गर्मी की एक खुली हवादार रात में एक गाँव का छत:
दूर साइकिल पर लाउडस्पीकर का लंबा भोंपू बाँध कर ले जाता लाउडस्पीकरवाला और हवा के झोंके के साथ आती एक 'क्लासिक' गाने में विविधता, कमी-बेशी, झिलमिलाहट... क्या आपने कभी सुना है?
--
कल सड़क पर लाउड स्पीकर देखकर यूँही एक रात याद आ गई !
~Abhishek Ojha~
सुना तो है ही-अक्सर मिस भी करता हूँ.
ReplyDeleteसुनते हैं अक्सर!
ReplyDeleteबहुत सुना है! 1965 के युद्ध के वक्त रेडियो भी इने गिने हुआ करते थे तब हर घंटे समाचार नगरपालिका के हर चौराहे पर बिजली के खंबों पर टांगे लाउडस्पीकरों से ही हम तक पहुंचते थे। आप ने वह दृश्य सजीव कर दिया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! पुरानी यादे ताजा हो रही है ! आज शास्त्री जी के चिट्ठे पर बालपेन की कहानी है और आपने ये तवा वाला भोंपू याद दिला दिया !
ReplyDeleteरामराम !
hmmmmmmmmmm bouth he jada aacha post hai yar
ReplyDeletenice blog keep it up
Site Update Daily Visit Now link forward 2 all friends
shayari,jokes,recipes and much more so visit
http://www.discobhangra.com/shayari/
अब तो किसी मन्दिर पर कोई कीर्तन या किसी मस्जिद पर अजान सुनाई दे जाती है
ReplyDeleteहम्म दिखता है यह अभी भी गुरुद्वारे पर
ReplyDeleteयह तो सुनते ही रहते हैं - यूपोरियन परिदृष्य का यह अनिवार्य अंग है।
ReplyDeleteवैसे आजकल सर्दी है। मेरे घर के बगल के गंगा के कछार में सियार रहते हैं। रात में ठण्ड लगती है तो चेन रियेक्शन में हुआं हुआं करते हैं। रोज रात में सुनाई पड़ता है बेडरूम में।
हम तो चौबीसों घंटों सुनते ही रहते हैं। हमारा गांव जीटी रोड के किनारे है..अक्सर वाहन में लाडस्पीकर बांध कर प्रचार करनेवाले गुजरते रहते हैं। ट्रकचालक बोरियत मिटाने के लिए रात को टेप बजाते हैं, वह भी सुनाई देता है। जब खेत वाले घर में होते हैं तो रात में सीजन के अनुसार झींगुर, मेढक और सियार की आवाज भी सुनाई देती है।
ReplyDeleteसुना तो है!!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteयही तो सच्चा भोंपू है!!!
अभी हमारे शहर में चुनावो के समय थोक में चुंगा (भोपू) देखने को मिले. कभी कभी मुंह से बोलने भोपू भी देखने को मिल जाता है . वैसे ये भौपू आज भी चलन में है .
ReplyDeleteमुझे यह भोपू मन्दिरो,मस्जिदो ओर गुरु दुवारो पे लगा ओर शोर मचाता दिख जाता है, लेकिन सच बात यह है की श्राधा की जगह गुस्सा ज्यादा आता है, क्योकि हमारा सब का मालिक बहरा नही फ़िर जिस ने भी अपने ईष्ट का नाम लेनी है वह खुद ही लेलेगा, फ़िर यह भोपू किस लिये????यह शोर शराबा किस लिये?? यह दिखावा किस लिये??
ReplyDeleteयादोँ मेँ आज भी दीख जाता है
ReplyDeleteकाश कि,
शाँति और अमनो- चैन का सँदेशा ही फैलाता रहे ये !
भइये, हमें तो ये भोंपू बहुत कष्ट देता है। चाहे किसी के घर शादी हो या कोई धार्मिक आयोजन, जब तक बजता है, मजाल है कोई सुकून से अपना काम कर सके।
ReplyDeleteखूब सुना है, झीना झीना भी.
ReplyDeleteमैंने सुना तो है ..पर यह की "नक्सली गांव की तरफ़ आ गएँ हैं कृपया घर के दरवाजे बंद कर लें,धैर्य और शान्ति बनाये रखें"
ReplyDeleteअभिषेक जी, मुझे गर्मी की रातों में छत पर सोने में अक्सर डर लगता था, लेकिन दूर कहीं काली माई के थान पर हो रहे कीर्तन की आवाज़ से ढाढस बंधा रहता था.
ReplyDeleteवहीं अक्सर किसी न किसी गाँव में चल रही 'नाच' का गाना सुनाई पड़ जाता था- "आधी-आधी रतिया के बोले कोइलरिया"
अब तो वहां भी यह परम्परा समाप्तप्राय है. सिर्फ़ चुनाव प्रचार में ही भोंपू दिखाई देते हैं.
purani yaadon ki misri ghulti rahi.....hum andekhe ko nihaarte rahe....
ReplyDelete...ऐसी यादें बहुत कष्ट देती हैं आजकल
ReplyDeleteचिंता ना करें बंधुवर अभी इलैक्शन आने वाले हैं गांव-घाट नगर चौराहों पर भी खूब दिखेंगें
ReplyDeleteदो हफ्ते पहले लाजपतराय मार्केट(लाल किले के पास) गया था, इस इलेक्ट्रोनिक बाजार के एक कोने में यह लाउड स्पीकर थोक में दिखा था, देखते ही सोचा कि दिल्ली में क्या अब भी इसकी उपयोगिता बची है।
ReplyDeleteतांगे में बंधे भोंपू, फिंकते गुलाबी पर्चे और तांगे के पीछे पीछे दौडते हम और बजता हुआ गाना
ReplyDeleteहो ओ बचपन के दिन भुला न देना..........