दृश्य 1: विक्रम संवत 2028, 1971 ईस्वी, अक्षांश 26.xx देशांतर: 82.xx:
शुक्ल पक्ष की चांदनी रात के दूसरे पहर किसान पिता ने नवजात के जन्म-समय को चिन्हित करने के लिए जमीन पर एक खूंटी ठोंक दी. उज्जवल चांदनी में नीम के पेंड की छाय आँगन के बीचो-बीच से एक विभाजन रेखा बना रही थी. रात को जाने वाली ट्रेन ठीक उसी समय गुजरी थी… इस प्रकार ये समय स्टेशन मास्टर के रजिस्टर में भी दर्ज हुआ. पडोस के चंद्रभान से मांग कर लायी गयी घडी ८.५७ बजे बंद हो गयी थी… उसी समय गाँव के भोथन की भैंस ने पाड़े को भी जन्म दिया...
...रात भर... एक सरकारी सांढ... निर्विघ्न खेत चरता रहा। उसी रात पूर्वी पाकिस्तान में एक नए राष्ट्र के उदय की नींव पड़ रही थी...
पंडित ने खूंटी के निर्देशांको से जन्म-समय निर्धारित कर लाल स्याही से लिखना चालू किया... 'शतपद होढ़ा चक्रानुमतेन...' आपके लड़के के जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव है। पिता को मिश्रित शगुन दिख रहे थे। थोड़े चिंतित हुए तो पंडित ने कहा - 'बड़ी घाटियाँ पर्वतों के साथ ही होती हैं, मैदान नहीं है इसकी जिंदगी...'। नाम - विजय।
दृश्य 2: विक्रम संवत 2029, 1972 ईस्वी, अक्षांश 19.xx देशांतर:72.xx:
वैज्ञानिक पिता के घर पुत्री हुई। 'बर्थ सर्टिफिकेट' पर टाइपराइटर ने अंकित किया 10.47 पीएम। मुंबई से लंदन जाने वाले विमान के उड़ने की तेज आवाज हॉस्पिटल के गलियारों में सुनाई दी थी। अगले दिन बधाई संदेश आए और फूलों के बुके। उस समय भी पुत्री जन्म पर 'शोक-नहीं' करने वाले लोग थे। नाम – ऋचा।
...भारत पाकिस्तान शिमला समझौते पर हस्ताक्षर की तैयारी में थे।
दृश्य 3:विक्रम संवत: 2064, 2007 ईस्वी, अक्षांश: 26.xx देशांतर:80.xx:
कैंपस प्लेसमेंट का पहला दिन... विजय रात के 11 बजे एक छात्रों के समूह को समझा रहे थे कि उनकी कंपनी क्यों अच्छी है। एक घंटे बाद ऋचा भी एक अलग समूह को। तब दोनों के नाम के आगे डायरेक्टर लगता था। बस सात छात्र ऐसे थे जिन्होने दोनों को सुना। एक प्रभावशाली लेकिन घिसा हुआ दूसरी स्मूद... इंप्रेसिव। एक उसी कॉलेज का सीनियर, गालियों में खुल कर बात करने वाला.... दूसरी ऑक्सफोर्ड ग्रेजुएट। 'सालों ऐश करोगे' और 'यू काँट बी ए फिल्मस्टार ऑर अ फुटबॉलर नाऊ… बट यू स्टिल कैन मेक मनी लाइक दे डू…' ...दोनों के झूठ बोलने का अपना तरीका था और दोनों अपनी छाप छोड़ गए।
दृश्य 4: विक्रम संवत:2067, 2010 ईस्वी, अक्षांश: 40.xx देशांतर:-73.xx:
ऋचा, विजय और उन दोनों को सुनने वाला एक छात्र - अमृत... एक इयरएंड पार्टी। तीनों अलग-अलग कंपनियों और दुनिया के विभिन्न कोनों में भटकने के बाद... अब एक ही जगह काम करते हैं। ऋचा की पहले वाली कंपनी 2008 में डूब गयी... विजय का ग्रुप 2009 में। अमृत ने उस तीसरी कंपनी में नौकरी की थी जिसमें वो आज सभी हैं। चर्चा चली... तो विजय ने कहा:
'तुम दोनों को नहीं लगता... ये सब कुछ बस इसीलिए हुआ कि हम आज यहाँ बैठ के ये बातें करें? मुझे तो ये भी लगता है कि मेरे पिता ने जो खूंटी गाड़ी थी उसका भी असर है... जो भी मैं आज हूँ ! जो घड़ी बंद हुई थी - उसका भी। और ये जो बड़ी-बड़ी कंपनियाँ डूब गयी... लड़ाइयाँ हुई... सब कहीं न कहीं इसलिए हुई कि उन्हें मेरे जीवन पर असर डालना था... यहीं वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में 47वें फ़्लोर पर मेरा ऑफिस था कभी ! सोचना कभी.. दुनिया बहुत छोटी है... एक मिस्टीरियस रियालिटि शो है... जिसका सबकुछ प्री-स्क्रिप्टेड है... ये मेरे हाथ में गिलास... और मैं इसे छोड़ रहा हूँ...ये सब कुछ। बस हमें वो स्क्रिप्ट नहीं पता... हमें रोल मिला है... जो रोल मिला बस ऐसी एक्टिंग करो कि... साला जो करना है उसमें डूब जाओ... स्क्रिप्ट लिखने वाला तुमसे बस यही चाहता है... एक जमाना था जब मैं कुछ करने के लिए मर जाने को तैयार था। वो नहीं हुआ और आज मुझे पता है कि उससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता था मेरे साथ। जितना हुआ, ...बुरा भी हुआ तो उसके होने के पीछे कारण था... तुम्हें पता है जिस पाड़े ने मेरे साथ जन्म लिया था... उसी रात वाली ट्रेन के नीचे आ गया... और उसी रात जिस रात मैं उसी ट्रेन को पकड़ कर पहली बार कॉलेज गया। और मेरे जन्म के रात अगर %^&* सांढ ने खेत नहीं चरा होता तो एक क्विंटल अनाज ज्यादा हुआ होता... और.... '
...ऋचा उठ कर चली गयी... अमृत सुनता रहा। पीने के बाद लोग कमाल की बातें करते हैं।
~Abhishek Ojha~
आप सभी को नववर्ष की शुभकामनाएँ। नववर्ष और 'समय' पर भर्तृहरि को पढ़ें: :)
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः, तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः।
कालो न यातो वयमेव याताः तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः।
(हमने सांसारिक भोगों को नहीं भोगा बल्कि भोगों ने ही हमें भोग डाला। हमने तपस्या नहीं की बल्कि तापों ने ही हमे तपा डाला । समय नहीं बीता, बल्कि हम ही बीत गए । तृष्णा बूढ़ी नहीं हुई, बल्कि हम ही बूढ़े हो गए) !
महाराज की जय हो! भगवान बेचारे पाड़े की आत्मा को शांति दे। अगर ज्योतिषी प्र**र जी होते (जिनके भाई की संतति को आप और आपके सभी पाठक जानते हैं) तो कहते, "वह कुछ भी लेकर नहीं गया, सब कुछ आपको दे गया, इसीलिये एक कम्पनी बन्द हुई और दूसरी भी, मगर तीसरी ... न, न, न!"
ReplyDeleteनव वर्ष और आने वाले सैकड़ों वर्षों के लिये हार्दिक शुभकामनायें!
शुभकामनाएं लेन-देन के काम का ही रह गया नया साल, पोस्ट पढ़ कर.
ReplyDeleteजै सिया राम।
ReplyDeleteसब प्री-स्क्रिप्टेड है; इस लिये जाहि बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये।
जे तो पता है सब प्री-स्क्रिप्टेड है, पर आज पता चला कि लोग पीने के बाद क्या क्या बोलते हैं :)
ReplyDeleteउलट पुलट फिट
ReplyDeleteसुपर सुपर हिट।
भाई माफ करिएगा, शुरू से देखते ही पढने का मन नहीं हो रहा।
ReplyDelete@चंदन कुमार मिश्र: हा हा. कोई बात नहीं. आप आते हैं. ईमानदारी से कमेन्ट करते हैं. और क्या चाहिए जी ! :)
ReplyDeleteबस अपनी प्री स्क्रिप्टेड टीप ढूढने चले आये हैं !
ReplyDeleteबिलकुल अलग अंदाज़...नई स्क्रिप्ट !
ReplyDeleteपंडिज्जी का कुंडली बनाना सबसे रोचक,सांड और पड़वा का ज़िक्र गज़ब की प्रतीकात्मकता लिए हुए !
बकिया,सब कुछ तो पूर्व-निर्धारित है,हमारा आज ही टिपियाना बदा था !
बड़ी बड़ी बातें लिख डाली हैं....मंथन करने वाली...
ReplyDeleteपर हमें एक ही टिप्पणी करने का मन हो रहा है...
पीने के बाद लोग कमाल की बातें करते हैं।
पीने के बाद लोग कमाल का लिखते भी हैं...जैसे ग़ालिब...:) {पर प्लीज़ प्लीज़...इसे खुद पर मत ले लेना....U r a teetotaler..we all know :)}
बढ़िया है गुरु .तुलसी बाबा कहीए गए है .
ReplyDelete"उघरे अंत ना होई निबाहू , कालनेमि जिन रावण राहू " . नव वर्ष की अगैती शुभकामना .
बात तो सही है कि सब कुछ प्री-स्क्रिप्टेड है.. पहले भी कहीं कहा था.. आज दोहरा रहा हूँ.. दुर्योधन ने भी यही सोचा था कि बस दो मिनट में दुह्शासन द्रौपदी को उसकी जंघा पर बिठा ही डालेगा.. स्क्रिप्ट परफेक्ट थी.. मगर कमबख्त उसी वक्त द्रौपदी का सखा आ जाएगा ये किसे पता था.. कुरुक्षेत्र में भी सारी फ़ौज अपनी थी और दूसरी और था डरा हुआ अर्जुन.. जीतने में कितना टाइम लगना था.. मगर अं वक्त पर सारथी की एंट्री हुई और और इनिंग्स डिफीट!!
ReplyDeleteदेखें नया साल कौन सी स्क्रिप्ट लेकर आता है.. या जो लेकर आता है उसे ही हम अपना रोल मान लेते हैं!!!
मज़ा आया ओझा जी.. बहुत दिनों बाद उदय प्रकाश याद आ गये!!
क्या बात है! क्या बात है! :)
ReplyDeleteपीने वाले तो खैर छोडो भाई!!! लेकिन लिखने वाले ने क्या खूब लिख डाला, लगा की "मौसम" टाइप कोई कहानी लिखी जाएगी, पर हुआ नहीं (और यही अनप्रेडिक्टेबिलिटी कहानी की जान बन गयी )!!!
ReplyDeleteबढ़िया लिखा है गुरु!!!!
नए साल की ढेरों शुभकामनायें!!!!!
सब कुछ पहले से लिखा हुआ है सही है ।
ReplyDeleteतृष्णा बूढी नही हुई मैं ही बूढी हो गई यह भी सही है ।
नववर्ष की मंगल कामनाएं ।
सही है अभिषेक जी, सही है
ReplyDelete:)
भृतहरि के अनुसार एक और वर्ष हमें खा गया...
ReplyDelete|| जय राम जी की ||
ReplyDeleteक्या मैं बधाई दूं, कि मेरा जीवन दर्शन आपने छाप दिया.
अद्भुत ....स्टाईल और कंटेंट दोनों ..नया साल आपको शुभ हो
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