Nov 30, 2008

झिलमिलाता लाउडस्पीकर (माइक्रो पोस्ट)

गर्मी की एक खुली हवादार रात में एक गाँव का छत:
दूर साइकिल पर लाउडस्पीकर का लंबा भोंपू बाँध कर ले जाता लाउडस्पीकरवाला और हवा के झोंके के साथ आती एक 'क्लासिक' गाने में विविधता, कमी-बेशी, झिलमिलाहट... क्या आपने कभी सुना है?


LoudSpeaker

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कल सड़क पर लाउड स्पीकर देखकर यूँही एक रात याद आ गई !
~Abhishek Ojha~

Nov 28, 2008

भारत का ९/११ ?

भारत का ९/११?

करीब २ महीने पहले किसी ने मुझसे न्यूयॉर्क में कहा था: '९/११ को अमेरिका में सात साल हो गए. उसके बाद कोई अगर अमेरिका में आतंकवादी कार्यवाही की 'सोचता' भी है तो उसे सीआईए वाले पकड़ के ले जाते हैं !'

भगवान करे यह घटना इस सड़ी राजनीति और नेताओं के लिए यह '९/११' साबित हो.

क्या इससे घटिया गृहमंत्री सम्भव है? गृहमंत्री 'लौहपुरुष' होना चाहिए... जो है उसके लिए अभी कुछ नहीं सूझ रहा !

ज्ञानजी की टिपण्णी के बाद:

One more thing I don't understand 'what the f**k will ISI chief will do here? defend his country?'

~Abhishek Ojha~

Nov 27, 2008

मुंबई

धमाके...
भय...
क्षुब्धता....
आतंक...
गुस्सा...
निष्फलता...
अव्यवस्था...
समाप्य बेकार संसाधन...
जूझते जांबाज...

१५ घंटे बाद भी जारी है.

इस बार कायरता कम, हमला ज्यादा?
क्यों? कैसे? कौन?
आख़िर कब तक?
इस मुद्दे पर राजनीति... क्यों नहीं? पर आज नहीं, कुछ दिनों के बाद !

सलाम उनको जिनके सरकारी 'बुलेट-प्रूफ़' जैकेट को चीर कर गोली लगती है.
श्रद्धांजली उन्हें जिनकी जगह 'हम' कभी भी हो सकते हैं.


शोक ! शोक !! शोक !!!



~Abhishek Ojha~

Nov 23, 2008

चिकन अलाफूस: खाया है कभी?

'चिकन आलाफूस नहीं है क्या मेनू मे?'

'नहीं सर '

'क्या? नहीं है? अरे यार फिर क्या खाएं? ! कैसा रेस्टोरेंट है... मैनेजर को बुलाओ'

'सर क्या हुआ?'

'ये चिकन आलाफूस क्यों नहीं है? हर रेस्टोरेंट मे मिलने लगा है आजकल तो'

'सर ये रेसिपी हमें पता नहीं... अगली बार पता करके जरूर शामिल कर लेंगे'

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ये हम अक्सर करते...

बी आर चोपडा की फ़िल्म 'छोटी सी बात' मे इसका जिक्र आता है। हमारे हॉस्टल मे अंग्रेजी फिल्मों का ही बोलबाला रहता पर कुछ हिन्दी फिल्में बड़ी लोकप्रिय हुई जिनमें ये भी थी। कम बजट की लगने वाली सीधी-सादी मनोरंजक फ़िल्म. (शायद इसलिए भी लोकप्रिय हुई कि कई लोग आमोल पालेकर के इस किरदार से अपने आपको जोड़कर देखते... इसी तरह राजपाल यादव अभिनीत 'मैं,मेरी पत्नी और वो' भी बड़ी सराही गई. शायद अपना चरित्र-चित्रण मिला कई लोगों को :-)

इस फ़िल्म की दो बातें कुछ लोगों को बड़ी मजेदार लगी... एक तो अशोक कुमार द्बारा निभाये गए किरदार का नाम 'जुलियस नागेन्द्रनाथ विल्फ्रेड सिंह' और दूसरी 'चिकन आलाफूस'। अब ये बातें कुछ ऐसे लोगों को पसंद आ गई जिन्हें अगर कुछ पसंद आ जाए तो बाकी लोगों को पसंद करवा देना उनका काम होता। और दोनों नाम भी रोचक तो थे ही तो धीरे-धीरे प्रसिद्धि पा गए। और लगभग हर बार रेस्टोरेंट मे पूछा जाने लगा। (मैं शुद्ध शाकाहारी ! लेकिन ये रेसिपी इस कदर नहीं मिली कि मैंने कहा चलो अगर ये रेसिपी मिल गई तो मैं ट्राई कर लूँगा... अब अगर कहीं मिल जाती तो क्या होता... !)। कई बार तो हमारे कलाकार मित्रों ने बाकायदा रेस्टोरेंट वालों को ये भी समझा दिया कि अमेरिकन और फ्रेंच फ्यूजन है ! कैसे बनता है ये भी बता देते :-)

खैर धीरे-धीरे ये कम हुआ और फिर ख़त्म... पर क्या ऐसा नहीं है कि ऐसे ही कई काल्पनिक नाम और मनगढ़ंत घटनाएं इतनी लोकप्रिय हो जाती है कि हम उसे वास्तविक मानने लगते हैं? निर्भर इस पर करता है कि बनाने वाला कितना रचनात्मक है... कितनी धाँसू कल्पना कर सकता है। शायद इसे ही कवि-सत्य कहते हैं... या फिर फ़िल्म-सत्य? क्योंकि कवि-सत्य तो कवि की कल्पना होती है तो इसे फ़िल्म-सत्य कहना ही ज्यादा उचित होगा.

काल्पनिक के अलावा कुछ वास्तविक चीजों की भी लोकप्रियता फिल्मों से बहुत बढती है। कवियों ने बहुत सारे कवि-सत्य तथ्य पैदा तो कर दिए पर चीजों को लोकप्रिय बनाने में फिल्मों के सामने कहीं नहीं टिक पाये. स्विस में गायों की कुछ बड़ी घंटीयाँ भारतीय पर्यटक जितने में खरीदते हैं उतने में भारत में गाय आ जायेगी ! और 'दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे ' का इस घंटी-विक्री में बहुत बड़ा योगदान दिखता है... फिर फिल्मों में दिखाई गई जगह ढूंढ़ कर वहां फोटो खिचवाना तो आम बात है.

और कुछ हो ना हो आतंरिक पर्यटन बढ़ाने में फ़िल्म उद्योग बड़ा अच्छा काम कर सकता है, अपने देश में अच्छे जगहों की कोई कमी तो है नहीं। पर बाहर शूटिंग करने का मजा भी तो कुछ और होगा, ये तो फ़िल्म-बनाने वाले ही जानें.

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फिलहाल ये आलाफूस युनुसजी की 'छोटी सी बात' वाली श्रृंखला की इस टिपण्णी से आई। आभार.

~Abhishek Ojha~

Nov 10, 2008

बिन बताये ब्लॉग्गिंग छुडाएं !

पिछली बार जब ब्लॉगरी और माडर्न आर्ट लिख दिया तो एक कलाकार दोस्त बड़े दुखी हुए उनका कहना था कि तुम्हारी ब्लॉग वाली बात तो सही है लेकिन माडर्न आर्ट तुम क्या जानो?

मैंने भी कहा देखो भाई मैं तो ब्लॉगरी भी नहीं जानता माडर्न आर्ट तो दूर की बात है... पर तुम तो आर्टिस्ट हो ही, कभी ब्लॉग लिख के भी देख लो. अब इसी बात पर उन्होंने ब्लॉग बना डाला... और ऐसे डुबे की नींद ही ख़राब कर ली. रात को हर एक १० मिनट के बाद अपने लैपटॉप पर F5 दबा-दबा के टिपण्णी चेक करते रहे. क्या करते बेचारे कुछ भी लिख कर डरे हुए रहते:

'क्या लिख डाला है लोग गालियाँ न दें !' और उधर से जो वाह-वाह की टिपण्णी आनी चालु हुई की सिलसिला थमा ही नहीं...

पर इन सब में एक समस्या भी आ गई... अब बेचारे ठहरे शादी-शुदा आदमी और इधर बीबी परेशान. पहले तो बेचारी के पल्ले ही नहीं पड़ा... लगा कहीं दारु तो नहीं पीने लगे...

'ये एक नया नाटक क्या चालु हो गया, पहले उलूल-जुलूल कैनवास पोतते रहते थे अब नींद में भी हाथ F5 पर ही रहता है, पता नहीं क्या बडबडाते रहते हैं !'

खैर धीरे-धीरे पता चल गया की इस नशे को ब्लॉग्गिंग कहते हैं।

अब अखबार में 'बिन बताये शराब छुडाएं' तो आता है पर 'बिन बताये ब्लॉग्गिंग?' कभी ना सुना ना देखा... अब करती भी क्या बेचारी ! ये नए जमाने में कैसी-कैसी बीमारियाँ और कैसे-कैसे नशे आ रहे हैं... क्या होगा इस दुनिया का। झूठ का ही पंडितजी जपते हैं 'कलियुगे कलि प्रथम चरणे...' अरे ये प्रथम है तो अन्तिम कैसा होगा?

अब बीवी ने एक दिन एक-आध पोस्ट भी पढ़ ली... एक-आध ही पढ़ पायी, पूरी पढने के पहले ही अश्रु धरा बह निकली. बचा-खुचा काम भी हो गया.

'हे भगवान् ये क्या-क्या लिखते हैं... ये पहला-प्यार, दूसरा प्यार? मुझे तो कभी नहीं बताया ! और ये ट्रेन में क्या-क्या देखते हैं? कौन-कौन से अनुपात नापते हैं? ऑफिस में भी... राम-राम ! यहाँ पूरी दुनिया को सब सुना रहे हैं और मुझसे इतना बड़ा धोखा?'

अब उनकी भी गलती है लिखने के पहले पत्नी को भरोसे में लेना चाहिए था... उन्हें तो लगा था की इसको इन्टरनेट से क्या मतलब?... लिखते थे खुल के. अरे भाई टेक्नोलॉजी का ज़माना है आज ना कल उसे तो इन्टरनेट पे आना ही था... देख लेते कहीं पता चलता कि आपसे पहले से ब्लॉग है उसका. पर पुरूष ठहरे उन्हें तो लगा की बस ये हमीं लिखेंगे और हमारे जैसे ही पढेंगे.

अब मैंने ही भड़काया था तो पकड़ा भी मैं ही गया। भाभीजी ने पूछा:

'कोई उपाय बताओ? ब्लॉग्गिंग का तो नाम लेते ही भड़क जाते हैं... ये सौतन पता नहीं कहाँ से पैदा हो गई है. आप ही बताओ कोई बिना बताये छुडाने का तरीका है क्या?'

अब मैं क्या बताऊँ ! बीच में मुझसे ये भी पूछ लिया 'आप तो बीच-बीच में गायब हो जाते हैं कैसे मैनेज करते हैं? कुछ लेते हैं क्या?'

हद है कोई लिख रहा है तो समस्या और कोई नहीं लिख रहा है तो शंका ! मैंने दिलासा दे दिया ... 'जैसे ही कुछ समाधान पता चलेगा मैं आपको बता दूंगा !'

बात आई गई हो गई पर मामला ऐसे कहाँ रुकने वाला था... ये ब्लॉग चीज ही ऐसी है सब उगलवा लेता है. हमारे कलाकार मित्र लिखते गए. अब मामला इतना बिगडा की तलाक की नौबत आ गई. देखिये भाई मजाक नहीं कर रहा... बात बिल्कुल सच्ची है आजकल तो खर्राटे लेने के चलते तलाक हो जाते हैं तो ये ब्लॉग (खासकर हिन्दी वाले) तो ... !

फिर मेरे पास आ गयीं बोली कि अब कोई अच्छा सा वकील ढूंढ़ दो ! अब गणितज्ञ या इंजिनियर ढूंढ़ती तो हम दिला देते, किसी वकील को तो जानते नहीं ! एकाएक ख्याल आया और हमने कहा की अरे हम बड़े अच्छे वकील को जानते हैं आप समस्या लिख भेजो... और तीसरा खम्भा पर उन्हें टिका दिया.

अब (बेचारी!) अपनी समस्या भेजने के लिए उन्होंने नई-नई आईडी बनाई और इसी बीच एक दो ब्लॉग और पढ़ लिया... बस हो गया काम ! वही माडर्न आर्ट वाली बात उन्होंने भी अपनी समस्या को लेकर द्विवेदीजी के पास भेजने की जगह पोस्ट ही लिख डाली. पहले दिन कोई टिपण्णी नहीं आई तो रात भार सोयीं ही नहीं... समस्या को मिटाने का एक तरीका ये भी है की नई समस्या में उलझा दो. ये बात अलग है की एक दिन सब आपस में उलझ के इनवेस्टमेंट बैंकिंग की तरह हिसाब मांगने लगेंगे तो दिवाला निकल जायेगा. खैर इस समस्या के लिए वो मेरे पास नहीं आयीं... अब बार-बार मैं कहाँ से जाता मदद करने, तो उनके पतिदेव ने ही दो-चार एग्रेगेटर से जोड़ दिया.

अब आगे बताने की जरुरत है क्या?

अब दोनों खूब लिखते हैं... दिल खोल के लिखते हैं. तलाक की नौबत ही ख़त्म. पर बेचारों को समय नहीं मिल पा रहा... परेशान दम्पति अब मिल कर तरीका ढूंढ़ रही है... एक दुसरे का बिन बताये ब्लॉग्गिंग छुडाने का तरीका !

अब इस दम्पति को आप ढूंढ़ लीजिये ब्लॉग पर... एक तो ऐसे ही इतनी समस्या खड़ी की है मैंने. अब यहाँ पता बताकर और बैर नहीं मोलना चाहता :-)


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आजकल कोई पोस्ट नहीं ठेल पा रहा पर इसके पीछे ये कारण नहीं है की मैं कुछ लेने लगा हूँ... बस एक परीक्षा देनी है वैसे तो ३ देनी है पर अभी एक ही सामने है. उसके बाद थोड़ा नियमित होता हूँ.


~Abhishek Ojha~