Apr 22, 2009

छुट्टी कथा: दिल्ली में... ना भूख ना प्यास

रात को ९ बजे दिल्ली... बाहर निकलते ही भईया मिल गए फिर १.३०-२ घंटे लगे होंगे नॉएडा पहुचने में. फिर जो बातों का सिलसिला चला तो कब सुबह के ४ बजे पता ही नहीं चला. ३ घंटे की नींद और फिर वही... तीन भाई और अनगिनत बातें... ना भूख न प्यास ! [तीन नालायक :-)]

ना भूख ना प्यास: वो तो भला हो एक सज्जन का जो किसी काम के सिलसिले में मिलने आ गए उनके लिए मिठाई की व्यवस्था की गयी और घर पे कुछ संतरे पड़े थे. वर्ना नए साल का पहला दिन (२७ मार्च) खाली पेट ही निकल जाता. शाम को ४ बजे भईया को डॉक्टर के पास जाना था तो सब उधर ही निकल लिए फिर बाजार. रात को ८-९ बजे लौटे. इस बीच हमारी मित्र मंडली के बीसियों फोन आये तो हमने सोचा की उनसे ना मिला गया तो... खैर रात को ९ बजे स्नान करके और बड़े भाइयों को कुछ खाने की हिदायत देकर ११ बजे मैं पीवीआर साकेत पहुचा. उसी दिन एक मित्र  ने सिविल सेवा की परीक्षा का साक्षात्कार दिया था. जब तक रास्ते में था फोन पर उनके साक्षात्कार की चर्चा चली. रास्ते में कैब से उतरा तो एक ऑटो वाले ने जो मदद की... लगा इंसानियत अभी जिन्दा है. यात्रा में मिले अच्छे-बुरे लोगों की चर्चा आखिरी पोस्ट में.

ये दोस्ती: वहां कॉलेज के ५ दोस्त जमा हुए २४ घंटे की भूख के बाद जम के खाया गया. और फिर सुबह के ५ कब और कैसे बज गए पता ही नहीं चला. ये कुछ ऐसे दोस्त हैं जो दोस्ती की परिभाषा हैं... इनसे दोस्ती को परिभाषित किया जा सकता है. ये उन दिनों के दोस्त हैं जिन दिनों परीक्षा में एक किताब के दस टुकडे कर के पढ़े जाते. किसी एक के चेक बुक से १० लोगों का मेस बिल भरा जाता. एक का परफ्यूम पूरे २० लोग लगाते और 'जरा दिखाओ कैसा है' यही देखने में ख़त्म हो जाता. पार्टी-शार्टी में एक के कपडे पांच लोग पहनते. कमरों में कभी ताला नहीं लगता... अपने कमरे को छोड़कर कोई कहीं भी पाया जा सकता था. अगर एक दुसरे को पढाया नहीं गया होता तो शायद कोई पास नहीं हुआ होता. वो दोस्त जिन्हें सुबह के ४ बजे कह दो कि भूख लगी है तो बाइक से जीटी रोड का हर एक ढाबा स्कैन कर दिया… कहाँ क्या मिलेगा. भूख तो दूर कि बात बस कह दो कि चाय पीने का मन है ! अनगिनत यादें... अनगिनत बातें. कुछ डाउनलोड की गयी फिल्में भी इधर से उधर की गयी. क्या-क्या लिखा जाय ! अगर वे ना होते तो शायद जिंदगी कुछ और होती, मैं वो ना होता जो हूँ… क्या होता पता नहीं ! इन दो सालों से कम वक्त में ही कितना कुछ बदल रहा है… सुबह ६ बजे मैं फिर नॉएडा के लिए निकल गया.

अटेंडेंट कुरियर सर्विस: नॉएडा पहुँच कर फिर बतरस...  पुराना कंप्यूटर घर ले जाने के लिए पैक किया गया. और फिर शाम को स्टेशन, आज का दिन भी बिना खाए पीये निकल गया. ना बनाने की सुध न बाहर जाने की फिकर, ऑर्डर करने तक का नहीं सूझा ... 'थोडी देर में चलते हैं' करते-करते शाम हो गयी. स्टेशन पर एक दुसरे को खा लेने की नसीहत जरुर दी गयी. स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस में एक नयी बात पता चली कोच के अटेंडेंट कुरियर कंपनी की तरह भी काम करते हैं. अब कितनी जायज-नाजायज चीजें भी वो ट्रासपोर्ट करते होंगे ये तो अपने को नहीं पता. पर जितना हमने देखा ये काम बड़े सहज तरीके से होता हैं. आप एक प्लेटफोर्म टिकट लेकर दिल्ली में सामान अटेंडेंट तक पंहुचा दीजिये और फिर अगले दिन निर्धारित स्टेशन पर आपका कोई आदमी आकर सामान ले जायेगा !

दिल्ली में बारिश और ट्रेन लगभग एक साथ ही चालु हुए...पिछले दो रातों को मिलकर ४ घंटे की नींद और भाग-दौड़ के बाद रात के ९ बजे जो नींद आई तो अगले दिन सुबह ११ बजे बनारस में किसी ने उठाया. उठने के बाद पता चला की ट्रेन में बड़े मजेदार लोग हैं, और सोने के पीछे एक मजेदार पोस्ट चली गयी :-)

एयर होस्टेस सुपर हिट: पिछली पोस्ट पर जेट एयरवेज की तीनों एयर होस्टेस हिट हो गयी. हवाई जहाज से कहीं पहुँचने पर दोस्तों का बाई डिफॉल्ट पहला सवाल एक ही होता है 'एयर होस्टेस कैसी थी?' यही नहीं जो छोड़ने आया था उसको फोन किया तो उसने भी यही पूछा. मुझे लगा की ये हमउम्र दोस्तों तक ही सीमित होगा पर पिछले पोस्ट पर अगर कुछ बिका तो एयर होस्टेस. अब आपने कहा की सब सच-सच लिखना है तो लिखे देते हैं. हमने तो इस बार यही जवाब दिया ‘जहाज में जाते ही पैसा वसूल हो गया, आज पहली बार यकीन हुआ की एयर होस्टेस अच्छी होती हैं ! वर्ना अब तक तो... '
इसके बाद कुछ अच्छी के लिए कुछ शब्द भी इस्तेमाल होते हैं वो सब तो आप जानते ही होंगे ... [उदहारण के लिए एक शब्द 'ग़दर-ए-गर्दिश' वैसे तो इन शब्दों की डिक्शनरी बहुत बड़ी है :)].

और हाँ हम इतने लेट से एयरपोर्ट पहुचे थे की आखिरी लाइन में सीट मिली थी. यूँ तो हम किताब बहुत एकाग्र होकर पढ़ते हैं और उस दिन भी आँखें किताब पर गड़ी रही लेकिन कान तो पूरे रास्ते उन तीनों की बात ही सुनते आये... अब किसी की व्यक्तिगत बातें तो ब्लॉग पर सार्वजनिक नहीं की जा सकती ना. वैसे लडकियां आपस में बड़ी रोचक बातें करती हैं... चाहे एयर होस्टेस ही क्यों ना हों !

~Abhishek Ojha~

(जारी...)

19 comments:

  1. संस्मरण बढ़िया चल रहे हैं। होस्टल के दोस्तों के किस्से और एयर होस्टेस की बारे में पढ़कर मजा आया। आनंदित हुये।

    ReplyDelete
  2. तेज, बहुत तेज
    चलती हुई जिन्दगी में
    कभी आता है
    अचानक ठहराव
    क्षण भर को ही
    तब नही लगती भूख भी
    भूल जाते हैं भोजन
    याद रहता है केवल साथ
    केवल साथ,
    ऐसा नहीं होता कभी
    जानवरों के साथ ।

    ReplyDelete
  3. एयर होस्टेस के ग्लैमर से पहला परिचय मेरा भवानी भट्टाचार्य के उपन्यास Shadow from Laddakh से हुआ था। उसके नायक की एक महिला मित्र थी एयर होस्टेस।
    लेकिन एयर होस्टसिया ग्लैमर कभी जिन्दगी में नहीं दिखा कि पोस्ट ठेल सकें। अपना अपना भाग्य! :(

    ReplyDelete
  4. भाई आगे की कथा का इंतजार बेसब्री से कर रहा हूं. पता नही आपने क्या बातें सुनली एयर होस्टेसों की. हम तो अभी बंगलोर गये थे तो हमको तो वहां भी जहाज मे ताऊ संबोधन ही मिला. इसलिये उनकी आगे की बाते हमने सुनकर भी नही सुनी.अपना अपना भाग्य.:)

    ReplyDelete
  5. अच्‍छा है। आपकी छुट्टी का कुछ आनंद हम भी उठा रहे हैं। पढ़ाई के वक्‍त के दोस्‍तों की तो बात ही निराली होती है। एक बार फिर उसी वक्‍त में पहुंच जाने को मन करने लगता है।

    ReplyDelete
  6. हमारी तो कई फ्रेंड्स ही एयर होस्टेस है.. पर उनको तो हम कहते है बंटाधार कर दोगी एयर लाइंस का..

    वैसे दिल्ली से जयपुर ज्यादा दूर भी नहीं है..

    ReplyDelete
  7. क्या कहे भाई.....दिलचस्पी को तो तुमने डब्बे में बंद कर सेंसर कर दिया .....पर हाँ ऐसा लगता है पुराने दोस्त ओर भूख दुनिया में हर जगह एक सी होती है.....

    ReplyDelete
  8. दिल्ली आ कर न मिलना अच्छा नहीं होता अभिषेक जी ..:) दोस्ती सबकी इस तरह ही मजेदार होती है .पुरानी जींस और गिटार वाले गाने की तरह :).अफ़सोस कि वह दिन फिर वापस नहीं आते हैं ......और कान कहीं पर निगाहें कहीं पर ..:) जारी रखो ...पढ़ रहे हैं हर कोण से आपकी इन यादों को :)

    ReplyDelete
  9. रोचक यात्रा विवरण... पिछली पोस्ट मे भी भूख का ज़िक्र है... शायद सही कहा गया है कि
    "बिन भोजन भजन न होय"

    ReplyDelete
  10. @रंजना [रंजू भाटिया]: रंजनाजी मैंने तो आपके कहे अनुसार सब सच लिखा है. दो दिनों में एक-एक मिनट व्यस्त रहा. दोस्तों से किस तरह मिल पाया ये तो आपने देखा ही. वैसे ये नहीं कहूँगा की मेरी गलती नहीं है. अगली बार दिल्ली आने पर मिलने का वादा, इस साल के अंत तक पक्का. इस बार के लिए तो आप माफ़ कर ही देंगी :-)

    @कुश: वैसे तो जयपुर दूर नहीं है पर भाई दिल्ली में ही ये हाल था तो दिल्ली से बाहर निकल पाना इस बार संभव नहीं था. अगली बार दिल्ली में ज्यादा देर रुका जायेगा. एक दिन ब्लोगर दोस्तों के नाम.

    ReplyDelete
  11. बहुत बढिया चल रहा है यादों का ये सिलसिला .. लिखते चलें।

    ReplyDelete
  12. रोचक व बढिया संस्मरण।

    ReplyDelete
  13. "..एक किताब के दस टुकडे कर के पढ़े जाते. किसी एक के चेक बुक से १० लोगों का मेस बिल भरा जाता. एक का परफ्यूम पूरे २० लोग लगाते और 'जरा दिखाओ कैसा है' यही देखने में ख़त्म हो जाता. पार्टी-शार्टी में एक के कपडे पांच लोग पहनते..."

    वाह अद्भुत ये दोस्ती ऍसी ही बनी रहे...

    ReplyDelete
  14. भाई, अगर ये बता दो कि इंडियन एअरलाइन (आजकल एयर इंडिया) की फ्लाईट से यात्रा की तो एयर होस्टेस के बारे में पूछने वाले लोग सहानुभूति दर्शाते हैं.

    ReplyDelete
  15. भाई, किस्से पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई. बहुत शानदार पोस्ट. दोस्ती ऐसे ही बनी रही, यही कामना है.

    ReplyDelete
  16. अपने मन की दुनिया में मिलने पर आदमी भूख प्‍यास सब भूल जाता है।

    -----------
    TSALIIM
    SBAI

    ReplyDelete
  17. एयर होस्टेस की बारे में विवरण मजेदार और संस्मरण का क्या कहना .

    ReplyDelete
  18. आज फुरसत में हूँ तो संस्मरण की पिछली किश्‍तें पढ़ अब इस इस अनूठी छुट्टी-कथा पर ठिठका हुआ हूँ..
    गदरे-गर्दिश ने ठहाका लगाने पर विवश किया और आपकी लेखन-शैली ने नत-मस्तक होने को

    अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार

    ReplyDelete
  19. मजेदार -आगे की प्रतीक्षा है !

    ReplyDelete