बीरेंदर भईया उर्फ 'बैरीकूल' से पहली बार चाय की दुकान पर मिलना हुआ था। मुझे अक्सर ऐसा लगता कि वो मुझसे बात करने की कोशिश कर रहा है लेकिन बात हो नहीं पाती थी। बीरेंदर की अपनी पर्सनलिटी है... ऐसी पर्सनलिटी जिसे देखकर लगता है कि एक जिंदगी तो हमने जी ही नहीं ! दाहिने हाथ की कलाई पर तकरीबन साढ़े तीन इंच चौड़ाई में बंधा लाल-पीला धागा और उसके ऊपर एक अष्टधातु का कड़ा, ट्रिम की हुई दाढ़ी, सिर के बीचों-बीच से निकली हुई मांग वाला हेयर स्टाइल, टाइट हाफ शर्ट, फ़ेडेड जींस, आंखो पर काला चश्मा, सफ़ेद रंग की चौड़ी बेल्ट और लाल रंग के कैनवास के जूते। सुबह के समय अक्सर मैं बीरेंदर को एक हाथ में आईफोन और दूसरे हाथ में चाय का ग्लास लिए देखता। आसपास की दस बिल्डिंगों और सड़क पर दुकान लगाने वालों में शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जिससे बीरेंदर छेड़खानी नहीं करता हो। जब तक मेरी उससे बात नहीं हुई थी तब भी मुझे पूरा यकीन था कि उसे मेरे बारे में सब कुछ पता है। मुझे देख थोड़ा संकोच करता और थोड़ी धीमी आवाज में बोलता।
उस दिन मेरे पास रिक्शे वाले को देने के लिए छुट्टे नहीं थे... तो मैं रिक्शे वाले को खड़ा कर छुट्टे की तलाश में निकल गया। तब मुझे बस दो दुकान वाले ही पहचानते थे एक चाय वाला छोटू और दूसरा जूस वाले मिसराजी। मैंने छोटू से पूछा 'सौ रुपये का छुट्टा होगा क्या?'
'नहीं सर, खुदरा के बहुत दिक्कत है ! सुबहे सुबह कहाँ एतना बरा लमरी टूटेगा ?'
'अरे यार ! रिक्शे वाले को देना है, उसे खड़ा करके आया हूँ ! हो तो दे दो'
'तो ऐसे बोलिए न सर की रिक्शा वाला को देना है, उसके लिए छुट्टा की क्या जरूरत हैं? कितना देना है?' बीरेंदर ने पीछे से कहा।
'20 रुपये'
'ऐ छोटू ! निकाल बीस रुपया... कोई एक दिन का आना है सर का? ले जाइए सर, बाद में दे दीजिएगा। अभी तो 2-3 महिना हैं न आप?' बीरेंदर ने छोटू से पैसा लेकर मुझे देते हुए कहा।
'धन्यवाद !'
'अरे धन्यवाद काहे का सर? माइसेल्फ बीरेंदर - फ्रेंड्स कॉल मी बैरी !'
बीरेंदर को बैरी कहना मुझे उसी तरह ठीक नहीं लगा जैसे शत्रुघ्न को शत्रु फिर एक दिन जब मेरा फोन बंद हो गया और मैंने एक कॉल करने के लिए बीरेंदर का फोन मांगा तो स्क्रीन पर 'बैरीकूल' देख कर मेरी इस समस्या का निदान हो गया । तभी पता चला कि बीरेंदर के पास हाथी के दाँत की तरह एक और दूसरा फोन भी है। जब पता चला कि एक फोन लैला-मजनू स्कीम के तहत उसने लिया है तो मैंने पूछ लिया 'शादी क्यों नहीं कर लेते?'
'सादी त करेंगे ही, लेकिन छोटी बहन है त रिक्स नहीं लेना चाहते... उसकी शादी करा दें पहले तब अपना करेंगे। अपने से शादी कर लेंगे त दिक्कत हो जाएगा... इस समाज में अपने से सादी करने के पहिले पचास ठो चीज सोचना परता है'।
फिर मैं कब 'सर' से 'भईया' हो गया और 'बैरीकूल' सिर्फ 'बीरेंदर' पता नहीं चला। बीरेंदर जहां मेरा ऑफिस था उसके पास ही एक बैंक में काम करता है। अपनी ही उम्र का लड़का है... लेकिन गज़ब तेज है। जब मुझे 'बोधगया और राजगीर जाना हुआ तो किसी ने सुझाव दिया 'इतनी सुबह मत निकलिए... नहीं तो पहले राजगीर चले जाइए। सुबह-सुबह गया वाले रास्ते पर थोरा रिक्स है'
जब बीरेंदर को पता चला तो बोला 'कौन साला बोल दिया आपको ई सब ? यहाँ से गया तक कहीं भी कुछ भी हो... बस हमारा नाम ले लीजिएगा - आ मेरा नंबर तो हइए है आपके पास ! अपना इलाका है... कहिए त बात करा देते हैं टोल-टेक्स वाला से... आपका गारी से टोलो नहीं लेगा ! अरे आराम से जाइए।'
सबको जानता है बीरेंदर... और सभी उसे जानते हैं। उसके साथ सड़क पर निकल जाइए... सबसे हाय-हैलो हो जाएगा... और सबके मजे भी लेता है।
'ऐ सदाबहार - रुपया चार ! क्या हाल है ?... का रे सिखण्डीया ! बीबी मारी है का राते?... आरे मउरिया ! कईसा चल रहा है गारी... सुने हैं खाली जनाना सवारी पर ज़ोर मार रहा है तू...?'
'सदाबहार-रुपया चार' चार रुपया प्रति गिलास गन्ना जूस बेचते हैं, सिखण्डीया रिक्शा चलाता है... मउरिया टेंपू। एक और है 'कैटरीना के खस्ससम'... उनका सत्तू का ठेला है। ये नाम इसलिए क्योंकि उनके ठेले पर कैटरीना की फोटो है। इन सबसे लेकर सारे ऑफिस वाले और बड़े शोरूम वाले तक... सभी 'बीरेंदर' या 'बीरेंदर भईया' को जानते हैं। एक दिन मैं मौर्य लोक में एक बड़े ब्रांड के शोरूम में था तो बीरेंदर का फोन आया... थोड़ी देर बाद बोला 'अरे वहाँ तो बहुत महंगा मिलेगा... हमसे बोले होते... आछे भईया... एक मिनट फोन दीजिये त जो काउंटर पर बैठा है उसको'। थोड़ी देर बाद मुझे फोन वापस करते हुए काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने कहा 'आपको बताना था न की बीरेंदर भईया के दोस्त हैं' और मुझे दस प्रतिशत की छुट मिल गयी।
बीरेंदर से मिलना अक्सर चाय की दुकान पर ही होता था। अमेरिका में क्या होता है ये जानने में उसे बहुत रुचि थी। खासकर मोबाइल, गन, बाइक, कार और नाइट क्लब्स मे क्या-क्या होता है।
'का रे कैटरीनवा के खस्स्सम ... तनी ध्यान रखो... तुम्हारा बीबी बहुत ओभारटाइम कर रही है आजकल?'
'बीरेंदर भईया... आपको का बुझाएगा... बरा-बरा आदमी सब का लेडीज त काम करबे करती है। आ आपको न हम ल*बक लगते हैं... किस्मत का खेल है भईया... नहीं त हिहाँ एएन कोलेज करके ठेला नहीं लगाते...' कैटरीनवा के खस्स्सम ने बुरा मानने के लहजे में कहा।
'अरे त कवनो चोरी-छि*रों कर रहा है... तुम तो साला कैटरीना का खस्स्सम है... अब का चाहिए तुमको? इहें तुम को मिल जाएगा इंजीनियरिंग आ मेडिकल रिटर्न... अईसा पी के टुन्न रहिता है की सब्जियों नहीं बेच सकता... वैसे बेटा तुमको खस्स्सम बना के उसका फैदा कहीं और लिया जा रहा है... तुमको तो बस एतना ही फैदा है की फोकट का फोटू लगाने दी है। तुमसे त कुछ नहीं ले रही है... लेकिन किससे-किससे का-का ले रही है... उधरो ध्यान दो...'
'जानते हैं भईया? कैटरीना के फिगर का राज उसके इसी खसम का सत्तू है... हा हा। देखिये त कैसे सत्तू पीते हुए फोटो लगाया है... अबे साला ! तुम गंजी में फोटो लगाए हो? कम से कम सारी तो पहना देते... बीबी है तुम्हारी... हा हा हा'
'बोले न भैया अब बरा आदमी का बीबी है... त ई सब चलता है... आप का जानेंगे? यहीं गांधी मैदान आ एसपीवर्मा रोड में जिंदगी भर रह गए आप का जानेंगे ? '
' हं बेटा जिस दिन तुम जैसा जितना खसम है... उ सब को खोज के बोलेगी की... एतना दिन से फोटो लगाए हो सब ज़ोर के पैसा दो... तब बुझाएगा'
'आछे भईया, ई दुकानवा वाला जो हीरोइन सब का फोटो लगा लेता है इन सब पर केस नहीं हो सकता है? वैसे इससे क्या फर्क परता है उ सब को ! ...लेकिन अमेरिका में भी अगर अइसही बिना ब्रांड एम्बेस्डर बनाए कोई फोटो लगा दे तो वहाँ तो सब मार लेगा? ' आगे बढ़ते हुए बीरेंदर ने मुझसे कहा।
'का हो ! सदाबहार - रुपया चार? एक ठो हीरोइन का फोटो लगाओ तुम भी इसके तरह... तब न... पब्लिक रस पिएगा ! ... आ ई ट्रांसफरमारवा के का कर दिये हो?... लाइने नहीं आ रहा है'
'आरे बीरेंदर... कल दिने में बुरुम से उर गया... बरी ज़ोर से आवाज किया... हमको त लगा कि बम-उम फट गया कहीं... आ बेटा जब तोहरे ऊमीर में थे त खूब फोटो लगाए है हम भी... हेमा मालिनी आ बैजानती माला के... '
'अरे जियो सदाबहार ! ऐसे ही थोड़े ना सदाबहार हो... जिला हिला के आज भी रखते हो तुम तो !'
बीरेंदर की नजरों में स्टाइल की समझ ही नहीं है मुझे... मुझे एक दिन सलाह दी उसने 'भईया आप भी न... एक घड़ी के अलावा कुछों नहीं ? कम से कम एक ठो सीकरी तो पहना कीजिये... ऐसे अच्छा नहीं लगता है'।
बीरेंदर ने मुझे रविवार को फोन किया... 'भईया बाडीगाड़ देखने चलेंगे ? नए वाले माल में?'
'कैसी फिल्म है? कितने बजे से?'
'फिलिम तो बढ़िए होगा। सलमान खान है आ करीना है त देखने लायक तो होइबे करेगा... नहीं तो माल भी नया है...उहे देखेंगे... अब पटना में उहे त एगो माल है. टाइम पास त होइए जाएगा...'
'देख लो तुम्हें गरिमा के साथ जाना हो तो...'
'अरे नहीं भईया... अईसा भी कुछ नहीं है। आप उसका टेंसन काहे ले रहे हैं... चलिये आपको माल दिखा लाते हैं अब दिल्ली-गुरगाँव जैसा तो नहीं है लेकिन फिर भी..'
'अरे मॉल तो हर जगह एक जैसा ही होता है। दिल्ली हो या पटना !'
'कहाँ भईया ! दिल्ली-गुरगाँव में बरा-बरा माल होता है आ माल में माल ही माल... यहाँ तो...हा हा हा'
बीरेंदर जैसे मस्त मौला को चित्रित कर पाना बहुत कठिन है... !
~Abhishek Ojha~
बैरी जैसे मनमौजी जीवों के कारण ही सामाजिक जीवन में तरंग बची है। यह बनी रहे और मस्ती तनी रहे।
ReplyDeleteबीरेंदर का अच्छा प्रोफाईल हींचा है आपने , ऐसे व्यक्तित्व एकला नहीं होते और विभिन्न देश काल में हैं और पाए जाते रहे हैं ...हामरे गाँव के एक बिज्जल चमार भी ऐसे ही शख्स रहे ...वे जीवन को ऐसे ही ठसक के साथ काट देते हैं तमाम विसंगतियों और पीडाओं के बावजूद भी !
ReplyDeleteबिरेंदर भाई अपना ही आदमी निकले ! उनका गज़ब का रेखाचित्तर खैंच दिया है आपने !
ReplyDeleteआपको पढ़ने में भी 'बरा रिक्स' है !
कैटरीना के खस्सम…हा हा हा…बाह बीरेन्दर जी। बन्हिआ लिखे हैं आप भी। मानना पड़ेगा।
ReplyDeleteदाहिने हाथ की कलाई पर तकरीबन साढ़े तीन इंच चौड़ाई में बंधा लाल-पीला धागा और उसके ऊपर एक अष्टधातु का कड़ा, ट्रिम की हुई दाढ़ी, सिर के बीचों-बीच से निकली हुई मांग वाला हेयर स्टाइल, टाइट हाफ शर्ट, फ़ेडेड जींस, आंखो पर काला चश्मा, सफ़ेद रंग की चौड़ी बेल्ट और लाल रंग के कैनवास के जूते। सुबह के समय अक्सर मैं बीरेंदर को एक हाथ में आईफोन और दूसरे हाथ में चाय का ग्लास लिए देखता।
ReplyDeleteबैरी स्टाइल भाई ! इन्द्रधनुषी आइकन है बैरी भाई !
बैरिकूल भी आपसे बात शुरू करने में झिझकते रहे...यानि कि कूल जी की उपरी पर्सनैलिटी के भीतर भी काफी-कुछ दबा हुआ होगा...
ReplyDeleteपर सही है....लगता है...जिंदगी जीते हैं तो बैरिकूल जैसे लोग...
बैरी से मिलकर बहुत मजा आया, और वाकई में ऐसे ही लोग जिंदगी जीते हैं । और वो कैटरीना का खस्स्सम तो मजा ही आ गया । और आप के लिखने की श्टाईल भी मस्त है।
ReplyDeleteवैसे बैरी के सामान्य ज्ञान को मानना पड़ेगा, माल तो माल में ही हैं। :)
रोचक चित्रण, शायद मिल कर भी यह न देख-सुन-गुन पाएं.
ReplyDeleteअरे वाह, बैरी! माइसेल्फ ज्ञानदत्त, फ्रेण्ड्स काअल मी जीडी!
ReplyDelete[सच में बैरी से दोस्ती करने का मन हो रहा है। आस पास में तलाशता हूं - कोई बीरेन्दर मिल जाये!]
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बहुत बढ़िया लिखते हो बन्धु!
एक नया ही पटना डिस्कवर किया है इस बार।
ReplyDeleteबैरी जैसे एवररेडी कैरेक्टर अपने को भी बहुत पसंद हैं। अपना भी था एक ऐसा ही चेला, अंशुल - किसी सब्जैक्ट पर, किसी लाईन में, किसी भी स्टाईल में सौ बटा सौ। बहुत मानता था मुझे। बिछड़ गया है दुश्मन पता नहीं कहाँ। सब याद दिला गये बॉस बैरीकूल से मिलवाकर।
बढ़िया पढ़ कर मजा आया...
ReplyDeleteऐसा एकूरेट उतार देते हो बबुआ कि लगता है कि बस पढ़ते रहें ,पढ़ते रहें,पढ़ते रहें..ई अद्भुद पटना पुराण...
ReplyDeleteकसम से एक एक शब्द/सीन आँखों के आगे बिछा देते हो...
लाजबाब...गज्जब ...जियो...
आ पटना को अलगे लेभेल पर पहुंचा दिए हो.
ReplyDeleteबाह!
berry coooool.....nice character n nice composition once again........
ReplyDeleteबेरी इज भेरी इम्प्रेसिव!
ReplyDelete:)
बहुत चउचक रेखाचित्र हिंच दिया है बिरेन्नरवा का। एकदम फस्स किलास :)
ReplyDeleteबोलो मिलेगे ऐसे लोग .बिदेस में !!!
ReplyDeleteशानदार, क्या व्यक्तित्व है। बहुत खूब लिखा है आपने।
ReplyDeleteगज़ब्बे लिखते हैं भाई! मन प्रसन्न हो गया है।
ReplyDeleteक्या चित्रण है, वाह!!! :)
करिये दिये हैं चौचक चित्रित ओझा जी। बिरेंदर को बैरी बना दिये त का देवेन्दर को 'दि बैरी' बनायेंगे?
ReplyDeleteकायल हो गये बैरीकूल भइया के । हर फन मौला व्यक्तित्व ठेठ पटनैया ।
ReplyDeleteऐसे दोस्ती की वजह से आपकी तो पांचों घी में ।
सही जा रही है पटना सीरीज और आपक तरंग भी बची रहेगी ।
पटना में त ई टाइप का बीरेंदर भिया हर मोहल्ला में देखाई दे जाता है.. मगर आप जिससे मिल्बाये हैं उसको तो देखना पडेगा अबके बार...
ReplyDeleteअब देखिये न फेस्बुकवो पर एगो अजय भिया हैं... एकदम सम्बेदनसील अमदी!! एकदम मियाज हरियर हो गया ओझा जी!!
वेरी कूल के साथ कूल कूल पोस्ट है :)
ReplyDeleteखुल्लम-खुल्ला लिख डाले हो तुम...बैरीकूल सुनेगा तो गरियाय देगा कि उसको बिना रायल्टी दिए उसकी कहानी छापे हो..अगली बार जाओगे तो रिक्शा वाला पूरा १०० का पत्ती लेगा...और बही बुशर्ट खरीदे तो २०% एक्स्ट्रा लगेगा...बैरीकूल बैरीहाट बन जायेगा...धुआंधार गुरु!!!!!
ReplyDeleteजन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई.
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ReplyDeleteअभिषेक जी,
आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
बैरी कूल को बहुत दिन से पढ़ना स्थगित किये थे। आज कहा पढ़ ही लिया जाये।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा! गजब का कैरेक्टर हैं वीरेंदर भैया! :)
Great characterization and wonderful observation.
ReplyDeleteJust love "Barry Cool"