लोग भी गजब के स्वयं-विरोधाभासी व्यक्तव्य देते हैं. कई बार मुझे लगता है कि अगर लोगों से बातचीत करना भी गणित के सवालों की तरह होता तो चुपचाप सुनने की जगह एक 'उल्टा टी'* उनके चेहरों पर चिपका कर 'हेंस प्रूव्ड़' कह देता.
इस सप्ताह एक कॉन्फ्रेंस में जाना हुआ. सूट-टाई पहनकर भारी-भारी शब्द फेंकने (मौके की नजाकत देखते हुए फेंकना बोलने-सुनने से बेहतर शब्द लग रहा है) वाले लोग. ऐसे कॉन्फ्रेंस में गज़ब का खेल होता है. गंभीर मुद्रा बनाकर भारी-भारी शब्दों को यूं फेंकना होता है कि सामने वाला कुछ रोक ही ना पाये. जब तक कोई एक शब्द रोकने की कोशिश करे अगला फेंक दो. सामने वाला भी थोड़ी देर में डर कर झुक लेता है: निकाल जाने दो ऊपर से. लेकिन उसके बाद अगर निद्रा देवी के आशीर्वाद से जो बच गए वो गंभीर मुद्रा तो ऐसी बनाते हैं जैसे सब कुछ समझ रहे हों. मैं तो कहता हूँ कि ऐसे कॉन्फ्रेंसों में इस्तेमाल होने वाले शब्दों के वजन पर भी शोध किया जा सकता है. मुझे लगता है कि अगर इंसानी समझ के लिए शब्दों का औसत वजन 100 ग्राम हो तो कम से कम औसतन 2 किलो के शब्द तो ऐसे कॉन्फ्रेंस में इस्तेमाल होते ही हैं. मजे की बात तो तब होती है जब लोग उनपर चर्चा भी करते हैं और आपको पता चलता है कि वो जो बोल रहे हैं उसका असली बात से कोई लेना देना ही नही. बिन समझे भी लोग गज़ब के आत्मविश्वास के साथ बोल लेते हैं.
एक सज्जन दो-चार एकाध क्विंटल वजन वाले समीकरण की स्लाइड दिखाने के बाद बोले "10-15 साल पहले क्या ये संभव था कि हम ऐसे तरीकों से चीजों को देख पाते ? हम खरतों को टाल तो नहीं सकते पर हमने उन्हें देखने का नया तरीका निकाला है। और इससे हमें आत्मविश्वास तो मिलेगा ही". अब अपना-अपना नजरिया है. वो होंगे वालस्ट्रीट के डॉन. मैंने तो अपने पड़ोसी से कहा कि क्या हरबार यही भविष्य देख लेने के 'आत्मविश्वास का भ्रम' नहीं डुबा देता है? हमारे कॉन्फ्रेंसीय पड़ोसी जेनेवा से कॉन्फ्रेंस अटेंड करने आये थे. फटाफट मेरी ये बात भी डायरी में लिख डाले. बड़े जोश में डायरी में लिख रहे थे. हमने तो सोचा कि फ्री में एक अच्छी सी डायरी और खूबसूरत कलम मिली है तो कुछ अच्छा उपयोग करेंगे क्यों वजनी समीकरण लिख के बर्बाद करें. वैसे मेरा तो मन ये भी हुआ कि अपने पड़ोसी से पूछ लूं “ऐसे कांफेरेंस के लिए जब कोई कंपनी जेनेवा से न्यूयोर्क बिजनेस क्लास और फाइव स्टार का बजट निकाल रही है वो क्यों दिवालिया नहीं होगी?” लेकिन इडस्ट्री के मुलभुत सिद्धांतों पर सवाल नहीं उठा सकता
मुझे लगता है कि ‘सर्वज्ञ होने के भ्रम से उपजा आत्मविश्वास’ बहुत घातक होता है. जिसे भी लगता है कि मुझे सबकुछ आ गया… वो तो गया काम से. क्या सफल होने के बाद लुढकने वाले अक्सर इसी भ्रम के शिकार नहीं होते? यहाँ मुझे उन महाशय की कही गयी बात में ही विरोधाभास दिखा. फिर जब उन्होंने अपने नए मॉडल की बात की और दिखाया कि कैसे उनका मॉडल उन्ही के पुराने मॉडलों से कई गुना बेहतर है तो मेरा सर चकराया. लोग भी नए वाले से जुड़े सवाल ही पूछ रहे थे. मेरा तो मन हुआ पूछ लूं “मान लिया कि नया वाला बहुत अच्छा है पर ये बताओ कि अब तक क्या मॉडल के नाम पर कचरा बेचते थे?”
ये होता है अपने ही बात में विरोधाभास. अब कुछ लोगों को ज्ञानी होने का ही घमंड होता है. कुछ को संस्कारी होने का. ज्ञानी और संस्कारी के साथ घमंड का सम्बन्ध ! डेडली कॉम्बो नहीं है? वैसे ही है जैसे कोई कह रहा हो कि ‘साले मैं बहुत विनम्र इंसान हूँ, मान लो नहीं तो सर फोड दूँगा !’ सोचिये कोई कह रहा हो ‘अबे हम तुम्हारे जैसे नहीं हैं. हम विद्वान हैं. चार संस्कृत के श्लोक ठोके और साथ में दो ग्रीक फिलोसोफर के भी ठोक दिए अब हमारी बात मान लो… नहीं तो अब तुम भी ठोक दिए जाओगे.’
एकाध क्विंटल के समीकरण और संस्कृत-ग्रीक की दार्शनिकता सर्वज्ञ होने का भ्रम पैदा करे उससे बेहतर तो अज्ञान बने रहकर और फूंक-फूंक कर कदम रखने में ही बुद्धिमता नहीं है? सुना है जहाँ घर-घर में लोगों को पता है कि भ्रूण हत्या क्या है उन्हीं जगहों पर लिंग अनुपात ठुका हुआ है?
वैसे ही पिछले वीकेंड एक ‘इन्टरनेट मित्र’ मिले. न्यूयोर्क में अपने एक सीनियर के यहाँ रुके हुए थे. मुझ मिले तो अपने सीनियर के बारे में उन्होंने बोलना चालु किया: ‘उसकी वाइफ *** $^$%^…, उसके यहाँ कोई आये तो उसे अच्छा नहीं लगता. &*(& है. ’ मैंने से कहा तो ज्यादा नहीं लेकिन सोचा जरूर कि वो भी अपनी कोई अच्छी इमेज तो नहीं छोड़ गए !
अब ऐसे ही २ टन मेकप और ४ गैलन परफ्यूम में नहाई हुई लड़की किसी और लड़की को दिखाकर कहे कि देखो उसने कितना मेकप किया है, तो ? मैं तो बस गारंटी ले सकता हूँ कि मैं ऐसी लड़की से मिला हूँ और अगर अतिशय परफ्यूम से फेफड़ों को कुछ होता तो मैं आज ये पोस्ट नहीं लिख रहा होता. (गनीमत है मेरे ब्लॉग की बातें उस तक नहीं पंहुचाती और वो तो नहीं ही पहुचेगी यहां तक).
कुछ ऐसे लोगों से मिलना भी हुआ है जिनका ऐश्वर्य और सम्पदा देख कर बड़े अटकलबाज भी उनकी संपत्ति का अंदाजा नहीं लगा सकते. और जब वे ही पूछ लेते हैं कि लोग भ्रष्ट क्यों होते हैं? ऐसा सवाल कि आप को डाउट हो जाए कि ‘भ्रष्ट माने? एक्सक्यूज मी? यू मीन करप्ट?’
जब कोई खर्राटे मार रहा हो और सहसा कहे कि मैं सो नहीं रहा तो फिर भी समझ में आता है. लेकिन अगर कोई आपसे बात करते-करते कहे कि वो पिछले तीन घंटों से नींद में है. तो डाउट तो हो ही जाएगा कि नींद से उसका मतलब क्या है !
कई लोग एक साथ रोते हैं कि तनख्वाह भी कम है और टैक्स भी ज्यादा भरना पड़ रहा है ! फेसबुक और ट्विट्टर पर लोग लिखते हैं कि वो ऑनलाइन नहीं आ पा रहे.
लोगों के खुद की बातों में ही गजब की विसंगति हैं. अरे जब आपके एक-एक अणु-परमाणु ये साबित कर रहे हैं कि आप आरडीएक्स यानी 1,3,5-Trinitroperhydro-1,3,5-triazine हो तो आप क्यों कहने में लगे हुए हैं कि नहीं मैं फिटकरी यानी potassium aluminum sulfate dodecahydrate हूँ. आप ऐसा कहेंगे तो लोग आपको फिटकरी नहीं माने लेंगे. हाँ ये हो सकता है कि इश्किया फिल्म वाला सल्फेट जरूर मानने लगेंगे
लो ! इस बीच ‘मॉडल बनाम मॉडल’ वाली बात तो रह ही गयी. उस कॉन्फ्रेंस के बाद मॉडल बेचने वाली टीम आई. और फिर एक नयी बात पता चली. वास्तव में मॉडल बेचने के लिए अच्छे मॉडल होने जरूरी हैं. भले वो बिकने वाले मॉडल हों या उन्हें बेचने वाली मॉडल ऐसा भी हो सकता है कि मीटिंग में आपसे कोई पूछ ना ले कि मॉडल भी देखोगे या मॉडल ही देखते रहोगे? यहाँ एक मॉडल गणितीय/वित्तीय वाले हैं और दूसरे तो आप भली-भाँती जानते ही हैं. ऐसा ही यमक अलंकार का उदहारण मेरे फेसबुक पर भी इस रूप में है:
All you need is a good 'model' to sell a not so good 'model'
--
~Abhishek Ojha~
very true... Its all in wit.
ReplyDeleteIf you can make something look good, even if it is not good than also its good :D
अद्भुत!
ReplyDelete'भल्ड'-क्लास मॉडल पोस्ट!
अबे हम तुम्हारे जैसे नहीं हैं. हम विद्वान हैं. चार संस्कृत के श्लोक ठोके और साथ में दो ग्रीक फिलोसोफर के भी ठोक दिए अब हमारी बात मान लो… नहीं तो अब तुम भी ठोक दिए जाओगे.
ReplyDelete"विरोधाभासी होना हिन्दुस्तानियों का मौलिक अधिकार है "
ReplyDeleteऐसे कई महानुभाव कंप्यूटर की दुनिया में भी अपनी उपस्थिति गर्व से दर्ज करा रहे है .........खैर ....पोस्ट मजेदार है .....खालिस ब्लोगिया पोस्ट ....याने के ब्लॉग का सही इस्तेमाल.............
गज़ब!
ReplyDeleteएकाध क्विंटल के समीकरण और संस्कृत-ग्रीक की दार्शनिकता सर्वज्ञ होने का भ्रम पैदा करे उससे बेहतर तो अज्ञान बने रहकर और फूंक-फूंक कर कदम रखने में ही बुद्धिमता नहीं है?
ReplyDeleteफिर महाज्ञानी होने का गर्व कहाँ से आएगा...वो डेडली कॉम्बो :)
स्वयं को शंकराचार्य और सामने वालों को मूढ़ात्मा, इति सिद्धम्।
ReplyDeleteघणी देखी है ये स्यूडो इण्टेलेक्चुअलई। यहां हिन्दी ब्लॉगरी में तो और घणी है।
ReplyDeleteबाकी, कंफेशन की बात यह है कि कभी कभी (मजे मजे में) खुद भी खेला है यह खेला! :)
"सर्वज्ञ होने के भ्रम से उपजा आत्मविश्वास बहुत घातक होता है"
ReplyDeleteअब टिप्पणी क्या करें जी..
शिवकुमार भाई की टीप को नक्की किये देते हैं !
एक एक वाक्य पर दोनों हाथों को कनपट्टी पर सटा सटा के फोड़ फोड़ के बलैयां लेने को मजबूर कर दिए बबुआ....
ReplyDeleteमिजाज चकचका गया...ओह...जबरदस्त...
अब कौन लाइन उठायें सबाशी देने को और कौन छोड़ दें...????? बताओ...
क्या बात हे, अपना ब्लाग जगत तो इन से भरा पडा हे जी, अरे ब्लाग जगत क्या सारा हिन्दुस्तान ही
ReplyDeleteमैं ही मैं हूँ इस सृष्टि में
ReplyDeleteऔर न कोई इस दृष्टि में
ऐसा भाव किसी का पाकर.....
मन ये सोचे रह रह कर...... मॉडल बनाम मॉडल
*** $^$%^…, &*(& =
ReplyDeleteइस सूत्र का मतलब स्पष्ट कीजिये - :)
कहाँ कहाँ की बात कहाँ तक चली गयी ...
Its always great to read your blog . mai pichale kaee salon se lagatar aapka blog padta raha hoon . this post is very very good. bahut hi achhi aur shaandar post .
ReplyDeleteRegards--
Gaurav Srivastava
आलेख से सहमत होते हुए भी सोच रहा हूँ कि मेरे जैसे आम लोगों के सामने विकल्प ही क्या हैं? विशेषज्ञों (और विभिन्न मॉडलों) का विश्वास करना ही पडता है।
ReplyDeleteऐसे मॉडल पोस्ट पर मॉडल टिप्पणी तो कोई मॉडल ही कर सकता है, अत: हमारे भरोसे मत रहियेगा।
ReplyDeleteऐसे कॉन्फ्रेंस में गज़ब का खेल होता है. गंभीर मुद्रा बनाकर भारी-भारी शब्दों को यूं फेंकना होता है कि सामने वाला कुछ रोक ही ना पाये. जब तक कोई एक शब्द रोकने की कोशिश करे अगला फेंक दो. सामने वाला भी थोड़ी देर में डर कर झुक लेता है: निकाल जाने दो ऊपर से. लेकिन उसके बाद अगर निद्रा देवी के आशीर्वाद से जो बच गए वो गंभीर मुद्रा तो ऐसी बनाते हैं जैसे सब कुछ समझ रहे हों.
ReplyDeleteमज़ा आ गया! एकदम मेरी पसंद की पोस्ट! बिलकुल सही औब्ज़र्वेशन है!
केवल सत्य
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
मै पढता जारहा था और सोचता जारहा था कि इनमें माडल कहां है। एक भारी भरकम शब्द फैकने वाले से हम भी मुलाकात कर चुके है। मॉडल भी देखोगे या मॉडल ही देखते रहोगे क्या बात है
ReplyDeletebook mark bechare pr kya gujri..kitaab to jo royi so royi..:-)
ReplyDeleteaap hamesha se hi achha likhte hain...par har baar maine pratikriya nahi ki...iske liye kshama chahti hu...har baar mai lekhan me kavitv hi khojti rahi....
ReplyDelete"ऐसे कॉन्फ्रेंस में गज़ब का खेल होता है."
ReplyDeleteएकदम 100 फ़ीसदी सहमत :)
अभी क्रिकेट में रेफरल सिस्टम पर बवाल मचा हुआ है, उसमे भी अम्पायर जब डिसीजन थर्ड अम्पायर को रेफर करता है तो 'टी' का प्रतीक बनाता है...... यहाँ तो पहले से ही उल्टा 'टी' बना हुआ है........ !!!! हम भी उल्टा टी बनाते है और कह देते हैं इति सिद्धम!!!
ReplyDeleteविसंगतियों के बहाने अच्छी क्लास।
ReplyDelete---------
रहस्यम आग...
ब्लॉग-मैन पाबला जी...
Sahee kaha bandhu model bechane ke liye achchi model chahiye .
ReplyDeleteJordar post.
सूझ भरी उक्ति.
ReplyDeleteअच्छा हुआ आप भी कांफ्रेंस के असली मॉडल नहीं समझा रहे थे पोस्ट में...हमारी गणित थोड़ी पैदल है.
ReplyDeleteकांफ्रेंस और उसमें होने वाली (दुर)घटनाओं का सही प्रक्षेपण किया है आपने. :)
हम पढ़ कर 'हेन्स प्रूव्ड' वाली स्थिति में पहुँच गए.
vinamrata ka sateek exemple diya aapne...bhari bharkam sabdon par research ka khyal b bura nhi h....carry on.................
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