गुरचरण दास का 'भारत का भविष्य' विषय पर व्याख्यान सुनते समय ही मुझे लगा कि उनका 'राजू'* काल्पनिक है। पर व्याख्यान के अंत तक मानस पटल पर एक छवि तो बन ही गयी कि भारत सचमुच प्रगति कर रहा है। जर्जर सरकारी तंत्र, भ्रष्ट और निष्क्रिय नौकरशाह तथा पुलिस पर भी उन्होने थोड़ा प्रकाश डाला था। परंतु साथ ही जैसा कि उन्होने ये भी कहा "जब सरकार सोती है तब अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है..."।
वो कहते हैं ना कि सावन के अंधे को हरा ही दिखाई देता है... । वैसे भी पिछले पांच सालो से वास्तविक दुनिया से कटा होने और भूमंडलीकरण पर 'The world is flat' जैसी पुस्तकें पढ़ने के बाद... ये बातें अच्छी लगना भी स्वभाविक ही है। भारत की प्रगति और प्रत्येक भारतीय के जीवनस्तर में तेजी से सुधार... अगली सदी भारत कि सदी होगी... हमारा विकास सबसे अलग है... हमारा उपभोक्ता होना हमारी अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी मजबूती है... अंग्रेजी की जगह 'English with i' नयी वैश्विक भाषा होगी... । ऐसी हज़ारो बातें सुन चुकने के बाद... ये तो होना ही था।
इसी बीच मुझे P Sainath की 'Everybody loves a good drought' मिल गयी। अभी इस पुस्तक का दसांश ही पढ़ पाया हूँ। पर सावन के अंधे को थोडा-थोडा दिखने लगा है। डर है कि कहीँ पुस्तक ख़त्म होते-होते रेगिस्तान ना दीखने लगे... ।
*गुरचरण दास की पुस्तक का एक चरित्र... भारत की प्रगति का प्रमाण ... उम्र १४- साल, पेशा - चाय की दुकान पर तथाकथित 'summer job' ! स्थान-तमिलनाडु का एक गाँव। अपनी इस आमदनी को वह कंप्यूटर सीखने पर खर्च करता है... बिल गेट्स की तरह अमीर बनना चाहता है... उसके अनुसार सफलता के दो सूत्र हैं विन्डोज़ और अंग्रेजी के कुछ शब्द (Toefl world list)... ।
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