हमारे एक दोस्त हैं और जबसे मैं उन्हें जानता हूँ उनकी शादी 'दो साल बाद' होने वाली है. जब भी पूछो 'कब हो रही है?' जवाब होता है 'दो साल बाद'. वैसे एक बार उन्होने कहा फरवरी में होगी... पर जब फिर से उन्होने एक बार २ साल बाद वाली बात कह दी तो हमने ये मान लिया कि महिना भले तय हो गया हो इनकी शादी तो दो साल बाद ही होगी. वो अभी भी २ साल बाद वाली बात पर अडिग हैं... इस बीच हमने इसे 'आई=आई+२' नाम दे दिया. मतलब वर्तमान को दो से बढ़ाते जाओ.
प्रोग्रामिंग से परिचय रखने वाले इस कथन का मतलब बखूबी जानते हैं. बहुत ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कथन है. ऐसे कथन को प्रोग्रामिंग में रोकना होता है... किसी भी एक शर्त पर. रोकना है तो शर्त तो रखनी ही पड़ती है. अगर बोल-चाल की भाषा में कहूँ तो कहा जायेगा कि आई को दो से तब तक बढ़ाते रहो जब तक कुछ 'ऐसा' नहीं हो जाता. अगर गलती से 'ऐसा' हो जाने वाली शर्त लगाना भूल गए तो प्रोग्राम अनंत समय तक चलता रहेगा ! वैसे ही जैसे हमारे दोस्त की शादी दो साल बाद होनी है. किस दिन से दो साल बाद ये तो बताया नहीं उन्होने. ऐसा ही एक अनंत तक चलने वाला लूप पहले भी फंसा था. अब क्या करें थोड़ी बहुत जो प्रोग्रामिंग की उसमें लूप में अक्सर फंस ही गया, और याद भी वही रह गया :)
प्रोग्रामिंग के अभ्यास करते समय कई बार ऐसे अनंत तक चलने वाले फंदों में फँसना हुआ है. हर बार यही लगता: 'ओह फिर शर्त लगाना भूल गया ! या फिर गलत या उल्टी शर्त लगा दी.' देखने में बहुत स्वाभाविक गलती लगती है लेकिन प्रोग्रामिंग करने वाले ही बता पायेंगे कि कितनी आसानी से हर बार ये गलती हो ही जाती है.
व्हाइल (<शर्त >){
आई= आई+२;
}
प्रोग्राम लिखते समय यही बात कागज पर लिखी हुई रहती है लेकिन कोड़ में अक्सर उल्टी शर्त लग जाती है या फिर शर्त लगाना ही भूल गए और फंस गए इनफाइनाइट लूप में !
प्रोग्रामिंग वाले मामले में प्रोग्राम को रोक देने या फिर डब्बे* को ही फिर से चालू कर देने का विकल्प होता है. लेकिन यही विकल्प हमारे पास हमेशा कहाँ होता है ? बिना ठोस समय सीमा के कोई भी बात कह देना या योजना बना लेना बहुत आसान है. लेकिन उसे पूरा करने के लिए जो समर्पण चाहिए वो अक्सर आई = आई+२ वाले फंदे में उलझ कर रह जाता है. वक्त अपनी गति से चलता जाता है. और हम सोचे गए काम को और आगे ठेलते जाते हैं कभी २ से कभी ४ से. कितनी भी धुन पक्की हो एक बार अगर नहीं हो पाया तो बहाने तो हमेशा ही तैयार रहते हैं. आपके कितने काम हैं जो एक साल के भीतर पूरे होने वाले थे (हैं)?
अब ऐसा ही कुछ-कुछ अपने साथ भी हो रहा है. घुमा फिरा कर हमारी कंपनी ने इस बार तथाकथित हमेशा के लिए न्यूयॉर्क ऑफिस भेज दिया. (वैसे मिनटो में निकाल बाहर करने वाले या खुद ही लूट जाने वाले उद्योग से जुड़े लोग जब 'परमानेंट' शब्द इस्तेमाल करते हैं तो... इस उद्योग में काले सूट पहने और ब्लैकबेरी पर अंगुली नचाते लोग जब आधे घंटे में दस-बीस साल बाद की योजना बना कर कमरे से बाहर निकलते हैं और सामने टीवी पर दिखता है... कंपनी दिवालिया हो गयी ! खैर... अभी बात आई=आई+२ की)... कुछ लोगों ने पूछा कब तक रहोगे? तो कइयों ने बड़े दावे से कहा 'लौट नहीं पाओगे ! ' कइयों ने पूछा कि ऐसा क्या है जो यहाँ रहकर नहीं कर पाओगे? वैसे तो हमें अटल बिहारी वाजपई की तरह सबकी बात ठीक ही लगी. पर अपने हर बात पर चर्चा हो जाती है... तिल का ताड़...टाइप्स. वैसे यहाँ से लौट कर गए कई लोगों के साथ एक... वेल... उन्हें लगता है कि उन्होने बड़ा भारी काम किया है... कुछ त्याग-व्याग टाइप का.... और उनके हिसाब से किसी और के लिए ये संभव नहीं है. खैर इस पर कोई टिपण्णी नहीं. हाँ कई लोग हैं जो साथ काम करते थे और वापस जाकर बहुत खुश हैं.
जो भी हो हमने इसी बहस के बीच दस हजार रुपये की शर्त लगा दी... दो साल में लौट जाने की. अब ये दो साल 'आई=आई+२' ना हो जाये इसलिये ये पोस्ट ठेल दी. तो अपना आई+२ होता है जुलाई २०१२. अगर नहीं लौटा तो इस तर्क पर दस हजार तो नहीं बचने वाले... तो दो साल बाद की जगह २०१२ पढ़ा जाय.
फिलहाल तो दिसंबर में आता हूँ [इस या अगले में ये तो वक्त जाने ;)]! वैसे फंदा-वंदा अपनी जगह... हमें तो थोड़ा फंडा मारना था तो पोस्ट लिख दी.
और भाइयों, बहनो, दोस्तों, दोस्तनियों, हमारी कोई चाहने वाली टाइप, चाचा-चाचियों वॉटएवर-ववॉटएवर और टिपण्णी के बदले टिपण्णी की अभिलाषा रखने वालों (शॉर्ट में कहने का मतलब ये कि यह पढ़ कर टाइम खराब हमारे कोई शुभचिंतक ही करेंगे वरना किसे फुर्सत है!) एक बार और क्लियर कर दूँ ये ब्रेन-ड्रेन उरेन-ड्रेन नहीं है, अपने पास इतना ब्रेन नहीं है कि ड्रेन की समस्या हो. उस हिसाब से तो जितना दूर ही रहे तो बढ़िया है :) खैर हमें जानने वाले हमारी असलियत जानते हैं उन्हें इस डिसक्लेमर की जरूरत नहीं है.
~Abhishek Ojha~
(...अगर लूप-वूप में फँसे तो पीड़ीजी हैं न प्रोग्रामिंग समझाने के लिए. सुना है 'जी' लगाने पे बहुत खुश रहते हैं आजकल. 'कहते हैं पीडीजी बोलो जी'... )
*डब्बा माने कंप्यूटर