आज ये डायरी मिली - एज अ गिफ्ट ! मेरे मित्र के मम्मी-पापा की तरफ से. उन्हें पता चला कि 'ब्लागर' हैं और इसके बिस्तर पर कम से कम एक किताब हमेशा पायी जाती है. (भले पढ़े या न पढें !) अब ऐसे आदमी को क्या गिफ्ट दिया जाय? ऐसे आदमी के लिए विकल्प कितने कम होते हैं: डायरी, पेन, पेन स्टैंड. लेकिन सबकी तरह अंकल-आंटी को भी सबसे अच्छा वाला विकल्प ही पसंद आया: डायरी !
अब दुविधा ये है कि इसका किया क्या जाय? वैसे तो बचपन से सबसे ज्यादा चीज गिफ्ट मिली तो वो यही है. पर अब तक कभी दुविधा नहीं हुई... सबको भर डालता था. सब फोर्मुलों से भर दिए जाते उसके बाद भी जो बचते उसमें संस्कृत की लाईने. एक बार एक महाभारत सदृश रजिस्टर वाया भईया प्राप्त हुआ कुछ २ हजार से ज्यादा पन्ने होंगे. अब दीखता है तो यकीन नहीं आता. नौवी-दसवी की पुस्तकों का हल तैयार करने में क्या मजा आता था ! अपनी सुपर हिट फोर्मुलों की डायरी दुसरे लड़कों को देने में जितना भाव खाया होगा उतना भाव तो वो मोहल्ले की ब्यूटी क्वीन '...' भी नहीं खाती होगी. अब लगता है उस उम्र में पन्नों का ऐसा दुरूपयोग ! प्रेमपत्र लिखे होते तो नाम बदल कर ब्लॉग पर भी ठेले जाते लेकिन सवालों के हल का क्या करें? जिंदगी का एक क्रिएटिव हिस्सा बेकार चला गया. वो तो ठीक लेकिन इस डायरी का ?
अब तो न कागज न कलम बस लैप्पी बाबा पर खटर-पटर... किसी ने नंबर भी बोला तो नोटपैड ही खोलने की आदत हो गयी है. ये लिखते-लिखते अपनी हैण्ड राइटिंग देख रहा हूँ... बिलकुल गाँधी छाप. अब इस लिखावट में डायरी की सुन्दरता और ज्यादा बिगाड़ने का मन नहीं हो रहा. क्या मेरी लिखावट इतनी घटिया ? पुरानी डायरी खोलकर कन्फर्म करना पड़ेगा. पर इतना तो तय है कोई फोरेंसिक वाला भी पुराने और नए को देखकर चक्कर में पड़ जाएगा… इसी की लिखावट है क्या?
एक मित्र हैं, आजकल जर्मनी में. अगले महीने आ रही हैं (अरे बस मित्र हैं और कुछ नहीं. आप भी न `रही है' देखते ही... लगाने लगे अटकलें !). बात हो रही थी तो उन्होंने बताया कि आज उन्होंने खूब शॉपिंग की. और मेरे लिए क्या लाना है ये भी उन्होंने सोच लिया है. मतलब ये तो साफ़ है जहाँ से सबके लिए खरीदारी की गयी वहां पर मुझे दिया जाने वाला गिफ्ट नहीं मिला. वैसे तो सरप्राइज़ है पर प्रबल 'संभावना' बनती है डायरी की. अब आईपीएल के बाद सम्भावना ही कहेंगे आखिरी ओवर में ३०-३५ रन बनाने हो तो भी कमेंटेटर 'संभावना' ही कहते हैं. आखिरी गेंद पे रन ८-१० की जरुरत हो तो भी... संभावना !
एक उपाय सूझ रहा है तबादले की परंपरा... जैसे मिली वैसे ही किसी और को दे दो. पर कोई 'स्पेशल गिफ्ट' दे तो फिर वो भी अच्छा नहीं लगता. अब बहनजी की तरह तो हैं नहीं... जो धकाधक तबादला कर दें. क्यों न कुछ यादें लिखी जाय कुछ पर्सनल बातें?
'नहीं कोई पढ़ लेगा'
'ब्लॉग पर लिखने में तो नहीं सोचते?'
'कहाँ यार ब्लॉग पर वैसी बाते कहाँ लिखता हूँ...'
ये भी अजीब है !
वही बचपन वाले बात की तरह... कोई आंटी किसी दोस्त को बोलती:
'एक ये लड़का है. कितना पढता है... कभी टाइम बर्बाद नहीं करता. और एक तुम हो !'
'नहीं आंटी कहाँ? मैं तो बस १-२ घंटे से ज्यादा कभी नहीं पढता'
'देखो सुना कुछ तुमने... १-२ घंटे में... और एक तुम हो, कभी ध्यान से पढा करो'
सही गलत जो भी हो लेकिन बाहर से सीरियस और अन्दर जो लड्डू फूटते की... वाह ! आनंद ही आनंद ! पर अब क्या झूठ बोला जाय जो भी बातें होती है घुमा-फिरा कर ब्लॉग पर देर-सवेर आ ही जाती हैं !
सवाल वहीं का वहीं... क्या लिखूं इसमें ? और लोगों को कैसे बताया जाय कि मुझ जैसे लोगों को डायरी असमंजस में डाल देती हैं, किताबें हो तो फिर भी ठीक है. ‘और भी चीजें हैं दुनिया में गिफ्ट देने को इक डायरी के सिवा !’
वैसे एक सवाल आ रहा है दिमाग में हर कवि सम्मलेन में कवियों को स्मृति चिन्ह, शॉल और एक चेक दिया जाता है. चेक और स्मृति चिन्ह तो ठीक पर इतने सारे शॉल का वो क्या करते हैं ! जो प्रसिद्द कवि हैं वो? साल में सैकडो मिलते होंगे उन्हें तो !
*वैसे आप भी अगर मुझे डायरी गिफ्ट करने वाले हैं तो बता दूं... बस एक्सचेंज ऑफर हैं. ये नहीं की कुछ दिया ही नहीं :)
**ये उसी डायरी के शुरूआती पन्ने हैं !
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~Abhishek Ojha~
तुम्हारी पोस्ट ने दिल के कई तारों को छू दिया।
ReplyDelete"नौवी-दसवी की पुस्तकों का हल तैयार करने में क्या मजा आता था ! अपनी सुपर हिट फोर्मुलों की डायरी दुसरे लड़कों को देने में जितना भाव खाया होगा उतना भाव तो वो मोहल्ले की ब्यूटी क्वीन '...' भी नहीं खाती होगी"
हमने भी खूब भाव खाये और अपने मोहल्ले की ब्यूटी क्वीन को फ़ार्मूले उसके घर जाकर समझाये। मत पूछो बाकी यार दोस्त जलभुन जाते थे :-) खैर अब उनका बच्चा हमें मामाजी कहता है :-)
बाकी हमारे घर में मेरी बहन और मुझमें घमासान होता था कि नये साल की सबसे बढिया डायरी कौन हडपेगा। और कभी कभी पिताजी बीच बचाव करते थे कि इसे तो हम रखेंगे :-)
१२ वीं के बाद एक बार हमारा नाम अखबार में छपा तो हमसे बिना पूछे लिख दिया कि हम ६-८ घंटे पढते थे। असलियत तो १ घंटे की थी। अब सोचते हैं कि उस अखबार को पढकर कितने मां/बाप ने अपने बच्चों पर अत्याचार किये होंगे। उन बच्चों की "हाय" का परिणाम है कि उसके बाद कभी क्लास में लडकियाँ नहीं मिली :-)
खैर फ़िर से शेर-ओ-शायरी शुरू कर दो नयी डायरी में। कुछ नया न लिखो तो पुराना टाईप:
ड्राइवर की मेहनत कंडक्टर का पसीना,
सडक पर चलती है बन के हसीना। :-)
ये सब दर्द तो हमारे दर्द हैं। कई सालों की डायरियां अनछुई ,कोरी पड़ी हैं। कहां अखबारों के किनारे तक लिख के रंग दिया करते थे।
ReplyDeleteऔर वो जर्मनी वाली दोस्त आ रही हैं न हम उनको सिर्फ़ दोस्त ही मान रहे हैं और कोई अटकलें नहीं लगा रहे लेकिन जब वो आयें तो बताना कि क्या गिफ़्ट दिया उन्होंने।
अन्दर जो लड्डू फूटते की..:-))
ReplyDeleteबहुत बढिया लगी ये प्रविष्टी -- कई यादेँ ऐसी डायरियोँ से जुडी हुई हैँ हमारी भी ....
मजा आ गया। ये जंघशीर्ष क्या आया है इस ने डायरियों को फ़ना कर दिया है। पर भाई हमें तो रखनी पड़ती हैं एक नहीं तीन-तीन। अदालतों में वह जमाना पता नहीं कब आएगा जब डायरियों से मुक्ति प्राप्त होगी।
ReplyDeleteडायरी का गिफ्ट मेरे हिसाब से तो सबसे सम्मोहक होता है । मुझे मिली डायरियों के उपहारों ने ही मुझे थोड़ा-थोड़ा कवि बना दिया । रंग-बिरंगी डायरियाँ, छपे हुए फूल और प्रेमाभिनय के वाटरमार्क-सब कुछ सम्मोहित करने वाला । एक दो गद्य-खंड भी लिख डाले । और ब्लॉगिंग में भी आया तो यही पढ़कर/जानकर की यह एक पर्सनल डायरी होता है ।
ReplyDeleteशेष फिर कभी ।
गजब की पोस्ट!
ReplyDeleteवाह! वाह! वाह!
इस तरह का लेखन करने वाले को गिफ्ट में मिली डायरी से जरा भी विचलित नहीं होना चाहिए.
वैसे हाल तो अपना भी कुछ कुछ यही है.. एक पुरानी डायरी थी वो तो पता नहीं कहाँ गुम हो गयी.. अब तो सिर्फ नोटपैड खुलता है.. पेन का इस्तेमाल तो सिर्फ चेक बनाने के लिए होता है..
ReplyDeleteउधार लिखो मेरी जान ...पानवाले का ...होटल का ...पेट्रोल पम्प का ..एक दो जरुरतमंदो को दिए गए पैसे ....या उनसे लिए गए पैसे ......पुरानी मित्रो के फ़ोन नंबर ...नजदीक के रेस्टोरेंट के फोन नंबर.....कित्ते गम है ज़माने में....
ReplyDeleteभाई आपने अच्छा डायरी पुराण छेडा. हमको डायई अब भी लगती हैं साल की कम से कम ५ या ६. अब आप कहोगे कि यार इस जमाने में जब लैपी बाबा के नोटपैड से काम चलता हो तब ये कौन सा अंग्रजों के जमाने का ताऊ आगया?
ReplyDeleteभाई हमको आफ़िस मे कम से कम ६ या ७ घंटे फ़ोन पर उलझना ही पडता है. और हमको शुरु से आदत पड गई कि फ़ोन पर बात करते हुये उसके बारे मे नोट बनाते रहने की.
उसी डायरी मे दिन मे फ़ुरसत मिली तो कविता की कुछ लाईने टांक दी..यकीन मानिये वो डायरियां अब बडे काम की साबित हो रही हैं.
उनमे से पुराना माल निकल कर बाहर आरहा है.
आपको डायरियों की समस्या हो तो हमे भेज दिया किजिये. हम अब भी उतना प्रेमपुर्वक डायरियों का उपयोग करते हैं.:)
आपका इमेल या फ़ोन नम्बर छोड दिजिये हमारे कमेंट बाक्स मे..हम उसे पबलिश नही करेंगे. आपसे सम्पर्क करके हम डायरियां बुलवा लेंगे..आपकी टेंशन ्दूर हो जायेगी.:)
रामराम.
भूल सुधार :
ReplyDeleteडायई = डायरी
guru, apan ne kabhi Diary nahi likhi.. magar last 5-6 dino se soch raha hun ki kash ek diary hoti to vo kuchh likh dalta jo blog par nahi likh sakta hun..
ReplyDeleteto kya irada hai? mujhe hi gift kar do.. ;)
are waah ye to mera darda hai....!
ReplyDeleteman me kitni hulas hoti hai ki pata nahi kya kya gift milega is baar aur har baar vahi kalam..vahi diary...! ham to bas dekhate hi rah jaate haiN..vaise ek adh ki zarurat to padati hi hai magar, bas diary ki hi zarurat thode na padati hai..! soch rahi hun ki b.day ke pahale ek aap ki post ka title mitro ko msg kar duN, jis se ve thoda concious ho jayeN :) :)
डॉ अनुराग ने ठीक कहा.....
ReplyDeleteSundar Dairy Puran...
ReplyDelete______________________________
आपने डाक टिकट तो खूब देखे होंगे...पर "सोने के डाक टिकट" भी देखिये. मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!!
क्या जमाना था - डायरी छू कर सूंघ कर देखते थे। महीने भर नियमित डायरी लिखते थे। उसके बाद रिजॉल्व टूट जाता था अगले साल तक!
ReplyDeleteनम्बर शम्बर अपन भी पाये तो कोई न मिली चर्चा करने योग्य! :(
आपका ये गम और मेरा गम एक ही हैं ...सचमुच अब तो कभी कोई डायरी देता भी है तो सोचना पड़ता है कि इसका करेंगे क्या ...और कभी वो जमाना भी था
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
इन पुरानी डायरियों में जाने कितने बेमिसाल लेखक छुपे बैठे हैं...
ReplyDeleteइस गिफ्ट डायरी का पहला पन्ना तो बड़ा दिलचस्प निकला...
अगले पन्नों का भी इंतजार रहेगा
अब की डायरी तो नोट पैड ही है -कोई स्लीक सा क्यूट सा नया माडल पकडा जाय तो बात बन जाय ! लोग समझता क्यों नहीं है अभिषेक भाई !
ReplyDeletekal jo comment kiya thaa lgata hai wah bijli gul abhiyaan mein kho gaya:) dayari ek pass to hamesha rahti hai kya pata kya likhne ka dil ho jaaye ,par ab adhikatar dayari ke panne blog par sidhe likhe copy paste print se bhare hote hain so na chahiye ho to ham bhi hai is ko lene waalon mein :) likha rochak hai kai dayari ke panne yaad aa gaye
ReplyDeleteऐसी पोस्ट जिसे पढ़ कर चेहरे पर मुस्कराहट तैर गयी...और क्या चाहिए...???
ReplyDeleteनीरज
सही कहा है और भी बहुत दर्द हैं ..पोस्ट तो दिल को छू गयी .
ReplyDeleteis diaryname to sab ki yadein taza kar deen. Diariyan ye lekh aur pratrikriyan padh saktin to sochtin jinhein abhi ek adad diary ki talash hai unke paas to pahunch nahin patin aur jahan bheji jati hain wahan ek kone mein anchuyi barshon dhool phankti rahti hain
ReplyDeleteनौंवी दसवीं का अच्छा याद दिलाया, इस लेख को पढ़ कर इतना तो कह सकता हूँ कि तुम्हारे घर में बुक रैक के अलावा एक डायरी रैक की संभावना प्रबल है।
ReplyDeleteसही बात कही है, मैं कोई प्रसिद्ध कवि तो नहीं, पर मेरे पास ही 5-6 इकटठा हो गये हैं। वैसे लेखकों के लिए पेन सबसे अच्छा गिफट है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
hay abhi aj to apne meri purani diary ki yaad dilwa di, thanks, waise sahi hai kuch aise ehsaas jo hum sirf diary ko hi de sakte hai or kisi ki waha par jagah nahi,,gud
ReplyDeleteApne to dil ki baat hi kah di...pahle meri bhi diary khub use hua karti thi per ab laptop ne adat bigar di...
ReplyDeletelakin aaj lagata hai ki purani diary aaj kitni kimti ho gayi hai...
अभिषेक जी, आपके लेख पढ़कर महसूस होता है कि किसी भी आम चीज़ के बारे में लिखकर उसे ख़ास बनाया जा सकता है।
ReplyDeleteसच ही कहा है किसी ने डायरी क्या होती है, लिखने वालों से जानों। लैपटॉप के ज़माने में डॉयरी मिलने का दर्द अच्छा बयां किया आपने :)) हां डॉयरी जिसमें कभी कुछ एहसास लिखे होंगे... फिर कहीं कोई पढ़ न लें, इस डर से छिपाते फिरे होंगे... और अब ब्लॉग की दुनिया में है, तो घुमा-फिरा कर ही सही... बातें कह ही देते हैं।
अभिषेक जी, एक्सचेंज करलें क्या....?
ReplyDeleteडायरी मुझे भेज दो मैं आप को शाल भेजता हूं...
मुझे तो डायरी से बेहद प्यार है। उनमें कुछ ऐसा होता है कि मन मोह लेती हैं। और मै उन्हें भर भी देती हूँ।
ReplyDeleteकविताओं से भर दीजिए। लिखाई खराब है तो कोई पढने का कष्ट भी नहीं करेगा। :)
घुघूती बासूती
Galat baat hai.....gift ki baat jag zaahir karke aapne achha nahi kiya....bar blog likhne aur padhne walon ke liye zaruri nahi hia ki diary hi gift ho :) !! thik something innovative yaar :) its not a diary :)
ReplyDeletemaja aa gaya...
ReplyDeleteवाह डायरी के बहाने पुरानी यादें ताजा कर दी आपने। कभी सोचते थे कि रोज डायरी लिखेंगे और वह संकल्प धरा रह जाता था। उस जमाने में डायरी का गिफ्ट बहुत अच्छा लगता था। अब तो डायरी का उपयोग छूट गया, उसका उपयोग अब ब्लॉगिंग के आइडिये लिखने के लिये कर लेते हैं। :-)
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