके तले किसी ऋषि ने विश्राम किया होगा... क्योंकि तब उसे किसी के नाम की चिप्पी वाला पेड़ दिखाई देगा !
~Abhishek Ojha~
- ये पूरी हलचल दिमाग में खिड़की से बाहर देखते समय हुई... पहले तो सोचा की ये भी कुछ पोस्ट करने की बात है... पर हलचल से ध्यान आया की मानसिक हलचल को तो ब्लॉग पर ठेलना होता है तो बस ठेल दिया !
- ये पोस्ट शेड्यूल कर दी है जब पब्लिश होगा मैं यात्रा कर रहा होऊंगा. यात्रा पूरी होने पर इस बकवास पर आने वाली आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार रहेगा.
- इस बीच प्रशांत प्रियदर्शी (पीडी) से फ़ोन पर बात हुई, मैंने उनके बारे में एक बात भी गेस कर ली :-) उनसे बात कर के बहुत अच्छा लगा... कमाल है ब्लॉगजगत भी. लगा ही नहीं जैसे पहली बार बात हो रही है... वही रांची-पटना टोन जो मेरा भी है... मेरे ख़ुद के टोन का तो पता नहीं पर उनका थोड़ा बदला सा लग रहा था... लगता है चेन्नई का असर है :-). पर फिर भी टोन तो पकड़ में आ ही गई. !
एतिहासिक पुरूषों को याद करते हुये पोस्ट लिखा अच्छा लगा, आपकी शेड्युल पोस्ट पर पहली टिप्पणी कर रहा हूँ, आमतौर पर इतनी सुबह ब्लाग पढ़ना नही होता है। पर आज हो ही गया :) हम भी जब गाँव जाते है तो पोस्टिग की टाईमिंग फिक्स कर जाते है 5-7 दिनों की :)
ReplyDeleteओझाजी,
ReplyDeleteइस पोस्ट को पढकर बहुत अच्छा हुआ । मैं पूणे केवल एक बार ही गया हूँ लेकिन वहाँ के साबूदाने वाली इडली का स्वाद अभी तक याद है :-)
मानसुन से लेकर बात निकली तो कहां कहाँ पहुँची । बहुत खूब ।
पीडी पर हम भी नजर बनाये हुये हैं, उनके ब्लाग पर लेखन में भी एक ट्रांजीशन सा दिख रहा है और एक विशेष प्रकार का ट्रेंड भी :-)
अब इसको पढकर पीडी सोचते रहें कि उन पर नजर रखी जा रही है :-)
हम लोग तो यात्रा में ड़र-ड़र नहीं भटकते। लेकिन इन महान लोगों की यात्राओं से तो लगता है कि पद-यात्रा का अपना अलग महत्व है आत्मविकास में।
ReplyDeleteअभिषेक - ऐसे ही - खिड़की के बाहर बहार देखो बाकी सब ब्राउनियन मोशन की कृपा रहेगी [:-)]
ReplyDeleteभविष्य की कोई ऐसी बानगी दिखाता है तो डर लगता है.... जंगल तो होंगे, कंक्रीट के..... उफ्फ्फ.... अभी क्या कम है...
ReplyDeleteसही है यह धीरे धीरे सिर्फ़ कंक्रीट के जंगल ही दिख रहे हैं यह सब बातें पढने की हो जायेगी या यह सब देखने कहीं दूर अनछुए इलाके में जाना पड़ेगा यदि कोई बचा तो ...जिसकी उम्मीद बहुत कम है ...पर इसको पढने से तुम उस कल्पना लोक में ले गए जो क्या पता कभी सच रहा है ....पढ़ते पढ़ते वही दृश्य चलचित्र से चलते गए जहन में ..
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट।
ReplyDeletelage raho abhisek bhayi :-)
ReplyDeleteलगता हे आप को भी ... तभी तो साथ साथ मे भगवान का नाम भी लेते जा रहे हो, कहते हेन भगवान का नाम लेने से डर नही लगता, बाकी भाई भगवान राम के पास तो नेविगेशन सिस्टेम था. फ़िर उन्हे नक्शे की क्य जरुरत पडती, आप का लेख पढ कर आज सभी भगवान को याद भी कर लिया, धन्यवाद, आज आप के बहाने हमारी पुजा भी हो गई
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteजवाब नहीं आपका.
शुक्रिया पहले पोस्ट ठेलने का ...हफ्ते में दो का तो हक बनता ही है...दूसरे सीधी - साधी बात को दिलचस्प बनाने का...जब कभी सूरत के समंदर से दूर हम यार दोस्त मोटरसाइकिल ले कर जाया करते थे तब ..हम भी कभी ये dialogue मारा करते थे की साला ये आदमी कहाँ से परेशां करने आ गये,आज आपकी पोस्ट पढ़ी लगा दुनिया एक जैसे लोगो से भरी पढ़ी है...
ReplyDeleteaccha laga padhna, aawara se khyaal...office ki khidki khuli hi rakhiyega, aisi aur bhi posts padhne ko milengi
ReplyDeleteअगर सिर्फ़ खिड़की से बाहर देखने से इतने एतहासिक महापुरुष याद आ गये तो अगर कहीं आप इन बादलों का मजा लेने पहाड़ पर ही चढ़ जाए तो क्या क्या हलचल होगी मन में। मालशेज घाट तो गये होगें है न? फ़ोटो बहुत अच्छी है और कुछ नहीं में से इतनी अच्छी पोस्ट निकाली तो लग रहा है कि गुरुदेव(ज्ञान जी) ठीक पढ़ा रहे हैं और छात्र (अभिषेक) भी बहुत मेधावी है। बाय द वे ये पोस्ट होम वर्क के रूप में लिखने को दी गयी थी। अब अगली पोस्ट अपनी यात्रा पर दीजिएगा।
ReplyDeletebhagawaan Ram ji ko nakshe kya jarurat thi unke pas Hanumaan ji udan khatola tha jo udakar raah batate jate the . esa maine padha hai .bahut badhiya post .
ReplyDeleteमहापुरुषों की मिसाल दे कर जो बयां अपने किया है वो काबिल-ऐ-तारीफ़ है...सावन को बड़ी खूबसूरती से उतरा है, साथ ही बहुत साडी जानकारी भी देती है ये पोस्ट, और जो फ़िक्र जताई है अपने वो सचमुच काबिले ज़िक्र है...धीरे धीरे हम अपनी खूबसूरती किस तरह खोते जारहे हैं ये अहसास बड़ा दुःख देता है...ये तसव्वुर ही जन लेवा दुःख देता है कि खुदा न करे कल हम अपनी इन खूबसूरतियों से महरूम हो जायेंगे...बहुत ही शानदार अभिषेक, बस आप इसी तरह लिख करें...और टाइम मिले तो हमारे यहाँ भी झाँक लिया करें...just joking...
ReplyDeletepd bhayi ke baare me ek baat batun khud to डेढ़ पंजरी dikhate hain par aawaj kafi bhari hai.maine kaha to hns pade.
ReplyDeletesach...khidki ke bahar janma antrik saundarya
ReplyDeleteयह यात्रा बहुत कुछ नया दे गयी।
ReplyDeleteVery good. सही हल्चला रहे हैं ओझा जी!
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