[दिमाग में चलने वाली रैंडम बाते हैं... अपने रिस्क पर पढें :)]
६.३० घंटे में शाम के चार बजे से सुबह के ५.३० बज जायेंगे. यूँ तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ लेकिन पता नहीं क्यों ये बात मुझे पांचवी सदी में ले गयी... अब मन है जहाँ मर्जी ले जाए ! वीजा की जरुरत तो है नहीं. मैं सोच रहा हूँ आखिर जिस इंसान ने पहली बार इस बात का अनुभव किया होगा उसे कैसा लगा होगा? सब युद्धिष्ठिर का दोष है वाली पोस्ट याद आती है… आगे सोचने से पहले मैं मुस्कुरा देता हूँ.
अटलांटिक में एक बड़ी सी जहाज मुझे छोटी दिखाई दे रही है. एक ही पल में मुझे अपने पिछले ३० दिन याद आ रहे हैं. टाइम्स स्कवैर... चकाचौंध और ग्लैमर... घर से निकलते ही भूल जाता कि क्या करने आया था ! इंसान का दिमाग वही वस्तु रोज देखता है पर अचानक एक दिन उसी वस्तु को दार्शनिक दृष्टि से देखने लगता है. 'दार्शनिक दृष्टि' से एक कहानी याद आई... जिसमें देर रात तक इन्तजार करती एक गरीब माँ का बेरोजगार बेटा आगे परोसे गए खाने में रोटी को दार्शनिक दृष्टि से देखता है, उसे पता है उसकी माँ ने खाना नहीं खाया. कहानी का नाम याद नहीं लेखक का नाम भी याद नहीं आ रहा... लेकिन ये लाइन याद है. जो बातें दिल को छू लेती हैं वो शायद दिमाग की जगह दिल में स्टोर हो जाती हैं. इस हिसाब से हमारे देश में दार्शनिकों की कोई कमी नहीं है. इस साल १० प्रतिशत और बढ़ गए.
फिलहाल मैं पांचवी सदी में था... इंसान एक छोटे से दीये पर इतरा रहा है अब क्या बचा है आविष्कार करने को ! इधर आज मैं फिर ऊपर से यूरोप देख रहा हूँ, शायद रात में पहली बार. अंधकार के समुद्र में सोने के द्वीप लग रहे हैं. एक दीये से द्वीप तक ! … जेब में पड़ा इलेक्ट्रोनिक गजट याद आता है अब तो कॉपी किताब भी कहने सुनने की चीज हो जायेगी. मेरे दोस्त मुझे एक काल्पनिक सफलता पर किन्डल गिफ्ट करने की बात करते हैं... अभी मैं कह दूं कि मैं काठ की पटरी पर पढ़ा हूँ तो सामने वाले अंकल सोच में पड़ जायेंगे... कहीं ये बेंजामिन बटन का हीरो तो नहीं जो बुड्ढा पैदा होकर जवान हो रहा है वरना 'काठ की पटरी'? वो तो बाप-दादा के जमाने की बात हुआ करती थी. एक किन्डल जैसी चीज लेकर बच्चें स्कूल जाने लगे तो ऊपर वाली लाइन में 'जिल्द लगी नोटबुक' से 'काठ की पटरी' को रिप्लेस करने में कितने दिन लगेंगे?
चीजें कितनी तेजी से बदलती हैं... वैसे अगर सोचे तो मानव सभ्यता का इतिहास है ही कितना पुराना. और हम इतिहास का उदहारण देते हैं... क्या अच्छा है क्या बुरा ! चार दिनों के इतिहास पर कह देते हैं कि डेमोक्रेसी अच्छी है, कैपिटलिज्म अच्छा है. सोसलिज्म, कम्युनिज्म... वगैरह. अबे मनुष्य ! अभी हुए ही कितने दिन जब तू नंगा घुमा करता था? इन चंद दिनों के इतिहास पर हमारे फैसले निर्धारित होने चाहिए या उन्मुक्त तार्किक मानव सोच पर? पांचवी सदी के उस मशाल से लेकर आज के इस स्वर्णिम जगमगाते द्वीपों तक हर मिनट तो चीजें बदली हैं. दो साल पहले ग्रेजुएट हुए मेरे मित्र गोदान लेकर आये हैं और मैं सोच रहा हूँ कि स्कूल में बच्चे शिडनी शेल्डन पढ़ते हैं. तो क्या हम अभी ही आउटडेटेड हो गए हैं? हम जितना सोचते हैं चीजें उससे कहीं अधिक तेजी से बदलती हैं. अभी कल को ही बैंक ठुके पड़े थे... अभी रिकॉर्ड प्रोफिट ! कौन सा इतिहास देखूं मैं? और इतिहास देखकर क्या सीखूं? जो फलाने कह गए है वही सत्य है कि जाप करने वाले जरा अपना भी दिमाग लगा लो. इस 'हाईली रैंडम' इतिहास में हर क्षण तो बदलाव हो रहा है. और आप मानव सभ्यता के शुरुआत के एक इंसान की बात को लेकर बैठ गए... क्या कहा वो इंसान नहीं था (थे)? छोडो भाई आपसे बात करना ही बेकार है.
सामने बैठे अंकल-आंटी (भारतीय मूल के बुजुर्गनुमा) को बियर पर चियर्स करते देखता हूँ. मेरे दोस्त मेरे मन की बात समझ कह रहे हैं 'तुम बिजनेस क्लास में चलना डिजर्व नहीं करते !' ओरेंज जूस और दो टके की काफ़ी ! खैर... ये बात फिर कभी. एक पुरनिये के बारे में सुना है उनके यहाँ दूध की नदी टाईप की कोई चीज बहा करती और उन्हें दूध ही अच्छा नहीं लगता था. शायद इसे किस्मत कहते हैं. शायद ये उस जमाने की बात है जब दूध और ‘नंबर ऑफ़ गाय' सम्पन्नता का प्रतीक हुआ करते थे. अब शायद 'ब्रांड ऑफ़ दारु' और 'नंबर ऑफ़ कार' से रिप्लेस हो गया हो. फिलहाल मैं डिजर्व नहीं करता इस बार का कोई ग़म नहीं अभी तक ओरेंज जूस का साइड इफेक्ट नहीं मिला :)
खैर बदलाव की बात… दो दिन पहले की बात याद आ रही है. रात को १ बजे सेंट्रल पार्क के पास एप्पल स्टोर से वापस आते समय... एक बनी-ठनी लड़की.... 'हाय गाईज ! वान्ना पार्टी?' हुर्र ! एक मिनट में बदलाव वाली बात उड़ जाती है दिमाग से… कुछ चीजें तो कभी नहीं बदलती ! मानव सभ्यता की हर कहानी में ये बात तो आजतक ऐसे ही चली आई हैं. तो क्या मैं चार दिनों के इतिहास को मान लूं कि ये ऐसा ही चलता रहेगा. फिलहाल यही दृश्य मुझे फिर पांचवी सदी में ले गया. यह दिखाने की कुछ बातें तब भी ऐसी ही थी !
... सब युद्धिष्ठिर का दोष है मन तो भटकता ही रहेगा... फिलहाल एक कॉफी इंजेक्ट की जाय.
~Abhishek Ojha~
1. तकरीबन ढाई महीने पहले फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर बैठा सुषुप्तावस्था में खलील जिब्रान पढ़ रहा था, उसी में एक पन्ने पर यह लिखा था. साथ में उस पन्ने पर यह भी लिखा मिला 'ईरानी बंदी है'. शायद किसी की तरफ इशारा रहा हो अपने दोस्त को दिखाते हुए !
2. शिव भैया उन चुनिन्दा लोगों में से हैं जिनकी बाते कई मौको पर याद आती हैं और मैं बिना किसी बात के मुस्कुरा उठता हूँ, मैंने उनसे एक बार कहा था कि अगर ऐसा ही होता रहा तो लोग समझेंगे कि मेरे दिमाग के कील-कांटे ढीले पड़ रहे हैं ! उनकी तबियत ठीक होने का बेसब्री से इंतज़ार है.
3. ये तस्वीर मलेसिया और हाँग-काँग के बीच स्थित किसी 'बीच' की है.
मित्र, बदला-बदली में इंसान के भीतर-बाहर बहुत कुछ अदल-बदल गया है। प्रकृति से कहीं तेजी से तो हम मनुष्यों का स्वभाव बदल रहा है। है न...।
ReplyDeleteइंसानी दिमाग कहाँ से कहाँ ले जाए कौन जाने कोई समझ नहीं पाया ...दिल तो भटकता बंजारा है कब कहाँ घूम जाए और यह सब लिखवा जाए ..
ReplyDeleteअरे बचवा, दिमगवा में अईसन-अईसन बातें चलेगी यही बहुत है बताने को कि तुम्हारा कोई पेंच-वेंच ढ़ीला हो गया है.. इसके लिये शिव भैया को काहे का दोष? ;-)
ReplyDeleteज्यू ज्यू हम नयी सदी की ओर बढ़ रहे है ....त्यु त्यु हम कम मानव होते जा रहे है .....मैंने भी कही पढ़ा था ..जिसपे भले पण पे एक डाइलोग था "कभी रहा होगा ये गुण आजकल तो ये कमजोरी है ".....तुम्हारी मान बेटे की स्टोरी पे आज घर में हुए हवन के बाद सुने हुई शास्त्री जी द्वारा एक कथा सुनाता हूँ...
ReplyDeleteएक बेहद गरीब बच्चा नंगे पांव ठण्ड में किसी शानदार जूते की दूकान के आगे लगे कांच के शीशे से अन्दर निहार रहा था .चम्चाती गाडी में एक औरत उतरी ओर उसका हाथ पकड़ कर के अन्दर ले गयी....बच्चा डर गया चिल्लाया "मैंने कुछ नहीं किया है " .उस औरत ने उसके पांव गर्म पानीसे धुलवाए तौलिये से पूछे...फिर जूते पहनवाए ...बच्चे ने पुछा क्या आप भगवान् की पत्नी है "
आशय यही की उसके मुताबिक भगवान् ही दयालु ओर स्नेही होता है ....
प्रिय अभिषेक मैंने दिन रात भजन कीर्तन में लगे पुजारियों को भी इस दुनिया के माया मोह में पड़ कचहरियों में जमीन के लिए लड़ते हुए देखा है ....भारतेंदु हरिश्चंद ने एक बार अपने निबंध में लिखा था .यदि एक जहाज का कप्तान शराबी है स्त्रेन है पर संकट के समय में अपने जहाज को नहीं छोड़ता उसका चरित्र कही ऊँचा है ...
इसलिए .चरित्र को मापने का कोई पैमाना नहीं है .....वक़्त के एक पन्ने पर जो आदमी तुम्हे देवता दिखाई देगा ...अगले पन्ने पर वही दोषी भी दिखेगा
लिखने की ये अदा भी तो कितनी आधुनिक है और कितनी अलग..
ReplyDeleteइस पोस्ट से ऐसा लगा जैसे मस्तिष्क को किसी ने डायरेक्ट कंप्यूटर से अटैच कर दिया है. और वह धडाधड टाइप कर रहा है विचारों को.
ReplyDeleteये उस जमाने की बात है जब दूध और ‘नंबर ऑफ़ गाय' सम्पन्नता का प्रतीक हुआ करते थे. अब शायद 'ब्रांड ऑफ़ दारु' और 'नंबर ऑफ़ कार' से रिप्लेस हो गया हो.
ReplyDeleteye vaky to bas dil ke panne par fix ho gaya...
aapke is lekhan ke rou me shabdon me gum hue bahte chale gaye...Bahut achcha laga....
वाकई सोचने लायक बात है. बहुत ही सशक्त लिखा है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
निरंतर बदलाव ही समय है, वही जीवन है। कोई चीज नहीं जो नहीं बदलती हो। सब चीजें बदलती है। जब कोई चीज नहीं बदलेगी समय का अंत हो जाएगा।
ReplyDeleteआ गए प्यारे.. ?
ReplyDeleteठीक ही आये हो.. यहाँ हम लोग हर रोज़ आउटडेटेड हो जाते है.. भतीजे के लिए खिलौने लेने गया तो उस से पुछा कैसे चलेगा.. उसने कहा आप तो दे देना वो अपने आप चला लेगा.. और हुआ भी यही.. जल्दी आगे बढ़ रही है दुनिया.. और तुम हो कि हवा में लोगो को नाप रहे हो..
बेंजामिन बटन वाले किस्से कही सच ना हो जाए .. वैसे पा भी तो आ रही है.. मुझे यकीं है बेंजामिन बटन से उसका कोई लिंक नहीं होगा..
मिश्रा जी की तबियत ठीक होने की तो हम भी कामना कर रहे है..
सब युद्धिष्ठिर का दोष है मन तो भटकता ही रहेगा बिलकुल सही कहा भाज्जी....जब दिमाग है तो भटकता ही है ना
ReplyDeleteसच कहा, इतिहास है ही कितना सा. यदि हम ब्रह्माण्ड की आयू के हिसाब से देखे तो हमारा ज्ञात अज्ञात इतिहास ब्रह्माण्ड के पलक झपकने जितना भी नहीं....
ReplyDeleteज्ञानपूर्ण चर्चा.
जोरदार पोस्ट । सच्ची हम इतनी सी सफलता लेकर इतराते नही थकते पर कितनी तेजीसे ये बदलती दुनिया उसे आउट डेटेड कर देती है ।
ReplyDeleteसब दुर्योधन का दोष है ।
यही जीवन है। यह लेखन शैली पसंद आई। एकदम ललित निबंध सा आनंद दिया।
ReplyDeleteहम फिर कहता हूं कि पैदाईशी लिक्खाड़ हो तुम...
सोच रहा हूं कि पहले आपको धन्यवाद दूं या पहले इस पोस्ट की बाबत कुछ लिखूं...!!
ReplyDeleteधन्यवाद शिवकुमार मिश्र जी के उस "दुपट्टा चोरी" वाला अद्भुत व्यंग्य से मिलाने के लिये...
और फिर इस रैंडम बातों को तरतीब में बिठाती हुई आपकी लेखनी....मजा आ गया! बड़े दिनों बाद ब्लौग पे कुछ अलग-सा, कुछ हटकर पढ़ने को मिला...
"इन चंद दिनों के इतिहास पर हमारे फैसले निर्धारित होने चाहिए या उन्मुक्त तार्किक मानव सोच पर?"....सोच कर बताते हैं।
ham nayi sadi ki aur jaa rahe hain to insaniyat bhulte jaa rahe hain ...
ReplyDeletesoch mein chorta hua lekh
अच्छा लिखा है आपने...शैली भी नयी और बातें भी...खूब आगे जाओगे बरखुरदार...
ReplyDeleteनीरज
RANDOMLY LIKHIM HUYEE RANDOM BAATEN ... MASHTISHK MEIN BHI RANDOMLY CHAL RAHI HAIN ... KABHI KOI LAMHA... KABHI KOI LAMHA ... BHATKAAV BHARI JINDAGI KENIYAM KA HI TO PAALAN KAR RAHA HAI YE DIMAAG .....
ReplyDeleteACHHAA LIKHA HAI ...
कुछ चीजें वाकई नहीं बदलती, पर कुछ इंटेलीजेन्ट लोग उस बदलाव को न सिर्फ महसूस करते हैं, बल्कि दुनिया को भी उससे बाखबर करवाते हैं।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
यही दार्शनिक चिंतन है. मन ने वह नहीं माना जो समय ने मान लिया है. मष्तिष्क तो सदैव समय का अनुगामी रहेगा न.
ReplyDeleteसत्य और तथ्य के बीच बड़ा अंतराल दिखता है. चिंतन मांगता है आपक आलेख.
अभिषेक भाई
ReplyDelete" इस हिसाब से हमारे देश में दार्शनिकों की कोई कमी नहीं है. इस साल १० प्रतिशत और बढ़ गए." पंच लाइन है मैं बहुत देर तक सोचता रहा कि कितना सही कहा आपने......आपके शिल्प के तो हम फैन हैं.
बढिया है.
ReplyDeleteसच कहा। गरीबी में आदमी फिलासफ़र हो जाता है..
ReplyDeleteआज की रात जो फुटपाथ से देखा मैनें
रात भर रोटी नजर आया है वो चाँद मुझे
शिव जी की बात काबिले-गौर है। छोड़िये भी काटिये बीसी, ससुरी ज़िन्दगी में कुल जमा 3 साल 29 दिन बचे हैं..
:)
अब क्या बचा है आविष्कार करने को!
ReplyDeleteमज़ा आ गया पढ़कर. ... वैसे काठ की तख्ती और जिल्द वाली कॉपी के बीच में पत्थर की स्लेट भी हुआ करती थी. जूस के हँग ओवर के बारे में फिर कभी.
शुभ अभिवादन! दिनों बाद अंतरजाल पर! न जाने क्या लिख डाला आप ने! सुभान अल्लाह! खूब लेखन है आपका अंदाज़ भी निराल.खूब लिखिए. खूब पढ़िए!
ReplyDeleteक्या बात है अभिषेक ... आगे की रैंडम बातें ?
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteआभार ...........
जन्मदिन की बधाई और हार्दिक शुभकामना ...
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