वैसे ये सारी बातें मुझे आज साफ-साफ दिख रही है कि ये सब हुआ कैसे... खुराफात वाली बात के बाद हुआ ये कि २००५ में IIT में तीन साल पूरा करने के बाद गर्मी की छुट्टियों में इन्टर्नशिप के लिए स्विटजरलैंड जाना पड़ा.
अब एक तो यूरोप का खाना और ऊपर से मैं ठहरा शाकाहारी और वो भी विशुद्ध शब्द के साथ. जब भी कुछ खाने कि कोशिश करता तो 'एक तो करेला दूजा चढा नीम' वाली कहावत जरूर याद आती. कहाँ सोचा था की स्विटजरलैंड की वादियों में आनंद मनाएंगे और वहाँ आलम ये था की रोज़ चाकलेट, बर्गर और जूस पर एक-एक दिन काटना मुश्किल हो रहा था. शुरुआत हुई लंच से, मेरे एक साथी का घर यूनिवर्सिटी के पास ही था और रोज़ दोपहर में २ घंटे के लिए उनके किचन का मालिक मैं बनने लगा. पहले ही दिन सफलता हाथ लगी, (अब वहाँ का खाना खा के जो मेरा हाल था तो कुछ भी बने सफलता ही कहेंगे !)
खाना बनाने में आई दिक्कतें भी मजेदार रही... बेलन और चकली नहीं मिले तो २-३ कांच के ग्लास बेलन बनने में टूट गए, पर बाद में जब वाइन की बोतल ने जब बेलन का काम संभाल लिया तो ट्रे और डेकची भी उल्टा कर देने पर चकली का काम करने में पीछे नहीं हटे... इस प्रकार के उपकरणों से ५७ समोसे बनाने के बाद किसी युद्ध जीत लेने जितनी खुशी तो हुई ही थी. नीचे के समोसे वाली तस्वीरों में आप वो धन्य हुई वाइन की बोतल देख सकते हैं :-) धीरे-धीरे भारतीय दुकानों से मसाला वगैरह भी ले आया, और फिर बात भी फैलने लगी... लोग भारतीय खाना खाने के लिए आग्रह करने लगे, मुझे लगा की खाने के लिए ही कई लोग दोस्ती भी करने लगे :-) इस मुसीबत के लिए इंटरनेट भगवान् की शरण में गया और ऑफिस में मिला फ्री का फ़ोन... घर से भी डिस्कस कर लेता... पार्टी भी सफल रही... ! (यहाँ भी ये कह सकते हैं कि कुछ भी बना के खिला दो उन्हें क्या पता...अच्छा बना या बुरा) :-) पर प्रसिद्धि मिलनी थी तो संयोगो का सिलसिला जारी रहा और मेरे भारतीय दोस्तों के यहाँ भी जाके खाना बनाने का सिलसिला चल उठा, हर वीकएंड पर मैं खाना बनाता फिर निकल जाते हम घूमने। ... बात ख़त्म !
पर जैसा की मैंने कहा... संयोग !
२००६ में फिर से ३ महीने के लिए स्विटजरलैंड जाना हुआ. २००५ में आखिरी के दो महीनों में मैं एक प्रोफेसर साब के घर रहा था और इस बार उन्होंने शर्त रखी थी कि मुझे उन्ही के घर रहना पड़ेगा... हाँ एक बात कहना चाहूँगा, इस शर्त का कारण मेरा खाना बनाना नहीं था... प्रोफेसर साब की चर्चा फिर कभी. इस पोस्ट में उतने अच्छे लोगो की चर्चा नहीं की जा सकती. हाँ तो इस बार फिर से सिलसिला चला और इस बार कुछ ज्यादा ही चला और प्रोत्साहन मिलने का आलम ये की मुझसे ज्यादा मुझ पर भरोसा दूसरो को ही रहता, और शायद यही भरोसा था जिसने सर्टिफिकेट भी दिला दिया. देखा आपने कैसे मजबूरी शौक में बदल जाती है.
और अब पुणे में भी कभी-कभी बनाना हो जाता है... और शौक जारी है. प्रोत्साहन भी जारी है. और अब इस बोरिंग पोस्ट के अंत में एक बात जो मैंने खाना बनाते-बनाते महसूस किया है: खाना बनाने वाले को सबसे बड़ी खुशी मिलती है, जब कोई कह दे ... वाह क्या स्वाद है ! तू तो मस्त बनाता है... बस सारी थकान दूर, भूख भी दूर... ! अच्छा आईडिया भी दे दिया ना आपको, बस एक बड़ाई की जरुरत है !
आजतक का सबसे अच्छा कम्प्लिमेंट: मेरे एक दोस्त ने कहा ... तू मेरी माँ की तरह खाना बनाता है... !
अंत में कुछ डिस्क्लेमर: स्विटजरलैंड का खाना इतना बुरा भी नहीं होता, पर ठीक से जानकारी ना होने पर शुरुआत में थोडी दिक्कत होनी स्वाभाविक है। (जल्दी ही मैं एक श्रृंखला लिखने की सोच रहा हूँ अपनी स्विस यात्रा का, बस समयाभाव ही देर कराये देता है... !) दूसरी: भले ही मजबूरी में शुरू की लेकिन अब एक अच्छा शौक है और मुझे इस बात की खुशी है। तीसरी: बहुत जल्दी में बिना सोचे समझे किया गया पोस्ट है, असुद्धियों और गलतियों के लिए क्षमा.
और हाँ ये बताना मत भूलियेगा आपको कैसा लगा ? :-)
ये तस्वीरे शुरुआत के दिनों की हैं.
तसवीरें ऊपर से: एक झलक, आलू पराठा, पकोडे, मैं प्रो ब्राईट के साथ (उन्होंने मुझे खोज-खोज ले स्विस खाना खिलाया और मैंने उन्हें भारतीय), खाने में मग्न सहयोगी, खाने में मग्न एक दोस्त, समोसे, खीर, पूड़ी, फिर समोसे, पराठे चाय और अचार के साथ, पकोडे.
डैम इम्प्रेसिव!! मेरे साथ ज्वाइण्ट वेन्चर में रेस्तरां खोलना है?! :)
ReplyDeleteआवश्यकता आविष्कार की जननी है :) बहुत सही चित्र बता रहे हैं की आप कामयाब रहे :)
ReplyDeleteवाह मुँह मे पानी आ गया।
ReplyDeleteज्ञान जी के साथ मुझे भी शामिल कर ले। कुछ हर्बल डिशेज मै भी बना लेता हूँ। :)
पंकज जी, इतने बढिया बढिया व्यंजन देख कर ( करेले को छोड़ कर....मैं नहीं खाता)...अब हमें शीघ्र ही परोसी जाने वाली दाल-रोटी कहां भायेगी। काश, बाज़ार में भी भजिया और समोसे इतने ही साफ सुथरे बिकते। जो भी हो, आप की डियर मम्मी जी बधाई की पात्र हैं जिन्होंने आपको यह ट्रेनिंग दी।
ReplyDeleteवाह ! ये तो वाकई बहुत तारीफ की बात है। लज़ीज पोस्ट
ReplyDeleteअभिषेक ओझा ,हमे समोसे खाये कई दिन हो गये हे, फ़टा फ़ट अपना स्विटजरलैंड का पत्ता दे दो फ़िर देखो, हम बिना बुलाये ही आ जाये गे, ओर समोसे खा कर बच्ए हुये पेक कर के साथ मे लेजाये गे, या फ़िर तुम्हे ही अपने पास बुला ले गे, ओर सीधा किचन तुम्हारे हवाले कर देगे.
ReplyDeleteयह सब तो मजाक था, अगर आप स्विटजरलैंड मे हे तो मुझ से सम्पर्क करे , हम शायद इस महीने के आखिर मे एक दिन के लिये (युरिख के पास एक गाव मे )स्विटजरलैंड आये,
वेसे मुझे खाना बना नही आता बस खाना ओर खिलाना ही आता हे, मेरा e mail मेरे ब्लांग पर मिल जाये गा.
ReplyDeleteबड़ी ही स्वादिष्ट पोस्ट लगी-भूख खुल कर लग आई. हम तो शौकिया बनाते हुए ऐसे अटके कि अब मजबूरी में बनाना पड़ता है.
ReplyDeleteबढ़िया लगा आपकी पोस्ट पढ़कर.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
अभिषेक जी
ReplyDeleteबहुत अच्छा शौंक रखते हैं आप। इतना कुछ तो मैं नहीं बना सकती।
आप तो साइड बाई साइड रेस्टोरेंट चला सकते है ....हम तो होस्टल मे बस प्याज टमाटर छील के आपने दोस्तो को दिया करते थे ........मशाल्लाह.....आप तो बड़े कुक निकले......
ReplyDeleteआप सब का तहे दिल से शुक्रिया !
ReplyDelete@ज्ञानजी और पंकज जी... आप जब कहें मैं तैयार हूँ... बस ज्वाइण्ट वेन्चर का प्लान किया जाय !
@राज भाटियाजी: आपको जवाब भेज दिया है, समोसे उधार रहे मुझ पर, जब भी मिलें समोसों के साथ ही मिलेंगे, ये वादा रहा.
अरे वाह @ सारी चीजेँ एकदम फर्स्ट क्लास दीख रहीँ हैँ !!
ReplyDeleteपरदेस मेँ २, ३ दिन गुजर जाने के बाद ,
फिर अपनी भारतीय डीशज़ याद आने लगतीँ हैँ ना ? :)
आगे आपकी यात्रा के बारे मेँ भी लिखियेगा --
- लावण्या
Abhishek ji I agree with Gyan ji it is damn impressive. Aap mere blog per aate hain mujhe achcha lagata hai, dhanywaad, aap ka email id na hone ke karan yahaan dhanywad de rahi hun, plz email id dijiye, aur haan ab jab khana banana shauk ban hi gayaa hai toh please "Dal,Roti, Chawal" ke liye ek post likhiye na, example ke liye mujhe toh samose banabe aaj tak nahi aate...aap toh ustaadon ke ustaad nikale ji, lovely pictures
ReplyDeletetasty post!
ReplyDelete"वाह क्या स्वाद है ! तू तो मस्त बनाता है"
ReplyDeleteहम खुस्किस्मत हे कि हमने इनके हाथ के लजीझ पकोडो का स्वाद चखा है. एक ही दिन मी तरह तरह के पकोडो (आलू, गोभी, प्याज और मिर्ची बड़े) का आनंद ले लिया था. हमे इन पर विश्वास है कि ये अमेरिका मे भी हमे शाकाहारी खाने कि कमी महसूस नही होने देंगे [:)].
अनितजी की पोस्ट से यहाँ आए तो पूरी पोस्ट ही स्वादिष्ट व्यंजन सी लग रही है. :( हमें तो इनमें से कई चीज़ें बनानी नहीं आतीं.. लेकिन मुँह में पानी ज़रूर आ गया. ढेरों शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteमुंह में पानी आ गया समोसे और पकौड़ों की तस्वीरें देखकर ....आपका किस्सा भी रोचक था!अगली बार क्या पका रहे हैं?
ReplyDeletethis is first hindi blog i have come across. I like it keep it up bro
ReplyDeletevery very empressive ,,वाकई में आपने तो कमाल कर दिया, यकीन नही आता अभिषेक कि ये सब आप बना लेते हैं...इंसान खूबियों(गुणों) का मजमूआ (खान) होता है ,ऐसा सुना था, आज देख भी लिया,इतने लज़ीज़(स्वादिष्ट) स्नैक्स कि बस देख कर ही खाने तो दिल चाहे,,सच कहूँ तो ये शौक आपको खुदा की तरफ़ से मिला हुआ तोहफा है क्योंकि मजबूरी में हम खाना तो बना सकते हैं पर ऐसा नही कि वो शौक बन जाए...जब देखने से ये इतने tasty लगते हैं तो खाने में तो...म्म्म्म्म
ReplyDeleteएक बात बताऊँ ,,समोसे लाख चाहने पर भी अच्छे क्या , ठीक ठाक भी कभी नही बने मुझ से...हाँ मेरे बाबा इस काम में काफी माहिर हैं...
wah kya bat hai!!aap to kamal ka khana banate hain hame kab bula rahen hain khane par?
ReplyDeleteअभिषेक आपको तो हमारे "दाल रोटी चावल" ब्लोग का मेम्बर बन जाना चाहिये.अनीताजी ठीक कहती है.ज्ञानजी के साथ जब भी रेस्टोरेण्ट खोलें,एड्वान्स में बता दें,हम सभी ब्लोगर खुशी खुशी उद्घाटन करने आ जाएंगे.नाम मैं सजेस्ट कर दूं,”ब्लौगर ढाबा".
ReplyDeleteबहुत देर से बताए यार !
ReplyDeleteचलो भविष्य के लिए अच्छा है।
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ReplyDeleteअरे यह पोस्ट मैंने देखी नहीं -आप तो खूब हैं -आज का सन्डे आपके नाम !
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