एक छुटंकी पोस्ट:
'तुम्हे कुछ चाहिए?'
इस सवाल का जवाब भी सवाल ही था. 'क्या?'
'तुम बताओ... कुछ भी. कुछ भी माने... कुछ भी. हाथी, घोडा, गाडी जो चाहिए बोल . सस्ता है या महंगा मत सोचना. जो अच्छा लगता हो बताओ.'
'हम्म... नहीं, कुछ नहीं.'
'कुछ नहीं? अच्छा चलो ऐसा कुछ बताओ जो तुम्हारे दोस्तों के पास हो और तुम्हारे पास नहीं हो?, या कभी कुछ जो किसी के पास दिखा हो और तुम्हे लगा हो कि मेरे पास भी होता? कुछ टीवी पर दिखा हो कभी ? कुछ खाने की चीज, ड्रेस, खिलौना, आईपॉड ?... '
'हम्म... नहीं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा. '
'अरे कुछ तो बोल. बेवकूफ है तू. दोस्तों को दिखाना मेरे चाचा अमेरिका से लाये हैं... '
'अरे भाग ! नहीं चाहिए कुछ.... वैसे और एक वीक रुक जाओ ना आप या बाद में आओ, जब आ रहे हो तब तो मेरे एक्जाम होंगे. और फिर उसके चार दिन बाद ही चले जाओगे... '
'... हाँ... बट उसका कुछ नहीं कर सकता. अच्छा चलो सोच के बताना.'
'हम्म... चाहिए तो कुछ नहीं. पर आपको मेरे लायक कुछ दिखे तो ले आना.'
'ठीक है, लेकिन तुम्हे कुछ स्पेसिफिक चाहिए तो बताना. ठीक है?'
'ठीक है. वैसे आपको कुछ चाहिए?'
'हा हा . अरे ना रे. वैसे क्या देने की सोच रही है? और कहाँ से'
'मेरे पास भी ना… कुछ पैसे हैं... तो आपको कुछ चाहिए तो बोलो मैं भी खरीद सकती हूँ कुछ.'
'पैसे? कहाँ से?'
'मैंने न चुराए हैं?'
'सच में?'
'हा हा, नहीं. वो मैंने बचा के रखा है और कुछ इधर उधर से मिला है. कोई आता है तो भी कभी दे देता है'
'अच्छा वो !. कितनी कमाई कर ली तुने?'
'बहुत है, …आप बताओ तो क्या चाहिए?'
'चुप कर..., पैसो से कुछ करना. कुछ खरीदना. कुछ खरीद के खाना...'
'हाँ ठीक है. आप आओगे तो चलेंगे खाने'
.....
आज तक उसके चाचा को समझ में नहीं आया क्या ख़रीदे. आपके पास कोई आईडिया है? उसके चाचा तक पंहुचा दूँगा.
मेरा एक दोस्त कहता है... ईदगाह के हामिद तो हर घर में होते हैं. बस लिखने वाले प्रेमचंद ही नहीं पैदा हो पाते !
~Abhishek Ojha~
अपडेट: शायद 'हामिद' से सबको भतीजा ही लग रहा हैं. ध्यान से वार्तालाप देखें तो लड़की की बात है. पर उससे क्या फर्क पड़ता है !
फ़्रैंकली स्पीकिंग, नो आईडिया।
ReplyDeleteचाचा आप हैं या नहीं, ऐसी कहानी का देसी और बी ग्रेड वर्ज़न मेरे साथ घटित होता है हर दूसरे तीसरे महीने,चाचा की जगह बड़े पापा की भूमिका में होता हूं मैं।
love your hamid and his chacha too!!!
ReplyDeletegod bless u!
मेरा एक दोस्त कहता है... ईदगाह के हामिद तो हर घर में होते हैं. बस लिखने वाले प्रेमचंद ही नहीं पैदा हो पाते ..
ReplyDeleteहाँ बिलकुल....
हामिद के चाचाओं पर लिखने वाले प्रेमचन्द्र पुनः लिखेंगे।
ReplyDeleteइसे पढ़ते हुए goose bumps आ गए....
ReplyDeleteआपके दोस्त ने सच कहा...'हर घर में एक हामिद है.'
एक हफ्ता और बिताइए चच्चा .....भतीजे के साथ !
ReplyDelete......और क्या चाहिए ?
मेरा एक दोस्त कहता है... ईदगाह के हामिद तो हर घर में होते हैं. बस लिखने वाले प्रेमचंद ही नहीं पैदा हो पाते !
ReplyDeleteआपका दोस्त बिल्कुल सही कहता है. वैसे किसी सामान की बजाये उसके साथ एक दिन ज्यादा ठहरना शायद बडा तोहफ़ा होगा?
रामराम.
बाजार जाओ, वहाँ जो भी भतीजे के लिए उपयोगी लगे लेते जाओ। यह न हो सके तो भतीजे को वहाँ जा कर देखो, फिर जो उचित लगे वह उस के लिए कर डालो।
ReplyDelete@@मेरा एक दोस्त कहता है... ईदगाह के हामिद तो हर घर में होते हैं. बस लिखने वाले प्रेमचंद ही नहीं पैदा हो पाते !..
ReplyDeleteआपके दोस्त नें कितना सही कहा है.
अभिषेक जी, आप भारत आ रहे हैं। अपने भतीजे के लिये एक bird feeder लेते आइयेगा।
ReplyDelete@संजयजी: कहानी अपनी हो या नहीं बस अलग अलग वर्जन में हम सबके साथ होता ही रहता है.
ReplyDelete@डॉ. अनुराग: Thanks !
@Anjule Shyam: शुक्रिया.
@प्रवीणजी: वक्त प्रेमचंद पैदा करता रहे बस.
@रश्मिजी: शुक्रिया. पोस्ट सफल सी हो गयी :)
@मास्साब/ताऊ: बोलता हूँ, मुश्किल है वैसे कि रह पायेगा. नौकरी पर अपना बस कहाँ चल पायेगा.
ReplyDelete@द्विवेदीजी/मनोजजी: धन्यवाद.
@उन्मुक्तजी: आपकी सलाह, चाचा तक पंहुचा दी जायेगी :)
हामिद ना सही हमीदा ही सही । गोलगप्पे खा आना चाचाजी, भतीजी के संग ।
ReplyDeleteआपके दोस्त ने सच कहा,'हर घर में एक हामिद है|' धन्यवाद|
ReplyDeleteपूरे आर्टीकल का सारांश अन्तिम लाइन में कि हामिद तो हर घर में है जिन्हे चूल्हे में जलते हुयंे हाथों का ध्यान रहता है औरचिमटा खरीदने तैयार रहते है मगर लिखने वाले अब कहां है।
ReplyDelete@आशाजी/पतालीजी/बृजमोहनजी: धन्यवाद.
ReplyDeleteआपका दोस्त ठीक ही कहता है, हालांकि हामिद को उससे क्या फर्क पड़ता है।
ReplyDeleteअच्छे लगे, चाचा और भतीजी दोनों ही।
जय हो! पढ़कर दिल खुश हुआ| एक ब्राईट चाचा और उनकी ब्राईट भतीजी को मेरी शुभकामनाएं!
ReplyDeleteजीवन्त और भावपूर्ण वार्तालाप.
ReplyDeleteअविनाश: धन्यवाद.
ReplyDeleteअनुरागजी: एक तो ब्राईट है दूसरे का पता नहीं :)
राहुलजी: धन्यवाद.
ब्लैंक चेक था और अंक ही न भर पाये? अनपढ़!
ReplyDeletesargarbhit post.
ReplyDelete@ज्ञानजी: ये हुई न बात. असली बात.
ReplyDelete@संतोषजी: धन्यवाद.
आपका दोस्त बिल्कुल सही कहता है. वैसे किसी सामान की बजाये उसके साथ एक दिन ज्यादा ठहरना शायद बडा तोहफ़ा होगा?
ReplyDeleteरंजनादी की ईमेल टिपण्णी:
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा...हमीदों की कोई कमी नहीं,बस अभाव प्रेमचंद का ही हो गया है...
सबकुछ पैसे से ही नहीं खरीदा जाता,यह लोग समझ लें तो फिर क्या बात हो...
भावुक करती बहुत ही सुन्दर पोस्ट...
. ईदगाह के हामिद तो हर घर में होते हैं. बस लिखने वाले प्रेमचंद ही नहीं पैदा हो पाते ! puri kahani hi simat gayi...bahut sundar.
ReplyDeleteआयी पोड नहीं अब तो आयी पैड की बात कीजिये जनाब
ReplyDelete:) मस्त भई :)
ReplyDeleteहोली का त्यौहार आपके सुखद जीवन और सुखी परिवार में और भी रंग विरंगी खुशयां बिखेरे यही कामना
ReplyDeleteअभी होली मना लेते आपके संग फिर कल से सीरीयस चर्चा करेंगे.
ReplyDeleteये चाचा भतीजा/भतीजी मिलन बहुत मुश्किल से होता है. सो वक़्त बिताएं जीना सिखाएं. साथ खाने और औरों को याद करने की तहजीब भी.
ReplyDelete-
आप बच्चे में बचपना और भविष्य दोनों देखते हो. बॉस आप मेरे टाइप के लगते हो.
सारे हामिद याद आ गये अपने इर्द गिर्द के.....!
ReplyDelete