(एक पत्र जो कभी भेजा नहीं गया...)
नोट:- अगर आप यहाँ तक आ गए हैं और इससे आगे पढ़ने जा रहे हैं तो: बीच में सिर्फ इसलिए ना छोड़ें कि इसमें गणित है। असली बात 'सत्य' है वो गणित का मोहताज नहीं ! गणित के अलावा बीच में छोड़ने का बाकी और कोई कारण हो तो कोई बात नहीं - खुशी से जाएँ :)
सोच रहा हूँ कहाँ से शुरू करूँ। मैंने कभी सोचा नहीं तुम्हें चिट्ठी लिखुंगा। लेकिन आजकल कुछ अजीब सा हो रहा है मेरे साथ। तुमने स्टॉकहोम सिंड्रोम का नाम सुना है? ये ऐसा पैराडॉक्स है जिसमें बंधक व्यक्ति अपने बंदीकर्ता से सहानुभूति करने लगता है... कुछ वैसी ही हालत है मेरी। तुमने मुझे एक तरह से गुलाम ही तो बना रखा है और मैं हूँ कि तुम्हारे लिए पागल हुआ जा रहा हूँ तो शायद ये स्टॉकहोम सिंड्रोम की ही चरमावस्था है !
मुझे हमेशा लगा कि अगर ये प्यार है तो तुम मेरा मौन समझ लोगी ! आज तक यही सोचता रहा... मेरी ये सोच तो तुम्हें तुम्हें पता ही है कि सत्य को कह देने से वो सत्य भले रहे, परम तत्व सा खूबसूरत नहीं रह जाता। और फिर मैं कैसे कह सकता हूँ कि तुमसे कितना प्यार करता हूँ? अनंत को परिभाषित कर पाया है कोई? सत्य और सुंदर को क्या शब्दों में कहा जा सकता है? फूल की खुशबू को भला क्या शब्दों में उलझा कर समझाया जा सकता है? मुझे तो वैसे भी लगता है कि जब हम कुछ नहीं कहते हैं तो सबसे अच्छे तरीके से व्यक्त होता है। और अगर तुम्हें याद हो तो मैंने तुम्हें कहा भी था कि तुम्हारी खूबसूरती को शब्द और उपमा देकर मैं उसकी सीमा निर्धारित नहीं करना चाहता... फिर अचानक प्लूटो का कहा याद आया कि दोस्तों में सब कुछ कॉमन होता है। और अगर ये सच है तो तुम भी शायद मौन होकर मेरी ही तरह मेरे समझ जाने का इंतज़ार कर रही हो? अब इस मौन-पैराडॉक्स के डेडलॉक का कोई हल तो है नहीं... तो सोचा आज तुम्हें लिख ही डालूँ कि मैं तुम्हारे बारे में क्या सोचता हूँ।... हर समय... समय के हर उस छोटे से छोटे लमहें में...फॉर ईच इन्फाइनाइटेसिमल मूमेंट ऑफ माइ एक्ज़िसटेंस !
पहली बात जो मैंने इन समय के अत्यंत सूक्ष्म लमहों से सीखा है वो ये कि इस समय के बदलने की गति अचर (कोंस्टेंट) नहीं है... समय कैसे गुजरता है? जब तुम साथ होने सी होती हो- भले ही सात समुंदर पार और जब नहीं होती तब - मैं समय के गुजरने के दर में
पहले तो मैं तुम्हें लेकर उलझा हुआ था... लेकिन जैसे-जैसे मैं अपनी सोच को तुम्हारे साथ बिताए गए समय के अत्यंत छोटे स्वेच्छित यादगार क्षणों (आर्बिट्रेरी स्माल मोमेंट्स) पर ले गया तो मेरी सारी सोच ही तुम पर कनवर्ज़ हो गयी। और फिर मुझे लगा कि ये नेसेसरी नहीं तो साफिसिएंट कंडीशन तो है ही कि मुझे तुमसे प्यार है। मेरा मन आजकल कुछ-कुछ स्वचालित और अनियंत्रित गति में है। अब मुझे नहीं पता मुझे क्या करना चाहिए। मैं उसे रोक नहीं सकता... अगर उसे उसके रास्ते से मोड़ना चाहूँ तो और बहकने का ड़र है... अगर उसे रोटेशनल ट्विस्ट मिल गया तो उसकी गति की मोडलिंग कर पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। वो तो पहले से ही अनियंत्रित और स्वचालित अवस्था में है !
अच्छा तुमने कभी केओस थियरि का नाम सुना है? उसमें एक छोटा सा परिवर्तन कहीं बहुत बड़ा तूफान तक ला देता है। जैसे एक तितली के पंखों की सिहरन दुनिया के किसी कोने में बवंडर ला देती है। वैसे ही तुम्हारी एक अदा की एक तस्वीर जो दिमाग में बैठ गयी है, उसने मेरे अंदर, कहीं किसी कोने में सुनामी ला दिया है।
मेरे सोचने का जो सीक्वेंस है उसका लिमिट अद्वितीय तरीके से तुम ही हो। हर छोटे लमहें के बाद मेरी सोच तुम पर ही पहुँच जाती है... क्या इससे प्रूफ नहीं होता कि मेरे सोच की सीक्वेंस कनवरजेंट हैं और वो तुम पर कनवर्ज़ करती है? शायद कैलकुलस के इस बेसिक थियोरम को ही दुनिया वाले प्यार कहते हैं !
मैं सोच रहा हूँ कि मुझे आखिर हुआ क्या है? ! मुझे लगता है कि तुम्हें सोचते ही मेरे दिमाग के फील्ड में बिलकुल सही मात्रा में रेजोनेन्स एनर्जी, फील्ड तीव्रता और शायद प्रोटोन्स का अलाइनमेंट हो जाता है और फिर स्पेक्ट्रल शिफ्ट से जो तुम्हारी इमेज बनती है - वो ऐसी तुम होती हो जो हर कोण से अच्छी लगती हो। - परफेक्ट तुम ! तुम्हारी छोटी से छोटी बात और साधारण सी साधारण तस्वीरों को मिलाकर दिमाग ने एक नयी 'तुम' का सृजन कर डाला है। अब मैं जो भी सोचता हूँ उसी 'तुम' के इर्द-गिर्द। वैसे ही जैसे इंसान सैकड़ों तस्वीरों में से एक निकाल कर अपनी प्रोफ़ाइल में लगा देता है। दिल ने तुम्हारी उस मल्टी-डाइमेशनल तस्वीर को एक कोने में कैद कर लिया है और अब उसे दिमाग को कुछ इस तरीके से प्रोजेक्ट करता है कि दिमाग कुछ भी और नहीं कर पा रहा ! तुम दूर हो तो स्वाभाविक है कि उसे तुम्हारी नयी अदाएं नहीं मिलती... न्वाइज़ टू सिग्नल रेशियो बहुत कम है तो तस्वीर और साफ बन गयी है !
मैं तो ये भी नहीं बता सकता कि मेरे लिए ये बता पाना कितना कठिन है कि मैं तुम्हें कितना मिस करता हूँ। काश! इसे क्वांटिफ़ाई कर पाना संभव होता। संसार में कितना कुछ है जो हमें नहीं पता, हमारे बस में नहीं... लेकिन मुझे उन अनियंत्रित, अनजान और अज्ञात चीजों पर बहुत भरोसा है। मुझे हमेशा ही केओस और रैंडमनेस में एक पैटर्न मिला है। और अपने इस केओटिक स्टेट ऑफ माइंड से भी, तुम मिलोगी इसकी उम्मीद जाग गयी है।
मुझे ठीक-ठीक याद नहीं मुझे तुमसे प्यार कैसे हो गया। लेकिन मैं समय में वापस जाऊँ तो... कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद सब कुछ बदल गया। प्वाइंट ऑफ इंफ़्लेक्सन? ...नहीं - सिंगुलारिटी। तुम्हें पता है सिंगुलारिटी का मतलब होता है वो बिन्दु या क्षेत्र जहां पर फंक्शन फट जाता है... अब मुझे फट जाना शब्द ही सूझ रहा है! अर्थात् गणित जवाब दे जाता है समीकरणों का कुछ अर्थपूर्ण मतलब नहीं रह जाता। जहां इंसान के बनाए गणितीय मॉडल अर्थपूर्ण परिणाम देने में नाकामयाब हो जाते हैं। सारे नियम कानून फेल ! या तो नियम बदलने पड़ते हैं या फिर जैसा है उसे वैसा ही बिन ज्यादा दिमाग लगाए मान लो। ऐसे सिद्धान्त जिन्हें सोचकर दिमाग का कोई कोना खिल उठता है, लेकिन ये समझ में नहीं आता कि ये कैसे संभव है? या फिर इसका अर्थ क्या है? ! हम बस इतना समझ पाते हैं कि उस क्षण के पहले कुछ नहीं था लेकिन उसके बाद 'कुछ तो' था... उस क्षण क्या हुआ - ये हम नहीं समझ पाते। जैसे बिग बैंग - जिसने अरबों-खरबों तारों और ग्रहों वाले एक अनंत तक विस्तृत निरंतर फैलते ब्रह्मांड को जन्म दिया। वो क्या था? कैसे था? क्यों था? हम नहीं जानते। वैसे ही कुछ मेरा दिल शून्य से विभाजित सा हो गया है। इसका क्या अर्थ है मैं भी नहीं जानता ! और अब अगर तुम कहो... या मैं चाहूँ भी तो क्या उस सिंगुलारिटी के पहले की अवस्था में वापस जा सकता हूँ? तुम्हें लगता है इस ब्रह्मांड को एक अत्यंत सूक्ष्म, अनंत द्रव्य वाले बिन्दु में समेटा जा सकता है? अब तो जो होना था हो गया ! नो पॉइंट ऑफ रिटर्न से बहुत आगे निकल चुका हूँ।
मुझे हेनरी प्व्याइनकेयर का कहा याद रहा है: "कोई वैज्ञानिक प्रकृति को इसलिए नहीं पढ़ता कि ये उपयोगी है, वो पढ़ता है क्योंकि उसे इसमें आनंद मिलता है क्योंकि ये खूबसूरत है...अगर प्रकृति खूबसूरत नहीं होती तो इसे जानने का इतना महत्त्व नहीं होता... जीवन जीने का महत्त्व नहीं होता।" - मुझे लगता है कि हेनरी ने ये अपने महबूब के लिए लिखा होगा। हम जो भी दिल से करते हैं वो इसलिए नहीं करते कि उससे कोई फायदा होगा... बल्कि इसलिए कि हमें वो करने में आनंद और आत्म संतुष्टि मिलती है। या फिर हम बस इसलिए करते हैं क्योंकि हम करते हैं ! कोई कारण नहीं. तुमने गणितज्ञ जी एच हार्डी का नाम सुना होगा। उन्होने कहा था कि उन्होने कुछ भी ऐसा नहीं किया है जिसका कोई उपयोग हो। वो उपयोग में ले जाने वाले गणित को निम्न कोटी का और घटिया मानते थे... मेरा प्यार ऐसा ही है... बस प्यार ! कोई उद्देश्य नहीं है उसका। वो बस प्यार है... शुद्ध... और कुछ नहीं ! वो कैसा होता है ? ये शब्द नहीं बता सकते! वो एनलाइटमेंट की तरह है... जब तक तुम खुद नहीं करती... नहीं समझ सकती ! कोई नहीं समझा सकता। तुलसी बाबा ने भी कहा है न 'तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा, जानत प्रिया एकु मनु मोरा'। मेरा प्यार अगर कॉम्प्लेक्स है... तो इसमें इमाजीनरी पार्ट ज्यादा है ! अगर फंक्शन है तो अनबाउंडेड इंक्रीजिंग... सेट है तो जूलिया सेट से ज्यादा खूबसूरत।
अगर खूबसूरती का प्लॉट बनाऊँ तो तुम आउटलायर हो...किसी ग्राफ में तुम नहीं आ सकती। फिर ऐसा है कि 'खूबसूरत' शब्द तुम्हें पाकर धन्य है! गणित खूबसूरत जैसे शब्दों को अनडिफ़ाइंड कहता है... मैं कहता हूँ तुम मेरे लिए सुंदरता की परिभाषा हो ! मेरे लिए अगर ब्रह्मांड में ओयलर की आइडेंटिटी से ज्यादा खूबसूरत कुछ है तो वो बस तुम ही हो। सौंदर्यनुपात फिबोनाकी से क्या परिभाषित होगा? अगर तुम उस अनुपात में नहीं हो तो प्रकृति के अनुपातों को वैसे ही फिर से परिभाषित होना पड़ेगा जैसे क्वान्टम फिजिक्स से क्लासिकल।
मुझे एक ही ड़र है कि हम कहीं समांतर रेखाओं की तरह कभी मिले ही नहीं ! या फिर एसीम्प्टोट की तरह हम अनंत तक करीब आते रहें और हमारी आपसी दूरी अनंत पर जाकर ही खत्म हो ! ओह ! बड़ी भयावह वक्रता है ! मैं इसे नहीं सोच सकता। पर मुझे पता है कि हमारे प्यार का फंक्शन कनवर्ज़ करेगा जरूर। तुम मेरे जीवन रूपी कॉम्प्लेक्स ओप्टिमाईजेशन प्रॉबलम का सोल्युशन सेट हो। फिलहाल इंकम्पलिटनेस थियोरम की तरह जिंदगी है। उस जिगसा पज़ल की तरह जिसका एक टुकड़ा खो गया है। कैसे भी सुलझाऊँ बिन उस टुकड़े के अधूरा ही रहेगा। तुम्हें पता है वो टुकड़ा क्या है? - तुम हो वो टुकड़ा ! मुझे कभी-कभी तुम्हारे दिमाग के ब्राउनियन मोशन से ड़र लगता है। कितना भी समझने की कोशिश करूँ वो रहता एन-डाइमेन्श्नल ब्राउनियन मोशन में ही है। और फिर तुम्हारा व्यवहार मार्टिंगेल की तरह... पहले का कोई अनुभव उसका पूर्वानुमान लगाने में काम नहीं आता... तुम्हारा मार्कोव चेन सा व्यवहार जिसमें आगे क्या करोगी वो हमेशा तुम्हारे उसी समय के मूड पर निर्भर करता है। पसंद तो मुझे तुम्हारी हर बात है लेकिन ड़र लगता है कभी-कभी।
वैसे मैं इन सब को मॉडल कर लूँगा ! असली डर तो तुम्हारे बाउंड्री कंडीशंस से है। मुझे पता है कि अपने रिश्ते के समीकरणों का क्लोज फॉर्म सोल्युशन मिलना मुश्किल है लेकिन तुम बस हाँ कह दो और फिर देखो ये क्या कोई नेवियर स्टॉक्स या रिमान हाइपोथेसिस है जो मैं हल ना कर पाऊँगा!
द बॉटम लाइन इज आई लव यू ऐंड ओन्ली यू... ऐंड देयर इज आल्सो नेसेसरी ऐंड सफिसिएंट कंडीशन फॉर यू टू लव मी।
बस हाँ कह दो...मैं चाहता हूँ कि मैं धरती का पहला इंसान बनूँ जो ऐसी वैसी नहीं बल्कि बोरोमियन रिंग पहनाए और पंडित से कहे कि वो थ्री-ट्विस्ट-नॉट ही बनाए :)
तुम्हारा,
वही जिसे तुम कभी-कभी पागल कह दिया करती हो... शायद प्यार से !
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~Abhishek Ojha~
PS:
1. नहीं सर, उस स्टेज तक जब कि प्यार हो (आग दोनों ओर लगी हुई) और इस तरह का इजहार हो, कर्व्स एनलिसिस मायने नहीं रखती। सब कुछ बस यूँ ही हो चुका होता है। मेरा मतलब देह का देह से मिलन भी और वह इम्प्योर नहीं होता। - आचार्य गिरिजेश। हार्डी वाज डैम राइट !
2. प्योर मैथेमेटिक्स के पेपर में कभी ट्रेजडी ये नहीं होती कि सवाल हल नहीं हो पाता... बल्कि ये होती है कि जो दो चार हल कर पाये वो रफ वाले पन्ने में लेकर एकजाम हाल से वापस आ गए। ट्रेजडी ये नहीं है कि मैं तुम्हें चिट्ठी नहीं लिख पाता बल्कि ये है कि लिख कर भी भेज नहीं पा रहा !
3. मैंने बैरीकूल को पटना फोन लगाया कि एक लभ-लेटर लिख रहा हूँ। तो बोला: 'आप तो मते लिखिए भैया। आपके बस का नहीं है। आप जो लिखेंगे उ बरा रिक्सी लग रहा है हमको'। मैंने कहा - 'भाई बिना रिक्स के कहाँ रिटर्न है ! और सारे इनवेस्टमेंट तो रिस्क देख के ही करते हैं। एक बिना रिटर्न एक्स्पेक्ट किए भी कर देते हैं। जो सच्ची बात है कह देते हैं।'
'ये बात है तो लिख डालिए भैया। जो होग देखा जाएगा' :)
4. दुबारा नहीं पढ़ा है...गलतियाँ होंगी। धन्यवाद पाने के लिए ध्यान दिलाएँ :)
5. आपको क्या लगता है अगर इसे दुनिया कि सबसे खूबसूरत लड़की को भेजा जाय तो क्या कहेगी?