'अरे छोटू वो मशीन देखे?'
'कौन मशीन?'
'अरे! जर्मनी से ट्रांफार्मर आया है... इतना बड़ा है कि उसे ले जाने के लिए १३८ पहियों की गाडी आई है, जगह-जगह पेड़ काटे जा रहे हैं. और पुराने पूल कहीं टूट ना जाए इसलिए उनकी जगह नए पूल बनाए जा रहे हैं ! तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो इस समय गाँव आये हो तुम भी देख लोगे, लोग दूर-दूर से बस और ट्रेन से आ रहे हैं देखने !'
हमारे पड़ोस वाले चाचा जब बात किस्मत पर ले आये तो हमने भी सोचा चलो देखे आते हैं... हमारे गाँव के बजरंग बली के मंदिर के पास वो गाडी रुकी. भारी भीड़ के बीच सुना मशीन की पूजा की गयी और एक नेताजी ने कुछ भाषण भी दिया... ये मनोरम दृश्य तो छुट गया. पर हम अगले दिन सुबह-सुबह ये अजूबा देख आये. जितना हाइप था वैसा तो कुछ नहीं निकला. पर पहले आप भी इसे देख लीजिये और अपनी किस्मत को धन्यवाद दीजिये. फिर नीचे जानकारी पढियेगा :-)
हमने जो अवलोकन किया वो इस प्रकार है. हमने देखते ही सीमेंस कंपनी का टूटा हुआ नाम पहचान लिया (पहले चित्र में दाहिनी तरफ, पुणे में हमारे ऑफिस के बाजू में ही सीमेंस का ऑफिस है) और फिर अपनी आदत अनुसार साथ गयी अपनी भतीजी को सीमेंस के बारे में, फिर मशीन डिजाइन पर लेक्चर दिया गया. और फिर ये गौर किया गया की ये मशीन तो जर्मनी की ही है पर १३८ की जगह १२८ चक्के थे और वो भी ३२-३२ पहियों की चार ट्रोलियों को जोड़कर तैयार किया गया था. फिर ये तय हुआ की इसे खीचने के लिए जो अलग से ट्रकनुमा इंजन जोड़ा जाता होगा १० पहिये उसके भी गिने गए होंगे १३८ पूरा करने में. और इन चार ट्रोलियों पर पर एमएच का नंबर देखकर ये फैसला लिया गया की ये मुंबई से आ रहा है. एक जगह और मुंबई पोर्ट दिखा मिल गया (आखिरी तस्वीर). पर लोगों के अनुसार वो जल मार्ग से (गंगा नदी) लाया गया तो शायद फिर वहां से कलकत्ता ले जाया गया होगा.
अब अवलोकन तो पूरा हो गया पर विवरण के बावजूद ये पहेली की तरह लगा की ये आखिर है क्या? फिर विवरण वाली तस्वीर ((आखिरी) की जानकारी को वहीँ गूगल मोबाइल के हवाले किया गया और जो जानकारी मिली वो ये है: पॉवर ग्रिड कारपोरेशन इंडिया लिमिटेड के बलिया भिवाड़ी-विद्युत् वितरण प्रोजेक्ट 2500 MW HVDC (2500 MW high-voltage, direct current electric power transmission system) के तहत सीमेंस कंपनी द्बारा तैयार यह बईपोल टर्मिनल पूर्वी भारत से पश्चिमी भारत तक बिजली वितरण में इस्तेमाल होगा. इसकी विस्तृत जानकारी इस लिंक पर उपलब्ध है. दुनिया भर में ऐसे अन्य ग्रिडों की जानकारी इस लिंक पर उपलब्ध है. जय हो टेक्नोलोजी !
हाँ इस परियोजना में सुना है पीडबल्यूडी के इंजीनियरों और ठेकेदारों की चांदी हो गयी है... और जरुरत बिना जरुरत करोडों के रास्ते बनाए जा रहे हैं ! अब विकास से करोडो का फायदा ऐसे ही तो लोगों तक पहुचता है. बलिया के लोग आस लगाए बैठे हैं की २४ घंटे बिजली रहेगी... मुझे ये संभव होता नहीं दिख रहा. पर जो भी हो लोग उत्सुकता से इस अजूबे को देखने आ रहे थे... रांची में भारी अभियांत्रिकी निगम (एचइसी) ऐसी बड़ी-बड़ी मशीनें बनाता है और महीनो तक वो स्टेशन पर पड़ी रहती है. हम बचपन में देख कर हैरान तो जरूर होते थे पर कभी इतनी उत्सुकता से लोग देखने जमा नहीं होते थे.~Abhishek Ojha~
अब देखिये गाँव जाने से ब्लागरों का कितना फायदा हो जाता है ! उधर आप इधर हम !
ReplyDeleteहम ने एक कथा पढ़ी थी 'बावले गांव में हाथी' वही याद आ गई।
ReplyDeleteबढिया जानकारी दी आपने. कोई बात नही PWD के लोग करोडो की चांदी बना रहे हैं ..इसी बहाने थोडा बहुत सडक पुलिया सुधार ही हो जायेगा.:)
ReplyDeleteरामराम.
एनटीपीसी के ट्रांसफार्मर का एक ओवर डायमेंशनल कन्साइनमेण्ट महीनों से पड़ा है यार्ड में। साथ में फंसे हैं रेलवे के वैगन। उतार कर ले जाने की जुगत ही नहीं बन पा रही है उनकी! :)
ReplyDeleteहम तो धन्य हो गए देख कर..आपके साथ हमारी भी किस्मत अच्छी है
ReplyDeleteहमारा यु पी तो बहुत पिछड़ा है भाई इस मशीन को देख के तो यही लगता है वैसे हम अभी भी तुम्हे इनवर्टर से टिपिया रहे है
ReplyDeleteअरे ये विकास चुनाव की वजह से तो नहीं हो गया....पता चला धाँसू च फांसू मशीन लाकर धर दो तो भोट पक्का...
ReplyDeleteऔर हाँ, पूर्वी भारत से पश्चिमी भारत तक बिजली जायेगी कि उल्टा होना है..वैसे सुना है कि उधरे बिजली की किल्लत है. यूपी में ता बिजली मुफ्त में मिलता है.
बहुत मस्त पोस्ट है. आदत में बहुत कुछ शुमार है. बच्चों पर हम भी दया नहीं कर पाते. कोई मार्केट के बारे में पूछकर तो देखे...फिर उसकी खैर नहीं.
अरे वाह अभिषेक भाई,
ReplyDeleteक्या मशीन की जाँच की है आपने ~ सब सही सही पता लगा लीये हो आप
कुछ घर की बातेँ भी बतायेँ भई
स स्नेह,
- लावण्या
अच्छा लगा अजूबा, वैसे इस तरह के कई अजूबे हम हाइवे पर देख चुके हैं।
ReplyDelete!!!!!!!!!
ReplyDeleteआश्चर्य, किंतु सत्य---रिप्ले!
जय हो टेक्नोलोजी !
ReplyDeleteविकास के नाम पर किसको फायदा,
ReplyDeleteइसकी जीवंत कहानी भारत में पिछले बासठ सालों में भी ख़तम न होने वाली गरीबी और स्विस बैंक में जमा अकूत कला धन सयम ही इसकी कहानी कह रहा है...........
फिर भी समझ-समझ के भी जो न समझे...........
चन्द्र मोहन गुप्त
हिंदुस्तान में किस चीज़ से कब किसकी चांदी हो जाए पता नहीं चलता.. खैर अवलोकन बढ़िया था
ReplyDeleteरोचक है यह ..चलिए किसी बहाने ही सही कहीं तो कुछ बदल रहा है
ReplyDeleteरोचक ,दिलचस्प
ReplyDeleteiski wazah se bizli ki dasha thodi bahut bhi sudhre to 128 kya 200 chakke manne mein koyi burai nahin hai :)
ReplyDeleteबढिया जानकारी दी आपने.
ReplyDeleteमै ज्ञान जी से सहमत हूँ कि भारी ट्रांसफारमर को उतारने और उठाने की लोग जुगत भी नहीं कर पाते है . यदि ४५ टन का ट्रांसफारमर है तो उसे उठाने के लिए ट्राला में लोड करने के लिए ६५ टन की क्रेन की जरुरत होती है है और ऐसी क्रेन सिर्फ रेलवे यार्ड में सिर्फ रेलवे ही उपलब्ध सकता है . . मै कार्य के दौरान यह काम करवा चुका हूँ और अनुभव है . कभी कभी माल रिसीवर असहाय हो जाता है और माल यार्ड में पड़ा रहता है यह सच है. बढ़िया लेख के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteapke gaun ke bahane hume bhi kuchh naya dekhne ki mil gaya...
ReplyDeleteइन नौजवानों से यही शिकायत है हमें, खोज-पड़ताल बहुत करते हैं. अरे भैया, कभी तो चचा की बात पर विश्वास कर लिया करो - चाहे जैसे भी जोड़े, पहिये तो १३८ ही निकले ना! हमारी किस्मत में तो १३८ पहियों की कोई गाडी कभी दिखी नहीं. अलबत्ता, रेलगाडी के पहिये गिनने का कभी मौका ही नहीं लगा, दौड़ती ही इतना तेज़ है.
ReplyDeleteहमारे निमाड़ मे अक कहावत है 'उजजड़ गाँव म उट को तमाशो 'मतलब फूहड़ गाँव मे अगर उट भी आ जाए तो तमाशा बन जाता है
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पढ़कर ऐसा ही लगा |खैर अपने खोज बिन करके शी जानकारी जुटाई उसके लिए धन्यवाद |
'
शोभन
रोचक.... 128 पहिए... :)
ReplyDeleteप्रिय अभिषेक /मेरे ब्लॉग पर आज आपकी टिप्पणी पढी /अब में आपसे क्या क्या अर्ज करूं /एक कहानी कार ने कहानी लिखी ""कफ़न "" और उस कहानी को मुंशी जी कहानी "कफ़न " से श्रेष्ठ बतलाने कीकोशिश की जा रही है कोशिश क्या बल्कि बतलाया जा रहा है कहा जा रहा है की मुंशी जी कहानी अवास्तविक है ,घटना कल्पना से परे है ,वर्णित घटनाक्रम असंभव है /मै थोडा बहुत लिख लेने वाला क्या तो विद्वानों का समर्थन करुँ और क्या विरोध करुँ तुम ""फूस की रात"" .कफ़न " से बढ़िया कहानिया लिखदो ,गोदान से बढ़िया उपन्यास लिखदो कौन मना करता हैमगर यह तुलना कि पुराने साहित्यकार की कहानी ख़राब थी और हमारी अच्छी है /मै आपसे अनुरोध करूंगानबम्बर ,दिसम्बर ०८ एवं जनवरी ,फरवरी ,मार्च ०९ कीपाखी पत्रिकाओं का एक बार पुन : अवलोकन करने का कष्ट करें -फूस की रात कहानी की आलोचना का विरोध मैंने भी किया है फरवरी ०९ में विरोध प्रकाशित हुआ है
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