सच कहूँ तो इस मुद्दे पर मैंने कहीं कुछ नहीं लिखा, कोई पसंद नहीं, कोई टिप्पणी भी नहीं। इससे जुड़ी खबरें भी ठीक से नहीं पढ़ पाया। लोगों ने मुझसे कुछ कहना भी चाहा तो मैंने मना कर दिया । एक तो मुझे हर किसी की बात में लगा कि वो बस इस मुद्दे पर भी कुछ कह कर पसंद और टिप्पणी ही गिन रहे हैं। सारी बहस बेकार लगी। मीडिया के टीआरपी बटोरने जैसी। बहुत कम लोगों की बातों में ईमानदारी और सच्ची चिंता दिखी। कुछ भी कहा लोगों ने... या तो मुझे इतनी समझ नहीं या लोग सच में हर बात पर कुछ भी कह 'हीरो' बनना चाहते हैं । मुझे हर बात से चिढ़ होती गयी... मुझे अपने से भी चिढ़ हुई। इस बात से भी चिढ़ हुई कि मुझे किसी और के कुछ कहने से भी क्यूँ चिढ़ हो रही है - मैं तो वो भी नहीं कर रहा ! लोगों की मेहनत और प्रयास देख भी... खासकर मुझे फेसबूक पर लोगों का लिखना... । मुझे पता है सब वैसे नहीं... पर... जो लगा वो लगा !
अपने ऐसा होने पर मुझे जॉन वॉन न्यूमैन का कहा याद आता रहा। एटम बम के आविष्कार के दिनों में उन्होने रिचर्ड फेयनमन से कहा था - You don't have to be responsible for the world that you're in. वैसे शायद निराशा और चिढ़ बस इस एक खबर से नहीं... हर एक बात से... और मुझे लगा कि ऐसी हर दिशा से आने वाली निराशा से इंसान सामाजिक रूप से गैर जिम्मेदार भी बन सकता है।
दरअसल ऐसी खबरें और बातें पढ़ते हुए कुछ चेहरे दिमाग में आते हैं... उनके जिन्हें आप बहुत प्यार करते हैं। उन बच्चियों, लड़कियों और महिलाओं के... जिन्होने सिर्फ हमें नहीं हमारी रूह पर असर डाला होता है. एक पुरुष होकर मैं जो हूँ - उनसे हूँ। एक आम इंसान कहीं न कहीं स्वार्थी होता ही है उसे सबसे पहले बस अपने लोगों की याद आती है। पुणे में जब जर्मन बेकरी बम धमाके के बाद लोगों के फोन आए तो मुझे समझ नहीं आया था कि मुझे अच्छा लगना चाहिए या बुरा... खैर... वैसी खबर पढ़ते हुए ऐसे चेहरे याद आते हैं जो उस अनजान चेहरे की जगह हो सकते थे ... और फिर आप सुन्न हो जाते हैं... आगे की खबर पढ़ पाने की हिम्मत मुझमें तो नहीं बचती।
बहुत सी बातें है... फिर लग रहा है क्या फायदा बकबक का। आप भी सब जानते हैं। पता नहीं कितने कारण और कितने समाधान चर्चा में रहे इस घटना के बाद और कब तक रहेंगे। कल न्यू यॉर्क टाइम्स में एक आर्टिकल में ये लाइने पढ़ी -
In India’s conservative society, male sexual aggression is portrayed in unexpected ways. In Bollywood films, kissing on screen is still rare and nudity forbidden. But the rape scene has been a staple of movies for decades. And depictions of harassment often have an innocent woman resisting nobly, but eventually succumbing to the male hero. One commonly used term for sexual harassment is “eve-teasing,” which critics say implies the act is gentle and harmless.
और ऑफिस में किसी ने एक आर्टिकल भेज मेरा व्यू मांगा।
आप भी मेरी तरह सुन्न हैं तो पढ़िये ये लाइनें -
First they came for the communists,
and I didn't speak out because I wasn't a communist.
Then they came for the socialists,
and I didn't speak out because I wasn't a socialist.
Then they came for the trade unionists,
and I didn't speak out because I wasn't a trade unionist.
Then they came for the jews,
and I didn't speak out because I wasn't a Jew.
Then they came for the catholics,
and I didn't speak out because I wasn't a catholic.
Then they came for me,
and there was no one left to speak for me.
गिरिजेशजी ने कहा था कि 01 जनवरी को इस पर कुछ लिखूँ। इस पर इतना कुछ लिखा जा सकता है कि... कुछ लिख नहीं पाऊँगा। उन्होने भागीरथ प्रयत्न किया है आप अगर ये पढ़ रहे हैं तो उन्हें कृपया जरूर पढ़ें। इस पोस्ट को लिखने का मकसद सफल होगा - बलात्कार के विरुद्ध फास्ट ट्रैक न्यायपीठों हेतु जनहित याचिका।
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~Abhishek Ojha~
जितना सोचो उतना सर घूमता है और ना जाने कहाँ कहाँ की बातें एक दूसरी में उलझी सी लगती हैं | हमेशा लगता है की मैं खुद ज़िम्मेदार हूँ इस सबका, क्यूंकि हमेशा चुप हो जाता हूँ | और मैं ये खुल के बोल रहा हूँ तो ऐसा नहीं है की ऐसा कुछ मेरे सामने नहीं हुआ, हाँ हो सकता है की इस रूप में नहीं हुआ , और बहुत से तरीके हैं | फिर लगता है की मैं गलत कैसे हो सकता हूँ, दूसरों के सर पर दोष मढ़ देने की आदत मुझे हमेशा बचाती है , और मैं हर बार सूखा निकल आता हूँ | हमेशा ये कह के खुश हो जाता हूँ की मैं इस तरह के किसी घिनौने काण्ड में शामिल नहीं हुआ, पाक साफ़ सा होने की फीलिंग आती है | बस | कहानी आगे बढ़ जाती है |
ReplyDeleteअब तक लगता था लोगों को एजुकेट करके इस तरह की बातों (जो बातें वाशिंगटन पोस्ट के लिंक में दी गयी हैं)को समाज से दूर किया जा सकता है पर दोस्त, इस देश की समस्या यहाँ के "ज्यादा" पढ़े लिखे लोग हैं, जिन्हें लगता है उन्हें सब पता है | अब तक लगता था की चीज़ें बदलती हैं, हमें बदलना होगा, पर "घंटा" कुछ नहीं बदलता |
लोगों ने माँगा था की १०० बार इस धरती पर पैदा करना जिससे इसके लिए मर सकता हूँ, पर माँगने का मन यही है की अगर दुबारा इन्सान बनाना भी तो किसी ऐसे देश में जहाँ भुखमरी हो, लोग प्यास से मरते हों, जहरीले सांप-बिच्छू हों जिससे अगर कुछ कर सकूं तो किसी इन्सान के चेहरे पर मुस्कान देख सकूं, किसी के जीने का कारण बन सकूं | इस "कूड़ेदान" में मत पैदा करना, जहाँ कुछ करने से पहले मेरे ही हाथ काट दिए जाएँ और फिर मुझे बौद्धिक ज्ञान दे-देकर कतरा कतरा करके मारा जाए!!!!
:(
ReplyDeletewe need you all to support this cause, not to be diplomatically silent (so as to not be blamed for wanting to increase TRP's). We are your sisters and mothers, your wives and daughters, and we deserve your support in this matter of our right to a human status.
If everyone remains diplomatically silent (like our politicians in office) because they don't want to be called popularity hungry, who will stand up for the fundamental right of half of the population to their right to the dignity of self ?
Please don't think of all this as "just cliches" - because it is painful that even our expression of the right to the dignity of humanity has unfortunately become a"dialogue" in this society. This needs to change.
Normalcy should be normal, and we should not NEED to ask society for our right to live ... :(
It's high time girls also start saying "NO" if something happening which is against them, even if it happens within boundary of their home, DO NOT BE SILENT!!!!
DeleteAny human being with heart (irrespective of boy or girl) will never deny you support.
agree - that any "human being" won't deny us support...
Deletebut by this definition, most ppl watching all teh molestation going on in public buses silently - are they not human beings in your opinion?
they are not, I don't find them any different from the criminals !!!
Deletegood for you
Deleteअहिंसक जीवन-मूल्यों के संरक्षण, और अपराध मुक्त समाज की रचना के लिए ऐसा हर अवसर कर्तव्य निष्ठा का होता है। इसलिए आपके साथ हमारा भी इस याचिका को समर्थन है।
ReplyDeleteand there was no one left to speak for me....vastavik dard yahi hai jo hamara khud ka boya hua hai.....
ReplyDeleteमुझे घर भी बचाना है वतन को भी बचाना है... ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबिलकुल सही।
ReplyDelete"मैं और मेरा सुन्दर फोटोजेनिक परिवार" से बाहर निकलने का वक़्त बहुत पहले चला गया। अब भी निकलें तो भी कुछ हो।
हमारी अस्मिता की रक्षा के लिए हमारा मन ,वचन, और कर्म समर्पित
ReplyDeleteहमारा समाज हमारी लर्निंग आज से ऐसी नहीं रही है ,काफी समय से है .
ReplyDeleteमगर अब बदलाव चाहिए!
....साढ़े सोलह आने सच्ची बात कही है पर इसकी गहराई पर उतरने पर अपना ही गिरहबान पकड़ में आता है ।
ReplyDeleteaur apne gireban pe pakad majboot nai ban pata hai .......
Deletepranam.
उचित क्या है, अनुचित क्या है, सबको ज्ञात है। कुछ अपराधों पर सारे समाज का चित्रण कर देना बौद्धिक अवसरवादिता है। न्यूयार्क व जोहान्सबर्ग में तो नित ढेरों बलात्कार होते हैं, पर यह हमारे लिये गर्व का विषय नहीं है, सर शर्म से अब भी झुका है।
ReplyDeleteYou are because we are. Save your own existence your own world which is our world.
ReplyDeleteअफ़सोस!
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