1॰ पहला 'आल-इन' शाश्वत प्रेम: पार्वती - जन्म कोटि लगि रगर हमारी। बरउँ संभु न त रहउँ कुआरी। तजउँ न नारद कर उपदेसू। आपु कहहिं सत बार महेसू।
महादेव अवगुन भवन बिष्नु सकल गुन धाम। जेहि कर मनु रम जाहि सन तेहि तेही सन काम। (- बाबा तुलसी)
[पार्वती ने कहा - करोड़ जन्मों तक हमारी जिद यही रहेगी कि शिव को वरूँगी नहीं तो कुंवारी ही रहूँगी। मैं नारद के उपदेश को नहीं छोडूंगी चाहे सौ बार स्वयं महेश ही क्यों न कहें !
मान लिया कि महादेव अवगुणों के भवन हैं और विष्णु सद्गुणों के धाम। पर अब जिसका मन जिससे लग गया उसको तो बस उसी से काम है !]
हमने तो एक दिन सपने में देखा पार्वतीजी ने कहा... आई लव शिवा एंड नथिंग एल्स मैटर्स। नथींग बोले तो नथींग। सप्तर्षियों! अब बोलो
*पोकर के खेल में बचा-खुचा सबकुछ दांव पर लगा देने को 'आल-इन' कहते हैं।
2॰ अटूट भरोसा: परशुराम - पिता ने कहा - काट ! और उन्होने अपनी माँ को काट डाला - बिन सोचे। बिन हिचके। आई डोंट केयर फॉर रेस्ट ऑफ द स्टोरी !
3॰ प्रेम में त्याग की पराकाष्ठा (नथिंग एल्स मैटर्स व्हेन इट्स लव): सुमति: अपने सेक्स मैनियाक पति के लिए, जो चलने में असमर्थ हो गया था, एक वेश्या से बात कर उसके कोठे तक पति को ले जाना और फिर वैसे पति के लिए सोलर सिस्टम कोलैप्स करने तक पर उतर आना !
4॰ पहला दिल टूटा जीनियस आशिक: भर्तृहरि -
यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च। -
(मैं अपने चित्त में रात दिन जिसकी स्मृति सँजोये रखता हूँ वो मुझसे प्रेम नहीं करती, वो किसी और पुरुष पर मुग्ध है। वह पुरुष किसी अन्य स्त्री में आसक्त है। उस पुरुष की अभिलाषित स्त्री मुझपर प्रसन्न है। इसलिए रानी को, रानी द्वारा चाहे हुए पुरुष को, उस पुरुष की चाहिए हुई वेश्या को तथा मुझे धिक्कार है और सबसे अधिक कामदेव को धिक्कार है जिसने यह सारा कुचक्र चलाया।)
5. समानता: ये कोई पौराणिक कथा नहीं। बचपन में खेत में खाद डाला जा रहा था। खेत के एक हिस्से के लिए खाद कम पड़ गया। एक बुजुर्ग ने कहा - वक़्त रहते बाजार से खाद लेते आओ, नहीं तो बचा हुए खेत गाली देता है ! गौर करें - यहाँ निर्जीव की बात है।
6॰ रिलेशनशिप: ये अपनी सोच है। सेकेंड ईयर टीए लैब - ऑक्सी फ्युल वैल्डिंग: इंस्ट्रक्टर ने कहा - दो टुकड़ों को एक ताप पर गरम कर पिघलाना होगा - एक 'मोल्टेन पूल' और कुछ 'एक्सट्रा फिलर'। फिलर कैसा होगा ये मेटल के टुकड़ों पर निर्भर करता है। और अगर अच्छे से वेल्ड हुआ तो दोनों हिस्से भले टूट जाएँ जोड़ नहीं टूट सकता - कभी नहीं। और अगर टूट गया तो? - तो तुमने सही से वेल्ड नहीं किया !
बस वैसे ही अपने 'ईगो' को थोड़ा सा जला एक शेयर्ड पूल... और उसी तरह वेल्ड। टूट नहीं सकता... टूट गया तो कोंट्राडिक्श्न से प्रूव हुआ कि वेल्ड ही नहीं हुआ था - जय सिया राम
7॰ बीता हुआ कल: कितना भी खूबसूरत रहा हो। उसको लेकर बैठे रहोगे तो कुछ नहीं होना !
ब्रह्मा ने ये यूनिवर्स बनाया - क्वान्टम स्टेट्स से लेकर ग्रेविटेशन तक ! (एक मिनट के लिए मान लो, इफ ही एक्सिस्ट्स) ...अनंत.. खूबसूरत ! जीवन। उसी स्कूल ऑफ थोट के विष्णु और शिव भी। ब्रह्मा ने तो यूनिवर्स बना दिया... वो कितना भी खूबसूरत रहा हो... है तो बीता हुआ कल... ब्रह्मा को कोई नहीं पूजता।
लंबरेटा कभी सबसे अच्छा टू व्हीलर था। नो ड़ाउट। आप अपने पास्ट को लंबरेटा से बेहतर मानते हैं? मेरे उदाहरण पर हंसने वाले ! जरा उससे जाकर पूछ जिसने पहली बार भारत की सड़कों पर लंबरेटा चलाई होगी। पर उसी पास्ट में अटके रहोगे तो आज के टू व्हीलर के बारे में जानोगे भी कैसे? बीते हुए कल का गर्व, उसकी टेंशन, उसकी सुनहरी और काली यादें... जैसी भी हो... आज और आने वाले कल को नहीं सुधार सकती ! ....गणितीय रूप से शेयर बाजार का भविष्य निर्धारित करने के लिए मार्कोव इस्तेमाल करते हैं.... मार्कोव बोले तो... भविष्य बस अभी पर निर्भर करता है। पहले क्या था.... कोई मायने नहीं रखता। .... बोले तो मार्कोव इज मेमोरिलेस!
...और आप पूछेंगे कि ये सब कह कर किसी को समझाया जा सकता है ?
- तो मैं कहूँगा... दिल बहलाने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है ! पर इतना तो है ... इन बातों से अपने रोंगटे तो खड़े होते हैं दोस्त...
और ये भी है कि कोई 'समझदार' कह सकता है - ओझा बाबू, तुम थियरि के आदमी लगते हो कभी अप्लाइड में आओ तो औकात पता लगे ! ऐसा कहोगे तो अब क्या कहूँ कि प्योर मैथस वाले अप्पलाइड वालों को कैसी नजरों से देखते हैं...
...खैर शेष फिर कभी ! ...क्योंकि ऐसा ढेर सारा कचरा भरा है दिमाग में :) और वो मुफ्त के प्लैटफ़ार्म पर नहीं उगला जाएगा तो कहाँ ! अब और ज्यादा लाइट मूड किया तो आपको मेरे पोस्ट में ग़म न दिखने लगे। रिस्क है... तो इस पोस्ट को सीरियसली ही लिया जाय।
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~Abhishek Ojha~
बड़ी गजब परिभाषायें! जय हो!
ReplyDeleteमहाज्ञान जन कल्याण बिना गुड़ का स्वाद लिए ही .....यही है तो आत्म चेतना अंतरानुभूति -जो ऋषि लक्षण है !
ReplyDeleteधन्य हो गुरु! फेसबुक पर शेयर कर दे रहे हैं .....काश जनता इनसे कुछ सीखती:-)
माना बीता कल नहीं आता दुबारा लौटकर -बीती हुयी जवानी ,बीते हुए लम्हे ..उन्हें याद करने पर भी प्रतिबन्ध!
जिस एक क्षण पर चिरन्तनता और स्वर्ग तक भी निस्सार कैसे भूलें उसे संत ओझा जी ?
इस बार टैग सही है : फुल बकवास... कुछ अधूरी, कुछ पूरी... :)
ReplyDeleteजय हो, दिमाग की बत्ती जला दे..
ReplyDeleteसार सन्दर्भ में समझाई गई बातों को इतनी जल्द समझ पाना आसान नहीं .शानदार सारगर्भित पोस्ट .
ReplyDeleteअच्छा किये जो मूड ज्यादा लाईट नहीं किये, नहीं तो आसानी से समझ आ जाती|
ReplyDeleteआप जीनियस हो सर जी। ऐसा कुछ है जो आपको समझ ना आए :)
Deleteमार ही डाला...
Deleteआई लव शिवा अँड...
ReplyDelete..ई क्या अंड-बंड लिखा है?
:)
Deleteयूं ही और सीरियसली का डेडली काम्बिनेशन.
ReplyDeleteसीरियसली ही लिया गया, जबरदस्त है सर जी!
ReplyDeleteभतीजे, मेरी तो घंटी बत्ती सब कुछ जल र्रही है साथ में मजा भी आरहा है.:)
ReplyDeleteरामराम
चरण कहाँ हैं आपके गुरुदेव !!!! धन्य हो !!!
ReplyDeleteजय हो!
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