कल सुबह घर से फोन आया तो पता चला की वसंत पंचमी है। ओह ! ऐसी बातें भी अब पता नहीं चलती। खैर हम भी कभी इस दिन पूजा पाठ किया करते थे। और आज करें ना करें ये मन्त्र यूँ ही मन में चलने लगा... और शायद इस जन्म जब भी वसंत पंचमी आए याद आता रहेगा.
या कुंदेंदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा-वरदण्ड मण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा माम्पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
वैसे तो सरस्वती पूजा से कई यादें जुड़ी है... हमारे स्कूल में छुट्टी हुआ करती और बाकी कई स्कूलों में सरस्वती पूजा होती. तो हम उस दिन दुसरे स्कूलों में जाते। (अक्सर निफ्फ्ट के अन्दर स्थित सरस्वती शिशु मन्दिर)। शाम को मूर्तियाँ देखने और ये तय करने में निकल जाता की इस साल किस-किस पंडाल को पुरस्कार मिलेगा। उस दिन सारी लड़कियां साड़ी पहनती तो थोड़े बड़े हो जाने के बाद वो भी एक चर्चा का विषय होता किसने कौन रंग की पहनी और कौन कैसी लगी ! पंडाल की जगह उनकी रेटिंग होने लगी.
निराला की ये पंक्तियाँ कई सालों तक मेरे लिए मन्त्र ही बनी रही. बहुत बाद में पता चला की ये निराला रचित है... ऐसी रचना जिसे पढ़कर मन प्रफुल्लित हो जाता है.
वर दे !
वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल, छंद नव,
नवल कंठ, नव जलद-मंद्र रव,
नव नभ के नव विहग-वृन्द को
नव पर नव स्वर दे !
वसंत का मौसम है... वृक्ष जीर्ण पत्ते त्यागकर नई कोपलों के वस्त्र धारण करेंगे. अब वसंत के बारे में क्या कहें जब श्रीकृष्ण स्वयं कह गए: ऋतूनां कुसुमाकरः। वसंत का मौसम ठहरा प्रेम का मौसम. कामदेव का राज चलता है... अब प्रेम का पत्रों से गहरा नाता था(है). 'था' इसलिए की अब तो अगर आपके इन्बोक्स एसेमेस से भरने लगे तो शायद प्यार होने लगता है. एसेमेस भी ऐसे शोर्ट फॉर्म में लिखे जाते हैं की मेरे जैसे 'अनपढ़' तो कुछ का कुछ मतलब निकाल लें ! सुना है प्यार करने वाले आजकल एसेमेस के अलावा मिस्ड कॉल-मिस्ड कॉल बहुत खेलते हैं. २ मिस्ड कॉल का मतलब 'मैं तुम्हारी खिड़की के नीचे रहूँगा', चार माने 'बाहर आओ' छः का मतलब 'आज इमरजेंसी है बाबूजी जम के थपडिया दिए हैं'. अब ये कोड और डिक्शनरी अपने सुविधानुसार कस्टमाइज्ड भी होती होगी, और प्रैक्टिस भी करनी पड़ती होगी. खैर प्रैक्टिस तो प्रेम-पत्र वाले लोग भी खूब किया करते रहे होंगे. (हमने तो बस सुना है अगर आपके इस्तेमाल में कुछ गड़बड़ हो जाय तो भाई हम भी प्रकार की क्षति के जिम्मेवार नहीं होंगे)
अब अपने को ना तो मिस्ड कॉल का अनुभव है ना ही प्रेम-पत्र का. पत्र तो जितने लिखे घर के लोगों को ही और परीक्षा में भी जितने पत्र लिखवाये गए आज तक कोई ऐसा सवाल नहीं आया 'प्रेमिका को मनाने के लिए पत्र लिखिए'. या फिर ये 'मुहल्ले की सबसे खुबसूरत लड़की को प्रेम का इजहार करते हुए पत्र लिखिए' ऐसे सवाल आने लगे तो सहज ही हिन्दी में छात्रों की रूचि बढ़ जाय. कितने ही कवि और शायर पैदा हो जायेंगे. पाठ्यक्रम में ऐसे रचनात्मक परिवर्तन की बहुत जरुरत है ! अब बाबूजी से फीस माँगने के लिए पत्र लिखवाने और बीमारी में छुट्टी के लिए आवेदन लिखवाने से क्या रूचि आएगी. ये काम तो बिना पत्र लिखे भी हो जायेंगे. ना भी हों तो कैन सी दुनिया इधर की उधर हो जायेगी.
खैर... हम पिछले महीने गुजरात गए थे तो एक प्रेम-पत्र मिल गया. अब शुकुलजी (फुरसतिया) के नैनीताल की तरह हमने कागज उठा के तो नहीं पढ़े पर हमें तो बोर्ड पर लिखा प्रेम पत्र लिख गया और वो भी 'ऋतूनां कुसुमाकरः' वाले श्रीकृष्ण को लिखा गया. हमने तुरत एक फोटो खीच ली. आप भी पढिये. संस्कृत में था लेकिन साथ में हिन्दी अनुवाद भी था. यहाँ अनुवादे ठेल देते हैं बाकी फोटू भी चेप दी हैं इच्छा हो तो संस्कृत भी बांच लीजियेगा.
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हे भुवन सुंदर श्रीकृष्ण ! कर्ण के छिद्रों से श्रोताओं के ह्रदय में प्रवेश कर अंगों की तपन दूर करते आपके गुणों और नेत्रोवालों के नेत्रों को सम्पूर्ण अर्थ लाभ से रूप सुनके मेरा मन निर्लज्ज हो के आपमें लगा है.
हे मुकुंद ! हे पुरूष श्रेष्ठ ! कुल, शील, रूप, विद्या, वय, धन तथा प्रभावसे केवल अपने जैसे ही (निरूपण) और मनुष्य लोक को आनंद देने वाले आप को कुलीन बड़े गुणवाले और धैर्यवान कौन कन्या आपका स्वीकार (पति रूप में) नहीं करेगी?
इसलिए प्रभु ! आप को ही मैंने अपना पति स्वीकार किया है, और मेरे आत्मा को सौंप दिया है, तो आप (यहाँ पधारे) मुझे अपनी बताएं परन्तु हे कमलनयन ! जैसे शेर के हिस्से को स्पर्श नहीं कर सकती वैसे ही शिशुपाल आके आप वीरपुरूष के भागरूप मुझे न स्पर्श करे.
मैंने वाव कुएं बंधाये, अग्निहोत्रादी किया, सुवर्णदिन का दान दिया, तीर्थाटन सब नियमों का पालन करके चान्द्रायण इत्यादि व्रत किए, देव, ब्राह्मण, गुरु, इत्यादि की पूजा करके परमेश्वर को पूर्ण आराधना की हो तो गद के बड़े भाई श्री कृष्ण भगवान् यहाँ आके मेरा पाणी ग्रहण करें, किंतु अन्य शिशुपाल इत्यादि न करें.
हे अजित ! कल होने वाले विवाह में आप सेनापतियों से घिरे हुए विदर्भ देश में पधार कर और शिशुपाल जरासंध के सैन्य को बलसे पराजय करके, पराक्रमरूप मुल्यवाली मुझसे आप राक्षस विधि से विवाह कीजिये.
कदाचित आप कहेंगे अन्तः पुर के बीच रहनेवाली आप, आपके स्वजनों का विनाश किए बिना मैं कैसे आपसे विवाह कर सकता हूँ? तो उपाय बताती हूँ (हमारे कुल में) विवाह के अगले दिन पार्वती के दर्शनार्थ नगर से बाहर पार्वती के मन्दिर में आऊं तब मेरा हरण करना आपको सरल होगा और मेरे स्वजनों को मारने का प्रसंग नहीं आएगा.
हे कमलनयन श्रीकृष्ण ! उमापति शंकर की तरह अन्य अज्ञान- का नाश करके आपके चरण कमलों की रज से स्नान करने की इच्छा है, तो आपकी कृपा (इस जन्म में) में नहीं पा सकती, तो व्रत उपवास इत्यादि करके दुर्बल किए बिना प्राण त्याग करुँगी और ऐसा करके सैकड़ों जन्मों में भी आपकी कृपा मुझ पर होगी ही.
ऊपर बताये श्री रुक्मिणीजी का गुप्त संदेश ब्राह्मण ने श्रीकृष्ण के पास पढ़ा और कहा हे यदुदेव श्रीरुक्मिणीजी का यह गुप्त संदेश मैं लाया हूँ, तो अब जो करना हो उसका विचार करके तुरत कीजिये.
श्री रुक्मिणी जी के संदेश से प्रसन्न होकर श्री द्वारिकाधीशजी ने उन पर पूर्ण कृपा की.
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(अनुवाद पर गुजराती छाप दिखा पर मैंने (लगभग) ज्यों का त्यों ही टाइप कर दिया है. )
अगर आपके आस पास हरियाली है और दूर तक फैले सरसों के खेत, तो आनंद लीजिये. अगर बगीचे हैं और कोयल भी है तो उसके साथ कू-कू दोहराइए. अपने लिए तो चारो तरफ़ कंक्रीट की बिल्डिंग ही है... जो भी हो वसंत मनाइये... शुभकामनायें !
~Abhishek Ojha~
सुन्दर बासंती पोस्ट! हमें तो इंतजार है कि कोई रुक्मणी ओझाजी को संदेशा भेजे और ओझाजी कॄष्ण के चरण चिन्हों का अनुसरण करें।
ReplyDeleteकंक्रीट के जंगल में भी ऐसा वासंती मन...
ReplyDeleteवाह.. ऒझा जी, वाह.. ये आप ही के बूते की बात है. अच्छा आलेख. बधाई...
वाह भई ओझा साहब. आज तो दिल वासम्टि वासंती हो गया. हमारे यहां से दो किलो मीटर बाद खेत लग जाते हैं और आज हम भी रविवार को खेतों मे घूम आते हैं. शायद है कोई काम बन जाये.:)
ReplyDeleteलाजवाब लिखा आपने.
@ मोदगिल जी : ये आपको क्या हो गया है? हफ़्ते भर मे तीन रुप बदल लिये? भाई आप तो भूतनाथ लिखना भी बंद कर चुके. रुप बदलने का काम तो भूतनाथ और आपकी यूनीटी डार्लिंग करती थी. फ़िर आप क्युं करने लगे? सब ठीक है या कुछ ...इरादे क्या हैं?
रामराम.
...ओझाजी कॄष्ण के चरण चिन्हों का अनुसरण करें।
ReplyDeleteअनूप जी, ऐसी सलाह देकर ओझा जी को कलियुग में पिटवाने का प्रबन्ध कर रहे हैं क्या? :)
अभिषेक जी, वासन्ती बयार से सराबोर यह पोस्ट पढ़कर मन झूम गया। हम तो शिशु मन्दिर में पढ़ते हुए सरस्वती पूजन कार्यक्रम में खूब प्रतिभाग करते रहे हैं। आजकल ये ‘मिशन’ वाले कॉन्वेन्ट स्कूल इस दिन छुट्टी कर देते हैं जो हमें ठीक नहीं लगता।
यह मौसम ही कुछ ऐसा मारक होता है कि अपने आप ही ध्यान पंडाल से हटकर कन्याओं की और चला जाता है.
ReplyDeleteऔर बोनस में कुछ पंक्तियाँ:
केसर-कुंकुम का लहका दिगंत है
गंध की अनंत वेदना वसंत है
चीर उर न और बौर-बावरी
मुरझे मन-वन की ओ अनचीती बांसुरी
बेहतरीन!! सुन्दर पोस्ट..बसंत पंचमी की बधाई.
ReplyDeleteवैसे, कुछ पहले बता देते..पता ही नहीं था मगर दो मिस्ड कॉल आई थी. कोई लौट तो नहीं गया खिड़की के नीचे से. :(
इसलिए प्रभु ! आप को ही मैंने अपना पीटीआई स्वीकार किया है
ReplyDelete---------
गोविन्द जग को नाच तो कराते थे, रुक्मिणीजी को पीटी भी कराते थे - यह हमें मालुम न था! :)
यह प्रेम पत्र श्रीमद्भागवत का एक भाग है। इस प्रेमपत्र का उत्तर भी शानदार था। कृष्ण गए और रुक्मणी को भगा लाए। रुक्मी ने युद्ध भी किया। चाहते तो उसका वध कर सकते थे लेकिन अपनी प्रिया के भाई का वध कैसे करते? सो उसे विरुप कर छोड़ दिया। इस दृष्य को अनेक बार झांकी के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर मुझे मिला। आप ने वे सब समृतियाँ ताजी कर दीं।
ReplyDeleteवसंत पर मृच्छकटिकम का मदनोत्सव भी स्मरण हो रहा है। कल देर रात यात्रा से लौटा हूँ, कल फिर जाना है। अन्यथा इस पर कुछ लिखता। खैर! अभी वसंत का आरंभ है, होली तक तो यह रहेगा ही।
क्या कहे भाई हमारे यहाँ तो बसंत का दूसरा मतलब है......पतंगबाजी...लौंडे सुबह से अलार्म लगा कर हवा का रुख देखने कई बार छत के चक्कर लगाते है ..सुबह की चाय से दोपहर का खाना भी छत तय करती है....हवा तेज हो तो पतंग में छेद किए जाते है ओर कम हो तो इंतज़ार ......वैसे तुम्हारी पोस्ट आज काफ़ी बासंती लगी.....क्या करे एक गाना वैसे हमें भी बहुत पसंद आ रहा है ओर वही दोपहर में तीन पेचे कटवाते वक़्त सुना ...अब तुम्हारी पोस्ट पर कामदेव का जिक्र है ओर लोग फिजा -चाँद कहते हुए अस्पताल गोलियों की ओवरडोज़ खा कर जा रहे है.....इसलिए इसकी पहली लाइन डाल रहे है....."तेरा इमोसनल अत्याचार "
ReplyDelete@ज्ञानदत्त पाण्डेय : वाह भइया ! पति से 'पीटीआई' हो जाने का भी मतलब आप ही निकाल सकते हैं. ऑटोकरेक्ट के चक्कर में ऐसा हो गया. अब ठीक कर दिया है. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका. अभी-अभी उठा और आपकी टिपण्णी पढ़ कर मुस्कुरा रहा हूँ. मेरा रूम पार्टनर सोच रहा है क्या हो गया इसे :-)
ReplyDeleteऒझा जी, भई लगता है आप की यह पोस्ट प्रेमियो के लिये ज्यादा उचित है , भाई आज बीस साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन हमारे मुखं से आज तक नही निक्ला वो शवद जो आप खिडकी तले बोल आते थे, कानो मे आज तक वो शव्द नही पडा जो आप मिस्ड काल कर के सुन लेते है.
ReplyDeleteसच मै जमाना बदल गया.
चलिये जाते जाते आप कॊ बसंत की बधाई दे दे.
धन्यवाद
वसंती हवा गुनगुनाने लगी है /घड़ी प्रेम की पास आने लगी है .:) .मिले आपको भी ढेर साड़ी मिस कॉल ..बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा वो भी बसंती बसंती :) बधाई
ReplyDeleteवसंत पंचमी का सार्थक हो गया। आपने प्रेम पत्र पढवाया, वह भी रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को लिखा हुआ ।
ReplyDeleteमौसम वासंती हो आया ।
वाह अभिषेक जी आपने तो इस ललित बासंती निबन्ध और पुराण प्रणय कथा से ऋतुराज का अभिषेक कर ही दिया !
ReplyDeleteवाह भाई ओझा साहब, हम तो इधर यूंही घूमते फ़िरते चले आये थे दुबारा पढने. आज क्युंकि हमारी ब्लाग लिस्ट मे नई कोई पोस्ट नही चमक रही है.
ReplyDeleteयहां पति से PTI का पढा तो पूरी बात समझ कर मजा आगया आज तो. ज्ञानदतजी जी युं ही ज्ञानदत्तजी नही है. उनकी नजर से आपकी टायपिंग मिसटेक बच नही सकती. पर मजा आगया भाई. :)
रामराम.
अभिषेक,
ReplyDeleteहमारे स्कूल सरस्वती विद्या मंदिर में भी बसन्त पंचमी पर सरस्वती पूजन का आयोजन होता था और हमारे मोहल्ले में पतंगबाजी चल रही होती थी। घरवालों ने स्कूल बंक करने नहीं दिया और पतंगबाजी पिताजी साल में १-२ दिन ही परमिट किया करते थे। एक बसंत पंचमी और दूसरी उसकी अगले दिन,
हमारे विद्यालय में या कुंदेंदुतुषारहारधवला वाली प्रार्थना के बाद एक और स्तुति भी गायी जाती थी,
हे हंस वाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे.....
इससे आगे का ठीक से याद नहीं आ रहा है।
प्रेम के मामले पर नो कमेंट्स क्योंकि लिखेंगे तो पूरी पोस्ट बन जायेगी, :-)
वाह ओझा जी! फुरसतिया जी के वचन सत्य हों मां सरस्वती से यही प्रार्थना!
ReplyDeleteनीरज भाई ये रही वह वंदना..
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥
जग सिरमौर बनाएं भारत,
वह बल विक्रम दे।
वह बल विक्रम दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे।
स्वाभिमान भर दे॥1॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥
लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम,
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे।
फिर घर-घर भर दे॥2॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी,
अम्ब विमल मति दे।
अम्ब विमल मति दे॥
वाह अभिषेक जी , आपकी बसंती पोस्ट पढ़ कर सरस्वती शिशु मन्दिर में मनाये गए बसंत उत्सव की yaden ताज़ा हो आयी . ... बढ़िया पोस्ट!
ReplyDeletelambi post par majedar. hamari v ab yahi sthiti hai ki puchna padta hai basant panchmi kab hai? kavi 1 saptah pahle se taiyari kate the.
ReplyDeleteआशा है नया वसंत आपके लिए प्रेम की मुनहारो से भरा पूरा बीते..
ReplyDeleteआज ही आपकी बासँती पोस्ट पर आ पाई हूँ बहुत सुँदर लिखा है आपने
ReplyDeleteमिस्ड कोल से कृष्ण रुक्मिणी प्रेमाख्यान तक सभी गुलो गुलज़ार है
अभी सुन रहे हैँ,
जिया बेकरार है, छाई बहार है, आ जा मोरे बालमा तेरा इँतज़ार है"
महभारत टी वी के लिये लिखा रुक्मिणी जी की श्री कृष्ण के लिये प्रेम पाती का गीत
पापा जी का गीत याद आ गया जो मुझे बहुत पसँद है,
" बिनती सुनिये, नाथ हमारी "
अब आप कब खुश खबरी दे रहे हो ? :)
- लावण्या
बासंती पोस्ट है और पीटीआई के तो क्या कहने
ReplyDeleteप्रकृति के करीब ले जाने, उसका अहसास कराने का आभार।
ReplyDeleteओहो, यहाँ तो शिशु मन्दिर की एल्युमिनाई मीट हो रही है। लीजिये भाई हम भी आ गये।
ReplyDeleteदर्जा आठ तक शिशु मन्दिर में बसंत पंचमी को पीले स्वेटर पहनकर स्कूल जाते थे। पहले हवन होता था फिर पढ़ाई। अब तो इस वसंतोत्सव का स्थान वैलेंटाइन डे ने ले लिया है।
बहुत बढिया.
ReplyDeleteवासंती गमक वाली पोस्ट ...
ReplyDeleteबधाई अभिषेक
आज व्यक्ति किस तरह की जिंदगी जी रहा है पता ही नहीं चलता ,मौसम के नाम नहीं मालूम नौसम के बारे में क्या जानेगे /न मौसम से मतलब है ,न किसी तिथि से , न प्रकृति से /शुष्क जीवन हो गया है
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