Apr 11, 2007

तेरी यादें

दार्जिलिंग के विश्व प्रसिद्ध टाइगर हिल पर उस दिन औसत से कुछ ज्यादा ही ठंड थी। ८५१५ फ़ीट की ऊंचाई पर सुबह के ४ बजे सभी बेसब्री से सूर्योदय होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। सबकी पलकें पूर्व दिशा की तरफ लगी हुई थी। उस समय वहाँ हर तरह के लोग मौजूद थे... बंगाली, बिहारी, पंजाबी, जवान, बुड्ढे, फिरंगी... । हम तीन आपस में बातों से ठंड भुनाने की कोशिश कर रहे थे। थोड़ी-थोड़ी देर में हमारे ठहाके आस-पास के लोगो का ध्यान आकर्षित कर रहे थे। उस ठंड में गर्म कॉफी के अलावा और कुछ सहारा भी तो नहीं था।

टाइगर हिल पर कॉफी लड़कियाँ ही बेचती है। पता नहीं हमारे ड्राइवर के दीमाग में क्या चल रहा था... "यहाँ ३० लड़कियाँ काम करती हैं... सब शादी-शुदा हैं" उसने हमारे पास आकर कहा। ३० हैं ये बताना तो फिर भी ठीक है... पर शादी-शुदा हैं... पता नहीं उसने हमसे ऐसा क्यों कहा। और ये सही भी नहीं लग रहा था... विशेषतया उस लडकी को देखकर जिस पर के.पी की निगाहें बार-बार चली जा रही थी। थोड़ी देर निरीक्षण करने के बाद उसने कहा - 'यार! उस लडकी से कोई कॉफी नहीं ले रहा... कितनी अच्छी है, पर यहाँ ऐसे सुशील बनेगी तो कॉफी कैसे बेच पाएगी... देखो तो वो आंटी कैसे बेच रही हैं।' हमें भी लगा की इसकी बात में सच्चाई तो है। ये सिलसिला चलता रहा, हम तस्वीरे खीचते जा रहे थे... सूर्योदय का वक्त समीप आता जा रहा था, और के.पी उस लडकी की तरफ आकर्षित होता जा रहा था। शायद ये बात उस लडकी को भी समझ आयी... तभी तो वो हमारी तरफ आयी। हमने के.पी से एक साथ कहा 'कॉफी पी लो।'

उस लडकी को हमने पहली बार किसी से कॉफी लेने का अनुरोध करते हुए देखा था। 'पी लीजिये ना, अभी तक मेरी बोहनी भी नही हुई है।' शायद हमारे कहने को मजाक मान लेना या फिर असमंजस की स्थिति के.पी ने थोड़ी देर में कहा 'नहीं रहने दीजिए।' वो वापस चली गयी। मैंने भी देखा... सचमुच बाकियों से अलग थी... एक तो वो किसी से आग्रह नहीं कर रही थी, और शायद सबसे ज्यादा खूबसूरत भी थी... हिमालय क्षेत्र में रहने से वो गालो की प्राकृतिक लालिमा, उस ठंड में कुछ ज्यादा ही लाल लग रही थी... और अब तो सूर्योदय की लालिमा भी साथ दे रही थी... ।

सूर्योदय हुआ... लोग कंचनजंघा और एवरेस्ट की सुन्दरता देख स्तब्ध रह गए। बंगाकियों की बातों में से बस एक ही बात समझ में आ रही थी ... अपुर्बो! सब प्रसन्न थे। पर के.पी यही बोलता रहा 'मुझे उसकी कॉफी पी लेनी चाहिये थी।' अंततः हम वापस आने की तैयारी कर रहे थे... हमने नीचे की तरफ देखा... वही लडकी किसी को कॉफी दे रही थी... शायद उसकी पहली बिक्री... उसकी सुशीलता की कीमत... ।

हम वापस आ गए पर के.पी आज भी कहता है 'मुझे उसकी कॉफी पी लेनी चाहिये थी... मैं फिर से दार्जिलिंग जाऊंगा उससे मिलने... ।' मैंने उसकी मानसिक स्थिति के लिए कुछ पक्तियाँ लिखनी चाही... पर अभी भी अधूरी हैं... उसकी मनःस्थिति का पूरी तरह आकलन मैं शायद कभी ना कर पाऊं... इसलिये अधूरी ही लिख रहा हूँ ...।

तेरी यादें चंचलता सी उन्मत,
तरंगे बन टकराती हैं।
मृदु भाव भरी तेरी यादें,
मन-व्यथित कर जाती हैं।
तेरे नयनों की वो निश्छलता,
सपनो में कुछ कह जाती हैं।
तेरे मृदुल अधरों की स्मृति,
अब भी मन की प्यास बुझाती हैं।
तेरी यादें चंचलता सी उन्मत...

~Abhishek Ojha~

1 comment:

  1. Man.. what if it was some Pyar ke Side Effects wali coffee? Khurja lost a chance to get laid!! :D

    ReplyDelete