(मूल पोस्ट... के बाद आए एक ईमेल और उसके जवाब पर आधारित)
अमृत ने जब अगले दिन विजय से बात की... तो विजय ने बताया-
देख अमृत, दारू के झोंके में मैंने जो बोला वो बोला। पर मैं जो बोलता हूँ वो कोई नियम नहीं है। वो बस उतना ही है जितना मेरी समझ में आता है। ये उन बातों पर निर्भर है कि मैंने क्या पढ़ा, क्या देखा और अब तक कैसा जीवन जीया। ऐसा कुछ भी जो मेरी सोच को सही ठहराता है, वो मुझे सच लगता है पर इसका मतलब ये नहीं है कि दुनिया वैसी ही चलती है। केप्लर और कोपरनिकस के पहले सबको पता था कि सूर्य पृथ्वी के चारो ओर चक्कर लगाता है। और सबको पता था कि ब्रह्मांड कैसे बना है ! कोई झमेला नहीं ! उसी तरह क्लासिकल, न्यूटोनियन फिजिक्स और फिर आइन्सटाइन का क्रांतिकारी सापेक्षता सिद्धान्त और फिर क्वान्टम.... और हम अभी भी हो सकता है कि कुछ नहीं जानते ! ...या फिर जो जानते हैं उसके विपरीत ही कुछ सच हो ! एक दिन एक नया सिद्धान्त सब कुछ बदल सकता है।
सारे सिद्धान्त बस हमारे आस पास की हो रही घटनाओ को बस सही ही तो ठहराते हैं... कितनी ही चीजों की व्याख्या तो हम कर नहीं पाये आज तक... और हम कह देते हैं कि यही संसार के नियम है। जैसे एक रुई के गोले पर गोली चलाने से अगर गोली अपनी दिशा बदल दे... तो हम नियम बनाते हैं कि रुई के अंदर एक वस्तु है जो गोली की दिशा बदल रही है... पर सच्चाई ये हो भी सकता है नहीं भी ! बिन देखे, बिन रुई खुले.... अनुमान ही तो है ! और कोई भी नियम तभी तक सही होता है जब तक आँखों देखी बातों को सही ठहराने के लिए उससे बेहतर नियम नहीं मिल जाते।
अब अपने को ऐसा लगता है कि जो भी होता है वो पूरे ब्रह्मांड के अच्छे के लिए होता है... कई बार हमें ये बात उसी समय समझ नहीं आती। कई बार हम पूरी जिंदगी नहीं समझ पाते कि इसमें अच्छा क्या है ! लेकिन हमारी जिंदगी के बाद शायद कुछ अच्छा हो ... वैसे भी हमारी जिंदगी की समय सीमा ब्रह्मांड के उम्र की तुलना में है ही क्या ! अब इसी को तू ऐसे कह सकता है कि जब सब कुछ अपने आप होना है तो मैं क्यों टेंशन लूँ ! तो फिर ये कहानी सुन जो मैंने अपने बचपन में सुनी थी:
'एक बार नाव से लोग नदी पार कर रहे थे... और तूफान आ गया। अफरा-तफरी मच गयी। उसी नाव में एक महात्माजी भी थे। वो अपने कमंडल से नदी का जल नाव में डालने लगे...लोगों को लगा बुड्ढा पगला गया। थोड़ी देर में तूफान शांत होने लगा तो बाबा वापस पानी नाव से निकाल नदी में डालने लगे। लोगों को कुछ समझ में नहीं आया। पूछने पर बाबा बोले: "मुझे नहीं पता भगवान क्या चाहते हैं। पर इतना पता है कि वो हमसे बेहतर समझते हैं। अगर वो हैं तो हम सबके भले के लिए ही कुछ करेंगे। मैं अपने स्तर पर उनकी मदद करने की कोशिश करता हूँ, जैसे भी कर सकूँ। जब मुझे लगा कि वो नाव डुबाना चाहते हैं तो मैं उनकी मदद कर रहा था और जब लगा कि वो बचाना चाहते हैं तब भी।"'
हम सबके जीवन में असहनीय बातें होती हैं... पर एक दिन हमें यह पता चलता है कि वैसा किसी अच्छे मकसद के लिए ही हुआ था। किसी बड़े अच्छे काम के लिए। कभी-कभी हमें ये पता नहीं चल पाता। लेकिन वो तो इसलिए कि...आखिर हम देख ही कितना सकते हैं ! भगवान को बस हमारा परिवेश ही नहीं पूरा ब्रह्मांड संभालना होता है... अनंत तक फैला हुआ ! और एक सुदूर ग्रह/तारे से जो हम आज के विज्ञान की मदद से देख भी पाते हैं... वो घटनाएँ तक तो भूतकाल की होती है !
अब जो कुछ भी होता है उसे टाइम-स्पेस को-ओर्डिनेट्स में होने वाले इवैंट कह लो या भगवान की मर्जी कह लो। जब भी हमें समझ में नहीं आता कि जो कुछ हमारे साथ हुआ उसमें क्या अच्छा था... तो इसका मतलब ये भी तो हो सकता है कि एक इवैंट हुआ टाइम-स्पेस में जिसका असर किसी ऐसे टाइम-स्पेस में होगा जो हमारी जिंदगी के को-ओर्डिनेट्स के बाहर है।
अब देख फेसबूक का आविष्कार हो सकता है कि भगवान ने बस इसलिए कराया हो कि एक दिन कोई मिस्टर लल्लूलाल किसी स्पेसल चमनबहार से मिलें ! जो बिना फेसबूक के संभव नहीं होता। अब इसके साइड इफैक्ट के रूप में जुकरबर्ग फोकट में ही अरबपति बन गया ! ऐसे ही हो सकता है कि किसी छोटे से काम के लिए ही बाकी सारे आविष्कार भी हुए हों ! केओस थियरि में छोटी सी घटना बड़े घटनाओं को अंजाम देती है। ये दरअसल ऐसा है कि छोटी घटनाओं से बड़ी घटनाएँ होती हैं, बड़ी घटनाएँ छोटी घटनाओं के लिए होती हैं... और कई छोटी-बड़ी घंटनाएँ होती रहती हैं जो एक दुसरे को प्रभावित करती रहती हैं.... और ये सभी घटनाएँ अंततः ब्रह्मांड के 'नेट बेटरमेंट' के लिए ही होती है। कई बार ये बातें हमारी समझ में आती हैं...अक्सर नहीं आती।,
देख! हमेशा इसकी संभावना है कि एक घटना के होने से दूसरी कोई घटना ना हो। लेकिन अगर कुछ हुआ है तो इसका मतलब ये है कि पूरे ब्रह्मांड में उसके होने के लिए घटनाएँ हुई। हर लमहें हम और हमारे आसपास के लोग कई काम ना करके... सिर्फ वही काम करते हैं जो हमें हमारी आज की अवस्था तक ले आते है । और रही बात प्री-स्क्रिपटेड की तो मानने की बात है... साबित तो तभी हो सकता है जब हम भविष्य देख सकें और ये साबित कर पाएँ की सबकुछ प्री-स्क्रिपटेड नहीं है !
(last paragraph by Ajit )
~Abhishek Ojha~
महात्माजी का स्टाइल रोचक है - जाने भगवान का काम उनके बिना कैसे चलता।
ReplyDeleteबाबु मोशाय,
ReplyDeleteजिंदगी और मौत उपरवाले के हाथ मे है, जहांपनाह। हम सब रंगमंच की कठपुतलीयां है जिनकी डोर उपरवाले की उंगलीयों से बंधी हुयी है। कब कौन उठेगा कोई नही बता सकता। हा हा हा.....
लेकिन ये उपरवाला है कौन ?
:)
Deleteकिसी और को पा गए हम किसी और बहाने !
ReplyDelete...भगवान जाने !
तुम्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है वत्स! अब तुम लेक्चरबाजी शुरू कर दो :) मेरा कमेन्ट तुम्हें उसी दिशा में ठेलने के लिए लिखा गया है...साइड में फ्री फ़ोकट में तुम भी अरबपति हो जाओ तो कौन जाने खुश होकर एक आधा चेक हमारे नाम भी कर दो :)
ReplyDeleteबड़ी ज्ञान भरी बातें हैं...समझने की कोशिश कर रहे हैं....:
ReplyDeleteआपने पहले बताया नहीं, हमने तो फेसबुक त्याग दिया है, हाय चमनबहार..
ReplyDeleteभाई, आपकी पीठ थपथपाने का मन कर रहा है........
ReplyDeleteदंडवत नमन गुरुदेव! :)
ReplyDeleteऑडियो लगा दिया है अभिषेक जी, उसी नियत स्थान पर।
Deleteवैसे मैं "कुछ लोग, कुछ बातें" आगे बढाने का अनुरोध करने आया था। :)
लास्ट पैराग्राफ़ के लिये अलग से थम्स-अप:)
ReplyDeleteप्री स्किप्ट भाग्यवादियों की सोच है। ऐसा वाक्य जिसे तब तक नहीं काटा जा सकता जब तक भविष्य को देख पाने की शक्ति न हो जाय।
ReplyDeleteलगे रहिये महाराज। कभी-कभी जब ऐसे विचार आंय तो लिख ही दिया कीजिए। हो सकता है यह भी ब्लॉग जगत के पाठकों के लिए भले के लिए हो रहा हो। वैसे हम अहंकारी, दूसरों की अच्छी बातों को उपदेश झाड़ना और अपने उपदेश को काम की जरूरी सीख कहने में जरा भी शर्म महसूस नहीं करते। :)
:) वैसे वाले अहंकारी तो हम भी हैं. लेकिन (इसीलिए तो) हम अपने उपदेश को भी बकवास टैग करते हैं :)
Deleteआज तो पूरे मूड में हैं1
ReplyDelete------
क्या आप टाइगर मम्मी हैं?
रितुमाला: अनचाहे गर्भ से बचने का प्राकृतिक उपाय।
जीवन में कुछ भी निश्चित नहीं होता...
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क्या आप टाइगर मम्मी हैं?
रितुमाला: अनचाहे गर्भ से बचने का प्राकृतिक उपाय।
गजब ..कैयास थियरी के भारतीय द्रष्टा जगदीश चन्द्र बोस को एक बंगाली व्यापारी ने अपने उत्पाद कुंतलिनी केश आयल के प्रमोशन के लिए एक कहानी लिखने का आग्रह किया -और जन्म ले गयी एक कालजयी कथा ....पालातेक तूफ़ान जिसमें समुद्र में आया भीषण तूफ़ान बस कुंतलिनी आयल की एन बूँद से सहसा थम गया !
ReplyDeleteआप भी ऐसा ही कुछ कालजयी लिखने के कगार पर पहुँच आये हैं अभिषेक भाई ..यह कथा का उल्लेख करने को बरबस ही मन हो आया !
तो कल कोई कार तेजी से आपकी तरफ आये तो उसके सामने खडे हो जाइयेगा भगवान जी की मदद के लिये । हो सकता है वह एक धांसू गाडी हो और ब्रेक ठीक आपके पास आकर लग जाये । फिर हट कर भगवान की और भी मदद कर देंगे । प्री स्क्रिप्टेड तो होता है । हमारे डी एन ए में सब स्क्रिपटेड रहता है कि कब कौन कौन से रोग हमे होंगे ।
ReplyDeleteगहन थियरी है और फुलप्रूफ एक कर्म-सिस्टम, समझ पाना भी दुष्कर!!
ReplyDeleteइसीलिए शायद हमारी मानसिकता का अलिप्त रहना आवश्यक है।
सुख दे्खकर दर्प न करना और दुख देखकर न घबराना!!
na jane humko kya mil gya..na jane humkokiski talash
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