नयी जगहों पर जाते हुए मन में कहीं न कहीं चलता रहता है कि वहाँ खाने को पता नहीं क्या मिलेगा ! वैसे समय के साथ ये समस्या लगभग खत्म हो गयी है। मेरे एक दोस्त कहते हैं - 'ये ऐसा वेजिटेरियन है कि कुछ भी खा सकता है'। उनके कहने का मतलब मांस-मछली-अंडा के अलावा मैं कुछ भी लगभग निर्विकार भाव से खा लेता हूँ। जैसे सुना है कि सुट्टेबाज अजनबियों में अक्सर माचिस-सुट्टे को लेकर बातचीज शुरू हो जाती है... (होती होगी !) वैसे ही मेरा शाक-पात-भक्षी होना एक मुलाक़ात का कारण बना था, ग्रीस में, आइरिन से -
वैसे ये सुखद था कि ग्रीस में मुझे खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं हुई। शायद ये भी कारण रहा हो कि मैं जिन जगहों पर गया वो सारे विश्वप्रसिद्ध पर्यटक स्थल हैं । या एक कारण ये भी हो कि खाने में आधा किलो टमाटर, चीज के साथ सामने रख दिया जाना भी मुझे अच्छा ही लगा। टमाटर-चीज-शिमला मिर्च-बैंगन-दही-फल-ब्रेड-चावल- पास्ता... अब देखिये लिखना शुरू किया था तो लगा बस टमाटर और चीज ही तो खाने को मिलता था। पर लिस्ट लंबी होती गयी। कहने का मतलब ये कि दही-टमाटर-चीज की प्रमुखता रही पर दिक्कत वाली कोई बात नहीं थी। सैलेड के अलावा जेमिस्टा, केफेटेडेस, लंदर, फंदर जो भी नाम रहे हों व्यंजनों के एकाध बार छोड़ दें तो जीभ को भी कुछ खास शिकायत नहीं रही। मुझे लगता है कहीं न कहीं खान पान पर यूरोप के अलावा ओट्टोमान साम्राज्य और मध्य पूर्व की मिश्रित सभ्यताओं का असर इस ना-शिकायती का कारण रहा होगा। कहने का मतलब ये कि जीभ के गुलाम लोगों के लिए भी ग्रीस अच्छी जगह है।
खैर… खाने के चक्कर में आइरिन की बात अधूरी ना रह जाए. आइरीन से मुलाक़ात हुई थी एक खूबसूरत रेस्तरां में। मेरे अपने शाकभक्षी होने की बात वेटर को समझा चुकने के तुरत बाद पीछे से आवाज आई - 'हाउ लॉन्ग हैव यू बीन अ वेजिटेरियन?' मैंने मुड़कर देखा तो आइरिन मुस्कुराती नजर आई।
मैंने कहा - 'हाय ! आई वाज रेजड ऐज़ ए वेजिटेरियन सो... बेसिकली माई एंटायर लाइफ'
'वॉव ! यू नेवर ईवन ट्राइड? आई वाज अ वेजेटेरियन फॉर फ़्यू यीयर्स। बट देन... इट्स टफ।'
मैंने जवाब में मुस्कुरा दिया। शायद कोई बहुत छोटा उत्तर नहीं था मेरे पास जो एक अजनबी को दिया जा सके। पर जब आइरिन ने खुद ही अगले सवाल के रूप में जवाब देते हुए कहा - 'बिकॉज़ ऑफ अहिम्सा ?' तो बात आगे निकल गयी। इससे पहले मुझे याद नहीं कभी मैंने एक शब्द का उत्तर दिया हो अपने शाकाहारी होने के सवाल का। 'अहिम्सा' सुनकर बहुत सुखद अहसास हुआ.
बात आगे बढ़ी तो आइरिन ने बताया कि 'योगा ऐंड इन्दु फिलॉसोफी' में उसे रुचि है। कुछ क्लासेज भी की है उसने। दे इवन सर्व अ योगिक वेजिटेरिअन मील ओन वीकेण्ड्स.
'ऐंड वॉट अबाउट आयुर्वेड़ा?' उसने पूछा।
मैंने आइरिन को बताया कि मुझे आयुर्वेद की कोई ख़ास जानकारी नहीं। उसने पूछा 'व्हाइ? आई लव आयुर्वेड़ा ! यू हैव बीन टू केराला? व्हेयर आर यू फ़्रोम इन इंडिया?' बात अहिंसा से आयुर्वेड़ा पर आई तो मुझे समझ में आ गया कि इस लड़की को पर्यटक स्थलों पर भारतीय देखकर 'नामास्ते' और बिना रुके-थमे एक सांस में 'केसहेंयाप' कहने वालों से कहीं ज्यादा पता है। (एथेंस में एक गाइड ने हाथ जोड़ 'केसहेंयाप' कहा तो मुझे थोड़ी देर तक समझ नहीं आया कि वो क्या कह रहा है। फिर उसने पूछा यू नो हिन्दी? तब समझ में आया कि वो 'कैसे हैं आप' कह रहा था।)
मैंने आइरिन को अपने तरीके से समझाया कि मुझे आयुर्वेद की जानकारी इसलिए भी नहीं क्योंकि मुझे उसकी कभी जरूरत नहीं पड़ी। वैसे तो मैं बहुत उत्सुक इंसान हूँ पर दुनिया में कई चीजें ऐसी हैं जिनका मैं अनुभव करना नहीं चाहता। चिकित्सा भी वैसी ही एक चीज है - वो चाहे आयुर्वेद हो या कुछ और। जैसे मान लो मेरे पास कुछ दवाइयाँ पड़ी हैं। मेरे हिसाब से उनका सबसे अच्छा उपयोग होगा कि वो पड़ी-पड़ी खराब हो जाएँ ! सबसे अच्छा उपयोग कि वो उपयोग में आए ही न । अब जैसे मेरे मेडिकल इन्स्युरेंस का सबसे अच्छा पैसा वसूल यही तो होगा कि वो बिन इस्तेमाल हुए मेरी जगह बीमा कंपनी का ही फायदा करा दे? मैं नहीं चाहता कि वो बेकार जा रहे पैसे वसूल करने की कभी नौबत आए।
आइरिन को मेरी बात अच्छी लगी। उसने पूछा 'बट व्हाट अबाउट योगा ऐंड आयुर्वेड़ा ऐज़ वे ऑफ लिविंग?'
मैंने आइरिन को समझाया कि बहुत तो नहीं पर हां जिस तरह मैं पला बढ़ा कुछ वे ऑफ लिविंग की बातें 'बाई डिफ़ाल्ट' ही पता होती जाती हैं - अनकोंसियसली... नॉट एक्सपर्ट बट यू नो वॉट आई मीन। मैंने सोचा कि अब घर की बात क्या बताई जाये उसे पर सच्चाई तो ये है कि हमारे देश में हर दूसरा इंसान ही वैद्य होता है।
थोड़ी इधर उधर की बात हुई तो आइरिन ने पूछा - 'यू डोंट ड्रिंक ऐज़ वेल? यू डोंट नो माई फ्रेंड वॉट यू आर मिसिंग'।
फिर आइरिन ने मुस्कुराते हुए मुझे एक टंगा हुआ बोर्ड दिखाया जिस पर लिखा था “A man who drinks only water has a secret to hide. - Charles Baudelaire"
मैंने कहा - आई डोंट नो, इफ आई कैन कीप माई सिकरेट्स आफ्टर अ ड्रिंक ऑर नॉट... बट ऐज़ यू सेड़ आई डोंट नो वॉट आई एम मिसिंग ! और जब मुझे पता ही नहीं कि मैं क्या मिस कर रहा हूँ क्या नही तो फिर उस चीज की कमी कैसे हो महसूस हो सकती है? कभी किया होता तब तो अच्छा, बुरा या फिर मैं क्या मिस कर रहा हूँ ये पता चलता ? मैंने आइरिन को समझाया कि 'आई डोंट नो वॉट आई एम मिसिंग' भी एक उत्तर है कि मुझे क्यों कभी ट्राई करने की जरूरत नहीं पड़ी। गुड टिल आई डोंट नो.
"बट देन हाउ विल यू एवर नो हाऊ ईट फील्स लाइक? दिस वे यू कैन नेवर फील फ़्यू थिंग्स। "
मेबी आई डोंट नीड़ टू ! आई नेवर फेल्ट दैट आई शुड। शायद मुझे कभी इनकंप्लीट लगा नहीं क्योंकि 'आई डोंट नो वॉट आई एम मिसिंग'। मैंने आगे कहा कि कैसे ये आइरिन के लिए समझना कठिन हो सकता है. जिसकी कभी आँखें रही ही नहीं वो कैसे सोच सकता है कि जो देख पाते हैं वो क्या देखते होंगे? अच्छा, बुरा या मिस करने का सवाल ही नहीं उठता। बात वैसी ही है कुछ. मैंने उसे समझाया कि जब मैं अपने उन दोस्तों के साथ जाता हूँ जो - प्याज, लहसुन, दूध तक नहीं खाते ! मुझे तुरत लगता है कि ये खाते क्या हैं फिर? इन्हें तो पता ही नहीं स्वाद क्या होता है? ये जिंदा कैसे रहते हैं? मैं भी वैसा ही हूँ तुम्हारे लिए. पर कहीं न कहीं जो नहीं जानते कि वो क्या मिस कर रहे हैं उनके लिए आसान है वैसे ही बने रहना। पर एक बार कुछ जीवन का हिस्सा बन जाये फिर उसे छोडते हुए आपको पता होता है कि क्या जा रहा है जिंदगी से क्या नहीं। बीलीव मी, इट्स गुड समटाइम्स नॉट टू नो वॉट वी आर मिसिंग ऑर नॉट मिसिंग।
ऐसा लगा जैसे आइरिन को फिर मेरी बात पसंद आई।
उसने बताया कि वो कुछ साल तक वेजिटेरियन रह चुकी है। इंडिया से लौटने के बाद। - आई हैव बीन टू इंडिया - केराला, रिचिकेश, वारानासी ऐंड माडुराई।
मुझे बहुत खुशी हुई। अब पता चला कि उसे इतना कैसे पता है. आइरिन ने आगे बताया... वो पहली बार भारत गयी आयुर्वेद के लिए। दुबारा ब्रेकअप होने के बाद 'योगा कैपिटल रिचिकेश'। जब उसके सारे दोस्तों की शादी होने लगी और वो अकेली, टूटी, अवसाद में डूबी, सब कुछ खो जाने के बाद. उन दिनों उसे किसी ने उसे ऋषिकेश जाने की सलाह दी। तब वो बत्तीस साल की थी.
"इट वाज सो डेंजरस बट आई टूक अ डीप इन गैन्गीज।" उसके बाद उसी यात्रा पर वो अपने होने वाले पति से मिली मदुरै में ! किसी फिल्मी कहानी की तरह मैं आइरिन की बातें मंत्रमुग्ध सुनता रहा। ही इज फ्रॉम रोमानिया। लाइफ हैज बीन काइंड आफ्टर दैट. आइरीन ने मुझे अपनी बेटी की फोटो भी दिखाई - ईट वाज हर सेकंड बर्थडे लास्ट मंथ.
उसके पति नौकरी ढूंढ रहे हैं। क्राइसिस में आसान नहीं है, ऊपर से कैपिटल कंट्रोल। ... बट आई हैव सीन सो मच दैट... आई डोंट वांट टू डू एनिथिंग स्टुपिड अगेन।
मैंने सतही सा घिसा पीटा दिलासा दिया - डोंट वरी... सब ठीक हो जाएगा.
'विल यू गो अगेन टु इंडिया?' मैंने पूछा
'आई डोंट नो ! लाइफ हैज़ बीन सो अनप्रेडिकटेबल सो फार। आई वांट टू... मेबी वंस माई डाटर ग्रोज अप'
आइरिन ने मुझसे पूछा - 'यू? विल यू कम अगेन टू ग्रीस?' हाउ डू यू लइक इट?'
'वंडरफुल सो फार. अबाउट कमिंग अगेन... आई डोंट नो. प्रॉबब्ली नॉट बट देन… हु नोस ! फ्यू इयर्स बैक आई वुड हैव नेवर इमेजिनड आई विल एवर कम टु ग्रीस!'
"यू लूक वेरी काम ऐंड फिल्ड। लेट मी गेस समथींग, यू हैव नेवर बीन इन लव? ऐंड यू हैव नेवर बीन विथ समवन रियली स्टुपिड?"
"वॉट मेक्स यू थिंक दैट?"
'लव बिकौज…अटैचमेन्ट्स माई फ्रेंड ! दे रूईन एव्रिथिंग -अ मेजर पार्ट ऑफ़ यू. ऐंड… यू हैव नो आइडिया अबाउट फूलिश ऐंड ओब्स्टिनेट पीपल माई फ्रेंड !'
मैंने बस मुस्कुरा दिया... एक शब्द का उत्तर सुझा नहीं और फिर बात लम्बी हो जाती !
...
दुनिया के हर कोने में लोगों की कहानी एक जैसी ही होती है। बस कहने और सुनने वाले होने चाहिए। …खोना, पाना, गलतियाँ, संघर्ष, प्यार, सुख, दुःख, जीना सीखना... आइरिन की कई बातें ऐसी लगी जैसे पहले भी कई लोगों के मुंह से सुनी हो। वैसे लोगों के दुःख की बातें भी होती हैं जिन्हें देखकर हमें लगता है - 'इन्हें भला क्या दुख होगा !' प्यार मुहब्बत किसी को इतना कैसे तोड़ सकता है. लगता है जिन्हें कोई दुःख नहीं अचानक वही सबसे अधिक दुखी दिख जाते हैं ! अधुरे...
आइरिन से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। बहादुर ! किसी ने कह दिया तो भारत तक चली जाने वाली -गंगा में डुबकी लगा आने वाली. रोमानियन को मदुरै में पा लेने वाली. कई बार मैं लोगों के दुःख सुन अक्सर अपने अंदर खुद से कह देता हूँ - जिसके पास होता है वही रोता है - 'हसीन दुःख' - पर आइरीन से मिल लगा वो मेरी नासमझी है !
खैर… मुस्कुरा के बात ख़त्म करते हैं नहीं तो बात फिर लम्बी हो जायेगी :)
मेरे पास आइरिन का कोई संपर्क नहीं, न उसके पास मेरा। अच्छी मुलाकातों को 'इट वाज अ प्लेजर मीटिंग यू' पर ही खत्म हो जानी चाहिए। - …अटैचमेन्ट्स माई फ्रेंड !
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~Abhishek Ojha~
किसी अपने ने कहा - इतनी जगहें गए... ग्रीस ही क्यों? उसी यात्रा पर और भी जगहें थी?
पता नहीं ! वैसे ही जैसे पुणे, बैंगलोर, मुंबई, दिल्ली… ये सब भी तो गया. कई बार… और पटना? एक बार ! :)
मैंने भी मुस्कुरा के पढ़ना खत्म किया....
ReplyDeleteवाह!!!!!
और हाँ, धन्यवाद. सही लेख सही समय पर पढ़ने को मिला... यू नो.. :)
ReplyDelete"अच्छी मुलाकातों को 'इट वाज अ प्लेजर मीटिंग यू' पर ही खत्म हो जानी चाहिए"
ReplyDeleteहम भी यही चाहते हैं और ये भी कि दूसरी पार्टी भी हमें ’मिस’ न करे।
शुभ लाभ ।Seetamni. blogspot. in
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .keep it up..achhiBaatein.com
ReplyDeleteरोचक प्रस्तुति ...
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