Feb 10, 2011

प्रेम गली अति...


ठीक ऐसी ही हिला देने वाली ठंड और ऐसी ही बर्फ... आज वो फिर सोच रहा है... ये बर्फ पिघलेगी कैसे? सेंट्रल पार्क के उन रास्तों  से बर्फ हटाई नहीं जाती और लोगों का चलना भी अनवरत जारी रहता है। पार्क के रास्तों पर पड़ी बर्फ पत्थर की तरह हो जाती है। उसे भी पता है कि जैसे ही तापमान बढ़ेगा पत्थर दिखने वाली बर्फ को पानी बनने में कुछ वक्त नहीं लगना ... फिर भी जब कभी वो ऐसी बर्फ देखता है उसे लगता है कि ये नहीं पिघलनी। उसे बर्फ कभी अच्छी नहीं लगी... बस देखने में खूबसूरत... स्वच्छता की मरीचिका।  उसे ये भी पता है कि इन पर गिरने से कितनी चोट लगती है।  अचानक वो दिन याद आया जब उसने यहीं पर पहली बार स्केटिंग करने की कोशिश की थी। आज ही की तरह उस दिन भी किसी का इंतज़ार कर रहा था।

...ठीक ऐसी ही ठंढ थी... उसे गुस्सा आ रहा था। एक तो उसे ठंड पसंद नहीं थी ऊपर से बर्फ... और ये लड़की। ...'समझती क्या है अपने आपको? ...वैसे गलती मेरी है, मैं इंतज़ार ही क्यों कर रहा हूँ? ...आज तो पक्का इगनोर करूंगा उसे। फिर देखता हूँ। शुरू के आधे घंटे तक तो बात ही नहीं करनी आज... और जब बात करना चालू भी करूंगा तो...'। क्या-क्या बोलना है, इसकी पूरी लिस्ट बना चुका था अब तक... ।  पौन घंटे... जैसे-जैसे पार्क की लाइटें तेज होती गयी तापमान गिरता गया और वैसे-वैसे उसका गुस्सा बढ़ता गया। ...और फिर वो आती दिखी...Central Park NYC

'सॉरी !...सॉरी!... सॉरी!  ...आई एम रियली-रियली सॉरी।  चलो-चलो अब जल्दी चलते हैं।' एक साँस में बोल गयी वो। ऐसा लगा जैसे सब कुछ छोड़ के भागी आई हो। एक ही साथ मुस्कान और हड़बड़ी का ऐसा समिश्रण देखते ही उस एक सेकेंड के किसी अंश में ही उसका खूब सोचने वाला दिमाग शून्य सा हो गया। ऐसा क्षणिक बदलाव... पिछले पौन घंटे की एक भी बात याद नहीं रही उसे।  वो अभी पूरा बोल भी नहीं पायी थी कि...'इट्स ओके'। ...मुस्कुराने के अलावा कुछ भी तो नहीं बोल पाया था।

उस रात वो स्केटिंग करते हुए ऐसी ही कठोर दिखने वाली बर्फ पर गिरा था... ठंड में चोट ! 

ग्रांड सेंट्रल स्टेशन से दोनों को अलग-अलग ट्रेन पकड़नी थी। 'चलो बाय...वीकेंड पर कुछ प्लान हो तो बताना'।  ...'ओके बाय।' गुडनाईट बोलने के बाद जब अपने प्लेटफॉर्म की ओर चला तो वो मुस्कुरा रहा था... शायद इसीलिए पलटकर नहीं देखा। प्लेटफॉर्म पर पंहुचने पर वो सामने वाले प्लेटफॉर्म पर खड़ी मुस्कुराती दिखी थी...

'द नैक्सट स्टॉप इज...' सबवे में चलते-चलते इस आवाज की वैसे भी आदत हो चली थी अब... वो सोच रही थी 'कितना सीधा लड़का है ! गुस्सा भी नहीं करता... कहीं सेंटी तो नहीं हो रहा ?'। और वो सोच रहा था... 'व्हाट द ** ! मैं कर क्या रहा हूँ? हमेशा ही लेट आती है...  हमेशा झूठे बहाने। सीधे-सीधे मना करने में उसका क्या जाता है? खुद बुलाकर भी लेट आती है... और मैं कुछ बोल क्यों नहीं पाया? कम से कम उसे पता तो चलना चाहिए कि मैं सोच क्या रहा था पौन घंटे। बस अब बहुत हो गया... आज घर पहुँच कर मैं नहीं कर रहा मेसेज।... उसकी जब मर्जी हो मैं तैयार रहूँ और मैडम को तो  फुर्सत कभी होगी नहीं... और खासकर जब मुझसे मिलना हो तब तो... उसे पता है मैं कितना बीजी रहता हूँ ! फिर भी...  हद हो गयी अब तो ! आज देखता हूँ वो मेसेज करती है या नहीं।'

अचानक किसी को बर्फ पर गिरता देखकर उसके मुंह से निकला... 'ओओओ उ उ उ ह'... उसे याद आया जब वो उस दिन गिरा था तब किसी ने हँसते  हुए कहा था  'गुड जॉब !'... सोचने की बीमारी उसको बहुत पहले से है। फिर सोचने लगा... 'ऊपर वाले की स्टॉप वाच कितनी सटीक है न... ! कुछ और दिन पहले मैंने शहर छोड़ दिया होता तो उससे प्यार नहीं हुआ होता और अगर कुछ और दिन रुक गया होता तो प्यार हो गया होता... इस प्यार हो जाने और नहीं हो पाने के बीच में जो कुछ भी संकरा सा है उसके बीच से ही कई जिंदगी निकलवा दे ये ऊपर वाला भी ! और क्या ठीक समय पर उसका स्टॉप वाच रुकता है? !'

'क्या सोच रहे हो?' एक खनकती आवाज कानों में पड़ी और फिर वापस लौटा वो उसी ठंड और सेंट्रल पार्क के गेट पर जहां खड़ा वो ये सब कुछ सोच रहा था।
'हाय ?! तुम्हारे जैसी ही एक लड़की की बातें सोच रहा था?'
'कौन है? बताओ? बताओ?'
'तुम्हें तो पता ही है कितनी लड़कियों को जानता हूँ मैं। फिर ये सवाल क्यों?'
'ओके। रहने दो। चलो अभी देर हो रही है... सॉरी मैं थोड़ा लेट हो गयी आने में।'
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आज नहीं गिरा वो... अब उसे ठंड भी उतनी बुरी नहीं लगती। आज रात को उसने मेसेज भी नहीं किया, करेगा या नहीं ऐसा सोचा भी नहीं।

...पिछली बार सोचा था मैसेज तो नहीं ही करेगा कुछ भी हो जाये... पर उस रात मैंने देखा था उसे... मुस्कुराते हुए मोबाइल पर कुछ टीप तो रहा था...

~Abhishek Ojha~


पोस्टोपरांत अपडेट: शिकायतें आई हैं कि ब्लॉग नहीं खुल पा रहा ! और मेरे यहाँ से खुल रहा है... समझ में नहीं आ पा रहा क्या समस्या हो सकती है. कोई बता सकता है क्या ?

18 comments:

  1. प्रेम गली अति रपटीली, गिरे जो फ़िर न उठ पाये...

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  2. इतनी बार फिसलेंगे कि गली का नाम भूल जायेंगे।

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  3. wo isliye ki jaise hi unhone new post wale link par click kiya , aapne edit post shuru kar diya .. I think

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  4. देर तक इंतज़ार करवा कर सॉरी..सॉरी बोलती हुई....पर महसूस नहीं करती हुई

    जरा सी देर पर... बोलने से ज्यादा सॉरी महसूस करती हुई.

    एक बलखाती नदी....दूसरी शांत झील
    मन, कभी चंचल नदी के साथ बहना चाहता है....कभी झील संग गुमसुम बैठना..

    उधो क्यूँ मन ना हुए दस-बीस.

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  5. ओझा जी!
    ========
    दर्द जब बेजुबान होता है।
    चित्त में इक उफान होता है॥
    प्यार को वो बुलंदी देता है-
    जो सतत सावधान होता है॥
    ===================
    सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

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  6. अगर प्रेम गली सांकरी और रपटीली ना होकर चौडी होती तो लोग उसमे फ़ंसते ही क्यों?:)

    रामराम.

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  7. रंजनादी की ईमेल टिपण्णी:

    पाठक को बाँध कर रखने वाली और कथानक की भावभूमि पर पहुंचा देने वाली तरल ,जीवंत कहानी/संस्मरण...

    बहुत सुन्दर...वाह !!!

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  8. @संजयजी: ...जबतक कोई और हाथ देकर ना उठा ले ;)
    @प्रवीणजी: :)
    @नीरज भाई: पता नहीं, विंडोज लाइव से लिखा और पोस्ट कर दिया. कई लोगों का ईमेल आया कि फीड में देख रहा है ब्लॉग नहीं खुल पा रहा !

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  9. @रश्मिजी: वाह ! आपकी टिपण्णी तो पोस्ट पर भारी पड़ रही है. धन्यवाद.

    @ताऊ: सत्यवचन ! :)

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  10. @डॉ० डंडा जी लखनवी: शुक्रिया.

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  11. love you buddy.....for this post....

    एक उम्र के फासलों को उसने एक दिन में मापने की कोशिश की है.........

    gave you another side of you.....

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  12. लकडी को क्या सिखायें भला सोचती है राख
    बच्चे अब बढ रहे हैं खुद ही लेंगे सीख साख

    शेर तो ठीक बन नहीं सका मगर भाव कुछ यूँ ही आया इस खूबसूरत कहानी को पढकर!

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  13. kyaa prem gali hai Ojha ji........



    एक निवेदन.......सहयोग की आशा के साथ....

    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

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  14. डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
    “वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

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  15. धीमे धीमे जीवन के यथार्थ को समझता जा रहा है वो!!!

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  16. @दोनों अनुरागजी: शुक्रिया !
    @वैभव: तुम भी पढ़ते हो ये जानना सुखद है. वैसे तो तुमने पहले भी बताया है पर सुखद है तो है.

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  17. ओह .. जबर .
    . बहुत दिन बाद आया इस गली । पर अपने बिना लिखे जाने नही दिया ।
    सत्य

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  18. @धन्यवाद सत्यजी, आप फिर से आये हमें ख़ुशी हुई. लिखने पर मजबूर किया हो तो क्षमा मांग लें :)

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