May 18, 2010

सी-थ्रीफाइव पोटाचियो घूघूरियानों (भाग 1)

हेडनोट: शीर्षक एक खुराफात जनित अद्द्भुत फ्यूजन रेसिपी का प्रस्तावित नाम है.

कुछ दिनों पहले अपने बॉस के बॉस के साथ एक पाँच सितारा भोज में जब उनके खास अनुरोध पर तैयार किया गया एक विकराल सा नाम धारण किए हुए व्यंजन जब चार बैरे लेकर आए तो हमें लगा कुछ तो बात होगी इसमें. एक सूट बूट वाले सज्जन ने 2 मिनट तक समझाया भी उस अद्भुत व्यंजन के बारे में. मुझे तो यकीन हो चला कि पंचतंत्र वाले भारुंड पक्षी की तरह का कोई अमृत-फल है इसमें. अब शाकाहारी इंसान दैवीय फल और घास फूस की ही तो कल्पना कर सकता है... चीता की तो नहिए करेगा? खैर... जब हमनेभंटा चखा तो ससुर भंटा निकला. अरे वही जिसे आजकल लोग एग प्लांट कहते हैं. आप जो भी कहते हों हमें तो भंटा नाम ही पसंद है. घर लौकर बताया... 'आज ल मेरीडियन से भंटा खाके आया हूँ कितने का मत पूछना'. पहली प्रतिक्रिया... 'तुम साले गंवार ही रहोगे ! अपरिसिएट करना सीखो'

फिर एक दिन टोसकाना में कुछ इटालियन रैसिपि मिली किसी जेट विमान के नाम की तरह. नाम में क्या रखा है टाइप्स सोच के एक बार फिर नाम भूल गया. पर जब स्वाद भी याद करने लायक नहीं मिला तो लगा... 'जो भी कुछ रखा है नाम में ही है... बाकी जो थोड़ा बहुत रखा है वो कीमत में'. अगर नहीं रखा होता तो फिर क्यों सबने निपट आलू टमाटर को बढ़िया आइटम कह दिया?... खैर हमने भी सहमति में सर हिला ही दिया. वैसे पुणे में शनिवार की रात... हमारी उम्र के अधिकतर लोगों के पैसे तो क्राउड़ ही वसूल करा देती है. खैर... इस पर फिर कभी.

कुछ दिनों बाद हमारा गैस ख़त्म... अरे भाई गैस रखा है यही क्या कम है? 'सप्ताह के दो दिन अगर बढ़िया मुहूर्त और मन रहा तो कुछ बना लिया' वाले मामले में बैकअप सिलिंडर रखने का सवाल ही नहीं उठता है. अधपकी दाल फेंक दी गयी [अब अरहर की ही थी लेकिन क्या कर सकते थे? :) वैसे सुना है इस अक्षय तृतीया के दिन सोने को अरहर की दाल की खरीदारी ने तेजी से रिपलेस किया है. सच है क्या?]. उबला आलू और हरा मटर जीरा संग थोड़ी देर भुना गया था. उसे वैसे ही छोड़ बाहर खाने चले गए. अब आधी रात को एक अतिथि-कम-मित्र आ गए अब इस ग्लोबल जमाने में देर-सवेर टाइप की कोई चीज तो होती नहीं. रात को दो ही जगहें बचती हैं जहाँ खाने को कुछ मिल सकता है. एक स्टेशन और दूसरी एक जगह है जहाँ थोड़े ज्यादा ही शरीफ लोग जाते हैं. तो फिर? काली मिर्च और नमक छिड़ककर हमने परोस दिया. (यहाँ छिड़कना कुछ सभ्य शब्द नहीं लग रहा... वैसे किया यही था पर स्टाइल में कहूँ तो उसे आवश्यकतानुसार काली मिर्च, नमक, अदरख और धनिया से सजाकर गरमागरम परोसा था... सॉरी गैस नहीं थी तो आखिरी वाली बात गलत है, पर इतना तो चलता ही है. जैसे कल गोवा-तवा-भिंडी-फ्राई ऑर्डर किया तो उसमें भिंडी मिली ही नहीं !).

'ये क्या है बे?'

'अरे वो आज एक इटालियन रैस्टौरेंट गया था तो वहीं से पैक करा लाया'

'बढ़िया आइटम है... क्या नाम था?'

'सी-थ्रीफाइव पोटाचियो घूघूरियानों'... और एक बार फिर लगा नाम में ही सब कुछ रखा है. इस बार मेरा मन किया बोल दूँ... 'साले गंवार ही रहोगे'. पर यहाँ तो मामला उल्टा था. खैर... हर शुक्रवार को हम अपने ऑफिस वालों के साथ बाहर खाने जाते हैं और धीरे-धीरे कितना महंगा महंगा होता है ये समझ ख़त्म हो रही है. और अब शायद अपना गंवारपन इस बात से चला गया है कि 'ये इतना महंगा क्यों है'. पर अब भंटा को भंटा नहीं तो क्या आम कहेंगे ? :)

नसीम तालेब कहते हैं: 'You will be civilized the day you can spend time doing nothing, learning nothing, & improving nothing, without feeling slightest guilt.' और मैं श्री गिरिजेश राव के ब्लॉग पर बड़ो की बात एक बार फिर पढ़ के आता हूँ.

फूटनोट: मेरे फ्लैट का नंबर है 'सी-तीन. पाँच सौ दो' लेकिन स्टाइल में 'सी-थ्री फाइव-ओ-टू' कहना पड़ता है. बाकी आलू और हरे मटर को पोटैटो और घूघूरी तो आपने डिकोड कर ही लिया होगा. 

--

'…अच्छा तो तुम्हें ये भी आता है? एक कुशल गृहणी के सारे गुण है तुममें :)'

'तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि ये काम सिर्फ लड़कियों को ही करना चाहिए? '

'सॉरी आई डिड्न्ट नो दैट यू आर ए फ़ेमिनिस्ट... '

'अरे सुनो तो... '

'नहीं रहने दो... ' ये एक नयी बात और देखने को मिली.

--

(जारी...)

~Abhishek Ojha~

32 comments:

  1. अपना बचपन का यार भटा ये नाम भी धारण कर सकता है, कभी सोचा न था।

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  2. वाह! क्या डिश बनाई..वैसे तो भटा डेलिकेसी है ...फाईव स्टार में. :)


    जारी रहो!

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  3. असली नमवा तो बता दिए होते ....चलिए आगे का इंतज़ार करते हैं ....

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  4. उपयोगी सामग्री।

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  5. मस्त पोस्ट। मजा आ गया (खाने में भंटा मुझे सो सो लगता है लेकिन यह पोस्ट सुपर्ब !)
    @ ससुर भंटा &
    हमारी उम्र के अधिकतर लोगों के पैसे तो क्राउड़ ही वसूल करा देती है.

    जल्दी से बियाह कै लो। कब तक 'भंटा' को 'ससुर' कहते रहोगे :) वैसी क्राउड सभी उमर के लोगों के पैसे वसूल करा देती है - कोई कुबूल कर लेता है तो कोई गूँगे के गुड़ जैसा आनन्द लेता है। .. पुणे मेरा पसन्दीदा शहर है। कमबख्त कम्पनी वाले वहाँ पोस्ट ही नहीं करते :(
    कब तक भभकती लालटेनों को देख उजाले की कल्पना करते रहोगे बीड़ू । एक लालटेन को ब्याह कर लै आओ, फ्लैट घर हो जाएगा और शाम की दिया बाती अलग सा सुख दे जाएगी। नया ज़माना है दोनों साथ साथ दिया बाती करना।
    ... अतिथि देव को खूब बनाया। हम आएँगे तो खाना पैक करा कर लै आएँगे। 'वेज पकाना' ;) नहीं समझ आया?
    हमारे इलाके के परिचित एक 'गँवार' जज साहब रुड़की में पोस्टेड थे। उन लोगों को वीक एंड का गोहरा वाला व्यंजन बड़ा अजीब लगता था। बेइज्जती न खराब हो इसलिए 'लिट्टी चोखा' को 'वेज पकाना' बोलते थे। अब तो ललुआ ने असल नाम ही मशहूर कर दिया।
    .. आप फेमिनिस्ट हैं ? नहीं पता था ;)

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  6. हम लोगों का ऐसा ही है, अपनी चीज़ों को appreciate नहीं करेंगे लेकिन कोई और थोडा समझाकर कुछ और नाम बता दे और कहे की विलायती है या अनाप शनाप दाम बताये तो ऊपर से नीचे तक appreciate करेंगे!

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  7. भांटा देसी इस्टाइल में भून कर खिलवा दीजिये कोई चयनीज नाम देकर देखिये आप भी हिट हो जायेंगे....
    मजेदार पोस्ट.

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  8. oye ye to wahi italian dish hai na jo tum logon ne mujhe khilayi thi!!!

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  9. @Vaibhav: हाँ वही वाली ;)

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  10. अच्छा व्यंग लिखने लगे हैं आजकल आप

    ....आपके सिक्किम वाले झरने के फोटो को लेकर प्रशांत भईया कुछ सवाल पूछने वाले थे ..

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  11. बहुत मजा आया पढ़कर।

    इस पर याद आया इसी रविवार के अखबार मे एक ऐसी ही रेसिपी दी गयी थी raw brinjal and green chilli और पढने पर वो निकला बैगन का भरता जिसे जरा स्टाइल से लिखा गया था। :)

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  12. टैको बेल गये, मेक्सिकन खाने । अच्छा नाम ढूढ़ा बरीटो (!!) । खाया तो रोटी में सब्जी भर के बिल्कुल कट्टू जैसा । बचपन में माँ खिलाती थी । माँ की याद आ गयी और आँखों में आँसू । पुत्र पूँछ बैठा क्या ज्यादा महँगा था, पिताजी ।

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  13. "सी-थ्रीफाइव पोटाचियो घूघूरियानों अरे ऎसे नाम लोगे तो भूख ही मर जायेगी, सीधे कहो ना अध पका बेंगन, लेकिन भाई आप जब पंजाब का बेंगुन का भ्रराथ खायेगे तो यह पांच सात सितारे सब भुल जायेगे जी, मजेदार लगी आप की यह पोस्ट

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  14. भंटा.......ओह ,मजा आ गया...
    मेरी पसंदीदा तरकारी है...भंटा में आलू और अदौड़ी के मेल से जो तरकारी बनती है...अहहः !!! वैसे इसे ही यदि स्टाइलिश नाम दे दिया जाय ,तो स्वाद भी मिलेगा और नाम भी ...
    आपके इस प्रसंग ने न जाने कितने प्रसंगों का स्मरण करा दिया...अपने होंठों पर खिल आये मुस्कान को संयत नहीं कर पा रही....
    लाजवाब प्रविष्टि...

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  15. अरे आप भी !! अइसन गवांर निकले?

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  16. अच्छा, बजरी के भात और मठ्ठा को क्या कहते हैं ईतालियानो में?

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  17. वाह, क्या मजेदार पोस्ट है। मुझे तो सोया सॉस और वसाबी के साथ खाया फाईव स्टार होटल का सशी याद आ गया..ससुरा दिमाग भन्ना गया था खाते ही।

    और हां, गिरिजेश जी की बात मान क्यों नहीं लेते ?

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  18. अपरिसिएट कर रहे है.. ओझा-उवाच को.. :)
    वैसे पुने मे स्टेशन और ऊ जगह के अलावा भी काफ़ी जगहे है जहा रात मे पेट भरने का आईटम जुगाड सकते हो.. पीने के बाद ऎसी बहुत जगहे ढूढ के निकाली थी .. एक हडपसर मे है.. रात भर दारू मिलती है और मस्त चाय और पाव भाजी... पुलिस भी वही सिक्यूरिटी के लिये खडी रहती है... दारू की दुकान की सिक्यूरिटी भाईसाहेब.. वैसे गिरिजेश राव जी से सहमत.. ससुर का खिताब किसी लायक व्यक्ति को दिया जाय.. :)

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  19. ओह!! 'जारी' इतनी जल्दी आ गया...'क्रमशः' मेरी कहानी में भी आता है..पर इतनी जल्दी...:) इसका अर्थ है..बहुत ही पठनीय है ये अंश...हमने भी एक बार अजीब से इटैलियन नाम का सूप आर्डर किया था...और पता चला..वो लहसुन से छौंकी पतली मूंग की दाल थी :( :(

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  20. चिकन अलाफूस से सी-थ्रीफाइव पोटाचियो घूघूरियानों तक का सफ़र बिना गैस के ही हो सकता है. हमने तो पिछले हफ्ते ईस्ट इंडिया कंपनी की चाय-पार्टी वाले ऐतिहासिक नगर के एक भारतीय ढाबे में दो विदेशियों के लिए भंटा का भर्ता मंगाया - खुदा कसम जले हुए प्लास्टिक का स्वाद आ रहा था - शिकायत की तो बदले में अधपकी भिन्डी मुफ्त मिली.

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  21. तुम्हारे लिखने में एक नेचुरल फ्लो है .जो सिर्फ तुम्हारा अपना है .निखालिस .....ये पोस्ट मुझे बेहद पसंद आई.....एक साथ कई चीजों को समेटती हुई.....एक बेचुलर का जीवन भी स्ट्रगल सा है .....

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  22. 'सी-थ्रीफाइव पोटाचियो घूघूरियानों'... के बहाने इतना महंगा भंटा का स्वाद चखा आपने.......बहुत खूब ओझा भाई ! वैसे ओझा जी अब चाहे ला मेरिडियन जाओ या शेंग्रीला...भंटा है तो भंटा ही रहेगा नाम चाहे जो दे दो........

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  23. कुछ नाम तो एकदम नोट करने लायक है... लेकिन इससे ज्यादा जरुरी वो शैली (स्टाइल) है
    जिसे सीखना जरुरी लगता है....

    हाँ जब अकेले हैं तो एक शब्द, "भंटा" इस बेस्ट !

    आगे का इन्तजार है.

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  24. बहुत मेज्दार स्वादिष्ट पोस्ट :)

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  25. पसंद आया आपका सी थ्री फाइव ओ एट पोटेचियो घुघुरियानो ।
    बैंगन को तो ग्वालियरी भी भटा ही कहते हैं । बचपन में एक गीत भी गाते थे
    आलूभटे ने झाडू लगाई
    शकरकंदी नाचने आई ।

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  26. ओझा जी प्रणाम, बहुत बढ़िया लेख आपने लिखा है, शब्दो का प्रयोग जिस ठेठ अंदाज मे किया है वो आपके बालियावी अंदाज को सॉफ सॉफ दिखाता है, जबरदस्त लेख है, अब आप सोच रहे होंगे क़ि मैं कैसे आप के बालियावी अंदाज को पहचान रहा हू, तो भाई कहा गया है ना " खग जाने खग ही के भाषा" जी हा , मैं भी बलिया का एक बागी हू, पेशा से सिविल इंजिनियर हू, पटना मे नियुक्त हू, थोड़ा साहित्य मे रूचि है तो मैने एक सोसल साइट तैयार कर दिया हू जॅहा साहित्यकार लोग अपनी रचनाओ को पोस्ट करते है, एक दूसरे के रचनाओ को और बेहतर करने हेतु सुझाव देते है, आप चाहे तो एक बार साइट को देख सकते है,अगर ठीक ठाक लगे तो SIGN UP कर लीजियेगा,साइट का नाम है www.openbooksonline.com

    बोली रे बोली BHRIGU बाबा की जय
    Aapka Apna He
    Ganesh Jee "Bagi"

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  27. इतना गम्भीर नाम काहे रखते हो भाई, अपने पास इतनी बुद्धि नहीं है.....
    ---------
    क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
    अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

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  28. आज के युग के नए नाम फास्ट ज़माना है ..बढ़िया पोस्ट जिसको पढ़ कर यह नाम याद रखने की कोशिश जारी है ..

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  29. मजा आया आपकी पोस्ट पढ़कर ,आजकल तो वाकई ऐसे ऐसे नए नए बड़े बड़े नाम वाले खाद्य पदार्थ मिलते हैं की वाकई नाम में ही सब कुछ रखा हैं ऐसा ही लगता हैं ,अब बताये ६०० रूपये का मौसंबी ज्यूस यहाँ मुंबई के ५ सितारा होटल में ,और ४५० रूपये का सेंडविच ..........हद हैं न .आपकी पोस्ट और आकी रेसिपी का नाम बहुत अच्छा लगा .एकदम इनोवेटिव .

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  30. जय हो! हम बहुत पहले से ही कहते आये हैं कि बड़े होटलों में मंहगे खाने के पैसे सिर्फ़ नाम अनुवाद के पैसे होते हैं। :)

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