Dec 14, 2011

फॉर ईच इन्फाइनाइटेसिमल मूमेंट ऑफ माइ एक्ज़िसटेंस !

 
(एक पत्र जो कभी भेजा नहीं गया...)
 

नोट:- अगर आप यहाँ तक आ गए हैं और इससे आगे पढ़ने जा रहे हैं तो: बीच में सिर्फ इसलिए ना छोड़ें कि इसमें गणित है। असली बात 'सत्य' है वो गणित का मोहताज नहीं !  गणित के अलावा बीच में छोड़ने का बाकी और कोई कारण हो तो कोई बात नहीं - खुशी से जाएँ :)


सोच रहा हूँ कहाँ से शुरू करूँ। मैंने कभी सोचा नहीं तुम्हें चिट्ठी लिखुंगा। लेकिन आजकल कुछ अजीब सा हो रहा है मेरे साथ। तुमने स्टॉकहोम सिंड्रोम का नाम सुना है? ये ऐसा पैराडॉक्स है जिसमें बंधक व्यक्ति अपने बंदीकर्ता से सहानुभूति करने लगता है... कुछ वैसी ही हालत है मेरी। तुमने मुझे एक तरह से गुलाम ही तो बना रखा है और मैं हूँ कि तुम्हारे लिए पागल हुआ जा रहा हूँ तो शायद ये स्टॉकहोम सिंड्रोम की ही चरमावस्था है !
 
मुझे हमेशा लगा कि अगर ये प्यार है तो तुम मेरा मौन समझ लोगी ! आज तक यही सोचता रहा... मेरी ये सोच तो तुम्हें तुम्हें पता ही है कि सत्य को कह देने से वो सत्य भले रहे, परम तत्व सा खूबसूरत नहीं रह जाता। और फिर मैं कैसे कह सकता हूँ कि तुमसे कितना प्यार करता  हूँ? अनंत को परिभाषित कर पाया है कोई?  सत्य और सुंदर को क्या शब्दों में कहा जा सकता है? फूल की खुशबू को भला क्या शब्दों में उलझा कर समझाया जा सकता है?  मुझे तो वैसे भी लगता है कि जब हम कुछ नहीं कहते हैं तो सबसे अच्छे तरीके से व्यक्त होता है। और अगर तुम्हें याद हो तो मैंने तुम्हें कहा भी था कि तुम्हारी खूबसूरती को शब्द और उपमा देकर मैं उसकी सीमा निर्धारित नहीं करना चाहता... फिर अचानक प्लूटो का कहा याद आया कि दोस्तों में सब कुछ कॉमन होता है। और अगर ये सच है तो तुम भी शायद मौन होकर मेरी ही तरह मेरे समझ जाने का इंतज़ार कर रही हो? अब इस मौन-पैराडॉक्स के डेडलॉक का कोई हल तो है नहीं... तो सोचा आज तुम्हें लिख ही डालूँ कि मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचता हूँ।... हर समय... समय के हर उस छोटे से छोटे लमहें में...फॉर ईच इन्फाइनाइटेसिमल मूमेंट ऑफ माइ एक्ज़िसटेंस !  
 
पहली बात जो मैंने इन समय के अत्यंत सूक्ष्म लमहों से सीखा है वो ये कि इस समय के बदलने की गति अचर (कोंस्टेंट) नहीं है... समय कैसे गुजरता है? जब तुम साथ होने सी होती हो- भले ही सात समुंदर पार और जब नहीं होती तब - मैं समय के गुजरने के दर में परिवर्तन महसूस कर सकता हूँ...। तुम्हारा एक मैसेज... केवल दिल की धड़कन नहीं समय के बीतने की दर को भी बढ़ा देता है। ऐसा नहीं कि तुम्हारा पास नहीं होना इसे बोझिल बनाता है... मुझे तो लगता है कि हमारा एक दूसरे से दूर होना हमारे रिश्ते को पूर्णता देने में पोजिटिवली स्क्युड़ डिस्ट्रीब्यूशन की तरह काम कर रहा है।

पहले तो मैं तुम्हें लेकर उलझा हुआ था... लेकिन जैसे-जैसे मैं अपनी सोच को तुम्हारे साथ बिताए गए समय के अत्यंत छोटे स्वेच्छित यादगार क्षणों (आर्बिट्रेरी स्माल मोमेंट्स) पर ले गया तो मेरी सारी सोच ही तुम पर कनवर्ज़ हो गयी। और फिर मुझे लगा कि ये नेसेसरी नहीं तो साफिसिएंट कंडीशन तो है ही कि मुझे तुमसे प्यार है। मेरा मन आजकल कुछ-कुछ स्वचालित और अनियंत्रित गति में है। अब मुझे नहीं पता मुझे क्या करना चाहिए। मैं उसे रोक नहीं सकता... अगर उसे उसके रास्ते से मोड़ना चाहूँ तो और बहकने का ड़र है... अगर उसे रोटेशनल ट्विस्ट मिल गया तो उसकी गति की मोडलिंग कर पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। वो तो पहले से ही अनियंत्रित और स्वचालित अवस्था में है !

अच्छा तुमने कभी केओस थियरि का नाम सुना है? उसमें एक छोटा सा परिवर्तन कहीं बहुत बड़ा तूफान तक ला देता है। जैसे एक तितली के पंखों की सिहरन दुनिया के किसी कोने में बवंडर ला देती है। वैसे ही तुम्हारी एक अदा की एक तस्वीर जो दिमाग में बैठ गयी है, उसने मेरे अंदर, कहीं किसी कोने में सुनामी ला दिया है। 
 
मेरे सोचने का जो सीक्वेंस है उसका लिमिट अद्वितीय तरीके से तुम ही हो। हर छोटे लमहें के बाद मेरी सोच तुम पर ही पहुँच जाती है... क्या इससे प्रूफ नहीं होता कि मेरे सोच की सीक्वेंस कनवरजेंट हैं और वो तुम पर कनवर्ज़ करती है? शायद कैलकुलस के इस बेसिक थियोरम को ही दुनिया वाले प्यार कहते हैं ! 

मैं सोच रहा हूँ कि मुझे आखिर हुआ क्या है? ! मुझे लगता है कि तुम्हें सोचते ही मेरे दिमाग के फील्ड में बिलकुल सही मात्रा में रेजोनेन्स एनर्जी, फील्ड तीव्रता और शायद प्रोटोन्स का अलाइनमेंट हो जाता है और फिर स्पेक्ट्रल शिफ्ट से जो तुम्हारी इमेज बनती है - वो ऐसी तुम होती हो जो हर कोण से अच्छी लगती हो। - परफेक्ट तुम ! तुम्हारी छोटी से छोटी बात और साधारण सी साधारण तस्वीरों को मिलाकर दिमाग ने एक नयी 'तुम' का सृजन कर डाला है। अब मैं जो भी सोचता हूँ उसी 'तुम' के इर्द-गिर्द। वैसे ही जैसे इंसान सैकड़ों तस्वीरों में से एक निकाल कर अपनी प्रोफ़ाइल में लगा देता है। दिल ने तुम्हारी उस मल्टी-डाइमेशनल तस्वीर को एक कोने में कैद कर लिया है और अब उसे दिमाग को कुछ इस तरीके से प्रोजेक्ट करता है कि दिमाग कुछ भी और नहीं कर पा रहा !  तुम दूर हो तो स्वाभाविक है कि उसे तुम्हारी नयी अदाएं नहीं मिलती... न्वाइज़ टू सिग्नल रेशियो बहुत कम है तो तस्वीर और साफ बन गयी है ! 

मैं तो ये भी नहीं बता सकता कि मेरे लिए ये बता पाना कितना कठिन है कि मैं तुम्हें कितना मिस करता हूँ। काश! इसे क्वांटिफ़ाई कर पाना संभव होता।  संसार में कितना कुछ है जो हमें नहीं पता, हमारे बस में नहीं... लेकिन मुझे उन अनियंत्रित, अनजान और अज्ञात चीजों पर बहुत भरोसा है। मुझे हमेशा ही केओस और रैंडमनेस में एक पैटर्न मिला है। और अपने इस केओटिक स्टेट ऑफ माइंड से भी, तुम मिलोगी इसकी उम्मीद जाग गयी है।

मुझे ठीक-ठीक याद नहीं मुझे तुमसे प्यार कैसे हो गया। लेकिन मैं समय में वापस जाऊँ तो... कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद सब कुछ बदल गया। प्वाइंट ऑफ इंफ़्लेक्सन? ...नहीं - सिंगुलारिटी। तुम्हें पता है सिंगुलारिटी का मतलब होता है वो बिन्दु या क्षेत्र जहां पर फंक्शन फट जाता है... अब मुझे फट जाना शब्द ही सूझ रहा है! अर्थात् गणित जवाब दे जाता है समीकरणों का कुछ अर्थपूर्ण मतलब नहीं रह जाता। जहां इंसान के बनाए गणितीय मॉडल अर्थपूर्ण परिणाम देने में नाकामयाब हो जाते हैं। सारे नियम कानून फेल ! या तो नियम बदलने पड़ते हैं या फिर जैसा है उसे वैसा ही बिन ज्यादा दिमाग लगाए मान लो। ऐसे सिद्धान्त जिन्हें सोचकर दिमाग का कोई कोना खिल उठता  है, लेकिन ये समझ में नहीं आता कि ये कैसे संभव है? या फिर इसका अर्थ क्या है? ! हम बस इतना समझ पाते हैं कि उस क्षण के पहले कुछ नहीं था लेकिन उसके बाद 'कुछ तो' था... उस क्षण क्या हुआ - ये हम नहीं समझ पाते। जैसे बिग बैंग - जिसने अरबों-खरबों तारों और ग्रहों वाले एक अनंत तक विस्तृत निरंतर फैलते ब्रह्मांड को जन्म दिया। वो क्या था? कैसे था? क्यों था? हम नहीं जानते। वैसे ही कुछ मेरा दिल शून्य से विभाजित सा हो गया है। इसका क्या अर्थ है मैं भी नहीं जानता !  और अब अगर तुम कहो... या मैं चाहूँ भी तो क्या उस सिंगुलारिटी के पहले की अवस्था में वापस जा सकता हूँ? तुम्हें लगता है इस ब्रह्मांड को एक अत्यंत सूक्ष्म, अनंत द्रव्य वाले बिन्दु में समेटा जा सकता है? अब तो जो होना था हो गया ! नो पॉइंट ऑफ रिटर्न से बहुत आगे निकल चुका हूँ।

मुझे हेनरी प्व्याइनकेयर का कहा याद रहा है: "कोई वैज्ञानिक प्रकृति को इसलिए नहीं पढ़ता कि ये उपयोगी है, वो पढ़ता है क्योंकि उसे इसमें आनंद मिलता है क्योंकि ये खूबसूरत है...अगर प्रकृति खूबसूरत नहीं होती तो इसे जानने का इतना महत्त्व नहीं होता... जीवन जीने का महत्त्व नहीं होता।" - मुझे लगता है कि हेनरी ने ये अपने महबूब के लिए लिखा होगा। हम जो भी दिल से करते हैं वो इसलिए नहीं करते कि उससे कोई फायदा होगा... बल्कि इसलिए कि हमें वो करने में आनंद और आत्म संतुष्टि मिलती है। या फिर हम बस इसलिए करते हैं क्योंकि हम करते हैं ! कोई कारण नहीं. तुमने गणितज्ञ जी एच हार्डी का नाम सुना होगा। उन्होने कहा था कि उन्होने कुछ भी ऐसा नहीं किया है जिसका कोई उपयोग हो। वो उपयोग में ले जाने वाले गणित को निम्न कोटी का और घटिया मानते थे... मेरा प्यार ऐसा ही है... बस प्यार ! कोई उद्देश्य नहीं है उसका। वो बस प्यार है... शुद्ध... और कुछ नहीं ! वो कैसा होता है ?  ये शब्द नहीं बता सकते! वो एनलाइटमेंट की तरह है... जब तक तुम खुद नहीं करती... नहीं समझ सकती ! कोई नहीं समझा सकता। तुलसी बाबा ने भी कहा है न 'तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा, जानत प्रिया एकु मनु मोरा'।  मेरा प्यार अगर कॉम्प्लेक्स है... तो इसमें इमाजीनरी पार्ट ज्यादा है ! अगर फंक्शन है तो अनबाउंडेड इंक्रीजिंग... सेट है तो जूलिया सेट से ज्यादा खूबसूरत।

अगर खूबसूरती का प्लॉट बनाऊँ तो तुम आउटलायर हो...किसी ग्राफ में तुम नहीं आ सकती। फिर ऐसा है कि 'खूबसूरत' शब्द तुम्हें पाकर धन्य है! गणित खूबसूरत जैसे शब्दों को अनडिफ़ाइंड कहता है... मैं कहता हूँ तुम मेरे लिए सुंदरता की परिभाषा हो !  मेरे लिए अगर ब्रह्मांड में ओयलर की आइडेंटिटी से ज्यादा खूबसूरत कुछ है तो वो बस तुम ही हो। सौंदर्यनुपात फिबोनाकी से क्या परिभाषित होगा? अगर तुम उस अनुपात में नहीं हो तो प्रकृति के अनुपातों को वैसे ही फिर से परिभाषित होना पड़ेगा जैसे क्वान्टम फिजिक्स से क्लासिकल।

मुझे एक ही ड़र है कि हम कहीं समांतर रेखाओं की तरह कभी मिले ही नहीं ! या फिर एसीम्प्टोट की तरह हम अनंत तक करीब आते रहें और हमारी आपसी दूरी अनंत पर जाकर ही खत्म हो ! ओह ! बड़ी भयावह वक्रता है ! मैं इसे नहीं सोच सकता।  पर मुझे पता है कि हमारे प्यार का फंक्शन कनवर्ज़ करेगा जरूर।  तुम मेरे जीवन रूपी कॉम्प्लेक्स ओप्टिमाईजेशन प्रॉबलम का सोल्युशन सेट हो। फिलहाल इंकम्पलिटनेस थियोरम की तरह जिंदगी है। उस जिगसा पज़ल की तरह जिसका एक टुकड़ा खो गया है। कैसे भी सुलझाऊँ बिन उस टुकड़े के अधूरा ही रहेगा। तुम्हें पता है वो टुकड़ा क्या है? - तुम हो वो टुकड़ा ! मुझे कभी-कभी तुम्हारे दिमाग के ब्राउनियन मोशन से ड़र लगता है। कितना भी समझने की कोशिश करूँ वो रहता एन-डाइमेन्श्नल ब्राउनियन मोशन में ही है। और फिर तुम्हारा व्यवहार मार्टिंगेल की तरह... पहले का कोई अनुभव उसका पूर्वानुमान लगाने में काम नहीं आता... तुम्हारा मार्कोव चेन सा व्यवहार जिसमें आगे क्या करोगी वो हमेशा तुम्हारे उसी समय के मूड पर निर्भर करता है। पसंद तो मुझे तुम्हारी हर बात है लेकिन ड़र लगता है कभी-कभी।
वैसे मैं इन सब को मॉडल कर लूँगा ! असली डर तो तुम्हारे बाउंड्री कंडीशंस से है। मुझे पता है कि अपने रिश्ते के समीकरणों का क्लोज फॉर्म सोल्युशन मिलना मुश्किल है लेकिन तुम बस हाँ कह दो और फिर देखो ये क्या कोई नेवियर स्टॉक्स या रिमान हाइपोथेसिस है जो मैं हल ना कर पाऊँगा!

द बॉटम लाइन इज आई लव यू ऐंड ओन्ली यू... ऐंड देयर इज आल्सो नेसेसरी ऐंड सफिसिएंट कंडीशन फॉर यू टू लव मी।

बस हाँ कह दो...मैं चाहता हूँ कि मैं धरती का पहला इंसान बनूँ जो ऐसी वैसी नहीं बल्कि बोरोमियन रिंग पहनाए और पंडित से कहे कि वो थ्री-ट्विस्ट-नॉट ही बनाए :)

तुम्हारा,
वही जिसे तुम कभी-कभी पागल कह दिया करती हो... शायद प्यार से !
--

~Abhishek Ojha~

PS:
1. नहीं सर, उस स्टेज तक जब कि प्यार हो (आग दोनों ओर लगी हुई) और इस तरह का इजहार हो, कर्व्स एनलिसिस मायने नहीं रखती। सब कुछ बस यूँ ही हो चुका होता है। मेरा मतलब देह का देह से मिलन भी और वह इम्प्योर नहीं होता। - आचार्य गिरिजेशहार्डी वाज डैम राइट !
2. प्योर मैथेमेटिक्स के पेपर में कभी ट्रेजडी ये नहीं होती कि सवाल हल नहीं  हो पाता... बल्कि ये होती है कि जो दो चार हल कर पाये वो रफ वाले पन्ने में लेकर एकजाम हाल से वापस आ गए। ट्रेजडी ये नहीं है कि मैं तुम्हें चिट्ठी नहीं लिख पाता बल्कि ये है कि लिख कर भी भेज नहीं पा रहा !
3. मैंने बैरीकूल को पटना फोन लगाया कि एक लभ-लेटर लिख रहा हूँ। तो बोला: 'आप तो मते लिखिए भैया। आपके बस का नहीं है। आप जो लिखेंगे उ बरा रिक्सी लग रहा है हमको'। मैंने कहा - 'भाई बिना रिक्स के कहाँ रिटर्न है ! और सारे इनवेस्टमेंट तो रिस्क देख के ही करते हैं। एक बिना रिटर्न एक्स्पेक्ट किए भी कर देते हैं। जो सच्ची बात है कह देते हैं।'
 
'ये बात है तो  लिख डालिए भैया। जो होग देखा जाएगा' :)

4. दुबारा नहीं पढ़ा है...गलतियाँ होंगी। धन्यवाद पाने के लिए ध्यान दिलाएँ :)
5. आपको क्या लगता है अगर इसे दुनिया कि सबसे खूबसूरत लड़की को भेजा जाय तो क्या कहेगी?

30 comments:

  1. अभिषेक जी, जिन गणित के सिद्धन्तों का सहारा लेकर यह प्यारी चिट्ठी लिखी गयी है उन्हे यदि अलग अलग चिट्ठियों में समझाया जाय तब और भी अच्छा होगा क्योंकि लिंक अंग्रेजी के विकिपीडिया से हैं।

    कहते हैं, २०वीं शताब्दी के शुरुवात में, नाभकीय ऊर्जा का ज्ञान समझ में आ रहा था। उस समय, एक भौतिक शास्त्री अपनी प्रेमिका के साथ अमावस की रात पर रेत पर लेटे आकाश में तारों की सुन्दर छटा का आनन्द ले रहा था। उसने प्रेमिका से कहा
    'जानती हो शायद मैं ही दुनिया का वह व्यक्ति हूं जो जानता हूं कि तारे इतना सुन्दर प्रकाश क्यों बिखेर रहे हैं।'
    प्रमिका ने सोचा कि कितना बोरिंग व्यक्ति है। कोई प्रेम की कविता सुनाने की जगह यह बेवकूफी की बात करने लगा। वह उसे छोड़ कर चली गयी।
    शायद यही हाल आपका होता :-)

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  2. जिस लड़की को यह पत्र मिले काश वह जवाब न दे और गणित से प्‍यार तो कतई न कर बैठे.
    बिट-बाइट के द्वैत हिसाब में ये जो कुछ आधा सा और मिलकर ढाई बनता है, उस पर लगता है कि वश नहीं कभी किसी का.

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  3. गणित की प्रमेयों का सुलझाव तो तब भी हो जाता है, प्रेम के रहस्य बड़े गूढ़ हैं, देखिये न, प्यार के चिन्ह में जहाँ पर दो hearts मिलते भी है वहाँ पर भी discontinuity है।

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  4. सर जी आपके टी-सर्ट पर आपका प्यार साफ़ दिख रहा था उस दिन :P

    वैसे बता दूँ की एक दफे मैं गणित में 'फेल' भी हो चूका हूँ :)

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  5. या इलाही ये माजरा क्या है ?

    कल एक ऐसा ही पत्र इश्वर कण की खोज के बाद पढ़ा था, आज ये ?
    विज्ञान/गणित ऐसे ख़ूबसूरत अंदाज में पढाया जाए तो फिर क्या है !
    सिंगुलारैती के फेर में हम भी कुछ परेशान रहे थे, और यहाँ पर कुछ लिख मारा था! मतलब कि आपके क्षेत्र में अतिक्रमण किया था!

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  6. जहां पर फंक्शन फट जाता है...

    हा हा हा हा हा हा

    कभी कभी सही में मुसीबत हो जाती है , संदर्भो के अनुसार अंग्रेजी के कुछ सरल से शब्दों के लिए हिन्दी में उपयुक्त शब्द खोज पाना कितना कठीण होता है!
    जैसे : breakpoint , preferred, scale

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  7. जिस तरह पूरा पाठ पढ़ने के बाद कुछ सवालों से मुक्का-लात होती थी उसी तरह आपके इस अजूबे गणितीय प्रेम पत्र के अंत में लिखे सवालों के जवाब दे के मामला निपटाने का काम कर रहा हूँ , मजबूरी है, फार्मेल्टी भी समझ सकते हैं :)

    १. मुद्दे कि बात ये कहती है कि तुम्हे भईया हो गया है प्यार, ये गणित विज्ञान के चक्कर में ना पड़ो, आगे बढ़ो, दुनिया रंग-बिरंगी है | जादा ३-५ करोगे तो कन्या ९-२-११ हो जायेगी |

    २. पत्र काहे नहीं भेज पा रहे हो इसका कारण भी बताये देते हैं (फिर ना कहना कि नहीं बताये) पत्र को थोड़ा कठिन भाषा में लिखो , इतनी सरल भाषा तो कम से कम गणित में ग्रेजुएट ही समझ पाएगी, जवाब के लिए शायद मास्टर्स का फॉर्म भर दिया गया होगा , २-३ साल का वेट करो....और एक बात का ध्यान रखो, प्यार की कोआर्डिनेट जामेट्री में इसेंत्रिसिटी की वेलू तुमने १ कर दी है जिस वजह से तुम्हारा प्यार एक वृत्त में घूम रहा है, थोड़ा वैलू बढाओ, कुछ पैराबोला, हाइपरबोला (या आग का गोला) बने..संभल के जवान...

    ३. बैरीकूल को हमारी तरफ से "कैसा ये इस्क है अजब सा रिस्क है " गाना सुनाया जाए...(और नाम ना बताइयेगा हमारा , उनका कहर है इलाके में)

    ४. दुबारा पढ़ना भी नहीं, कनफुजिया जाओगे, बहुत काम्प्लेक्स पोस्ट है भाई... :)

    ५. भेज दो बिलकुल भेज दो, हाँ बोलना पड़ेगा उसको|


    गणित के कोंसेप्ट रिवाइज कराने के लिए शुक्रिया (गणित पढ़ते टाइम प्यार व्यार अलाउड नहीं था , वरना कर डालते)

    जबर पोस्ट है गुरु!!!! छा गए...

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  8. awesome!
    बीच में कई बार सिर धुना,लेकिन चिट्ठी पूरी पढ़ ही डाली...

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  9. गणित में ग्रेजुएट नहीं...कॉमर्स में हूँ...पर गणित से दिल का गहरा रिश्ता रहा...। पर गणित का प्रेम-पत्र लिखने में भी इतना अद्भुत और रोचक प्रयोग हो सकता है, पहली बार जाना...। गणितीय चीज़ें (सच कहूँ तो पूरी तौर से पल्ले नहीं पड़ी...) पर बाधा भी साबित नहीं हुई...। मज़ेदार पोस्ट...मेरी शुभकामना और बधाई...।
    प्रियंका

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  10. गणित में ग्रेजुएट नहीं...कॉमर्स में हूँ...पर गणित से दिल का गहरा रिश्ता रहा...। पर गणित का प्रेम-पत्र लिखने में भी इतना अद्भुत और रोचक प्रयोग हो सकता है, पहली बार जाना...। गणितीय चीज़ें (सच कहूँ तो पूरी तौर से पल्ले नहीं पड़ी...) पर बाधा भी साबित नहीं हुई...। मज़ेदार पोस्ट...मेरी शुभकामना और बधाई...।
    प्रियंका

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  11. हाय! हाय! वो लड़की किसके साथ गयी?

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  12. आपको क्या लगता है अगर इसे दुनिया कि सबसे खूबसूरत लड़की को भेजूँ तो क्या कहेगी?

    यकीनन वो फौरन से पेश्तर आपकी बीवी बन जाएगी. पर, फिर जब आप उसे अगला लभ लेटर भेजेंगे तो उसमें सिंगुलेरिटी वाले पैरा के अलावा कभी और कुछ न होगा. काहे कि भुक्तभोगी हैं ना, इसलिए बता रहे हैं!

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  13. बहुत ही ख़ूबसूरत प्रेमपत्र.. प्रेम और खुशबू को परिभाषित तो किया ही नहीं जा सकता.. परिभाषा के सारे शब्द बासी होते हैं, पढ़े-सुने-चुराए हुए... महसूस करो और देखो तो कहने को रह कहाँ जाता है कुछ..
    देह का देह से मिलना प्योर होता है- सच है. ऐसे ही किसी प्योर मिलन से जीसस ने जन्म लिया था और वो प्रेम इतना प्योर था कि माता वर्जिन मेरी ही कहाई!! वर्जिन ही तो थी...
    और अंत में सवाल ही गलत हो गया भाई..
    आपको क्या लगता है अगर इसे दुनिया कि सबसे खूबसूरत लड़की को भेजूँ तो क्या कहेगी?
    दुनिया की ख़ूबसूरत लड़की नहीं.. जिसने यह खत खोलकर पढ़ लिया वो यकीनन दुनिया के सबसे सुन्दर लड़की होगी!! Q.E.D.

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  14. प्यार की बातें भी कभी-कभी इतनी टेक्नीकल और पेचीदी हो जाती हैं !

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  15. बबुआ...भले गणीत में पूरा डिब्बा गोल काहे नहीं हो, पर खपसूरत दिल जदि होगा उसके पास, तो करेजा पर हाथ धरकर एके शब्द तो कह पायेगी-

    "हाय...."

    सलीके से सम्हालना पड़ेगा उसे , की कहीं दिल की धड़कन थम ही न जाए...

    का लिक्खे हो....

    जियो !!!!

    ऐसा शिष्ट,ऐसा मोहक प्रेमपत्र...bas वाह...वाह...वाह...

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  16. सबसे पहले वह आपमें अनंत से भाग देगी, फिर जल्दी से भाग लेगी...वैसे दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की का मामला बाबरी मस्जिद से कम विवादास्पद थोड़े है! ...चार महीना बाद पटना भूले हैं! भयानक लेख...बहुते ऊटपटांग लगा कई जगह। काजाने कइसे लिखे हैं!

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  17. गोया प्यार में कहते है के केमिस्ट्री के रटे फार्मूले भूल जाते है .बायो केमिस्ट्री के ऐसे कई हादसों के हम खुद गवाह है ....मैथ्स की बाबत खुद पे यकीन था इसलिए एलेवेनथ में ही बायो थाम ली थी.....तुम्हारा ख़त पढ़कर आज यकीन हुआ के मैथ मेटेशियाँ भी बड़ा हसीं दिल रखता है ..
    उम्मीद है दराज में ऐसे कई ख़त निकालोगे ओर बिना एडिट करे सीधे बोर्ड पर लगा दोगे ......इंतज़ार रहेगा ....

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  18. गिरिजेश राव जी के "मनूर्मी " की याद आ गयी :)

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  19. बाप रे..! हम तो भागिये जाते अगर ऊपर यह न लिखा होता कि गणित के कारण मत भागिये। सही है..भले से गणित समझ में न आये चिट्ठी बड़ी प्यारी है। जितना समझा उसी में बहुत आनंद आया।

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  20. प्यार में गणित का मेल कभी नही हो सकता कोशिश करेगें तो फेल हो जायेगें.....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
    सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
    चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
    छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
    अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,



    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  21. कई बार सोचा कि टिप्पणी न लिखूँ, आजकल टिप्पणियाँ अपनी दिशा भी बदल ले रही हैं, फिर सोचा लिख ही देता हूँ:

    अगर संसार का सबसे caring लड़का, गणित की सौगन्ध खिलाकर पढायेगा तो संसार की सुन्दरतम लड़की को भी पढने का "कष्ट" तो करना ही पड़ेगा। हाँ, वह भावनाओं को अप्रीशियेट तभी कर पायेगी जब उसके माता-पिता दोनों ने ही किसी अरोचक विषय में पीऎचडी किया हो।

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  22. बड़ा खुराफ़ाती पत्र है। बवाल। पहले चिट्ठी पढ़ी फ़िर लिंक देखे, फ़िर पढ़।

    कई दिमाग की समझ का फ़ंक्सन फ़ट गया। उसको सिला। फ़िर पड़ा।

    आनन्दित हुये। बड़ा डरावना पत्र है। कोई साहित्य की प्रेमिका पढ़ेगी तो आध्यात्मिक हो जायेगा।

    ये पत्र वाल मार्ट घराने का पत्र है। दुनिय भर के सारे गणितीय सामान/थ्योरी यहां मौजूद हैं। जो चाहे फ़्री में ले लो। पत्र के साथ फ़्री।

    इसे पढ़ने के बाद अपनी पोस्ट एक गणितीय कवि सम्मेलन फ़िर से पढ़ी। उसकी चार लाइनें इस प्रेम पत्र को पढ़ने के बाद वाले भाव हैं:

    कुछ रेखाओं के छूने से
    मन गुदगुदी मचाता है,
    ये छुअन-बिंदु पर बनी रहें
    ये ही अरमान जगाता है।

    छुआ-छुऔव्वल से आगे
    करने की मुझमे चाह नहीं,
    छुअन-छुअन भर बनी रहे,
    दुनिया की मुझको परवाह नहीं।


    पत्र गुदगुदायमान है। :)

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  23. कुछ समझ आया कुछ नहीं पर रोचक पोस्ट पढ़ ही लिए पूरा. ये प्यार भी तो ऐसे ही हो जाता है. चिट्ठी तो पोस्ट कर ही दीजिये क्योकि प्यार का सन्देश शब्दों से नहीं भावो से जाता है.

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  24. हमने किसी भी लिंक पर चटका लगाये बिना ही पूरा पत्र पढ़ लिया। आनंदित हुए। चटका इसलिए लगाना जरुरी नहीं समझे कि उसके बाद भी उतने ही अज्ञानी बने रहते जितना अभी हैं। ऊँची गणित में फँसना नहीं चाहते हम।

    प्रेमपत्र में जो कोमल भाव हैं उसी से अपना काम चल गया। बाकी का हिस्सा गणित के आचार्य पचाएं, जुगाली करके।

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  25. द बुडबक कुछ करबौ धरब कि बस फिलस्फिये ही पेलबाS ....
    अपरंच !
    बाप रे अद्भुत पोस्ट !
    सभी उच्च गणित के विद्यार्थियों ,सुपरथर्टी समाहित के लिए यह प्राईमर पाठ पाठ्यक्रम के लिए अनुशंसित और संस्तुत किया जाता है ...
    बिहार और झारखंड में तो अनिवार्यतः !
    सुनत बानी न बाबू लोगन !

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  26. यह पत्र नहीं पी.एच.डी. के थीसिस के लिए एक चेल्लेंज है.
    ऐसा लगा आपने अब तक जितनी गणित पढ़ी उसे बढ़ी प्रेक्टिकलि उपयोग किया है.

    और अब तक ना भेजा हो तो भेज दीजिये.. all the best !!

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  27. छा जाना इसे ही कहते हैं, हर लिंक पढ़ के आया हूँ।
    टिप्पणी करना आवश्यक नहीं है इस बात को बताने के लिए कि पत्र अत्यधिक पसंद आया।
    गणित कि कक्षा है सो, विलम्ब से ही सही उपस्थिति दर्ज करने आया हूँ।
    गज़ब!

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  28. हे भगवान...ऐसी पोस्ट और मैने इतनी देर से पढ़ी....लिंक तो आपने सारे दिए...पर किसी पर क्लिक नहीं किया...जरूरत ही नहीं पड़ी....भावार्थ समझ में आ गया ,काफी है.....फ्लो की वाट नहीं लगानी थी.

    पाठक मन बड़ा सेल्फिश हो रहा है....कहता है...ऐसे पत्र कहीं भेजे ही ना जाएँ...बस लिखे जाएँ {ताकि हम पढ़ सकें :)}
    पर अफ़सोस भी हो रहा है...काश ऐसी कोई लड़की होती..जिसे इतना प्यार किया जा सकता. { अब बताइए कि ऐसी लड़की सचमुच में है...:)}

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  29. "5. आपको क्या लगता है अगर इसे दुनिया कि सबसे खूबसूरत लड़की को भेजूँ तो क्या कहेगी?"

    उसका तो माथे ही झनझना जाएगा आपका "लभ" लेटर पढ़ के ..... हा हा हा ... वेब सर्च के दौरान आपका ब्लॉग हाथ लगा, सच मानिए मजा आगया भोजपुरी पढ़ के

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