पिछले दिनों ऑफिस के काम से एक यात्रा पर जाना हुआ. दिल्ली, कानपुर और बीच में लखनऊ. यूँ तो बहुत दिन नहीं हुए पर पता नहीं क्यों लगा कि एक अरसे बाद आना हुआ है इन गलियों में. थोड़ी भाग-दौड़ वाली यात्रा जरूर थी पर बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक रही. अब भाग-दौड़ का क्या है... अभी ९ दिसंबर को सोचा जन्मदिन के बहाने एक पोस्ट ठेली जाए तो टाइप की हुई पोस्ट को ठेलने के पहले ही ९ का १० हो गया. उसका स्नैपशॉट ले लिया था तो आज चिपकाये दे रहा हूँ आपको मन हो तो क्लिक करके पढ़ लीजिये.
वैसे आजकल व्यस्तता को नापने के मैंने अपने नए तरीके निकाले हैं जैसे रीडर में कितने अपठित लेख जमा हैं, औसत कितने लेख शेयर किये जा रहे हैं, कितने दिनों से लैपटॉप की जगह आईपॉड पर सर्फिंग हो रही है, ऑफिस में कितने मिनट तक तशरीफ़ कुर्सी से दूर रही (तशरीफ़ का शाब्दिक अर्थ छोडिये मतलब तो आप समझ गए ना !), कितने ईमेल का जवाब देना बाकी है, औसत कितने पोस्ट/कमेन्ट किये और अगर घर फ़ोन करने का समय नहीं मिला तो सही में व्यस्त ! सोच रहा हूँ इन सारे पारामीटर्स को कलेक्ट कर एक बिजिनेस इंडेक्स (व्यस्तता सूचकांक) बना लूं दिन में एक बार तो अपडेट कर ही सकता हूँ कि आज कितना बिजी रहा.
रोचक और ज्ञानवर्धक को तो एक पोस्ट में समेटना कहाँ संभव है ! हाँ कई बातों पर भरोसा और पक्का हुआ. जैसे 'समाज में कुछ चीजें बस कुछ लोगों द्वारा, कुछ लोगों के लिए ही बनाई गयी हैं'. खैर इस पर फिर कभी. फिलहाल तो इसी बात की ख़ुशी है कि कुछ गेजुएट हो रहे बच्चों को नौकरी मिली जो इस यात्रा का मकसद भी था. कुछ दोस्तों से एक छोटी मुलाकात भी हुई. जब से तथाकथित ब्लोगर हो गए हैं तो अब 'ब्लोगर मीट' भी यात्रा का एक हिस्सा है. तो इसी बहाने कुछ धुरंधरों से भी मिल आये... कुछ को तो १० मिनट की 'मीट' के लिए एक घंटे तक इंतज़ार करवा दिया. लेकिन कुछ तो बात है जो पहली बार मिलने पर भी सॉरी कहना तक फोर्मलिटी लगती है.
दिल्ली और लखनऊ तो ठीक लेकिन सुबह-सुबह जब कानपुर पहुचे और एक ऑटो(विक्रम) में गाना बजता सुनाई दिया... 'जब-जब इश्क पे पहरा...'. हम तो वही नोस्टालजिक हो गए. ये मिस करना भी अजीब चीज है वो थकेले ऑटो, उसमें बजते फास्ट फॉरवर्ड स्पीड में चीं-चों करते गाने और १२ लोग ! ये भी कोई मिस करने की चीज है वो भी तब जब आप उस गाडी में बैठे हो जो आपको सबसे अच्छी लगती है. वालस्ट्रीट फिल्म में माइकल डगलस का एक डायलोग याद आया उस पर एक पोस्ट लिखनी कब से पेंडिंग है. इन ऑटो में जो गाने बजते हैं उनकी लिस्ट ५० से ज्यादा लम्बी नहीं है... सारे क्लासिक ! मेरे एक दोस्त आपके प्लेलिस्ट से आपका भूत और आप किस परिवेश में रहे हो ये बता देते हैं... इन ऑटो में बजने वाले गानों के ट्रेंड पर गौर करें तो ये बता देना कोई बड़ी बात नहीं लगती.
गाडी वाला भी उन रास्तों से ले गया जहाँ से कभी सबसे ज्यादा गुजरना होता था. फिर वो जगह... जहाँ पर जीवन के सबसे यादगार दिन गुजारे हैं.. अपना कॉलेज, अपना कैम्पस. तो अब क्या हमारे साथ बुरे दिन बीत रहे हैं ? (गनीमत है ये सवाल किसी सेंटी टाइप लड़की ने नहीं पूछा, वरना समझाने में ही दिन निकल जाता). जीवन के २-४ सबसे ज्यादा भावुक क्षणों में से एक था जब मैंने ये कैम्पस छोड़ा था और दूसरा जब मेरे कुछ दोस्तों ने मुझसे एक साल पहले छोड़ा था. इंसान सच में बड़ा विचित्र जीव है... किसी चीज का पीछा करता रहता है फिर मिलने पर पता चलता है कि उसे पाने के लिए क्या कुछ गंवा दिया. गनीमत है मैंने ज्यादा नहीं गंवाया. उन नहीं गंवाए गए मस्ती के क्षण... अलंकारिक भाषा में कहूं तो उस कैम्पस में हर तरफ दिखने वाले लाल ईंटों से कहीं ज्यादा यादें जुडी हुई हैं उस जगह से. उस समय व्यस्त से लगने वाले दिन अब जिंदगी के सबसे अधिक फुर्सत वाले दिन लगते हैं. गुजरी हुई बातों के मामले में मुझे अपनी मेमोरी पर कभी ज्यादा भरोसा नहीं रहता लेकिन वहां पहुच कर लगा सब कुछ जैसे अभी हो रहा हो. समय तो नहीं मिल पाया पर आते-आते गाडी से ही सही दो चक्कर लगा आया. मेरे साथ गयी एचआर को लगा कि मैं कुछ ज्यादा ही सेंटी हो रहा हूँ. वैसे उनको जितना लगा मैं उससे कहीं अधिक सेंटी था. अभी तक गेट पास की पर्ची पड़ी हुई है बटुए में... !
फिलहाल इतना ही... बिजिनेस इंडेक्स अभी भी ऊपर चल रहा है. मंदी आ नहीं पा रही इसमें.
'मीट' की चर्चा तो यहाँ और यहाँ आई ही है, मैं भी कुछ यदा-कदा ठेलता रहूँगा, वैसे एक क्लारिफिकेशन देना था. मुझे लगता था इस ड्रेस में थोडा स्मार्ट लगता हूँ लेकिन अनूपजी के इ७१ का कैमरा कुछ सही नहीं लग रहा :)
~Abhishek Ojha~
व्यस्तता जीवन से बहुत कुछ छीन लेती है लेकिन बहुत कुछ दे भी जाती है। इन दिनों हम हैं कि जबरन व्यस्त हुए जाते हैं।
ReplyDeleteयह ब्लॉगिंग का शुक्रिया कि काम में मौज निकल आती है, व्यस्तता में भी सेंटी होने का अवकाश !
ReplyDeleteप्रविष्टि सुन्दर है । आभार ।
अच्छा रहा मेल मुलाकात का समय बीच व्यस्तता के// अनूप जी का कैमरा..खैर फोटो पहली तो बमार्फत उन्हीं के मिली..
ReplyDeleteलगता है जानबूझ के कैमरे केंगाल ठीक नहीं रखा गया है ......साजिश है...हमें भी तुम ज्यादा स्मार्ट से लगते थे ....कॉलेज के फोटो शोतो लिए के नहीं...कोलेज के केन्टीन की..ओर कोई पुराने वाली..नहीं टकराई ....
ReplyDeleteनिफिक्र रहिये अभिषेक जी मस्त लग रहे हैं -
ReplyDeleteभाई कैमरे को दोष मत दो, याद रखो की हर जन्मदिन हमारी उम्र को एक साल बढ़ा देता है.
ReplyDeleteजन्मदिन की मुबारकबाद.
आपकी व्यस्तता और आप की यादों के बीच यह मेल मुलाक़ात ज़रूरी है.
ReplyDeleteव्यस्तता के बीच मेल मिलाप का सिलसिला हवा के ठंडे झोंके की तरह होता है .......... वैसे फोटो में आप बहुत जम रहे हैं ........
ReplyDeleteगौतम जी के ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी ने यहाँ पहुँचाया...सोचा.देखूं जरा, ये सहमा सा बच्चा कौन है... जो डर कर कुछ चुनिन्दा ब्लोगों तक ही सिमट रहा है...फिर तो खुद को ही एक गुट में शामिल कर रहा है,ना??...एनीवे यहाँ आकर बडा,अच्छा लगा...एक तो आप रांची के हो...दूसरे कलम के धनी हो आप तो...एक प्रवाह है,शैली में....(दो ही पोस्ट पढ़ी,आज,,एक कैम्पस वाली)..ऐसे ही लिखते रहो..शुभकामनाएं
ReplyDeleteगये जन्मदिन की मुबारक!
ReplyDeleteहमें भी ऐसा अवसर मिले तो खासे सेण्टी हो जायें; बिल्कुल तय शुदा है!
जाने कब मौका मिले बिसरी जगहों पर जाने का!
व्यस्तता है तो फुरसत की कीमत है। जनम दिन की बधाई । और फोटू में भी आप जच रहे हैं ।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट नही पढ़ी जायेगी, ना ही कोई प्रतिक्रिया की जायेगी, और जाइये आप स्मार्ट भी नही लग रहे....!
ReplyDeleteलखनऊ आ कर हमें खबर न करने के गुनाह के बदले मैं इससे अधिक कुछ कर भी तो नही सकती.....!!
बिजिनेस इंडेक्स (व्यस्तता सूचकांक) नया कांसेप्ट दिया भाई आपने .................अरे यार स्मार्ट तो आप हर ड्रेस में लगते हैं.......लगे हाथों जन्म दिन की बधाई भी स्वीकार करें!
ReplyDeleteहम भी नॉस्टैल्जिक हो गये आपकी पोस्ट पढ़कर. गेट पास की पर्ची का जेब से चिपके रहना जाने कितने लम्हों को थामे रहना का अहसास भी तो है. बना रहे...शुभकामना!
ReplyDeleteदेर से ही सही , जन्मदिन की मुबारकबाद स्वीकारें ।जहां जीवन के यादगार दिन गुजरे हों वहां पहुंचना बहुत सुखद अनुभूति देता है ।यह बात आपने कितनी अच्छी कही है कि जो दिन उस वक्त व्यस्त लगते थे आज फ़ुरसत वाले दिन लगते है -वैसे तो हर गुजरा हुआ समय यही कहता है कि पहले चाहे व्यस्त परेशान रहे हो मगर आज से अच्छे थे ।अब मुझे उत्सुकता रहेगी उस लेख की जिसमे आप बतलायेगे कि कौन कौन सी चीजें किन किन के लिये बनी है
ReplyDeleteइस मामले में मैं तो भाग्यशाली हूँ कि मुझे अपने कॉलेज तक पहुँचने के लिए कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता। आना जाना बना रहता है। १० मिनट के मिलने को तो मुँह दिखाई ही कहना ज्यादा उचित होगा। खैर अगली बार जाओ तो ब्लॉगर साथियों के लिए भी वक़्त निकालो।
ReplyDeleteshubhkanaen...vyastata ke liye...
ReplyDeleteपहले तो अपने इस कथित बिजनेस-इंडेक्स के मीटर को नीचे कर लो तनिक...तुम उन गिने-चुने लिक्खाड़ों में से हो जिनके पोस्ट का इंतजार रहता है। जन्म-दिन वाली पेंडिंग पोस्ट को बड़ा करके पढ़ लिया...उस पहाड़ और धक्का वाले चुटकुले पर अब भी हँस रहा हूँ। वैसे जन्म-दिन की बधाई तो दे ही दी थी मैंने ओर्कुट पे और शायद तुमने भी धन्यवाद ज्ञापन दे दिया था।
ReplyDeleteशेष, कानपुर ट्रिप की तस्वीर फुरसतिया ने दिखा दी थी। जहाँ तक स्मार्टनेस की बात है तो इस तस्वीर में रविकांत की मोहक मुस्कान सबके स्मार्टनेस को फेल कर रही है।
चलते-चलते, माइकल डगलस वाली पोस्ट जल्दी लिखना...वर्ना मैं कुछ लिख डालूंगा।
college ke din to sachmuch swarnim hua karte hain,jo jivan me kabhi dubara lout kar nahi aate....
ReplyDeleteSunsar sansmarnatmak post...
कानपुर की यात्रा के दौरान बिक्रम के किस्से का जिक्र मैने भी अपनी एक पोस्ट कानपुर की यात्रा और यादें मे जिक्र किया था, वाकई कानपुर की यात्रा यादगार रही, हम आपकी तरह ब्लागर मीट तोनही कर सके हाँ सिर्फ श्री अनूप जी से मुलाकात ही जरूर हो पाई।
ReplyDeleteयादों को बेहद खूबसूरती के साथ शब्दों में पिरोया। ये पोस्ट पढ़कर एक गाना याद आया.. क्लासिक्स में से तो नहीं है, हां लेकिन दिल के बेहद क़रीब है..
ReplyDelete"नग़में हैं, किस्से हैं
बातें हैं, यादें हैं
बातें भूल जाती हैं
यादें याद आती हैं
ये यादें किसी दिल-ओ-जानम के
चले जाने के बाद आती हैं..
ये यादें.."
और हां एक 'क्लेरिफिकेशन' और..
ReplyDeleteफोटो में आप चमक रहे हैं :)
अरे भाई.. देर से ही सही, जन्मदिन की शुभकामनाएं ले लो।
ReplyDeleteमारिये गोली ससुरे कैमरे को.. एक्दम जयमाल के पहिले वाला दुलहा लग रहे हैं..
मैं भी उसी दौर मैं हूँ भाई साहब , आठवां सेमेस्टर है , फिर पता नहीं जिन्दगी कहाँ ले जाये , आगे तो बस यादें ही रह जाती हैं , फिर तो हम सब तनहा ही जीते हैं .
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