कल एक करीबी मित्र का फ़ोन आया. हॉस्टल में हुई इस दोस्ती के मतलब ही अलग होते हैं... इसमें एक-दुसरे की हर एक बात पता होती है. उस समय वो यात्रा कर रहा था और अविलम्ब उसे एक ईमेल किसी को फॉरवर्ड करना था... ये सूचित करने के तुरंत बाद उसने अपना पासवर्ड एसेमेस किया।
यहाँ तक तो सबकुछ ठीक पर उनका पासवर्ड देखकर अचानक ही चेहरे पे मुस्कान आ गई। ये पासवर्ड स्पष्ट रूप से उस लड़की के नाम से बना था जिसे देखकर (देखकर ही क्यों उसके बारे में सुनकर भी) कभी हमारे मित्र का दिल धड़का करता था।
खैर उसके इश्क के किस्से फिर कभी... वो अक्सर कहा करता 'आज फिर से पहला प्यार हो गया !' पर ऐसा पासवर्ड रखा जाना ये तो दिखाता ही है कि उन सारे पहले प्यारों में ये थोड़ा ज्यादा पहला था . *
हाँ इसके साथ ही एक और बात साफ़ हुई... पहले जिस अधूरे प्यार की जगह किसी किताब में, किसी नोवेल में या फिर क्लास नोट्स के आखिरी पन्नों पर होती थी (दिल के किसी कोने में होने के अलावा) उसको एक नई जगह मिल गई है... और कमाल की सुरक्षित जगह है... पासवर्ड ! अभी-अभी एक और फायदा सूझा... पासवर्ड भुलाने की समस्या से मुक्ति ! कुछ भी भूल जाओ ये भूलना थोड़ा मुश्किल है... हाँ अगर आपको रोज एक नई शख्शियत से प्यार हो जाता हो तो थोड़ा मुश्किल है पर उसमें भी वरीयता तो होगी ही !
हर लम्हा तेरी याद दिल में और
तू निगाहों में होती थी,
कभी किताबों में तो
कभी उनमें भटकते-सूखते फूलों पर,
कभी हथेली पर भी तो लिखा करता था...
अब तेरे उस नाम का पासवर्ड बना रखा है !
कहीं आपने भी ऐसा पासवर्ड तो नहीं रखा है? अगर मजबूरी में किसी को बताना पड़ जाए तो आपको कोई समस्या तो नही? खैर जब आप अपना पासवर्ड ही किसी को बता सकते हैं तो उसे ये जानकारी देने में भी कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए.
* 'All animals are equal, but some animals are more equal than others.' इसी के तर्ज पर.
~Abhishek Ojha~
Oct 30, 2008
Oct 22, 2008
रोटी, दवा, दारु और चाँद !
दृश्य १:
एक ग्रामीण सरकारी प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र में एक बच्चा... हड्डी का ढांचा, शायद मांस उनके लिए नहीं होता. पता नहीं सो रहा है या बेहोश है. सरकारी ग्लूकोज की बोतल लगी हुई है... बाप बगल में बैठा है, देखने से तो नहीं लगता कि दो दिन से कुछ खाया होगा.
'आप इसे शाम को घर ले जाइए... ठीक हो जायेगा. मैं दवाई लिख देता हूँ. '
फिर कुछ सोच कर बोला 'आप फिलहाल इसे सुबह-शाम २-२ रोटी खिलाइए और फिर धीरे-धीरे बढ़ाना है २ से ३... ४ तक. '
'रोटी? डॉक्टर साहब कोई सस्ती दवा नहीं मिल सकती?'
भले अजीब लगे लेकिन शायद डॉक्टर को ये सुनने की आदत हो*, बोला 'दारु पीते हो?'
'हाँ साहब कभी-कभी !'
'उसी पैसे से रोटी नहीं खिला सकते?'
'रोज नहीं पीता साहब... जिस दिन पीता हूँ उस दिन तो रोटी के लिए भी बच जाता है...'
'तो उस दिन पीने के बजाय बचा के नहीं रख सकते?'
वो चुप हो गया और उसी के साथ वहां बैठे लोगों का दया-भाव जाता रहा...
दृश्य २:
उसी गाँव का एक छत, रात के १० बजे. शायद इतनी हसीन चाँदनी रात पहले नहीं देखी... शरद ऋतू, चाँद और तारे. क्या ऐसी भी रात होती है? लगा जैसे चाँद को तो भूल ही गया था ! सालों बात सप्तर्षि और फिर ध्रुव देखा... एक बारगी लगा... काश ये बिजली नहीं होती और रोज ऐसी ही रात होती... चाँद ना बढ़ता न घटता बस ऐसा ही रहता, वक़्त थम जाए जैसी बात. (शायद बहुत दिनों के बाद ऐसी रात देखकर कल्पना शक्ति जाती रही कि इससे अच्छी भी रात होती होगी और असल में तो ऐसा रोज ही होता है !)
_ _
दारु सुनते ही फेर लिया जो मुंह,
कभी सोचा क्यों पीता हूँ ?
मेरे लिए रोटी का टुकडा चाँद जैसा होता है !
पर तुम्हारे चाँद की तरह नहीं,
ये असली चाँद है !
बिजली से नहीं चलता...
और घटता-बढ़ता भी है !
_ _
*उस समाज में लोग कुछ भी करते हैं, अगले दिन अखबार में पढ़ा... लोगों ने उस डॉक्टर की पिटाई कर दी. आरोप: 'उसने एक साँप काटे हुए आदमी का इलाज ढंग से नहीं किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई'. लोगों की हालात का वैसे ही नहीं पता जैसे उस गरीब के पीने का कारण। हाँ वो डॉक्टर अगर कर सकता तो जरूर इलाज करता। बहुत फर्क है इंडिया और भारत में... दोनों के सोच में भी. वैसे सोच को पैदा करने में हालात का बहुत बड़ा हाथ होता है.
~Abhishek Ojha~
एक ग्रामीण सरकारी प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र में एक बच्चा... हड्डी का ढांचा, शायद मांस उनके लिए नहीं होता. पता नहीं सो रहा है या बेहोश है. सरकारी ग्लूकोज की बोतल लगी हुई है... बाप बगल में बैठा है, देखने से तो नहीं लगता कि दो दिन से कुछ खाया होगा.
'आप इसे शाम को घर ले जाइए... ठीक हो जायेगा. मैं दवाई लिख देता हूँ. '
फिर कुछ सोच कर बोला 'आप फिलहाल इसे सुबह-शाम २-२ रोटी खिलाइए और फिर धीरे-धीरे बढ़ाना है २ से ३... ४ तक. '
'रोटी? डॉक्टर साहब कोई सस्ती दवा नहीं मिल सकती?'
भले अजीब लगे लेकिन शायद डॉक्टर को ये सुनने की आदत हो*, बोला 'दारु पीते हो?'
'हाँ साहब कभी-कभी !'
'उसी पैसे से रोटी नहीं खिला सकते?'
'रोज नहीं पीता साहब... जिस दिन पीता हूँ उस दिन तो रोटी के लिए भी बच जाता है...'
'तो उस दिन पीने के बजाय बचा के नहीं रख सकते?'
वो चुप हो गया और उसी के साथ वहां बैठे लोगों का दया-भाव जाता रहा...
दृश्य २:
उसी गाँव का एक छत, रात के १० बजे. शायद इतनी हसीन चाँदनी रात पहले नहीं देखी... शरद ऋतू, चाँद और तारे. क्या ऐसी भी रात होती है? लगा जैसे चाँद को तो भूल ही गया था ! सालों बात सप्तर्षि और फिर ध्रुव देखा... एक बारगी लगा... काश ये बिजली नहीं होती और रोज ऐसी ही रात होती... चाँद ना बढ़ता न घटता बस ऐसा ही रहता, वक़्त थम जाए जैसी बात. (शायद बहुत दिनों के बाद ऐसी रात देखकर कल्पना शक्ति जाती रही कि इससे अच्छी भी रात होती होगी और असल में तो ऐसा रोज ही होता है !)
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दारु सुनते ही फेर लिया जो मुंह,
कभी सोचा क्यों पीता हूँ ?
मेरे लिए रोटी का टुकडा चाँद जैसा होता है !
पर तुम्हारे चाँद की तरह नहीं,
ये असली चाँद है !
बिजली से नहीं चलता...
और घटता-बढ़ता भी है !
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*उस समाज में लोग कुछ भी करते हैं, अगले दिन अखबार में पढ़ा... लोगों ने उस डॉक्टर की पिटाई कर दी. आरोप: 'उसने एक साँप काटे हुए आदमी का इलाज ढंग से नहीं किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई'. लोगों की हालात का वैसे ही नहीं पता जैसे उस गरीब के पीने का कारण। हाँ वो डॉक्टर अगर कर सकता तो जरूर इलाज करता। बहुत फर्क है इंडिया और भारत में... दोनों के सोच में भी. वैसे सोच को पैदा करने में हालात का बहुत बड़ा हाथ होता है.
~Abhishek Ojha~
Oct 14, 2008
यूँ ही... कुछ भी !
1.वो बारिश:
पत्तों से छन कर जो बूंदें
तुम्हारे गालों पर टपक पड़ी थी
आज तक मुझे भिगो रही हैं !
2.खोज:
तुम ढूंढ़ती रही...
बड़ी महफिलों में जो प्यार
वो आजकल सड़कों पर रहता है!
3.गरीबी:
मेरे कदम जो लड़खडाए भूख से,
- पी के आया है साला.
तुम जो लुढ़के नशे में,
- यारों की महफ़िल थी !
4.पलकें:
उनकी याद में जो खुली रह जाती हैं पलकें,
वो कहते हैं के खुली आंख सोने की आदत है !
5.मोबाइल:
वो मुफ्त के मिले मिनट जाया करते रहे -
हम समझ बैठे की उन्हें हमसे मुहब्बत है !
6.बॉयफ्रेंड:
उन्हें चाहिए था बाईक और ड्राईवर,
हम मुफ्त में मजनूं बने रहे !
--
यूँही २ मिनट में लिखा गया बकवास है, मुझे ख़ुद अच्छा नहीं लगा आपको क्या लगेगा, इसलिए पहले ही क्षमा मांग लेता हूँ ! पर बकवास लिखने के लिए ही तो ब्लॉग है...
पत्तों से छन कर जो बूंदें
तुम्हारे गालों पर टपक पड़ी थी
आज तक मुझे भिगो रही हैं !
2.खोज:
तुम ढूंढ़ती रही...
बड़ी महफिलों में जो प्यार
वो आजकल सड़कों पर रहता है!
3.गरीबी:
मेरे कदम जो लड़खडाए भूख से,
- पी के आया है साला.
तुम जो लुढ़के नशे में,
- यारों की महफ़िल थी !
4.पलकें:
उनकी याद में जो खुली रह जाती हैं पलकें,
वो कहते हैं के खुली आंख सोने की आदत है !
5.मोबाइल:
वो मुफ्त के मिले मिनट जाया करते रहे -
हम समझ बैठे की उन्हें हमसे मुहब्बत है !
6.बॉयफ्रेंड:
उन्हें चाहिए था बाईक और ड्राईवर,
हम मुफ्त में मजनूं बने रहे !
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यूँही २ मिनट में लिखा गया बकवास है, मुझे ख़ुद अच्छा नहीं लगा आपको क्या लगेगा, इसलिए पहले ही क्षमा मांग लेता हूँ ! पर बकवास लिखने के लिए ही तो ब्लॉग है...
Oct 5, 2008
और दो शून्य... गंगा मैया के नाम पर !
यूपी बिहार के लोग बड़े धार्मिक होते हैं... आप कुम्भ में देख लीजिये सबसे ज्यादा लोग कहाँ से आते हैं? मुझे आंकड़े तो नहीं पता पर जानता हूँ यूपी-बिहार ही टॉप करेगा. किसी भी 'आम आदमी' से बात कर लीजिये ये गारंटी है कि पाँच मिनट के अन्दर भगवान का नाम आना ही है ! फोकट की चीज़ है... कर लो प्रयोग जैसे मर्जी. लूट सको तो लूट लो... राम नाम की लूट. इसका भरपूर पालन होता है भाई.
कुछ भी हुआ, ठोंक दो भगवान की मर्जी पर. कुछ बड़े ही प्रचलित किस्से और वाक्य भी लोग इस्तेमाल करते हैं... जैसे 'लक्ष्मी उल्लूओं के पास ही रहती हैं...', 'आत्मा अमर है इत्यादि'.
आदमी जितना 'आम' होता जाता है ये उतना ही बढ़ता जाता है... ठेठ गाँव में जाइए, खेती-बारी की तो चर्चा चालु ही होती है... भगवान भरोसे ! और ऐसे हर गंवई चौपाल में चर्चा भले ही कुछ भी हो निष्कर्ष तो ऐसे ही होते हैं...
'फलनवां के दिन बड़े अच्छे हैं... अरे भगवान जिसको देता है...'
'भगवान ने भी क्या दिन दिखाए बेचारे को...'
'करने दो भाई अपनी मर्जी का, एक दिन तो सबको जाना है उनके दरबार में...'
'अब भगवान के आगे किसकी चलती है...'
वैसे ये अच्छा भी है... कई लोगों के पास ये ना हो तो बेचारे मर ही जाय, भगवान की इच्छा मान कर कुछ भी झेल जाते हैं लोग... जी हाँ कुछ भी. फिर दो शून्य की क्या कीमत? वो भी जब गंगा मैया के नाम पर हो तो.
भगवान के साथ किस्मत भी बड़े जोर पर चलती है... भगवान और किस्मत कहीं भी एक दुसरे की जगह ले लेते हैं...
'अरे क्या किस्मत है भाई... बड़ी उपरवार कमाई है, भगवान ने तो दिन ही फेर दिए... '
ये ऊपर वाली कमाई तो भगवान के हिस्से में जानी ही है, नीचे वाली भले अपने नाम कर लें... उसे भी अपने नाम करने में थोडी दिक्कत ही होती है... अरे भाई सब उन्हीं का तो है. और वैसे भी ऊपर और नीचे में कोई चीन की दीवार तो है नहीं... नीचे वाली तो होती ही रहती है पता नहीं कब (भगवान और किस्मत का खेल) कमाई ऊपर वाली हो जाय !
अब किस्मत हो, भगवान हो ! जो कुछ भी हो ! ईमानदार आदमी की तो हर जगह इज्जत होती है...
'अरे बड़ा अच्छा अधिकारी आया है... फ़टाफ़ट काम करता है, मजाल है की काम रुक जाय. सबको टाइट कर के रखता है... अब थोड़ा-बहुत तो हर जगह देना ही पड़ता है, अब भाई भगवान ने उसको ऐसी पदवी दिला दी है तो लेना तो पड़ेगा ही ना... पर काम तो करता है.' (लेना तो पड़ेगा ही ! उफ़ क्या हसीन मज़बूरी है)
'हाँ भाई... उ ससुरा पहिले वाला ना ख़ुद पैसा ले ना किसी को लेने दे तो काम कहाँ से होगा?'
'और उ ससुर तो हदे किए थे... पैस्वो ले लेता था और कामो नहीं... यही अच्छा है भाई बड़ा ईमानदार है.'
(हम इ सब सुन रहे थे और इधर चौपाल में बैठे एक बिलागर बंधू बोल पड़े: अब गंगा मैया वाली बतवा पे आओगे... यहीं पे दिन भर नहीं बैठना है, कई जगह टिपियाना है और कुछ जम गया तो ठेल भी आयेंगे एक पोस्ट! इ बिजली का कउनो भरोसा नहीं है... मौसम भी गडबडा रहा है भगवान को भी अभी...)
'अरे हाँ ससुर हम भूल ही गए... उ गुप्ता जी हैं न अपने... अरे वही जेइ बाबू, अरे भगवान ने का किस्मत दी है भइया इस बार तो गंगा मैया ने दिन ही फेर दिए उनके'
'भइया इंजिनियर तो सरकारी ही कामात है... अब इ तो बेचारा बड़ा ईमानदार है! इ तो दुइयेठो शुन्ना (दो शून्य) जोड़ा था लेकिन ऊपर तक जाते-जाते...सुने हैं की कागज जोड़ना पड़ गया !'
'अरे लेकिन शुन्ना बढ़ा है तो इसकी भी तो कमाई बढ़ी होगी?'
'हाँ हिस्सा तो मिलेगा ही... गंगा मैया के नाम पे बेईमानी कौन करेगा भाई !'
'नया पन्ना जोड़ना पडा?... तभी बंगला बनाने को जगह देख रहे थे...'
चलो भइया जैसे गंगा मैया ने उनके दिन फेरे वैसे सबके फेर दें !
अब इतने में सब निकल गए और हमें ये गंगा मैया के नाम पर पन्ना जोड़ने की बात ही नहीं समझ आई ! हमने एक चाचा को पकड़ लिया... अरे वही जिनसे एक बार और मिला था. चाचा ने समझाया देखो बबुआ, तुम लोग इ सब का जानोगे... बाढ़ आई तो तुम्हारे टीवी वाले आके खूब नौटंकी रिकार्ड किए और तुम बिलागर लोग भी खूब बिलाग रंगे. लेकिन इसी बीच हमारे गाँव के पास वाले बाँध पर कटाव चालु हो गया... और जेइ बाबू जांच करने गए तो बोले की पत्थर और बालू भर के बोरी डलवाना पड़ेगा. उन्होंने १०० ट्रक का हिसाब बैठाया था, ईमानदार ठहरे बस २ शून्य जोड़ दिए कागज पे कर दिए... १००००. उनके और ठीकेदार के बीच का मामला बना... अब जब कागज ऊपर गया तो चीफ इंजिनियर साहब ने कहा 'अरे भाई तुम ईमानदार ही रहोगे... अरे बहती गंगा है भाई, गंगा मैया के नाम पर २ शुन्य और जोड़ दो... क्या फर्क पड़ना है, अब गंगा मैया तो कितना भी बहा ले जायेंगी कौन रिकॉर्ड रखेगा हम लोग आपस में देख लेंगे' अब कागज पास होने को ऊपर बढ़ता गया और गंगा मैया के नाम पर २ और शून्य जुड़ते गए... सुना है इतने जुड़े की कागज जोड़ना पड़ा.
और जहाँ भी जाए हिस्सा तो जेइ बाबू को मिलना ही था... आख़िर सबसे नीचे के आदमी हैं, और आईडिया भी तो उन्ही का था.
'पर चाचा आया कितना ट्रक?'
'बबुआ, एक दिन तुम्हारे अखबार, टीवी वालों के सामने एक ट्रक आया तो था पर सुना की शाम को जेइ बाबू के नए वाले घर के लिए चला गया.'
'और कटाव?'
'कटाव इ का रोकेंगे बेटा, उ तो सब भगवान की इच्छा है... गंगा मैया जिसको देना देके फिर सीधी हो गई...'
'पर ये सब अखबार में नहीं आया?'
'अरे कमाल करते हो, कटाव हो रहा था... जलमग्न कहाँ हुआ कुछ... कोई मरा भी नहीं... बस २-४ घर बह गए, तो उनको कौन पूछता है... टीवी में ये सब दिखाने से अच्छा पिर्लय नहीं दिखाएँगे? अरे ये सब तो गंगा मैया की माया है !'
जय हो गंगा मैया की !
आजकल ब्लॉग भ्रमण नहीं हो पा रहा है... आप सब के पोस्ट रीडर में उसी गति से बढ़ रहे हैं जिस गति से 'लिहमैन ब्रदर्स' के स्टॉक गिरे थे. इस ग्राफ को देख कर आप ये रेट निकालिए... तब तक मैं चचा की थोडी और बातें सुनता हूँ ! 'लिहमैन ब्रदर्स' का हश्र जो हुआ वो मैं नहीं होने दूंगा, और पोस्ट पढ़े जायेंगे... वैसे रिचर्ड फूल्ड को भी कहाँ लगा था की ये हश्र होगा :-)
~Abhishek Ojha~
कुछ भी हुआ, ठोंक दो भगवान की मर्जी पर. कुछ बड़े ही प्रचलित किस्से और वाक्य भी लोग इस्तेमाल करते हैं... जैसे 'लक्ष्मी उल्लूओं के पास ही रहती हैं...', 'आत्मा अमर है इत्यादि'.
आदमी जितना 'आम' होता जाता है ये उतना ही बढ़ता जाता है... ठेठ गाँव में जाइए, खेती-बारी की तो चर्चा चालु ही होती है... भगवान भरोसे ! और ऐसे हर गंवई चौपाल में चर्चा भले ही कुछ भी हो निष्कर्ष तो ऐसे ही होते हैं...
'फलनवां के दिन बड़े अच्छे हैं... अरे भगवान जिसको देता है...'
'भगवान ने भी क्या दिन दिखाए बेचारे को...'
'करने दो भाई अपनी मर्जी का, एक दिन तो सबको जाना है उनके दरबार में...'
'अब भगवान के आगे किसकी चलती है...'
वैसे ये अच्छा भी है... कई लोगों के पास ये ना हो तो बेचारे मर ही जाय, भगवान की इच्छा मान कर कुछ भी झेल जाते हैं लोग... जी हाँ कुछ भी. फिर दो शून्य की क्या कीमत? वो भी जब गंगा मैया के नाम पर हो तो.
भगवान के साथ किस्मत भी बड़े जोर पर चलती है... भगवान और किस्मत कहीं भी एक दुसरे की जगह ले लेते हैं...
'अरे क्या किस्मत है भाई... बड़ी उपरवार कमाई है, भगवान ने तो दिन ही फेर दिए... '
ये ऊपर वाली कमाई तो भगवान के हिस्से में जानी ही है, नीचे वाली भले अपने नाम कर लें... उसे भी अपने नाम करने में थोडी दिक्कत ही होती है... अरे भाई सब उन्हीं का तो है. और वैसे भी ऊपर और नीचे में कोई चीन की दीवार तो है नहीं... नीचे वाली तो होती ही रहती है पता नहीं कब (भगवान और किस्मत का खेल) कमाई ऊपर वाली हो जाय !
अब किस्मत हो, भगवान हो ! जो कुछ भी हो ! ईमानदार आदमी की तो हर जगह इज्जत होती है...
'अरे बड़ा अच्छा अधिकारी आया है... फ़टाफ़ट काम करता है, मजाल है की काम रुक जाय. सबको टाइट कर के रखता है... अब थोड़ा-बहुत तो हर जगह देना ही पड़ता है, अब भाई भगवान ने उसको ऐसी पदवी दिला दी है तो लेना तो पड़ेगा ही ना... पर काम तो करता है.' (लेना तो पड़ेगा ही ! उफ़ क्या हसीन मज़बूरी है)
'हाँ भाई... उ ससुरा पहिले वाला ना ख़ुद पैसा ले ना किसी को लेने दे तो काम कहाँ से होगा?'
'और उ ससुर तो हदे किए थे... पैस्वो ले लेता था और कामो नहीं... यही अच्छा है भाई बड़ा ईमानदार है.'
(हम इ सब सुन रहे थे और इधर चौपाल में बैठे एक बिलागर बंधू बोल पड़े: अब गंगा मैया वाली बतवा पे आओगे... यहीं पे दिन भर नहीं बैठना है, कई जगह टिपियाना है और कुछ जम गया तो ठेल भी आयेंगे एक पोस्ट! इ बिजली का कउनो भरोसा नहीं है... मौसम भी गडबडा रहा है भगवान को भी अभी...)
'अरे हाँ ससुर हम भूल ही गए... उ गुप्ता जी हैं न अपने... अरे वही जेइ बाबू, अरे भगवान ने का किस्मत दी है भइया इस बार तो गंगा मैया ने दिन ही फेर दिए उनके'
'भइया इंजिनियर तो सरकारी ही कामात है... अब इ तो बेचारा बड़ा ईमानदार है! इ तो दुइयेठो शुन्ना (दो शून्य) जोड़ा था लेकिन ऊपर तक जाते-जाते...सुने हैं की कागज जोड़ना पड़ गया !'
'अरे लेकिन शुन्ना बढ़ा है तो इसकी भी तो कमाई बढ़ी होगी?'
'हाँ हिस्सा तो मिलेगा ही... गंगा मैया के नाम पे बेईमानी कौन करेगा भाई !'
'नया पन्ना जोड़ना पडा?... तभी बंगला बनाने को जगह देख रहे थे...'
चलो भइया जैसे गंगा मैया ने उनके दिन फेरे वैसे सबके फेर दें !
अब इतने में सब निकल गए और हमें ये गंगा मैया के नाम पर पन्ना जोड़ने की बात ही नहीं समझ आई ! हमने एक चाचा को पकड़ लिया... अरे वही जिनसे एक बार और मिला था. चाचा ने समझाया देखो बबुआ, तुम लोग इ सब का जानोगे... बाढ़ आई तो तुम्हारे टीवी वाले आके खूब नौटंकी रिकार्ड किए और तुम बिलागर लोग भी खूब बिलाग रंगे. लेकिन इसी बीच हमारे गाँव के पास वाले बाँध पर कटाव चालु हो गया... और जेइ बाबू जांच करने गए तो बोले की पत्थर और बालू भर के बोरी डलवाना पड़ेगा. उन्होंने १०० ट्रक का हिसाब बैठाया था, ईमानदार ठहरे बस २ शून्य जोड़ दिए कागज पे कर दिए... १००००. उनके और ठीकेदार के बीच का मामला बना... अब जब कागज ऊपर गया तो चीफ इंजिनियर साहब ने कहा 'अरे भाई तुम ईमानदार ही रहोगे... अरे बहती गंगा है भाई, गंगा मैया के नाम पर २ शुन्य और जोड़ दो... क्या फर्क पड़ना है, अब गंगा मैया तो कितना भी बहा ले जायेंगी कौन रिकॉर्ड रखेगा हम लोग आपस में देख लेंगे' अब कागज पास होने को ऊपर बढ़ता गया और गंगा मैया के नाम पर २ और शून्य जुड़ते गए... सुना है इतने जुड़े की कागज जोड़ना पड़ा.
और जहाँ भी जाए हिस्सा तो जेइ बाबू को मिलना ही था... आख़िर सबसे नीचे के आदमी हैं, और आईडिया भी तो उन्ही का था.
'पर चाचा आया कितना ट्रक?'
'बबुआ, एक दिन तुम्हारे अखबार, टीवी वालों के सामने एक ट्रक आया तो था पर सुना की शाम को जेइ बाबू के नए वाले घर के लिए चला गया.'
'और कटाव?'
'कटाव इ का रोकेंगे बेटा, उ तो सब भगवान की इच्छा है... गंगा मैया जिसको देना देके फिर सीधी हो गई...'
'पर ये सब अखबार में नहीं आया?'
'अरे कमाल करते हो, कटाव हो रहा था... जलमग्न कहाँ हुआ कुछ... कोई मरा भी नहीं... बस २-४ घर बह गए, तो उनको कौन पूछता है... टीवी में ये सब दिखाने से अच्छा पिर्लय नहीं दिखाएँगे? अरे ये सब तो गंगा मैया की माया है !'
जय हो गंगा मैया की !
आजकल ब्लॉग भ्रमण नहीं हो पा रहा है... आप सब के पोस्ट रीडर में उसी गति से बढ़ रहे हैं जिस गति से 'लिहमैन ब्रदर्स' के स्टॉक गिरे थे. इस ग्राफ को देख कर आप ये रेट निकालिए... तब तक मैं चचा की थोडी और बातें सुनता हूँ ! 'लिहमैन ब्रदर्स' का हश्र जो हुआ वो मैं नहीं होने दूंगा, और पोस्ट पढ़े जायेंगे... वैसे रिचर्ड फूल्ड को भी कहाँ लगा था की ये हश्र होगा :-)
~Abhishek Ojha~
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