उस शाम रैली के चक्कर में ऑटो न मिलने का डर था तो बीरेंदर (उर्फ बैरीकूल) मुझे ड्रॉप करने आ गया। पाँच किलोमीटर दूर भी बीरेंदर को जानने वाले लोग मिलते गए। बीरेंदर ने जब कहा था कि अपना इलाका है... तो वो गलत नहीं था।
'का हो दमोदर? सुने आजकाल बरा माल कमाई हो रहा है? ई सुई घोंप के जो लौकी-नेनुआ बेच रहे हो। हमको सब मालूम है' बीरेंदर ने सब्जी का ठेला लगाने वाले दामोदर से पूछा।
'काहाँ बीरेंदर भैया... जीए भर के कमाईए नहीं है आ आपको खाली मलाइए दिख रहा है ! ठीके है,... जब खुदे मलाई चाभ रहे हैं त आपको दीखबे करेगा।'
'तुम्हरे बाबूजी आइसही थोरे नाम रखे थे दमोदर... जानते हैं भैया... दमोदर माने जिसके उदर में दाम हो ! बेटा तुम अइसही उदर में लमरी खोसते रहे न त एकदिन हलफनामा दे के तुम्हरा नाम लंबोदर कराना परेगा। आ बाबूजी कइसे हैं तुम्हरे? हेमा मालिनी को भुलाए की नहीं अभी तक?' - बीरेंदर ने दामोदर से पूछा।
हेमा मालिनी की बात पर दामोदर की शकल देख लगा कि उसने बस किसी तरह अपने को गाली देने से रोक लिया और अपने असीस्टेंट से बोला - 'साले ज़ोर ज़ोर से बोल नहीं त...'
बीरेंदर ने मुझे समझाया - 'जानते हैं भैया दमोदर के बाबूजी एयरपोर्ट प नौकरी करते हैं। आ जिस दिन हेमा मालिनी आई पटना... देख लिए... बुझ जाइए कि माने एक दम पास से... जईसे दमोदर है न बस एतने दूरी रहा होगा... है कि नहीं दमोदर? । आ उसके बाद जो हालत हुआ है उनका। शाम को घर आए आ पहिले त खाना-दाना कुछ नहीं खाये... जब चाची पूछी कि का हो गया त जो रोना चालू किए हैं... अरे जवानी के दिन में बड़का फैन थे हेमा मालिनी के'
'देखिये बीरेंदर भैया ठीक नहीं होगा.... बता दे रहे हैं !' आ तू भो** के का कर रहा है बोल ज़ोर से...' दमोदर ने ठहाके लगा रहे अपने असिस्टेंट को घुड़की दी। असिस्टेंट... "4 रुपये पौवा.... ताजा खींचा..." चिल्लाना शुरू हो गया।
'लेकिन दमोदर भाई जो जिंदगी जी लिए हैं न... का बताएं आपको !' बीरेंदर ने मुझसे कहा।
'हाँ अब जिंदगिए जीने का न फल मिल रहा है कि हिहाँ एएन कोलेज कर के सब्जी बेच रहे हैं...नहीं तो आपे जइसे हम भी हीरो होंडा नहीं दौराते आज?!' - दामोदर ने दार्शनिक अंदाज में कहा।
'लेकिन ई बात भी तो मानना परेगा कि आप का जैसा यहाँ केतना आदमी लाइफ जी पाता है ! जानते हैं भैया... दमोदर जब आईए में पढ़ते थे तब इनके बाबूजी पान के गुमटी प कहते – एगो पनामा दीहअ हो। आ 10 मिनट बाद दमोदर कहते - एगो किंगसाइज़ दीजिये त हो। एकदमे गर्दा उड़ान थे दमोदर' - बीरेंदर ने फिर दामोदर की खिंचाई की लेकिन ये बात दामोदर को बुरी नहीं लगी। उन्होने सगर्व स्वीकृति सी दी। बीरेंदर को पता है किसे कौन सी बात अच्छी लगेगी।
उधर दामोदर का असिस्टेंट फिर मजे लेकर बात सुन रहा था। दमोदर ने फिर उसे गालियां दी: 'तोहरी माँ के...बरा मजा आ रहा है तुमको... एक ठो गाहक नहीं आया अभी तक।'
'देखिये दमोदर भैया... एक ठो दस टकिया खातिर हम जेतना गला फार रहे हैं उ कम नहीं है। आ एक बात जान लीजिये हम अपना बाप का भी नहीं सुनते हैं ' - दमोदर के असिस्टेंट ने भी गाली के जवाब में अपनी बात कह दी।
'जीय रे करेंसीलाल... ससुर बाप का त हिहाँ कोई नहीं सुनता है ! त ना सुन के तू कौन बरका तीरंदाज हो गया ?' - बीरेंदर ने दामोदर के असिस्टेंट से कहा।
इतनी देर में सामने से एक उचकते हुए सज्जन प्रकट हुए। बैरी को जैसे आनंद आ गया। - "का हो 'येनांग विकारः' का हाल? "
'देखिये भैया ये जो है न वो तृतीया विभक्ति का जीता जागता उदाहरण हैं। हम हमेशा परीक्षा में 'पादेन खंज:' ही लिखे हैं उदाहरण। हमेशा इन्हीं का स्मरण करके संस्कृत में पास हुए हैं।' - बीरेंडर ने उन्हें सुनाते हुए मुझसे कहा।
'सही है बीरेंदर तुम्हें अभी तक याद है?' -मैंने पूछा। येनांग को बुरा लगेगा या नहीं ये पूछना मैंने उचित नहीं समझा। बीरेंदर के मिलनसार होने पर मुझे अब कोई डाउट नहीं था । और मुझे ये भी पता था कि लोगों को मेरी अच्छी लगने वाली बातों से कहीं ज्यादा... बीरेंदर की बुरी लगने वाली बातें अच्छी लगती है।
'याद तो कुछ पढ़ा हुआ बात ऐसे है कि भैया अब क्या बताएं आपको - ई का य, उ का व तथा ऋ का र हो जाता है।' एक सांस में बोल गया बीरेंदर।
'क्या हो जाता है?' मैंने पूछा।
'अरे भैया इसे यण संधि कहते हैं। हमको जादे बुझाता तो नहीं था लेकिन जो रटा गया अब उ ई जनम थोरे भुलाएगा... कहिए त अभी का अभी पिरियोडिक टेबल लिख दें ! हलीनाकरबकसफर - बीमजकासरबारा' – फिर एक सांस में बोल गया बीरेंदर। इंप्रेसीव।
येनांग विकार: ने पूछा - 'आरे बीरेंदर ई बात बताओ ई नयेका बसवा गांधी मैदान जाएगा?'
'नहीं ई स्टेशन जाता है'
'लेकिन गांधी मैदान नई जाएगा त जाएगा कइसे ?' - येनांग ने पूछा।
'अब ई तो कोई बैज्ञानिके बता सकता है कि गांधी मैदान नहीं जाएगा त कइसे जाएगा ! हम कइसे बता दें? उर के जाता होगा। नहीं तो आपका चाल से चला जाता होगा। कौन रोकेगा फिर? अहम बैज्ञानिक त हैं नहीं त हम खाली एतना जानते हैं कि गांधी मैदान नई जातई' - बीरेंदर ने अपने लहजे में कहा।
फिर बीरेंदर ने येनांग को सुनाते हुए उनके बारे में बताना चालू किया - 'भैया, एक बात है, येनांग विकार: जहां जाते हैं एकदम अफसर जईसा चलते हैं। देखिये-देखिये...एकदम परफेक्ट हचकते हैं। माने एक दमे चाल बराबर दूरी बटे समय के हिसाब से आप कलकुलेट करके देख लीजिये' - बीरेंदर ने उनकी ओर इशारा कर चिढ़ाते हुए कहा।
इससे पहले कि येनांग कुछ कहते बीरेंदर ने बाइक स्टार्ट की और हम वहाँ से आगे चले गए।
~Abhishek Ojha~
:)
ReplyDeleteयेनांग विकार... ...
ReplyDeleteवइसे एक बार फिर दामोदर शब्द की व्याख्या सुनकर अच्छा लगा।
ए भाई..आप बीहार में तीने महीना रहके अईसा बोली कईसे सीख गए...हम तो केतनो कोसिस करें एतना बर्रीहाँ नहीं लिख/बोल पाते हैं :(
ReplyDeleteएही सीर्सक से हमहूँ एगो पोस्ट लिक्खे थे पर साल.. तब पंडित अरविन्द मिसिर को कुछ इयाद आया था, देखें अबकी याद आता है कि नहीं.. बुझाता है देवेंदर बाबू हमरे इस्कूल में पढ़े हैं तिरपाठी जी से, तब्बे अभियो भुलाए नहीं हैं येनांग विकारः, सहार्थे तृतिया... नीमन लगा पटना पुराण-११..!!
ReplyDelete"देखिये भैया ये जो है न वो तृतीया विभक्ति का जीता जागता उदाहरण हैं। हम हमेशा परीक्षा में 'पादेन खंज:' ही लिखे हैं उदाहरण। हमेशा इन्हीं का स्मरण करके संस्कृत में पास हुए हैं"
ReplyDeleteतुम असली माल खोज के लाते हो जी... हीरा आदमी हो यार !
हमको हमारी जवानी याद आ जाती है.
बैरी कूल बैरी बैरी कूल:)
ReplyDeleteपीरियाडिक टेबल रटने का हमरा भी यही फार्मूला था..
ReplyDeleteजय हो!
ReplyDeleteपटना पुराण जारी है इसकी ख़ुशी हुई।
बीरेंदर हैं कमाल, इसमें कोई शक नहीं।
बिना तलाशे मिल गए यमाताराजभानसलगा और बैनीआहपीनाला जैसे सूत्र याद आ गए.
ReplyDeleteबैरीकूल जिंदाबाद !
ReplyDeleteगुरु "सः पादेन खंजः", "येनांग विकारः" सब याद करा दिए ...धन्य हो आप
ReplyDeleteबैरीकूल जिंदाबाद ! एक बार फ़िर से:)
ReplyDeleteबाह रे बीरेंडर :) मस्त !
ReplyDelete...बरी मुसकिल से हँसी रोके हैं अफिसवा में.गरदा उड़ा के रख दिया ई बिरेन्दरवा
ReplyDeleteयण सन्धि, पीरियाडिक टेबल, पादेन खंज: ... येनांग से यौनांग ...
लगता है कि रेणु, श्रीलाल शुक्ल और कनचोदा वाले विवेकी राय को एक साथ पढ़ रहे हों।
जिय रज्जा बलियाटी! ;) सर र र र
- Girijesh Rao (via email)
और मुझे ये भी पता था कि लोगों को मेरी अच्छी लगने वाली बातों से कहीं ज्यादा... बीरेंदर की बुरी लगने वाली बातें अच्छी लगती है।
ReplyDeleteजिनगी में जादे कर के इहे होता है...ऐसाही आदमी सक्सेसफुल होता है, उप्पर तक जाता है..
ऐसा उतार देते हो न बबुआ, एकदम से मिजाज परसन्न हो जाता है..
इसको इस्टोप मत लगाना, जारी रखना..इलाका सैर करने को जब भी मन अकुलाएगा, पढ़, मिजाज चकचका लिया करेंगे ...
'जीय रे करेंसीलाल... ससुर बाप का त हिहाँ कोई नहीं सुनता है ! त ना सुन के तू कौन बरका तीरंदाज हो गया ?' हा हा हा .... बहुत सुंदर साफगोई ........
ReplyDeleteबलिया वालों का भोजपुरी बोलने का अंदाज और बिहार वालों का भोजपुरी बोलने का अंदाज जुदा है, जहाँ बलिया वालों की अक्षर और शब्द पर पकड़ है वहीँ बिहार वाले शब्द और अक्षर पर रपट जाते हैं ...(र और ड़ )... हर जगह बोलने का अंदाज अलग होता है. और आपने ने इसे बड़ी खूबसूरती से उकेरा है|
Beerenderr Bhaiya to kamal hain . Hum hasate hansate behal hain. Tritiya wibhakti ha ha ha!
ReplyDeleteHi..handsom, nice post. love u darling...take care.
ReplyDeleteअरे..! परे तो थे ही, फिर कमेंटवा काहे नहीं किये!! उ का है कि ढेर मस्तिया गये होंगे..तभिये कमेंट करना भी भूल गये:) समझ रहे हैं न? गुस्सा नहीं न गये! अछा अब लिख के देखिये! तुरंत कमेंट नहीं किये तो बोलियेगा...फिर मस्तिया गया बे-चनवां:)
ReplyDeleteजय हो बाबू फ़िर से विजय हो! दुबारा बांच लिये झांसे में आकर! अच्छा लगा।
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