पिछली पोस्ट पर मुझसे छुट्टी का हिसाब माँगा गया. १७ पोस्ट तो शायद नहीं हो पाए पर लेखा जोखा तो अब देना ही पड़ेगा. आज दिल्ली तक की डायरी.
और मिल गयी छुट्टी: हमारे ऑफिस में साल में एक बार लगातार एक सप्ताह (५ कार्य दिवस) की छुट्टी लेना अनिवार्य है. अगर दिसम्बर तक लगातार एक सप्ताह की छुट्टी ना ली जाय तो आपको जबरदस्ती घर भेजा जायेगा. ऐसे ब्लाक लीव के नियम बनाने वालों को भगवान लम्बी उम्र दे :-) २७ मार्च को गुडी पडवा की छुट्टी से लम्बा सप्ताहांत वैसे ही था और इधर १० अप्रैल को गुड फ्राइडे. तो एक सप्ताह में ब्लाक लीव और दुसरे सप्ताह में ४ दिन की छुट्टी... इस तरह जो ९ दिन की छुट्टी मैंने ली वो १७ दिन की हो गयी. एक तो मैं छुट्टी ऐसे समय पर लेता हूँ जब ऑफिस में कोई और ना ले रहा हो. साधारणतया सब लोग एक ही साथ छुट्टी लेना चाहते हैं जैसे होली, दिवाली इत्यादि. हमारी दो की टीम में से एक को ऑफिस में रहना जरूरी है और जब अजित की तरह का होनहार कलिग हो तो फिर काहे की चिंता :-) इस तरह थोडी सी ओप्टिमाइजेशन लगाने पर हमारी छुट्टी मान्य हो गयी.
जो होता है अच्छे के लिए: कम से कम एक महिना पहले तो बताना ही पड़ता है छुट्टी के लिए. पर हम तो दो महिना पहले ही बता के बैठे थे... तो टिकट भी करा लिया. पर इस बीच लम्बे सप्ताहांत में ऑफिस के लोगों ने गोवा जाने की योजना बनाई. पर हमारे मन ने गोवा की चकाचौंध के आगे घर जाने को ज्यादा तरजीह दी और हमने अपनी योजना नहीं बदली. पर अच्छी यात्रा के लक्षण पहले ही दिखने लगे... हमने बड़ा सस्ता टिकट कराया था पुणे से दिल्ली का जेटलाइट में. १० दिन पहले पता चला की फ्लाईट ही रद्द हो गयी ! जय हो ! उन्होंने कहा की आप अपना पैसा वापस ले लीजिये. मैंने कहा 'वाह भाई ! आपने कह दिया और मैं पैसे ले लूं और अब उससे ४ गुना पैसा देकर मैं टिकट लूं? मैं वापस नहीं लेता आप मुझे किसी तरह २६ की रात में दिल्ली पहुचाओ !' शायद पहली बार पैसे को ना कहा होगा मैंने. अब बेचारे क्या करते उसी टिकट को अपडेट कर मुझे उसी दिन शाम को जेट एयरवेज का टिकट मिल गया.
ऑफिस से निकलने में देर हो गयी और हमारे रूम पार्टनर की बाइक से दौड़ते-हांफते ६.३० बजे एयरपोर्ट पहुचे तो पता चला की ७ बजे और उसके बाद की सारी फ्लाईट रद्द ! उफ़ ! पर फिर कमाल... गौर से देखा तो ७ बजे की एक फ्लाईट रद्द नहीं हुई थी. और हम एक बार फिर लकी... अब ३ एयर होस्टेस में कौन कैसी थी ये आपको नहीं बता रहा बेकार में पोस्ट लम्बी हो जायेगी :-)
भूख लगी हो तो कुछ भी अच्छा लगता है: नयी-नयी ब्लैक स्वान खरीदी गयी थी तो थोडी देर पढने की कोशिश की गयी. पर दिन में लंच करने का भी समय नहीं मिल पाया था और भूख बड़े जोर की लगी थी. हम खाने पर टूट पड़े... हमारे बगल की सीट वाले महानुभाव उस समय तो चुप थे पर अभी मैंने शुरू ही किया था की खाने को गालियाँ देने लगे. 'कितना बेकार खाना है !' अब हमने भी हामी भर ही दी और ना चाहते हुए भी थोडा छोड़ना ही पडा. अरे ये भी कोई तरीका होता है? हाय न हेल्लो... सीधे खाना बेकार है ! आप को एक सलाह देता हूँ अगर कोई भूखा खा रहा हो तो जब तक वो पूरा खा न ले खाने की बुराई कभी मत कीजियेगा बहुत बद्दुआ लगेगी.
हम असभ्य लोग: खैर यहाँ तक तो ठीक था. पर दिल्ली पहुचते-पहुचते एक बार फिर मन किया की दो-चार लोगों को थपडियाया जाय. जब भी फ्लाईट उतरती है... उतरने के पहले ही लोग फोन चालु करने लगते हैं. क्यों भाई २ मिनट में कौन सा पहाड़ टूट जायेगा? अभी हाल ही में प्रोफेसर रघुनाथन की ये किताब पढ़ी थी और एक बार फिर भरोसा हुआ… हम भारतीय बड़े अनसिविलाइज्ड होते हैं.
~Abhishek Ojha~
(जारी... 'दिल्ली में... ना भूख ना प्यास')
नींद न जाने टूटी खाट, भूख न जाने सूखा भात॥
ReplyDeleteआपको उन तीनों के बारे में कुछ न कुछ तो बताना ही चाहिए। चर्चा करके उत्सुकता जगा दी है आपने।
हवाई जहाज में भी खराब खाना और भूखे लोग? हम तो जानते थे कि वहाँ केवल अघाए लोग पाए जाते हैं। :)
आगे की कहानी सुनाई जाये। एअर होस्टेस विवरण के साथ!
ReplyDeleteआपने हिसाब देना शुरु तो किया. पूरा जवाब आने पर फ़ैसला दिया जायेगा कि कितना छुपा लिया गया है. और फ़ुरसतिया जी की बात का जरा विस्तार में जवाब दिया जाये.:)
ReplyDeleteरामराम.
ताउ की बात में मेरी भी सहमति समझी जाए :)
ReplyDeleteअनसिविलाइज्ड होने का विश्वास घर से बाहर निकलने पर ही होता है।
ReplyDeleteरोचक संस्मरण, साझा करने के लिए आभार।
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खुशियों का विज्ञान-3
एक साइंटिस्ट का दुखद अंत
बहुत ही रोचक संस्मरण , जरा विस्तार से लिखे तो पढ़ने में और आनंद आएगा !
ReplyDelete:)
रोचक यात्रा वृत्तांत। चलिए आपकी छुटटी का एक फायदा यह हुआ कि यह सुंदर सी पोस्ट इसी बहाने तैयार हो गयी।
ReplyDelete-----------
आप कैसे हैं
ऊँट का क्लोन
अरे भाई, एक् पोस्ट तो आप एयर होस्टज के ऊपर भी लिख ही डालिये.. ;)
ReplyDeleteवैसे हवाई जहाज में इन सब बातों से मुझे भी बहुत चिढ़ होती है.. किसी और को क्या कहूं, मेरे पापा-मम्मी भी जैसे ही फ्लाईट लैंड करती है वैसे ही उतरने से पहले ही मोबाईल ऑन कर लेते हैं.. :)
ऐसा लगता है हमारी दुखती रग पे हाथ रख दिया है ..यहाँ से सूरत गए ..तो जैसे ही जहाज़ को देखा चकरा गये .छोटा जहाज़ उस पर भी बड़ा बड़ा लिखा ..शेत्रिय.....एयर इंडिया का जहाज़ था ओर विदेसी पाइलट .....ये राज हमें समझ नहीं आया ...वैसे एयर होस्टेस अच्छी थी .पर जब जहाज़ लैंड हुआ ...ऐसा लगा मारुती ८०० सौ की स्पीड पे हाई वे चल रही है ...हमने हाथ जोड़ लिए .की आगे से इस प्रोपेलर (ऐसा ही कुछ नाम बोला था जहाज़ का )में सवारी नहीं करेंगे.....
ReplyDeleteवापसी दो दिन बरोदा से थी....हमारी सामझ नहीं आया की फ्लाईट ढाई घंटे क्यों ले रही है...जेट से वापसी थी ओर भूख भी लगी.थी....हमने पुछा तो वे बोले छोटा जहाज़ है .इसलिए...लो कल लो बात ....
खैर भूख लगी थी....शुक्र है खाना अच्छा था.....हमने कुछ नहीं छोडा ...सेवंया तक खा ली पहली बार
बहुत बढ़िया लगा पढ़कर. आगे की कहानी का इंतजार.
ReplyDeleteवैसे एक बात है अभिषेक. बहुत लकी हो भाई. (ये केवल फिफ्टी परसेंट लक के बारे में. बाकी के बारे में अगली पोस्ट में एयर होस्टेस के बारे में पढने के बाद.)
आगे का इन्तिज़ार है ...आगे पढ़ कर कुछ कहूँगी :-)
ReplyDeleteपुणे से दिल्ली तक का सफर तो पढ़ा पर पहले यह बताओ कि दिल्ली रुके या गए :)..और साथ ही यह भी कि इन छुट्टियों का पूरा लेखा जोखा जो भी दूंगा सच दूंगा सच के सिवा ...:)
ReplyDeleteअभिषेक भाई, इसी तरह, आगे भी पढने की इच्छा है -
ReplyDeleteसुँदर प्रयास ! :)
स - स्नेह,
-लावण्या
मुझे अपनी पर-नानी की याद आ गयी। अन्न और भोजन के अपमान को वह बहुत बुरा मानती थीं और हम बच्चों को हमेशा सिखाया था कि भोजन को ईश्वर का प्रसाद मानो।
ReplyDeleteन भूलने वाले संस्मरण में सहभागी बनाने के लिए धन्यवाद .
ReplyDelete@रंजना [रंजू भाटिया]: रंजनाजी दिल्ली से अगले दिन शाम को चला गया और बीच जो व्यस्तता थी वो अगले पोस्ट में आएगी. और बिलकुल सच, सच के सिवा कुछ नहीं :-)
ReplyDeleteसही बह रहे हैं..आगे की धार लाओ!!
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ReplyDeleteउन्होंने कहा की आप अपना पैसा वापस ले लीजिये. मैंने कहा 'वाह भाई ! आपने कह दिया और मैं पैसे ले लूं और अब उससे ४ गुना पैसा देकर मैं टिकट लूं? मैं वापस नहीं लेता आप मुझे किसी तरह २६ की रात में दिल्ली पहुचाओ !' शायद पहली बार पैसे को ना कहा होगा मैंने. अब बेचारे क्या करते उसी टिकट को अपडेट कर मुझे उसी दिन शाम को जेट एयरवेज का टिकट मिल गया.
ReplyDeleteKudos & hats off! for standin' up and making them do what they should have done at the first place.